VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

गर्भकाल मे शरीर क्रिया विज्ञान

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

गर्भावस्था आपके जीवन का बहुत ही अहम हिस्सा होता है । गर्भिणी के शरीर द्वारा अनुभव किए जाने वाले गर्भावस्था के संकेतों, लक्षणों और परिवर्तनों को जानने से इस प्रक्रिया के दौरान महसूस होने वाली असुविधा को कम करने में मदद मिल सकती है।

गर्भावस्था-परीक्षण से गर्भवती होने का पता लगाने के कई उत्तम तरीके हैं, लेकिन ऐसे भी कई तरीके हैं जिनसे आप परीक्षण से पहले ही यह पता लगा सकते हैं कि कोई महिला गर्भवती है या नहीं।

गर्भावस्था के दौरान क्या शारीरिक परिवर्तन होते हैं

गर्भवती महिलाओं में होने वाले शारीरिक परिवर्तन, गर्भधारणा का पता लगाने वाले प्राथमिक संकेत होते हैं। गर्भावस्था के दौरान होने वाले बदलावों से संबंधित कुछ सामान्य लक्षण यहाँ दिए गए हैं:

माहवारी आने में देरी यह अनियमित मासिक धर्म चक्र के होने का कभी-कभी एक भ्रामक लक्षण होता है, लेकिन मासिक धर्म में चूक अक्सर गर्भवती होने का संकेत होता है। यदि किसी महिला का मासिक धर्म चक्र पिछली अवधि के बाद से निर्धारित समय के बीत जाने के बावजूद अभी तक शुरू नहीं हुआ है, तो वह महिला गर्भवती हो सकती है।

संवेदनशील और सूजे हुए स्तन संवेदनशील स्तन गर्भावस्था का एक और संकेत हो सकता है। ये असुविधाएं शरीर में होने वाले हार्मोनल परिवर्तनों के कारण होती हैं और समय के साथ धीरे-धीरे कम होती जाती हैं ।

जी मिचलाना जी मिचलाना रात को या किसी भी समय हो सकता है। हालांकि इस संकेत को बहुत स्पष्ट रूप से नहीं माना जा सकता है, लेकिन गर्भावस्था में जी मिचलाने का बढ़ना और गर्भाधारण के बीच सह-संबंध होता है।

लगातार पेशाब आना जैसे ही शिशु गर्भ में बढ़ने लगता है, महिला के मूत्राशय और गर्भाशय पर दबाव बढ़ जाता है। इससे बार-बार शौचालय जाना पड़ता है।

थकान का बढ़ना शरीर में गर्भधारण के दौरान प्रोजेस्टेरोन का स्तर बढ़ रहा होता है। इसकी वजह से बहुत थकान का अनुभव हो सकता है।

सांस लेने में दिक्कत होना सांस लेने में तकलीफ होना गर्भावस्था को पहचानने के लिए एक और सामान्य लक्षण है और इसके बाद अक्सर थकान महसूस होती है।

यद्यपि उपरोक्त सामान्य लक्षण शरीर में अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लक्षण भी हो सकते हैं, जब एक ही समय में इनमें से कई लक्षणों को एक साथ अनुभवहो , तो इस बात की काफी संभावना है कि महिलागर्भवती हो सकती है और तब पुष्टि करने के लिए गर्भावस्था परीक्षण किट लेने की आवश्यकता होती है।

गर्भवती महिला में हर सप्ताह होने वाले शारीरिक परिवर्तनों का विश्लेषण

महिला की प्रसव की तारीख की गणना उस दिन से की जाती है जिस दिन उसका आखिरी मासिक धर्म होता है।

गर्भावस्था के दौरान हर महीने सप्ताह दर सप्ताह शरीर में होने वाले परिवर्तनों के विभिन्न चरण निम्न प्रकार से हैं।

सप्ताह 1

पहले और दूसरे सप्ताह के बीच शुक्राणु अंडे से मिलते हैं। आमतौर पर, प्रसव की तारीख के पहले सप्ताह से गर्भावस्था की शुरुआत होती है। इस दौरान दो में से एक ओवरी (अंडाशय) में अंडा परिपक्व होता है और बाहर निकलता है। यदि दोनों अंडाशय अंडे निकालते हैं, तो संभावना है की महिला जुड़वां बच्चों को गर्भ में धारण कर सकती है ।यही वह सप्ताह है जब महिला अपनी प्रसव पूर्व विटामिन की खुराक लेना शुरू कर देती है। अंडा फैलोपियन ट्यूब में नीचे की ओर चला जाता है और शुक्राणु के आने का इंतजार करता है।

सप्ताह 2

सप्ताह 2 के दौरान ओव्यूलेशन होता है। दूसरे सप्ताह से दो या तीन दिन पहले एक सफल गर्भधारण की संभावना को बढ़ाने के लिए संभोग करने का सबसे अच्छा समय होता है। ग्रंथियों के एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन उत्पन्न करने के कारण हार्मोन बढ़ने लगते हैं और स्तन संवेदनशील हो जाते हैं।

सप्ताह 3

200 मिलियन शुक्राणुओं में से कोई एक अंततः अंडे से मिलता है।

अब अंडा युग्मज (जाइगोट) बन जाता है और वह अन्य शुक्राणुओं को खुद में घुसने से रोकता है। यद्यपि अभी भौतिक परिवर्तन नहीं हो रहे हैं, परंतु जैविक स्तर पर परिवर्तन निश्चित रूप से हो रहे हैं। नाभिक महिला के जाइगोट के साथ मिल कर इसके लिंग और आनुवंशिक विशेषताओं को निर्धारित करता है, जिसमें आँखों का रंग, बालों का रंग और 200 अन्य समान आनुवंशिक रूप से निर्धारित विशेषताएं शामिल होती हैं।

सप्ताह 4

गर्भावस्था के पहले महीने यानि 4 सप्ताह में महिला को अपने शरीर में परिवर्तन नजर आने लगेंगे। प्रारंभिक गर्भावस्था के दौरान शरीर में कुछ परिवर्तन होते हैं, जैसे कि सूजे हुए और संवेदनशील स्तन, थकान, बार-बार, पेशाब महसूस होना और जी मिचलाना आदि। आमतौर पर, ये लक्षण एक साथ दखाई पड़ते हैं, जैसा कि आपको पहले ही ऊपर बताया गया है। बच्चे की नाल और नाभि बनना शुरू हो जाती है और निषेचित अंडा गर्भाशय में घुसकर उस जगह पर दबाव डाल सकता है, जिससे कुछ रक्त आ सकता है। मासिक-चक्र समाप्त होने के एक सप्ताह बाद ही परीक्षण किया जाना चाहिए, क्योंकि मासिक धर्म खत्म होने के पहले दिन किए गए परीक्षण अक्सर गलत संकेत देते हैं।

सप्ताह 5

5वें हफ्ते तक भ्रूण एक अनाज के आकार के रूप में बनने और बढ़ने लगता है। भ्रूण के मस्तिष्क, अंगों और रक्त वाहिकाओं का विकास होने लगता है। भ्रूण की पीठ पर एक खाँचा विकसित होने लगता है जो बंद होकर न्यूरल-ट्यूब बनती है और बाद में बच्चे की रीढ़ की हड्डी का रूप ले लेती है।

सप्ताह 6

इस समय तक भ्रूण में न्यूरल-ट्यूब रीढ़ की हड्डी में बदल जाती है और हृदय अधिक रक्त पंप करना शुरू कर देता है। भ्रूण का सी-आकार अधिक स्पष्ट होने लगता है और महिला इस समय ज्यादा जी मिचलाना और थकान महसूस करेगी। गर्भावस्था वाले हार्मोन के स्तर के बढ़ते उत्पादन के परिणामस्वरूप महिला का रक्तचाप भी कम हो जाता है। भ्रूण एक सुरक्षात्मक झिल्ली से घिरा हुआ और योक सैक से जुड़ा हुआ होता है। व्यायाम करने से महिला को तनाव को कम करने और राहत पाने में मदद मिलेगी।

सप्ताह 7

सातवें हफ्ते में मॉर्निंग सिकनेस काफी बढ़ जाती है और भ्रूण का मस्तिष्क और चेहरा आकार लेने लगता है। इस समय तक भ्रूण की आँखों के लेंस विकसित हो जाते हैं, नाक के नथुने भी बन जाते हैं और इसके आलावा हाथ पैडल जैसी आकृति में बनने लगता है। गर्भाशय ग्रीवा के पास श्लेम गाढ़ा हो जाता है और गर्भ के द्वार को बंद कर देता है। पैर के पंजे और अंगुलियों का भी विकास होने लगता है और भ्रूण में ब्रेनवेव गतिविधि के संकेत दिखाई देने लगते हैं। महिला अपने मिजाज में बदलाव महसूस करेगी और काफी चिड़चिड़ी हो जाएगी । हालांकि इसे अच्छे संकेत के रूप में माना जाता है, क्योंकि यह इंगित करता है कि महिला के गर्भावस्था के हार्मोन गति में हैं।

सप्ताह 8

भ्रूण में ब्रेनवेव गतिविधि की शुरुआत आठवें सप्ताह में ज्यादा बेहतर रूप से चिह्नित होने लगती  है। खड़े होने पर श्रोणि में तेज दर्द का अनुभव हो सकता है। डॉक्टर अल्ट्रासाउंड के माध्यम से दिल की धड़कन या भ्रूण की गतिविधि के संकेतों की जांच करते हैं। एक बार भ्रूण की पुष्टि हो जाने के बाद, गर्भपात की संभावना 2% तक कम हो जाती है और इसके आधार पर उन्हें प्रसव की तारीख दी जाती है। गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान, महिला को रक्तस्राव का अनुभव हो सकता है।

सप्ताह 9

भ्रूण के विकास के परिणामस्वरूप मूत्राशय पर बढ़ते दबाव के कारण इस समय बहुत कम मात्रा में मूत्र का रिसाव होता है। नवें सप्ताह में बच्चे के दिल का विकास जारी रहता है और इस समय तक उसकी पलकें विकसित होने लगती हैं, बालों के रोम और निपल्स का विकास होता है। शिशु के हाथों की हड्डियों का विकास हो जाता है और भ्रूण को हिचकी आने की प्रक्रिया शुरू हो जाती महिला आप पानी की कमी महसूस कर सकती है और इस समय पर भरपूर मात्रा में पानी पीने की सलाह दी जाती है क्योंकि गर्भावस्था का यह सबसे ज्यादा कठिन समय माना जाता है।

सप्ताह 10

दसवें हफ्ते में जननांग बनता है, पलकें अधिक स्पष्ट हो जाती हैं । भ्रूण को गर्भनाल के माध्यम से ऑक्सीजन मिलती है और गर्भ में कभी-कभी सांस लेने की गति को समझा जा सकता है।

सप्ताह 11

पहली तिमाही में होने वाले शरीर के परिवर्तन इस समय तक दिखने लगते हैं। भ्रूण सांस ले सकता है, अपना अंगूठा चूस सकता है और गहरी सांस भर सकता है।

अभी भ्रूण का सिर उसके शरीर से बड़ा होता है। 11वें सप्ताह के दौरान भोजन की इच्छा बढ़ जाती है और इस समय महिला को अचार या मसालेदार भोजन खाने की चाह हो सकती, जो महिला के आहार में किसी कमी का संकेत हो सकता है। फोलेट, फाइबर और आयरन का सेवन बहुत आवश्यक होता है। पहली-तिमाही के दौरान की जाने वाली अल्ट्रासाउंड स्क्रीनिंग 11 से 13 सप्ताह के बीच की जाती है, जो क्रोमोसोमल असामान्यताओं के परीक्षण के लिए होती है, जिसके साथ एक न्यूकल ट्रांसलुसेंसी टेस्ट भी किया जाता है।

सप्ताह 12

महिला के गर्भ में मौजूद बच्चा लगभग 3 इंच तक बड़ा हो गया होगा और समय के साथ यह विकास जारी रहने वाला है। महिला के बच्चे का चेहरा मनुष्य जैसा दिखाई देने लगेगा और उसका वजन लगभग 14 ग्राम हो जाएगा। अब शरीर के बाकी हिस्से भी विकास करने लगते हैं। भ्रूण के सिर के विकास की गति शरीर के अन्य भागों के अनुपात को समायोजित करने के लिए थोड़ी धीमी हो जाती है। शिशु की पीठ अब मुड़ सकती है और सीधी हो सकती है। गर्भिणी के पेट की प्रणाली धीमी हो जाती है और महिला का मल काफी सख्त होने लगता है। गर्भिणी पेट में गैस के साथ बढ़ी हुई हृदय गति का अनुभव करेंगी इसके अलावा वह अपने गर्भाशय के बढ़ते आकार को संभालने के लिए अपने कूल्हों की चौड़ाई के बढ़ने का अनुभव करेगी। चूंकि गर्भाशय को श्रोणि में फिट होने में मुश्किल होती है, इसलिए यह पेट पर दबाव डालता है और जगह बनाने के लिए इस पर जोर डालता  है।

सप्ताह 13

पहली तिमाही समाप्त हो चुकी है और दूसरी तिमाही के दौरान शरीर में परिवर्तन पूरे जोरों पर होता है। अब गर्भिणी को ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए। अब उसे इस हिसाब से भोजन करना है की वह दो लोगों के हिसाब से खुराक ले रही है। इस चरण में गर्भिणी अपने अंदर अधिक ऊर्जा का अनुभव करेगी और इस समय तक जी मिचलाना भी कम हो जाएगा। गर्भवती महिलाओं को हल्के योगासनों के साथ तैराकी जैसे व्यायामों का सुझाव दिया जाता है। शिशु प्रसव पूर्व हिचकी लेना शुरू कर देता है, ताकि डायाफ्राम का मार्ग साफ हो सके और उसकी श्वसन की क्रिया सुविधाजनक बन सके। शिशु का गुर्दा अपना काम शुरू कर देता है और अस्थि मज्जा (बोन मैरो) विभिन्न रोगों से लड़ने के लिए श्वेत रक्त कोशिका का उत्पादन शुरू कर देता है। अग्नाशय, पित्ताशय और थायरॉयड भी इसी सप्ताह विकसित होते हैं।

सप्ताह 14

बच्चे के अंग काम करना शुरू कर देते हैं और अब गर्भिणी अल्ट्रासाउंड स्कैन के माध्यम से उसके चेहरे की आकृति को भी देख सकती है। इस समय तक बच्चे की आंतें विकसित हो जाती हैं और इंसुलिन का उत्पादन शुरू हो जाता है। गर्भिणी अब पहली बार अपने पेट में बच्चे की हलचल महसूस करेगी। अब गर्भिणी में चिड़चिड़ापन कम होने लगता है और मूड अच्छा रहने लगता है और अब गर्भिणी औरों के साथ आराम से बात-चीत कर सकती हैं । 14वें सप्ताह में शिशु के चेहरे की मांसपेशियां विकसित हो रही होती हैं और अब वह चेहरे के छोटे-छोटे भाव बना सकता है। न्यूरल-ट्यूब दोषों की जांच के लिए दूसरी तिमाही के दौरान स्क्रीनिंग परीक्षण किया जाता है, जैसे कि स्पाइना बिफिडा और ट्राईसोमी 18 आदि।

सप्ताह 15

रक्त प्रोटीन और डाउन सिंड्रोम या आनुवंशिक दोषों की पहचान के लिए स्क्रीनिंग परीक्षण 15वें सप्ताह में किए जाते हैं। कन्या भ्रूण नर भ्रूण की तुलना में अधिक चेहरे की हलचल दिखाती हैं। अब तक भ्रूण की लंबाई लगभग 5 इंच और वजन लगभग 56 ग्राम हो चुका होगा। गर्भिणी के नाभि के पास अब दिखने-योग्य उभार महसूस होगा । गर्भिणी ब्रेक्सटन-हिक्स संकुचन का भी अनुभव करेगी। अगर गर्भिणी को एक घंटे में चार से अधिक संकुचन और योनि में श्लेम के लगातार स्राव का अनुभव होता है, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

सप्ताह 16

हड्डियों के गठन के बाद विकास की गति बढ़ जाती है। गर्भिणी का वजन हर सप्ताह एक पाउंड यानि लगभग 450 ग्राम तक बढ़ सकता है। गर्भिणी अपने श्रोणि वाले क्षेत्र को कठोर और तना हुआ महसूस करेगी। गर्भिणी अपने बच्चे की हलचल को अब और अधिक महसूस करेगी।

सप्ताह 17

इस समय गर्भिणी को कई अजीबो-गरीब और सुहावने सपने आ सकते हैं। यह प्रसव और माँ बनने को लेकर होने वाली चिंता का संकेत हो सकता है जो पूरी तरह से सामान्य है। बच्चे का वजन अब गर्भनाल की तुलना में अधिक होगा। उसके शरीर में गर्मी पैदा करने वाला ब्राउन फैट अब जमा होने लगता है। गर्भिणी के स्तन का आकार भी बढ़ जाएगा और वे काफी संवेदनशील और नरम हो सकते हैं और कभी-कभी इनमें दर्द भी हो सकता है। रक्त परिसंचरण में वृद्धि की वजह से गर्भावस्था के दौरान गर्भिणी की सुंदरता और निखरने लगती है। संभवतः 17वें सप्ताह में गर्भिणी अपने बच्चे की पहली लात का अनुभव करेगी।

गर्भनाल भी अब पूरी तरह से कार्य करने लगती है, क्योंकि यह अपशिष्ट पदार्थों को अवशोषित करके पोषक तत्वों को वितरित करती है।

सप्ताह 18

भ्रूण का लिंग निर्धारित करने के लिए इस समय कई अल्ट्रासाउंड परीक्षण किए जा सकते हैं। गर्भिणी बच्चे का तेज लातें मरना और भी अधिक महसूस कर सकती है और शिशु अब कुछ ध्वनियों पर प्रतिक्रिया दे सकता है। इसके अलावा बच्चे के रेटिना भी विकसित हो जाते हैं और वह प्रकाश के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। अब बच्चा अपनी स्थिति बदल सकता है और अधिक हलचल भी करेगा, यहाँ तक कि वह अब अपने पैरों को भी मोड़ सकता है। दाँतों का बनना और फैट का जमाव भी शुरू हो जाता है। गर्भिणी पैरों, टेलबोन और अन्य मांसपेशियों में दर्द महसूस कर सकती है।

सप्ताह 19

गर्भिणी के अल्ट्रासाउंड स्कैन में गर्भिणी बच्चे को एम्नियोटिक सैक को पकड़े हुए, अंगूठा चूसते हुए, या गर्भ में हलचल करते हुए देख सकती  है। यदि बच्चा एक लड़की है, तो उसके शरीर के अंदर कूप गठन शुरू हो जाता है, जिसमें गर्भिणी का आधा आनुवंशिक पदार्थ उसके अंदर बनता है। अपने 19वें सप्ताह में बी-विटामिन और स्वस्थ वसा से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन अवश्य करें, क्योंकि यह गर्भिणी के बच्चे के मस्तिष्क के उचित विकास में मदद करता है।

सप्ताह 20

गर्भाशय प्रति सप्ताह 1 सेंटीमीटर बढ़ने की दर के साथ गर्भिणी के अस्थि-पंजर (रिब केज) की ओर बढ़ता है। यह बिलकुल सही समय है जब होने वाली माँ को प्रसव कक्षाओं में भाग लेना चाहिए और बच्चे के जन्म से जुड़ी तमाम तकनीक और श्रम प्रक्रिया के दौरान सुचारू रूप से बच्चे के जन्म की प्रक्रिया सीखनी चाहिए । गर्भिणी की मनोदशा अब बहुत बेहतर हो जाएगी क्योंकि गर्भिणी अपनी गर्भावस्था में प्रसव तक का आधा समय निकाल चुकी है। भ्रूण में गर्भाशय से इम्युनिटी स्थानांतरित होती है।

सप्ताह 21

इस समय, यदि गर्भिणी 35 वर्ष या उससे अधिक उम्र की  हैं या गर्भिणी को मधुमेह और पहले से अन्य कोई पुरानी बीमारी है, तो यह गर्भिणी के लिए चिंता का विषय हो सकता है। एक्लेम्पसिया का खतरा होने के संकेत, गर्भिणी को तीसरी तिमाही तक शरीर के परिवर्तनों में दिखाई देने लगते हैं। इस चरण में लंबे समय तक चलना और अच्छे से आराम करना इस समय की दिनचर्या में शामिल होना चाहिए।

सप्ताह 22

यह गर्भिणी के बच्चे का पाँचवा महीना है। इस समय उसका मस्तिष्क तेजी से विकसित हो रहा होता है। इस चरण में गर्भिणी बवासीर या कब्ज का अनुभव कर सकती हैं। इस सप्ताह के दौरान, योनि में संक्रमण होना और लगातार योनि स्राव होना आम लक्षण होते हैं।

योनि-क्षेत्र को पानी के तीव्र प्रवाह से न धोने की सलाह दी जाती है और योनि स्राव में लालिमा, खुजली और गंध हो सकती है।

बच्चे के अंग और बेहतर तरीके से विकसित हो जाएंगे और भ्रूण को गर्भनाल में रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है।

सप्ताह 23

इस समय तक बच्चे की आँखें बन चुकी होंगी, लेकिन रंजकता की कमी के कारण गर्भिणी उसका रंग नहीं बता सकती है। गर्भिणी के डॉक्टर उसे लंबी दूरी की यात्रा करने से मना कर सकते हैं।

सप्ताह 24

इस सप्ताह के दौरान गर्भिणी को सीने में जलन का अनुभव होगा। यह सीने में जलन, बच्चे के सिर पर बढ़ने वाले बालों की वजह से होती है। यदि गर्भिणी सीने में जलन का अनुभव नहीं करती है, तो संभवतः बच्चे के सिर पर बाल कम होंगे । गर्भावस्था के इस सप्ताह में मांसपेशियों में दर्द, पैरों में दर्द, थकान और चक्कर आना आदि अन्य शारीरिक परिवर्तन होते हैं।

सप्ताह 25

इस समय से व्यायाम करना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, ताकि प्रसव के बाद गर्भिणी का शरीर अच्छे से ठीक हो सके। अब गर्भिणी के बच्चे की नींद का चक्र नियमित हो जाएगा और उसके नथुने खुल जाएंगे। शिशु के फेफड़े सर्फेक्टेंटका विकास करेंगे, जो फेफड़ों को फुलाने में मदद करता है और बेहतर सांस लेने के लिए फेफड़ों के अंदर छोटे से एयर सैक को खुला रखता है। गर्भिणी अपनी पीठ, कूल्हे और पैरों में दर्द का अनुभव करेगी। इस समय फिर गर्भिणी को थकान और चक्कर महसूस होने लगेंगे।

सप्ताह 26

इस चरण में बच्चे के सुनने की प्रणाली विकसित होती है और वह किसी शोर के प्रति गर्भ में हलचल करता है और उसपर अपनी प्रतिक्रिया देता है। गर्भिणी अपनी नींद के दौरान असुविधा का अनुभव करेगी। पीठ के बजाय बगल के बल करवट लेकर सोएं, क्योंकि पीठ के बल सोने से गर्भाशय की बड़ी धमनी के ऊपर स्थित होने के कारण शिशु में रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो जाने का खतरा होता है। हो सकता है कि अब गर्भिणी को अपने पेट के पास स्ट्रेच-मार्क्स दिखाई देने लगें ।

सप्ताह 27

पीठ में तेज दर्द होता है। गर्भिणी सायटिका नामक तेज पीठ दर्द का अनुभव कर सकती हैं। कुछ उठाने, झुकने और चलने से दर्द और बढ़ता है और एम्नियोटिक द्रव की मात्रा कम हो जाती है। बच्चे के हिलने पर उसके पैर की अंगुलियों व घुटनों या उसके शरीर के कुछ हिस्सों को गर्भिणी के पेट पर देखा जा सकता है। इस समय गर्भिणी के दिल के धड़कन की दर बढ़ जाती है और गर्भिणी पूरा थका हुआ महसूस कर सकती है।

 

सप्ताह 28

तीसरी तिमाही शुरू हो चुकी है और गर्भिणी पेट में ब्रेक्सटन-हिक्स संकुचन का अनुभव करेगी। इस चरण में बच्चे का वजन बढ़ने की दर बढ़ जाती है और उसके शरीर में वसा 2 से 3 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। गर्म मौसम में लंबे समय तक खड़े रहने से बचें क्योंकि इससे गर्भिणी को चक्कर आ सकता है और रक्तचाप कम हो सकता है। अगर गर्भिणी गर्मियों के मौसम में गर्भवती है तो राहत पाने के लिए पानी का अधिक सेवन करे और अधिक से अधिक छाया में रहे। गर्भिणी का पेट भी आकार में बढ़ेगा और इससे गर्भिणी का शरीर असहज महसूस करेगा। पैरों में होने वाली ऐंठन और दर्द भी बढ़ेगा जो इस समय होना आम बात है।

सप्ताह 29

29वें सप्ताह के दौरान बार-बार पेशाब के लिए जाना और नींद आना इस समय में होने वाले आम लक्षण हैं। शिशु की श्वसन प्रणाली और अंग विकसित हो जाते हैं और उसे सांस लेने में किसी सहायता की आवश्यकता नहीं होती है। इस चरण में प्रोलैक्टिन का उत्पादन बढ़ जाता है और गर्भिणी के स्तन कोलोस्ट्रम का स्राव करने लगते हैं। इसके अलावा बच्चे की एड्रेनल ग्रंथियां, एस्ट्रिऑल का उत्पादन करने लगती हैं।

सप्ताह 30

लगातार गर्भाशय बढ़ने के कारण यह गर्भिणी के डायफ्राम को दबाने लगता है। इस समय गर्भिणी को सांस लेने में तकलीफ का अनुभव हो सकता है। सांस लेने में परेशानी होने की वजह से गर्भिणी के मूत्राशय पर दबाव पड़ता है और इस कारण बार-बार पेशाब महसूस होता है।

सप्ताह 31

गर्भ में अब बहुत ही कम जगह रह जाती है क्योंकि शिशु आकार में बढ़ रहा है और गर्भिणी का पेट उसके अनुसार अधिक फैलने लगता है। गर्भिणी महसूस करे तो पाएगी कि शिशु प्रति घंटे के हिसाब से लगभग दस बार लात मारेगा, यह बच्चे के स्वस्थ विकास की दर को दर्शाते हैं और डॉक्टर महिलाओं को बच्चे के हर घंटे में मारी जाने वाली लात (किक) की संख्या को ट्रैक करने के लिए कहते हैं। यदि गर्भिणी निष्क्रियता महसूस करती है, तो एक गिलास ताजे फल या सब्जियों का रस पीएं ।

सप्ताह 32

शिशु की पाँचों इंद्रियां अब तक पूरी तरह से विकसित हो चुकी होंगी। सोते समय बच्चे को आर.ई.एम. चक्र का अनुभव होगा और उसके सांस लेने की गति गर्भ के अंदर तेज हो जाएगी ताकि बच्चा प्रसव की प्रक्रिया के लिए तैयार रहे।

सप्ताह 33

बच्चे का सिर नीचे की तरफ होना यह इंगित करता है कि अब वह प्रसव के लिए तैयार है। यह स्थिति उसके मस्तिष्क में अधिक रक्त पहुँचाती है और गर्भिणी पेट में अधिक संकुचन का अनुभव कर सकती है।

 

सप्ताह 34

जब पेट पर रोशनी पड़ती है तब बच्चे के ऑंख की पुतलियां प्रतिक्रिया करती हैं और ये फैलती और सिकुड़ती हैं। इस सप्ताह, बच्चा गर्भ के अंदर बहुत सोएगा क्योंकि उसके मस्तिष्क का विकास जारी है। बच्चा नींद के दौरान आर.ई.एम. चक्र का अधिक गहराई से अनुभव करता है और सपने भी देख सकता है।

सप्ताह 35

बच्चे का आकार लगभग 16 से 20 इंच तक बढ़ जाएगा और अब वह प्रसव के लिए तैयार है। इस सप्ताह, शिशुओं के तंत्रिका और प्रतिरक्षा तंत्र परिपक्व होने की स्थिति में होते हैं और इस कारण गर्भिणी के शरीर को यह अतिरिक्त वजन महसूस होगा। इस समय इधर-उधर घूमने या सामान्य, रोजमर्रा के काम करने के बाद गर्भिणी को थोड़े समय के लिए आराम करने और बैठने की जरूरत पड़ सकती है। 35वें सप्ताह से अगले दो सप्ताहों के लिए, गर्भिणी का ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस की उपस्थिति के लिए परीक्षण किया जाएगा, ये योनि में रहने वाले बैक्टीरिया होते हैं जो बच्चे तक संक्रमण पहुँचा सकते हैं। इस परीक्षण में आम तौर पर रूई की पट्टी से मलाशय पर एक हल्का दबाव डाला जाता है।

सप्ताह 36

इस चरण में बच्चे की हलचल धीमी हो जानी चाहिए और गर्भिणी दिन में लगभग 20 बार भ्रूण की हलचल को महसूस करेगी। यदि गर्भिणी बिलकुल हलचल महसूस नहीं करती हैं तो एक गिलास संतरे का रस पीकर करवट लेकर लेट जाएं। यह शिशुओं को जगाने और थोड़ी देर के लिए घूमने में मदद करता है।

सप्ताह 37

बच्चे की आंतें मेकोनियम उत्पन्न करती हैं। प्रसव के बाद बाहर आने पर यह उसके पहले मल त्याग में मदद करता है। भ्रूण का आकार अब लगभग 20 से 21 इंच और वजन 6 से 7 पाउंड के बीच हो जाता है। चेहरे पर एक समानता दिखाई देने लगती है और शिशु श्रम के लिए सांस लेने का अभ्यास करने लगता है। गर्भिणी के स्तनों से कोलोस्ट्रम निकलना जारी हो जाता है जो शिशु के पोषण का स्रोत बनता है और गर्भिणी को पेट में उभार और बेचैनी महसूस होगी।

सप्ताह 38

लैनुगो, जो बच्चे के शरीर को ढंकने वाले बाल होते हैं, वे गायब हो जाते हैं। बच्चा अब तक पूरी तरह से विकसित हो चुका होता है; हालांकि, मस्तिष्क में अभी भी विकास हो रहा है, जो बच्चे के जन्म के बाद भी जारी रहेगा। अब तक बच्चे के हाथ और पैर की अंगुलियों के नाखून परिपक्व हो जाते हैं। पीठ और गर्दन में लगातार दर्द होना यह इस चरण में एक आम लक्षण है। इस समय शिशु की गतिशीलता में कमी आना भी आम बात है । यह समय गर्भिणी के लिए काफी मुश्किल भरा हो सकता है और गर्भिणी खुद को बहुत थका हुआ महसूस करेगी । राहत पाने के लिए गर्भिणी को चाहिए कि कम मात्रा में थोड़े-थोड़े अंतराल पर स्वस्थ भोजन खाएं।