कब्ज
कब्ज जिसे की मलाप्रवृति
वद्धविटकता, विड्गह, विडविबद्धता
आदि अनेक शब्दों द्वारा शास्त्रों में जाना जाता है। सुश्रुत संहिता में ‘अनाह’ शब्द का
प्रयोग विबंध अर्थ में किया गया है। कब्जियत,
कोष्ठबद्धता या मलबन्ध आदि नामों से जाना जाता है।
साधारण भाषा में शुष्क मल के
रूकने में होने वाला रोग ही कब्ज है,
कब्ज हमारे गलत आहार- विहार अर्थात् खान-पान सम्बन्धी अनेक अनियमितताओं के
कारण मल का रूक जाना ही कब्ज है।
हम जो भी खाते है, उस भोजन का
आमाश्य तथा आंतों द्वारा पाचन,
अवशोषण तथा सात्मीकरण किया जाता है। अनपचा कूड़ा स्वतः मल के रूप में निकाल
दिया जाता है, जब
मल बाहर नही निकलता है,
उसे ही कब्ज या कोष्ठबद्धता कहते है।
कारण-
कब्ज हमारे गलत आहार- विहार के
कारण होता है। कब्ज होने के कुछ अन्य प्रमुख कारण निम्न है-
·
अत्यधिक गरिष्ठ एवं मिर्च-मसाले व तली-भुनी चीजों का
अत्यधिक सेवन करना।
·
अत्यधिक रूखा एवं बासी भेजन करने से कब्ज हो जाता है।
·
भोजन का समय निश्चित नहीं होना भी कब्ज का एक कारण है।
·
चोकर रहित अति महीन आटा, बिना छिलके की दाल तथा रेशे रहित आहार का अधिक सेवन भी कब्ज
का एक कारण है।
·
परिश्रम कम करना,
अकर्मण्य जीवन जीने वाले भी कब्ज से ग्रस्त हो जाते है।
·
अत्यधिक व्यवस्तता के कारण या शर्म या संकोच के कारण
मलोत्सर्जन रोके रखने की आदत भी इस रोग के लिए उत्तरदायी है।
·
अपर्याप्त आहार एवं अत्यधिक परिश्रम के कारणों से भी कब्ज
का हो जाता है।
·
भय चिंता क्रोध आदि मानसिक विकार के कारण भी इस रोग के लिए
उत्तरदायी है।
·
मल मार्ग के रोगों के कारण जैसे बवासीर, भगन्दर आदि।
·
भोजन को चबा-चबाकर नहीं खाना।
·
बार-बार भोजन करने की आदत।
·
भोजन में शाक-सब्जी का अभाव।
·
भोजन में विटामिन का अभाव।
·
कब्ज के कारणो में वृद्धावस्था में खून की कमी, उदर की
पेशियों की दुर्बलता आदि है।
·
शरीर में पानी की कमी।
·
लम्बी बीमारी के कारण शारीरिक दोनो की प्रबलता जिससे शरीर
के अन्य अंग-अवयव सही से कार्य नही कर पाते है।
·
बीमारी के कारण अधिक औषधियों का सेवन तथा लीवर आदि के ठीक
से कार्य ना कर पाने के कारण भी कब्ज रोग होता है।
लक्षण-
·
कब्ज होने पर अनेक शारीरिक एवं मानसिक रोगों की उत्पत्ति
होने लगती है।
·
रोगी के पेट में हर समय भारीपन रहता है।
·
किसी रोगी की भूख बढ़ जाती है, परन्तु अधिकतर रोगियों की भूख कम हो जाती है।
·
कुछ रोगियों को हल्का मीठा-मीठा दर्द रहता है तथा कुछ
रोगियो में ये दर्द नही रहता है।
·
कब्ज के रोगियो के मुख से अक्सर दुर्गन्ध आती रही है। जीभ
पर सफेद परत सी जीम रहती है।
·
मल के जमे रहने से,
सड़ने से अधोमार्ग द्वारा दुर्गन्धयुक्त वायु निकलती रहती है।
·
आँतो में अन्न की सड़न से, रोगी के सिर दर्द,
चक्कर आना, मानसिक
तनाव व मितली एवं शिथिलता के लक्षण उत्पन्न होते है।
·
कब्ज के रोगियो में आलस्य, सुस्ती,
नींद ना आना तथा ज्वर आदि लक्षण देखने को मिलते है।
·
कब्ज के रोगियो में अग्निमांद्य, अरूचि, अफारा आदि
लक्षण भी देखने को मिलते है।
·
स्नायु सम्बन्धी रोगों का शिकार हो जाता है।
·
अधिक दिनों तक कब्ज रहने से अर्श (बवासीर) की उत्पत्ति हो
सकती है।
·
गैस बनने लगती है। पेट पर गैस बनने पर सिर दर्द तथा यह गैस
हृदय को प्रभावित पर घबराहट को जन्म देती है।
·
एसिडिटी भी उत्पन्न हो जाती है तथा गले में जलन की शिकायत
होती है।
·
सुबह सोकर उठने के बाद भी थकावट होना,
·
कब्ज के रोगियो को बार-बार सिर में दर्द होता है।
·
कई त्वचा सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।
·
रोगी में कमजोरी,
चिड़चिड़ापन एंव बौखलाहट आदि लक्षण देखने को मिलते है।
·
नेत्रों में भारीपन की समस्या भी बनी रहती है।
·
सम्पूर्ण शरीर में भारीपन व्याप्त हो जाता है।
कब्ज
के प्रकार-
1.यान्त्रिक
या कायिक कब्ज-
गर्भाशय, आमाशय या
आँतो के विभिन्न रोग ट्यूमर,
अल्सर, सूजन, घाव, निशान, फिशर, रक्तार्भ आदि
कारणो से उत्पन्न कब्ज यान्त्रिक या कायिक कब्ज कहलाता है।
2.क्रियात्मक
कब्ज-
मानसिक संवेगो, स्नायविक
कमजोरी, अन्तःस्त्रावी
ग्रन्थियो के विकार, मल
के वेग को रोकना, औषधिजन्य
एंव आहार विषाक्तता, कम
पानी पीना,
श्रम का अभाव, धूम्रपान, बिना चबाये
भोजन करना, भोजन
में फाइबर की कमी, मैदा, बेसन आदि से
बने पदार्थो का अधिक से अधिक प्रयोग से आँतो के स्वाभाविक कार्य में रूकावट आ जाती
है। जिससे क्रियात्मक कब्ज होता है।
3.जन्मजात
कब्ज-
बचपन में ही आँतो की संरचनात्मक
विकृति के कारण जन्मजात कब्ज होता है।
कब्ज
की यौगिक चिकित्सा-
कब्ज की चिकित्सा उचित
आहार-विहार व योग की क्रियाओं के अभ्यास के द्वारा की जा सकती है। यौगिक क्रियाओं
में निम्न अभ्यास कब्ज से मुक्ति दिला सकते है।
षट्कर्म- अग्निसार
क्रिया,वस्ति
कर्म एवं नौलि का अभ्यास। आवश्यकतानुसार 15 दिन
में एक बार लघु शंखप्रक्षालन भी किया जा सकता है। शंखप्रक्षालन उचित मार्गदर्शन
में ही करवायें।
आसन- पवनमुक्तासन, कौआचालासन, त्रिकोणासन, ताड़ासन, कटि चक्रासन, उदराकर्षण, तिर्यक
भुजंगासन, मत्स्यासन, अर्द्ध
मत्स्येन्द्रासन, हलासन
आदि आसन कब्ज रोगियो के लिए अति उत्तम है। कब्ज के रोगी को भोजन के तुरन्त बाद 10 मिनट तक
वज्रासन में बैठना चाहिए। सूर्यनमस्कार- सूर्यनमस्कार का प्रतिदिन सूर्योदय के समय
12
आवृतियो तक अभ्यास करना चाहिए।
प्राणायाम-
प्रतिदिन भ्रस्त्रिका प्राणायाम,
सूर्यभेदी प्राणायाम एवं नाड़ीशोधन प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।
मुद्रा एवं बन्ध-
कब्ज रोगियो के लिए योगमुद्रा,
अश्विनी मुद्रा एवं बन्धो में उड्डियान बंध और महाबन्ध का अभ्यास करना चाहिए।
ध्यान- कब्ज
के रोगियो को ध्यान के माध्यम से अन्तमौन का अभ्यास करना चाहिए।
प्राकृतिक
चिकित्सा
मिट्टी तत्व
चिकित्सा - मिट्टी की पट्टी-
·
कब्ज के रोगी को सर्वप्रथम् प्रातः काल खाली पेट आधे घण्टे
मिट्टी की पट्टी पेडू पर रखनी चाहिए।
·
भोजन के 4-5
घण्टे बाद मध्य काल में मिट्टी की पट्टी प्रतिदिन देनी चाहिए।
जल तत्व
चिकित्सा-उषापान-
·
प्रातः काल सोकर उठते ही सूर्योदय से पहले सायःकाल
ताम्रपात्र रखा शुद्व जल पीना चाहिए।
·
लगभग आधा किलो या जितना आसानी से पीया जा सके पीना चाहिए।
उसके थोडी देर बाद शौच जाना कब्ज को आसानी से ठीक कर सकता है।
एनिमा-
·
प्रातःकाल गुनगुने पानी का एनिमा जिसमें 2-3 बूंद कागजी
नींबू का रस मिला हो पेट साफ कर लेना चाहिए। इस प्रयोग का जब भी पेट भारी हो करना
चाहिए।
·
आधे गिलास ठण्डे पानी में एक कागजी नींबू का रस मिला कर पेट
साफ करने के लिए दिन में 4-6 बार
तक पीना चाहिए।
अग्नि तत्व
चिकित्सा-रंग चिक्त्सिा-
·
नारंगी तथा पीली बोतल में बनाया हुआ सूर्य तप्त जल 50 ग्राम दिन
में 3 बार
पीना चाहिए। यह कब्ज के लिए अत्यन्त
लाभकारी है।
वायु तत्व
चिकित्सा-मालिश-
·
प्रतिदिन प्रातःकाल उठते ही 10-15 मिनट की सूखी मालिश करना भी कब्ज में लाभ प्रदान करता है।
·
प्रतिदिन यदि सूर्य नमस्कार की कसरत विधिपूर्वक कर ली जाए
तो कब्ज बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।
·
नाभि के चारों ओर हथेलियों से मर्दन करने और हाथों को
दाहिनी ओर से बाई ओर को मालिश करने पर रोगी को आराम मिलता है।
प्रातः कालीन
भ्रमण-
प्रतिदिन नियमित रूप् से प्रातः
काल सूर्योदय से पहले भ्रमण करना चाहिए। इससे रोगी को आराम मिलता है तथा कब्ज
धीरे-धीरे कम होने लगता है।
आकाश तत्व
चिकित्सा- उपवास-
·
सप्ताह में एक दिन उपवास करने का नियम बना लें।
·
ताजे जल में कागजी नींबू का रस मिलाकर कई मात्रा में पीयें।
·
एक दिन केवल जल पीकर उपवास करना चाहिए।
आहार
चिकित्सा-
कब्ज के रोगी को निम्न आहार
चिकित्सा दी जा सकती है,
·
कब्ज को समाप्त करने वाले फलों में नाशपाती, आँवला, अमरूद, बिल्ब, टमाटर, मुनक्का, खजूर, शहतूत, पपीता, चीकू, अनार, किशमिश, खुबानी तथा
अंजीर लाभप्रद है।
·
इनके अतिरिक्त फलों में सेब, शरीफा,
खरबूजा, तरबूजा, जामुन
मौसम्मी तथा संतरा फांके निकालकर रेशे सहित आदि मौसमानुसार मिलने वाले फल खाने से
कब्ज दूर होता है।
·
सब्जियों में पालक,
चैलाई बथुआ आदि पत्ते वाली सब्जी,
लौकी, टिण्डा, चुकन्दर, तोराई गाजर, खीरा, प्याज, लहुसन, आलू, पत्तागोभी, फूल एंव
गांठगोभी, मटर
ये सभी प्रायः कब्ज में लाभकारी है।
·
सब्जियों के अतिरिक्त अंकुरित गेहूँ, मूँग, मटर, चना, मसूर, सोयाबीन, छाछ, दूध, चोकर समेत
आटे की रोटी, अंकुरित
गेहूं का दलिया एंव आटे की रोटी,
काजू, बादाम, अखरोट, मूँगफली आदि
का प्रयोग करें।
·
अधिक भोजन,
गलत चीजें परिशोधित,
परिष्कृत तले-भुने,
फास्ट एंव जंक फूड,
परिशोधित कन्फेक्शनरी,
संश्लिष्ट एंव गरिष्ठ आहार बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
विशेष-
·
प्रातःकाल खाली पेट पपीता खाकर ऊपर से एक गिलास दूध पीने से
कब्ज दूर होता है।
·
नींबू पानी पर रहने से पेट को पूर्ण विश्राम मिलता है।
उपवास काल में शरीर तथा तन को भी विश्राम देने के लिए पूर्ण मौन रखे। तीन दिन बाद, तीन दिन तक, तीन तीन
घण्टे के अन्तराल से फल तथा सब्जी का रस मौसमानुसार तीन सौ मिली. के हिसाब से लें।
·
पुनः तीन दिन तक फल,
सलाद तथा उबली सब्जी पर रहें। पुनः धीरे धीरे रोटी, दलिया या भात
से शुरू करें।