VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

अजीर्ण - कारण, लक्षण एवं चिकित्सा

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

अजीर्ण जिसे अपचन, मंदाग्नि तथा अग्निमांद्य भी कहते है। अजीर्ण होने पर शरीर और पेट भारी रहता है। कभी-कभी दस्त और कभी-कभी कब्ज की भी शिकायत हो जाती है और कभी बदहजमी के कारण दस्त भी हो जाते है। भोजन के बाद जी मचलता है। खट्टी डकारे, कभी-कभी उल्टी (कै) भी हो जाती है।

कारण-

अजीर्ण रोग के कारणो को निम्न दो भागो में बाँटा जा सकता है।

1. दैहिक कारण

2. मानसिक कारण

 

1. दैहिक कारण-

·         भोजन समय पर नही करना।

·         बहुत अधिक जल पीना।

·         स्वाद के वशीभूत होकर बार-बार खाना।

·         दिन में शयन करना।

·         मल-मूत्र आदि वेगों को रोकना।

·         रात्रि में जागरण करना।

 

2. मानसिक कारण-

·         जो व्यक्ति अत्यधिक भयग्रस्त रहते है, उन्हे भी यह रोग होता है।

·         जो व्यक्ति दूसरो से ईर्ष्या रखते है, उन्हे भी यह रोग अवश्य होता है।

·         लोभी, शोक, दीनता, मत्सरता आदि कारण रोग को बढ़ाने वाले और रोग को उत्पन्न करने के प्रमुख मानसिक कारण है।

लक्षण-

अजीर्ण होने पर निम्न लक्षण उत्पन्न होते है-

·         खट्टी डकार आना

·         भोजन का ठीक से ना पचना

·         शरीर और पेट भारीपन

·         पेट का फूलना

·         जी मचलना, मुँह में पानी आना

·         गले व कलेजे में जलन होना

·         सीने में भरीपन एवं घबराहट होना।

·         दिल की धड़कन बढ़ना

·         पाखाना ना होना या पतला होना

·         भूख बिल्कुल भी ना लगना

·         भोजन बिना पचे ही पाखाने के द्वारा निकल जाना

·         स्नायविक दुर्बलता का होना और उपचार ना मिलने पर दुर्बलता और बढ़ जाना

यौगिक चिकित्सा-

अजीर्ण रोग के रोगियो के लिए यौगिक चिकित्सा सबसे अच्छी चिकित्सा विधि है। अजीर्ण का एक कारण तनाव है। यौगिक चिकित्सा तनाव को कम करने एवं पाचन क्रिया को सुचारू बनाने में सहायक है।  यौगिक चिकित्सा में निम्न अभ्यासों द्वारा अजीर्ण को दूर किया जा सकता है-

षट्कर्म में कुंजर नेति, धौति और नौलि क्रिया अजीर्ण रोग हेतु अति लाभकारी है।

अजीर्ण के रोगियो को शक्तिसंचालन के अभ्यासो को करना चाहिए, जैसे- चक्कीचालन, नौकासंचालन, उत्तान पादासन, पवनमुक्तासन, नौकासन, शलभासन, हलासन आदि का अभ्यास करना चाहिए। अजीर्ण के रोगियो को भोजन के तुरन्त बाद वज्रासन में बैठना चाहिए।  प्राणायाम मे दीर्घ श्वास-प्रश्वास एवं अनुलोम-विलोम लाभकारी है।

प्राकृतिक चिकित्सा-

मिट्टी तत्व चिकित्सा-मिट्टी की पट्टी -

·         अर्जीण के रोग में रात भर के लिए पेडू पर गीली मिट्टी की पट्टी रखें इससे अर्जीण के रोग में अत्यन्त लाभ मिलता है।

·         कमर की गीली लपेट लगाने से भी रोगी को लाभ मिलता है।

जल तत्व चिकित्सा - उषापान - एनिमा -

·         यौगिक क्रियायें जलनेति, सूत्रनेति, घृतनेति आदि षट्कर्मो के बाद 7-8दिनों तक लगातार नीम के उबले पत्तों का एनिमा लेना चाहिए।

·         भोजन से एक घण्टा पहले एक गिलास ठण्डें जल में एक कागजी नींबू का रस डालकर पीना चाहिए। यह क्रिया अर्जीण के रोग में अत्यन्त लाभकारी है।

कटि- स्नान -

·         विशेषकर गरम और ठण्डा कटि स्नान इस रोग में अत्यन्त लाभकारी है।

·         5 मिनट तक गरम पानी में कटि- स्नान करने के बाद 3 मिनट तक ठण्डें पानी में कटि-स्नान लेना चाहिए।

·         इस क्रिया को 3-4 बार तक दोहराना चाहिए। यह स्नान अर्जीण के रोगियों को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अग्नि तत्व चिकित्सा-

·         प्रतिदिन नीली बोतल के सूर्य तप्त जल की 4 खुराकें 50 ग्राम ही पीने से लाभ मिलता है।

वायु तत्व चिकित्सा- अभ्यंग चिकित्सा-

·         अर्जीण रोगियों को सक्रिय करने के लिए सर्वाग मालिश देना चाहिए, यह रोगी के लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है।

·         अर्जीण रोगियों को सुबह- शाम खाली पेट के चारों ओर हाथों की कटोरी बनाकर हल्की थपकी दें।

·         कटोरी थपकी मालिश से अर्जीण रोगियों केा चमत्कारिक लाभ मिलता है।

 

प्रातःकालीन भ्रमण-प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्योदय से पहले ओस से भीगी घास पर भ्रमण करने से हमारा पूरा शरीर क्रियाशील हो जाता है, और हमारा पाचन तन्त्र हमेशा सक्रिय रहता है तथा अजीर्ण जैसे घातक रोग से छुटकारा मिलता है।

आकाश तत्व चिकित्सा-

·         अर्जीण रोगी को 3-4 दिनों का उपवास कागजी नींबू के रस मिले जल पर करना चाहिए, या फलों के रस पर रहना चाहिए।

·         उपवास काल के दौरान गाजर, संतरा, टमाटर आदि का रस अत्यन्त लाभकारी है।

·         उपवास व अल्पाहार के बाद भूख एंव पाचन सशक्ति के अनुसार सादा और सात्विक आहार करना आरम्भ करना चाहिए।

 

प्रार्थना-

जब हम प्रार्थना करते है, तो सकारात्मक भाव उत्पन्न होते है हमारे अन्दर की नकारात्मकता दूर होती है प्रार्थना के माध्यम से भी हार्मोन्स एंव एन्जाइम संतुलित होते है, पाचन तन्त्र क्रियाशील होते है तथा सम्पूर्ण शरीर स्वस्थ होता है और अजीर्ण जैसे घातक रोग में मुक्ति पाने में सफलता मिलती है।

आहार चिकित्सा

·         हाथकूटा उसना चावल का मांडयुक्त भात भी अत्यन्त उपयोगी होता है।

·         बाजरी, तेल, घी, गुड़, मूँगगफली को अधिक खाने से उत्पन्न अजीर्ण में छाछ पीयें।

·         छाछ में सेंधा नमक, भुना जीरा, सौफ, काली मिर्च पीसकर मिलाकर पीने से प्रायः हर प्रकार के अजीर्ण में लाभ होता है।

·         प्याज काटकर नीबू निचोड़कर भोजन के साथ खाने से लाभ होता है।

·         बथुआ का उबालकर एक कप सूप पीयें।

·         फूलगोभी या पत्तागोभी का रस तथा जल सम मात्रा में मिलाकर 40 मिली. लेने से लाभ मिलता है।

·         नींबू काटकर उस पर काली मिर्च तथा नमक लगातार गर्म करके चूसने से लाभ मिलता है।

·         आयुर्वेदिक चूर्ण, चटनी, बटी, आसव तथा अरिष्ट तथा एलोपैथिक दवाइयों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

·         तले भुने, चटपटे, नमकीन, मिर्च-मसाले, फास्ट फूड, जंक फूड़, कृत्रिम पेय, चाय, काफ़ी, बिस्किट, ब्रेड नही खाना चाहिए।

विशेष-

अजीर्ण में उपवास चिकित्सा चमत्कार है।

·         तीन दिन रसाहार, तीन दिन नींबू पानी, शहद तथा ती दिन सिर्फ पानी, दो दिन रस, दो दिन उबली सब्जी, छाछ-दही तीन घण्टे के अन्तर से दें।

·         भूख लगने पर ही भोजन दें।

·         खाना खूब चबा-चबाकर खायें।

·         खाने के मध्य तीन घण्टे का अन्तर रखें।

·         खाने के एक घण्टे पहले या एक घण्टे बाद पानी पीयें।