VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

बवासीर - कारण, लक्षण एवं चिकित्सा

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

 

अर्श शब्द संस्कृत का है, इसे आयुर्वेद में अर्श, यूनानी चिकित्सा बवासीर, अंग्रेजी मे होमोरायड्स या पाइल्स, ये सभी एक ही रोग के पर्यायवाची शब्द हैं l

कारण-

बवासीर रोग बहुत से कारणो के कारण होता है। जिनमें से कुछ प्रमुख कारणो का वर्णन निम्न है-

·         कब्ज बवासीर रोग का प्रधान कारण है।

·         आनुवंशिकी भी इस रोग का एक प्रमुख कारण है। कई व्यक्तियों में ये रोग उन्हे पैतृक रूप में मिलता है।

·         पुरःस्थ ग्रन्थि की सूजन भी बवासीर रोग का एक कारण है।

·         गरम, गरिष्ठ भोजन के अत्यधिक सेवन से भी यह रोग होता है।

·         कार्बोहाइड्रेड युक्त मीठी चीजों का अधिक सेवन करने से भी बवासीर रोग हो जाता है।

·         त्रिदोषो को संतुलित करने वाले आहार का लगातार अधिक मात्रा में सेवन करने से भी यह रोग होता है।

·         समय पर भोजन ना करना भी इस रोग का एक कारण है।

·         कई व्यक्तियों में अत्यधिक उपवास करने से भी यह रोग हो जाता है।

·         विकार ग्रस्त यकृत भी बवासीर रोग का एक कारण है।

·         बार-बार मल-मूत्र के वेग को रोकने से भी बवासीर रोग हो जाता है।

·         अधिक व्यायाम कसरत करने से भी यह रोग हो जाता है।

·         कब्ज की स्थिति में मल त्याग के समय अत्यधिक जोर लगाकर मल को बाहर निकालने की कोशिश करने से भी यह रोग हो जाता है।

·         स्त्रियों में अधिकतर यह रोग गर्भ के भार से हो जाता है, प्रसव के उपरान्त स्वयं ठीक भी हो जाता है।

लक्षण-

·         बवासीर की प्रारम्भिक अवस्था में गुदाद्वार की भीतरी व बहारी भाग में खुजली व जलन अनुभव होती है। शौच में कठिनाई होती है।

·         वहाँ पर छोटी छोटी गाठे सी बन जाती है, जिन्हे मस्से कहते हैं, ये मस्से ही रोग बढ़ने पर बढ़ जाते है।

·         रक्तहीन बवासीर जिसे वादी बवासीर कहते हैं, मे मस्सो में दर्द होता है।

·         रोगी का प्यास अधिक लगती है।

·         रोगी कमजोर हो जाता है, शरीर शिथिल हो जाता है।

·         कुछ रोगियों में हाथ, पैर मुँह आदि पर भी सूजन आ जाती है।

·         कुछ रोगियों में ह्दय तथा पसलियों मे दर्द होता है, मूर्छा तथा कै तक हो जाती है, बुखार रहने लगता है। यह बवासीर की बहुत कष्टकारी स्थिति है।

यौगिक चिकित्सा-

बवासीर रोग के उपचार में यौगिक चिकित्सा अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बवासीर रोग में यौगिक चिकित्सा द्वारा उपचार हेतु निम्न क्रियाओ का अभ्यास कराना चाहिए- यौगिक चिकित्सा में सर्वप्रथम कब्ज के निराकरण के लिए चिकित्सा करनी आवश्यक है, यौगिक चिकित्सा को दो भागो में विभाजित किया जाता है-

1 कब्ज निवृत्ति हेतु चिकित्सा-

कब्ज की चिकित्सा उचित आहार-विहार व योग की क्रियाओं के अभ्यास के द्वारा की जा सकती है। यौगिक क्रियाओं में निम्न अभ्यास कब्ज से मुक्ति दिला सकते है।

षट्कर्म- अग्निसार क्रिया,वस्ति कर्म एवं नौलि का अभ्यास। आवश्यकतानुसार 15 दिन में एक बार लघु शंखप्रक्षालन भी किया जा सकता है। शंखप्रक्षालन उचित मार्गदर्शन में ही करवायें।

आसन- पवनमुक्तासन, कौआचालासन, त्रिकोणासन, ताड़ासन, कटि चक्रासन, उदराकर्षण, तिर्यक भुजंगासन, मत्स्यासन, अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन, हलासन आदि आसन कब्ज रोगियो के लिए अति उत्तम है। कब्ज के रोगी को भोजन के तुरन्त बाद 10 मिनट तक वज्रासन में बैठना चाहिए। सूर्यनमस्कार- सूर्यनमस्कार का प्रतिदिन सूर्योदय के समय 12 आवृतियो तक अभ्यास करना चाहिए।

प्राणायाम- प्रतिदिन भ्रस्त्रिका प्राणायाम, सूर्यभेदी प्राणायाम एवं नाड़ीशोधन प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।

मुद्रा एवं बन्ध- कब्ज रोगियो के लिए योगमुद्रा, अश्विनी मुद्रा एवं बन्धो में उड्डियान बंध और महाबन्ध का अभ्यास करना चाहिए।

ध्यान- कब्ज के रोगियो को ध्यान के माध्यम से अन्तमौन का अभ्यास करना चाहिए।

बवासीर की यौगिक चिकित्सा-

·         षट्कर्म- षट्कर्मो के अन्तर्गत नौलि व मूलशोधन का अभ्यास करना चाहिए।

·         आसन- सर्वाग आसन तथा विपरीत करणी मुद्रा का अभ्यास (यह अभ्यास रक्त को मलद्वार से हटाने में सहायता करते हैं)।

·         प्राणायाम- नाड़ी शोधन अनुलोम विलोम, (भावना के साथ)।

·         मुद्रा व बंध- अश्विनी मुद्रा एवं मूल बंध का अभ्यास करना चाहिए।

·         ध्यान- ध्यान के माध्यम से मन को शान्त करने का प्रयास करना चाहिए।

·         प्रार्थना- प्रार्थना के माध्यम से सकारात्मक भाव उत्पन्न होकर रोग से मुक्ति मिलती है।

प्राकृतिक चिकित्सा-

·         बवासीर रोग के उपचार हेतु सर्वप्रथम् कब्ज को दूर करना अति आवश्यक है जब तक कब्ज दूर नहीं होगी बवासीर रोग भी दूर नहीं हो सकता, क्योंकि कब्ज बवासीर रोग का प्रधान कारण है।

·         कब्ज दूर करने के लिए रोगी को तरल पदार्थो का सेवन करना चाहिए। अपने आहार में प्रतिदिन रेशो युक्त आहार का सेवन करना चाहिए।

·         रोगी को प्रतिदिन एनिमा देना चाहिए। रोगी को पहले नींबू मिले गुनगुने पानी का, तत्पश्चात् ठण्डे पानी का एनिमा देना चाहिए।

·         रोगी को रात भर के लिए कटि-प्रदेश, जंघा तथा पेडू पर ऊनी कपड़े का पैक देना चाहिए।

·         रोगी के पेट की हल्की मसाज करने के बाद पेट पर गर्म-ठण्डा सेंक करना चाहिए, तत्पश्चात् गर्म-ठण्डा कटि स्नान देना चाहिए।

·         प्रतिदिन दो बार 15 मिनट के लिए मस्सो पर स्थानीय भाप दी जा सकती है।

·         मस्सो पर स्थानीय भाप स्नान के पश्चात 3-5 मिनट तक गर्म कटि स्नान लेना चाहिए।

·         गर्म कटि स्नान लेने के तुरन्त बाद 1-2 मिनट ठण्डा कटि स्नान लेना चाहिए।

·         रोगी को प्रतिदिन दो बार जुस्ट का प्राकृतिक स्नान भी लेना चाहिए।

·         खूनी बवासीर में हरी रंग की बोतल का सूर्य तप्त जल 50 ग्राम और बादी बवासीर में नारंगी रंग की बोतल का सूर्य तप्त जल 50 ग्राम में पीना चाहिए।

·         रोगी को नाभि से लेकर मूत्रेन्द्रिय तक मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए। साथ ही साथ गुदा पर भी मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए।

आहार चिकित्सा-

बवासीर के रोगी को निम्न आहार चिकित्सा दी जा सकती है,

·         गेहूं का दलिया, चोकर समेत आटे की रोटी लेनी चाहिए।

·         सब्जियों मे पालक, तोरई, बथुआ, परवल, मूली, पत्तागोभी आदि हरी सब्जियाँ लेनी चाहिए।

·         फलो मे पका पपीता, पका केला, खरबूज, सेव, नाशपाती, पका बेल, आलू बुखारा, अंजीर लेने चाहिए।

·         आहार के साथ, दूध के साथ मुनक्के, का प्रयोग रात्री को सोते समय करना चाहिए,

·         दिन के भोजन मे मटठा का प्रयोग करना चाहिए।

·         पुराने बवासीर में कब्ज की निवृत्ति हेतु तीन से पाँच दिन उपवास रखा जा सकता है, उपवास के दिनो मे सिर्फ नांरगी (संतरे) या कागजी नीबू का रस दिन में दो-दो घंटे के अंतराल मे लेना चाहिए।

·         उपवास तोडने के बाद कुछ दिन फलाहार रहना चाहिए।

·         फिर कुछ दिन एक समय फलाहार तत्पश्चात धीरे धीरे सामान्य भोजन मे आना चाहिए।