आज निःसंदेह मोटापा विश्व के अनेक देशों मे सर्वव्यापी समस्या के रूप में चिकित्सा विज्ञान के लिए बन गया है। मोटापा बढ़ने के साथ - साथ यह अनेक रोगों को जन्म देता है। यह शारीरिक अंगों की कुशलता को कम कर उनके कार्यो को प्रभावित करता है। मोटापे से अनेक रोग उत्पन्न होते है। जैसे - मधुमेह, ब्रोनकाइटिस, आस्ट्रियो आर्थोराइटिस, हाइपरटैन्शन, एन्जाइना, हार्टअटैक आदि का सबंध मोटापे से ही है।
कारण -
मोटापे के कई कारण है। यहाँ पर
कुछ मुख्य कारणों का वर्णन किया गया है-
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अक्रियाशील जीवनशैली मोटापे को जन्म देता है। दिन-भर बैठकर
कार्य करना, कम्पयूटर
और टी.बी. के सामने दिन भर बैठे रहने से भी मोटापा आता है। आवश्यकता से अधिक भोजन
ग्रहण करना भी मोटापे का एक प्रमुख कारण है। अत्यधिक भोजन ग्रहण करने से भी
व्यक्ति मोटापे से ग्रसित हो जाता है। व्यक्ति के अधिक भोजन ग्रहण करने के
निम्नलिखित कारण हो सकते है-
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आजकल व्यायाम और शारीरिक गतिविधियों का दिन पर दिन अभाव हो
रहा है। आज मनुष्य मानसिक गतिविधियाँ अधिक कर रहा है। वही शारीरिक गतिविधियों की
उपस्थिति नगण्य है। जरा-सा शारीरिक श्रम उनके लिए दुःखदायी है। खेलों से भी बच्चें
दूर हो रहे है। वीडियो गेम्स ही आज बच्चों का पसंदीदा खेल बन गया है। पूर्ण
स्वास्थ्य हेतु शारीरिक और मानसिक कार्यो में सामन्जयस्य अति आवश्यक है। मानसिक
कार्यो को अधिक करने और शारीरिक श्रम ना करने से मनस यशक्ति और प्राण ऊर्जा में
असन्तुलन आने से ही मानव मोटापे आदि अनेक रोगों से ग्रसित हो रहा है।
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आनुवंशिकी भी मोटापे का एक प्रमुख कारण है। कई व्यक्तियों
में मोटापा आनुवंशिक होता है। उस व्यक्ति विशेष के शरीर में उपस्थित जीन्स के कारण
ही वह मोटा होता है। यह उसे पैतृक एवं वंशानुगत रूप से मिला होता है।
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मोटापे का एक कारण मासिक धर्म सम्बन्धी अनियमितताएं है। कई
महिलाओ में मासिक धर्म का कई महीनो के बाद या अनियमित रूप से होना भी मोटापे को
बढ़ाता है।
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आजकल फास्टफूड एवं कन्फेनशरी आहार का अत्यधिक सेवन किया जा
रहा है। फास्टफूड, चाकलेट, काफ़ी, चाय, कोल्ड डिंक
में वसा की मात्रा अधिक होने पर यह मोटापे को बढ़ाता है।
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सामिष-निरामिष भोजन भी मोटापे को बढ़ाता है। मांस, मछली, अंडा में
प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। प्रोटीन पचने में देर करता है और मोटापा बढ़ते
रहता है।
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कई व्यक्तियों में दवाइयों के दुष्प्रभाव के द्वारा भी
मोटापा बढ़ जाता है। कई व्यक्तियों को छोटी- छोटी बीमारियों एवं तकलीफ में दवाइयाँ
लेने की आदत होती है। जो आगे चलकर नुकसान करती है।
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प्रसव के उपरान्त भी कई महिलायें मोटापे का शिकार हो जाती
है। प्रसवोपरान्त महिलायों का मोटापा बढ़ जाता है।
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दिनचर्या अस्त-व्यस्त होने से भी व्यक्ति मोटापे का षिकार
होता है। सोने से सम्बन्धित गलतियाँ भी मोटापे को जन्म देती है। दिन में सोना
मोटापे का एक कारण है,
वही आवश्यकता से अधिक सोने से भी मोटापा बढ़ जाता है।
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मोटापे का एक कारण हृार्मोन्स असन्तुलन है। थाइराइड और
पिट्यूटरी ग्रन्थि के हृार्मोन्स स्त्राव जब अनियमित हो जाते है। तब व्यक्ति
मोटापे से ग्रसित हो जाता है।
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व्यक्ति में मोटापे का एक कारण क्षार तत्वो की कमी है। जो
व्यक्ति क्षार तत्वों से युक्त भोजन कम करते है या ऐसे भोजन को ग्रहण करते है
जिनमें क्षार तत्व नहीं पाया जाता मोटापे से ग्रसित हो जाते है।
लक्षण -
मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति में
निम्न लक्षण देखने को मिलते है-
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मोटापे में विशेषकर पेट बढ़ जाता है।
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अधिक मोटापा बढ़ने पर कूल्हे, स्तन और पेट में अत्यधिक मांस जम जाता है।
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मोटापे में आन्तरिक अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है। आन्तरिक
अंगों में यकृत, मांसपेशियों, गुर्दो और
हृदय आदि अंगों का आकार भी बढ़ जाता है।
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मोटे व्यक्तियो में मेद धातु में वृद्धि हो जाती है। जिससे
पेट बढ़ जाता है, क्योंकि
मेद धातु की अधिकता वायु को अवरूद्ध कर देती है जिससे वायु कोठो में ही घूमती रहती
है और जैसे ही रोगी भोजन ग्रहण करता है,
वह उसे जल्दी पचा देती है और रोगी को जल्दी-जल्दी भूख लगने लगती है।
यौगिक
चिकित्सा -
मोटापे के रोगियों के लिए यौगिक
चिकित्सा रामबाण है। मोटापे के रोगियों को निम्नलिखित अभ्यास क्रम को अपनाना चाहिए
ऐसे करने में मोटापा बिना कोई नुकसान किये आसानी से दूर हो जाता है।
षट्कर्म -
षट्कर्मो में जल नेति का अभ्यास
प्रतिदिन किया जा सकता है। प्रतिदिन जल नेति का अभ्यास करने से मस्तिष्कीय तनाव
दूर होता है। जिससे तनाव,
अवसाद आदि भावनाएं दूर होती है।
कुंजल का अभ्यास भी अति लाभकारी
है। यह शरीर की अम्लता और कफ की वृद्धि को दूर करता है।
वही शंखप्रक्षालन का अभ्यास भी
मोटापे को कम करने में सहायक है। शंखप्रक्षालन के अभ्यास द्वारा कब्ज दूर होती है।
कब्ज मोटापे के मुख्य कारणों में से एक है। शंखप्रक्षालन द्वारा कब्ज टूटती है।
सम्पूर्ण आँतों से दूषित मल और अपचा भोजन बाहर निकलता है। शंखप्रक्षालन द्वारा
आँतों की क्रियाशीलता वापस आती है। 15-15 दिन
के अन्तराल में लघु शंखप्रक्षालन कराया जाना चाहिए। चाहे तो रोगी को महीने में 1 बार पूर्ण
शंखप्रक्षालन भी कराया जा सकता है।
आसन -
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सर्वप्रथम सूक्ष्म अभ्यास करने चाहिए।
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सूर्य नमस्कार का अभ्यास नियमित करना चाहिए।
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आसनों में योगमुदा,
चक्रासन, पश्चिमोतनासन, धनुरासन, अश्वसंचालन
हलासन, उत्तान
पादासन, सुप्त
पवनमुक्तासन, चक्की
चालासन, नौकासन, उष्ट्रासन
पादहस्तासन आदि आसनों का अभ्यास करना चाहिए।
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इसके साथ ही साथ रोगी को प्रतिदिन भोजन ग्रहण करने के
तुरन्त बाद 10
मिनट तक व्रजासन का अभ्यास करना चाहिए।
प्राणायाम -
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प्राणायामों में नाड़ीशोधन प्राणायाम अति लाभकारी है। इसके
अभ्यास द्वारा बहत्तर हजार नाडियाँ शुद्ध होती है। यह अशुद्ध नाड़ियों को शुद्ध
करता है और उनकी जगह शुद्ध प्राण वायु को संचरित करता है। मल से भरी अशुद्ध
नाड़ियों का मल दूर होने से सम्पूर्ण शरीर में हल्कापन व्याप्त होता है।
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नाड़ीशोधन प्राणायाम के साथ- साथ कपालभाति और भस्त्रिका
प्राणायाम भी अति लाभकारी है। भस्त्रिका प्राणायाम द्वारा वसाके चयापचय की दर बढ़ती
है। भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास भी प्रतिदिन करना चाहिए क्योंकि यह मानसिक शान्ति
प्रदान करता है और साथ ही साथ ऊत्तको की क्षतिपूत्ति करता है।
मुद्रा एवं
बन्ध -
उड्डियान बंध एवं सूर्य मुद्रा
का अभ्यास मोटापे में विशेष लाभ करता है।
ध्यान -
ध्यान का अभ्यास भी करना चाहिए। शवासन में योगनिद्रा का अभ्यास भी करना चाहिए।
प्राकृतिक
चिकित्सा -
मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति निम्न
प्राकृतिक उपचार क्रम अपनाकर लाभ ले सकता है-
मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति को
उपवास कराया जा सकता है। यदि आप लम्बे उपवास कराना चाहते है तो उपवास प्रारम्भ
कराने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि व्यक्ति अथवा रोगी दृढ़ निश्चयी है कि नहीं, क्योंकि दृढ़
निश्चय ना होने पर व्यक्ति कुछ दिन के उपवास के पश्चात् पहले से और अधिक खाकर
स्वयं को हानि पहुँचा सकता हैं। अतः व्यक्ति अथवा रोगी को सर्वप्रथम साप्ताहिक
उपवास करायें और फिर धीरे-धीरे लम्बे उपवास कराये, रोगी के दृढ़ निश्चयी होने पर ही से पूर्ण उपवास कराये, अन्यथा आंशिक
उपवास करायें, वे
भी लाभकारी है।
मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति प्रायः
कब्ज से पीड़ित रहते है अतः एनिमा देकर आँतों की सफाई करनी चाहिए। एनिमा के बाद
गर्म पाद स्नान कराना चाहिए। गर्म पाद स्नान के दौरान सिर पर ठण्डी पट्टी रखनी
चाहिए। मिट्टी की पट्टी भी लगानी चाहिए। उसके लिए सर्वप्रथम पेट और पेडू पर हल्के
हाथों से मसाज करनी चाहिए। तत्पश्चात् ठण्डा-गर्म सेंक करना चाहिए। सेंक के बाद
मिट्टी की ठण्डी पट्टी लगानी चाहिए। ऐसा करने से पेट और पेडू में संचित विजातीय
द्रव्य अपना स्थान छोड़ने लगते है। तत्पश्चात् रोगी को कटि स्नान देना लाभ करता है।
आवश्यकतानुसार प्रत्येक दूसरे दिन गर्म-ठण्डा कटि स्नान दिया जा सकता है। ऐसा करने
से सभी प्रकार की व्याधियाँ दूर होती है। साथ ही साथ रोगी को मालिश लेनी चाहिए।
सम्पूर्ण शरीर में मालिश देनी चाहिए। मालिश में थपकी देना, चिऊटी भरना, आटा गूंथना
आदि प्रकिया भी करनी चाहिए,
ऐसा करने से वसा का दहन होता है। सर्वांग शरीर मालिश के पश्चात् वाष्प स्नान
लेना चाहिए। वाष्प स्नान के पश्चात् सिर सहित जी भरकर ठण्डे पानी से नहाना चाहिए।
आहार
चिकित्सा-
मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति को
अपने आहार में नियंत्रण करना अति आवश्यक है। यदि आहार पर नियंत्रण ना किया जाए तो
कोई भी चिकित्सा विधा क्यों ना अपना ली जाए,
सम्पूर्ण लाभ नहीं कर पायेगी। आहार हमारे शरीर को सवंर्द्धित करने वाला
महत्वपूर्ण घटक है। मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति को अपने आहार में ध्यान देना अत्यन्त
आवश्यक है। मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति को संतुलित शाकाहारी भोजन लेना चाहिए। ऐसा
करने पर वह प्रति सप्ताह एक पाउण्ड तक वजन घटा सकता है। वजन कम करने के लिए कम
कैलोरी वाले आहार को प्रधानता देनी चाहिए।
यदि रोगी पूर्णोपवास ना कर पाये
तो उन्हे सुबह का नाश्ता त्याग देना चाहिए। रोगी चाहे तो फलोपवास भी कर सकता हैं।
फलों में खट्टे फलों को लेना उत्तम है। फलों में टमाटर का रस भी ले सकता है। खट्टे
फलों मे हाइड्रोक्सी साइट्रिक एसिड़ होता है,
जो वजन को कम करने में सहायता करता है। रोगी चाहे तो एक गिलास पानी में नींबू
और शहद मिलाकर भी पी सकता है। शहद मिले नींबू पानी को प्रत्येक 3-3 घण्टे के
अन्तराल में पीयें।
दोपहर में- दोपहर
के भोजन में चोकर सहित आटे की रोटी,
सलाद, उबली
सब्जियाँ और बिना घी तथा मक्खन वाले मट्ठे का सेवन करना चाहिए।
रात्रि में- रात्रि में केवल सलाद एवं उबली
सब्जियाँ खानी चाहिए।