स्वास्थ्य परीक्षा
वजनः
जब भी गर्भवती महिला स्वास्थ्य
परीक्षा के लिए जाती है तो उसके वजन की जांच करनी चाहिए। सामान्यतया गर्भवती महिला
का वजन 9 से 11 कि. ग्राम
तक बढ़ जाना चाहिए। पहली तिमाही के पश्चात गर्भवती महिला का वजन 2 किलो ग्राम
प्रति माह अथवा 0.5
प्रति सप्ताह बढ़ना चाहिए। यदि आवश्यक कैलोरी की मात्रा से खुराक पर्याप्त नहीं हो
तो महिला अपनी गर्भावस्था के दौरान 5 से 6 किलो ग्राम
वजन ही बढ़ा सकती है। यदि महिला का वजन
प्रतिमाह 2
किलो ग्राम से कम बढ़ता हो,
तो अपर्याप्त खुराक समझनी चाहिए। उसके लिए अतिरिक्त खाद्य आवश्यक होता है। वजन
कम बढ़ने से गर्भाशय के अंदर गड़बड़ी का अंदेशा होता है और वह कम वजन वाले बच्चे
के जन्म में परिणत होता है। अधिक वजन बढ़ने (> 3 किलो ग्राम प्रतिमाह) से प्री एक्लेम्पसिया/जुड़वां बच्चों
की संभावना समझनी चाहिए। उसको चिकित्सा अधिकारी के पास जाँच के लिए भेजना चाहिए।
ऊंचाईः
मातृवंश और प्रसव परिणाम के बीच
संबंध है, कम
से कम कुछ अंश तक क्योंकि बहुत ही कम ऊंचाई वाली स्त्री की श्रोणि (पेल्विस) छोटी
होने के कारण इसका जोखिम बढ़ जाता है। ऐसी स्त्रियां जिनकी ऊंचाई 145 सेंटी मीटर
से कम होती है, उनमें
प्रसव के समय असामान्यता होने की अधिक संभावना होती है और अति खतरा संवेदी महिला
समझी जाती है तथा उसके लिए अस्पताल में ही प्रसव की सिफारिश की जाती है।
रक्त चापः
गर्भवती महिला के रक्तचाप की
जाँच बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जिससे कि गर्भाधान के दौरान अति तनाव का विकार न
होने पाए। यदि रक्तचाप उच्च हो (140-90 से
अधिक अथवा 90
एमएम से अधिक डायलेटेशन) और मूत्र में अल्बूमिन की मात्रा पाई जाए तो महिला को
प्री-एक्लेम्पसिया कोटि में मान लेना चाहिए। यदि डायास्टोलिक की मात्रा 110 एम एम एच जी
से अधिक हो तो उसे तत्काल गंभीर बीमारी की निशानी माना जाएगा। इस प्रकार की महिला
को तत्काल जाँच के लिए भेज देना चाहिए। गर्भवती महिला जो कि तनाव (पी आई एच) / पी
एकलेम्पसिया से प्रभावित हो उसको अस्पताल में प्रवेश कराने की आवश्यकता होती है।
पैलोरः
यदि महिला के निचले पलक की जोड़, हथेली और
नाखून, मुंह
का कफ और जीभ पीले हों तो उससे यह संकेत मिलता है कि महिला में खून की कमी है।
श्वसन क्रिया
की दर (आर आर):
विशेषरूप से यदि महिला सांस न ले
सकने की शिकायत करती हो तो श्वसन क्रिया की जांच करना अति महत्वपूर्ण है। यदि
श्वसन क्रिया 30
सांस प्रति मिनट से अधिक हो और कफ उत्पन्न होता हो तो यह संकेत मिलता है कि महिला
को खून की भारी कमी है तथा उसे डॉक्टर के पास जांच के लिए भेजना अत्यावश्यक है।
सामान्य
सूजनः
चेहरे पर सांस फूलने को सामान्य
सूजन होना माना जाता है तथा इससे प्री एक्लेम्पसिया होने की संभावना समझनी चाहिए।
उदरीय
परीक्षाः
गर्भ और भ्रूण में वृद्धि और
भ्रूण न होने तथा होने पर निगरानी रखने के लिए उदरीय परीक्षा करनी चाहिए।
लौह फोलिक
अम्ल की आपूर्तिः
गर्भवती महिलाओं को खून की कमी
के खतरों से बचाने के लिए गर्भावस्था के दौरान अधिकाधिक लौह की आवश्यकता पर जोर
डालें। सभी गर्भवती महिलाओं को गर्भाधान के बाद की पहली तिमाही अर्थात 14 से 16 सप्ताह से
प्रतिदिन लौह युक्त खाद्यों की आवश्यकता
होती है। यदि किसी महिला में खून की कमी हो या उसको पैलोर हो तो उसे तीन माह तक भरपूर
आयरन युक्त खाद्य देते रहें।
गर्भावस्था
के दौरान पौष्टिक भोजन
गर्भावस्था के दौरान महिला की
खुराक इस प्रकार होनी चाहिए,
जिससे बढ़ रहे भ्रूण,
मां के स्वास्थ्य का रख - रखाव,
प्रसव के दौरान आवश्यक शारीरिक स्वास्थ्य और सफल स्तन-पान कराने की क्रिया के
लिए आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकेः
·
भ्रूण के लिए प्रोटीनयुक्त आहार अनिवार्य होता है। यदि संभव
हो तो गर्भवती महिला को पर्याप्त मात्रा में दूध, अंडे,
मछली, पॉल्ट्री
उत्पाद और मांस का सेवन करना चाहिए। यदि वह शाकाहारी हो तो उसे विभिन्न अनाजों तथा
दालों का प्रयोग करना होगा।
·
खून की कमी न होने पाए, इसलिए शिशु में रक्त वृद्धि के लिए लौह अत्यंत महत्वपूर्ण
स्थान रखता है। मां को चीनी के स्थान पर गुड़ का प्रयोग करना चाहिए, बाजरे से बने
खाद्यों को खाना चाहिए,
साथ ही तिल के बीज और गहरी हरी पत्तियों वाली सब्जी का भरपूर प्रयोग करना
चाहिए।
·
शिशु की हड्डियों और दांतो की वृद्धि के लिए कैल्सियम आवश्यक
है। दूध कैल्सियम का अति उत्तम स्रोत है। रागी और बाजरे में भी कैल्सियम उपलब्ध
होता है।
·
गर्भवती महिलाओं के लिए विटामिन महत्वपूर्ण होती है। उसको
साग-सब्जियों का भरपूर प्रयोग (विशेष रूप से गहरी हरी पत्तियों वाली) करना चाहिए
और खट्टे प्रकार के फलों सहित फलों का प्रयोग करना चाहिए।
संशोधित
भोजनः
1.
सूजन में कमी लाने के लिए कम नमक वाले भोजन लेने चाहिए। महिला सामान्य भोजन खा
सकती है किंतु नमकीन या नमक रहित पकाना चाहिए।
2.
प्री एक्लेम्पसिया,
विशेष रूप से मूत्र में अलबूमिन पाए जाने पर उच्च प्रोटीन युक्त खुराक लेनी
चाहिए। गर्भवती महिला को अपनी
प्रोटीनयुक्त खुराक बढ़ाने की सलाह देनी चाहिए।
कार्यभार, विश्राम और
नींद
बहुत सी महिलाएं गर्भवती होने पर
कड़ी मेहनत या पहले से भी अधिक कड़ी मेहनत से काम करना जारी रखती है। अत्यधिक
शारीरिक श्रम के वजह से गर्भपात,
अपरिपक्व प्रसूति या कम वजन वाले शिशु (विशेष रूप से जबकि महिला पर्याप्त भोजन
न कर रही हो) पैदा होने की संभावना रहती है। गर्भवती महिला को यथासंभव भरपूर
विश्राम करना चाहिए। दिन के समय उसको लेटकर कम से कम एक घंटे का विश्राम करना
चाहिए तथा प्रत्येक रात में 6 से 10 घंटे सोना
चाहिए। करवट के बल सोना हमेशा आरामदायक होता है तथा इससे पल रहे शिशु को रक्त की
आपूर्ति में वृद्धि होती है।
गर्भावस्था
के दौरान उत्पन्न होने वाले लक्षण
असुविधा
सूचक लक्षण |
जटिलता
सूचक लक्षण |
मिचली और उल्टी होना |
बुखार |
हृदय में जलन |
योनि से स्राव |
कब्ज |
धड़कन तेज होना,
आराम के दौरान भी थकावट होना या सांस तेज चलना |
बार बार पेशाब आना |
सामान्य रूप से शरीर फूल जाना, चेहरा फूल
जाना |
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पेशाब कम मात्रा में आना |
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योनि से रक्त स्राव होना |
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भ्रूण की गति कम होना अथवा नहीं होना |
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