जब साधारण मालिश करते है तो उसके लिए विशेष सावधानी की आवश्यकता नही होती लेकिन जब किसी को रोग की स्थिति मे मालिश देनी होती है तब विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है यदि असावधानी हो जाय तो रोगी को नुकसान भी हो सकता है।
अनिद्रा, नाड़ी
दुर्बलता, रक्तचाप
बढ़ना, सायटिका
दर्द, मोटापा, पतलापन, आदि रोगों मे
मालिश करने से आशातीत लाभ होते है। इसलिए आवश्यक है कि मालिशकर्ता को शारीरिक
क्रिया विधि का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये। अनिद्रा मे पीठ व सिर की मालिश, नाड़ी
दुर्बलता मे प्रातः कालीन धूप में पूरे शरीर की मालिश। बड़े हुए रक्त चाप मे ऊपर से
नीचे की ओर हल्के हाथो से धीरे-धीरे मालिश करनी होती है। तथा सायटिका के दर्द मे
पैर, टांग
व पीठ की मालिश लाभ पहुचंाती है धूप में जैतून के तेल से मलिश करने पर यह विशेष
लाभ देती है। मोटापा की स्थिति तेल मालिश नही करनी चाहिए। इसमे ठडी मालिश लाभ करती
है तथा सूची मालिश भी की जा सकती है तथा पतलेपन की स्थिति मे पूरे शरीर की तेल
मालिश करनी चाहिये।
रक्त
परिसंचरण तंत्र पर मालिश का प्रभाव-
हमारी स्वयं की बंद मुटठी से
मिलता-जुलता ही मनुष्य के ह्रदय का आकार होता है। ह्रदय मांस से बना एक कोष्ठ है
जिसके भीतर रक्त भरा रहता है। यह भीतर सक एक खड़े मांस के परदे द्वारा दो कोठरियों
मे विभक्त है प्रत्येक कोठरी के ऊपर नीचे फिर दो भाग है। रक्त ऊपर की कोठरी से
नीचे की कोठरी मे तो आराम से आ जाता है। लेकिन नीचे से ऊपर की कोठरी मे नही जा
सकता यह कभी सिकुड़ता ह कभी फैलता है इस ह्रदय में ही रकत की परपिंग होती है
अर्थातृ शुद्धिकरण होता है। पूरे शरीर से अशुद्धरक्त शुद्ध होने हेतु ह्रदय मे
लाया जाता है फिर शुद्ध किया हुआ रक्त से पूरे शरीर मे भेजा जाता है।
इसलिए मालिश का मुख्य कार्य रक्तसंचार
में तेजी लाना है। इससे धमनियों मे उतेजना आती है। लाल रक्तकणों की वृद्धि होती
है। तथा लसिका तंत्र अधिक सक्रिय हो जाता है।
मानव
मस्तिष्क मालिश का प्रभाव-
पूरे शरीर मे फैले हुए नाड़ी
मंडलो को केन्द्र मस्तिष्क मे ही होता है मस्तिष्क ही सारे शरीर का नियन्त्रण करता
है। यही हमारे बुद्धि विवके का स्थान भी कहा जाता है। शरीर के सभी अंगो को यह अपने
अधिकार मे रखता है।जब यह मस्तिष्क ही पूरे शरीर का प्रतिनिधित्व करता है तो इसे
पूर्ण स्वस्थ रखना आवश्यक है। इसकि नियमित मालिश करनी चाहिये, बालों के जड़ो
को नियमित तेल द्वारा पोषण देना चाहिये तथा हाथ की अंगुलियो को मिलाकर कटोरी जैसी आकृति
बनाकर उसमें शुद्ध भरकर मस्तिष्क को नियमित छपछपाना भी मस्तिष्क स्वस्थ रखने की ही
एक यौगिक क्रिया है। गर्मी के दौरान माथे पर मिट्टी पट्टी रखने से भी मस्तिष्कीय
क्रिया विधि को लाभ मिलता है।
मांस सस्थान
पर मालिश का प्रभाव-
शरीर मे स्थित ग्रेथियों व कोमल
अंगो की रक्षा हेतु मंासपेशियां होती है। मांसपेशियों ही शरीर को सुडोल बनाती है। मांसपेशियों
की मालिश करने से उनके काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। थकान कम होती है मांसपेशियां
लचकदार बनती है उनका सही प्रकार से वृद्धि व विकास होता है।
मालिश एक प्रकार की कसरत है।
मांस-पेशियो के लिए इसी क्रिया के कारण पाचन क्रिया का बल मिलता है रक्त प्रवाह
अबाध गति से बहता है शरीर ह्रष्ट-पुष्ट बनता है।
विदेशों मे विशेषकर यूरोप व
अमेरिका मे मालिश से चिकित्सा करने के सन्दर्भ में बहुत मात्रा मे चिकित्सालय खुल
रहे है। जहां पर अभ्यंग (मालिश) चिकित्सक,
वैज्ञानिक तरीके से मालिश करके रोगियों का उपचार करते है।
गठिया रोग-
गठिया रोग में मालिश का बहुत
अधिक लाभ मिलता लाभ मिलता है इसके लिये शुद्ध सरसों का तेल या तिल का तेल ही
प्रयोग में लाना चाहिये तब लाभ और भी उत्तम हो जाता है जब मालिश धूप में की जाती
है इस बात का विशेष ध्यान रहें कि मालिशकर्ता को उतनी ही ताकत से मालिश करनी
चाहिये जितना कि रोगी आसानी से सह सकें। मालिश करनी चाहिये जितना कि रोगी आसानी से
सह सके। मालिश करते समय रीढ़ और जोड़ो पर विशेष ध्यान देना चाहिये मालिश क्षणिक नही
होनी चाहियें मालिश मे कुछ समय जो लगना ही चाहिये जिससे कि रक्त में पर्याप्त
गर्मी और उसकी गति मे तीव्रता उत्पन्न हो जाए मालिश प्रतिदिन नियमित रुप से और कुछ
दिनों तक करनी चाहिये ध्यान रखने के योग्य बात यह है कि इस गठिया रोग में मालिश चिकित्सा
के साथ-साथ अन्य प्राकृतिक नियमों का,
जैसे-खान-पान रहन सहन आदि भी ध्यान रखना चाहिये जिससे परिणामस्वरूप उपचारी
व्यक्ति को अधिक लाभ मिल सकेगा।
अनिद्रा-
आज मशीनी युग में मनुष्य मशीन की
तरह तेज गति से भागने मे लगा है। मनुष्य को हर पल सुख-सुविधा की समाग्री एकत्र
करने की ही धुन लगी रहती है इस कार्य में वह स्वयं को भूल जाता है उसे खाने-पीने, सोने व
विश्राम की चिन्ता ही नही रहती जब ये अनावश्यक बाहरी चिन्ताएं एस पर सवार हो जाती
है तब उस स्थिति में न उसे नींद आती है न ही उसका भोजन पचता है। ऐसे में कई पेट के
रोग उसे घेर लेते है नींद उड़ जाती है। उसे नींद लाने के लिए दवाइयंा खानी पड़ती है।
ये दवाइयाँ उसके पूरे शरीर में खुश्की पैदा कर देती है ये दवाइयाँ इतनी गर्मी पैदा
करती है कि वास्तविक नींद भी उड़ जाती है जिससे वह व्यक्ति और अधिक परेशान हो जाता
है, उसके
जीवन मे निराशा आ जाती है।तब ऐसी अवस्था में प्राकृतिक उवचार द्वारा उस व्यक्ति को
पूर्ण रूप से, स्वस्थ्य
बनाया जा सकता है। लेकिन आवश्यकता ये है कि वह व्यक्ति प्राकृतिक उपचार पूरा
विश्वास करता हो। समय लगने पर अधीर न होता हो, अपने प्रति सकारात्मक सोच रखता हो।अभ्यंग चिकित्सा से जब
ऐसे व्यक्ति का उवचार प्रारम्भ किया जाता है तो उसके साथ और भी कई क्रियाएं अपनाई
जाती है सर्वप्रथम तो उस रोगी को चाहिये,
कि वह दौड़ भाग से अवकाश ले,
पूर्ण विश्राम करे। शवासन का अभ्यास करे,
प्रातः जल्दी उठकर खुले वातावरण में टहलें, गहरी श्वसन क्रिया करे, रात को सोने से पूर्व भी शवासन का अभ्यास करे यदि पेट साफ
नही रहता तो एनिमा लें।तत्पश्चात् जो सर्वउपयोगी चिकित्सा दें वह है अभ्यंग या
मालिश ।
यह नींद लाने का सबसे उत्तम साधन
है। इसके लिए पीठ व सिर की मालिश विशेष तौर पर होनी चाहिये इस रोग में मालिश हल्के
हाथों से होनी चाहिये। प्रातःकाल पूरे शरीर की मालिश तथा रात्री सोने से पूर्व पीठ
व सिर की मालिश (सूखी मालिश) अवश्य ही करनी चाहिये। मालिश में ताल से हाथ चलाना, थपथपना, कम्पन्न तथा
हाथ से कटोरी बना कर धपकी देना रोगी को अधिक लाभ पहुचाता है, ऐसी स्थित
में व्यक्ति को चाहिये कि वह स्वंय ना करके,
दूसरे व्यक्ति से अपनी मालिश करवाये। सर्दियों में इसे धूप मे भी किया जा सकता
है तथा मौसम के गर्म होने पर या तो छांव में करे या प्रातःकाल की कोमल धूप में
मालिश करें। मालिश के पश्चात मौसम के अनुरुप रोगी व्यक्ति को स्नान करायें, यदि
गरम पानी से स्नान कराया जा रहा
है तो ध्यान रहें कि रोगी का सिर ठंडा रहे इसके लिए सिर पर गीला तौलिया रख सकते है
स्नान के पश्चात कुछ समय विश्राम करें। फिर कुछ खाने के लिए लेना चाहिये।लेकिन
ध्यान रहे इनता कर लेने मात्र से ही अनिद्रा की बिमारी दूर नही होगी, उस व्यक्ति
की वह अनावश्यक भाग दौड़ की चिंता को छोड़ कर,
कुछ मनपसंद दूसरा कार्य करें। जैसे-स्वास्थ्य वर्धक पुस्तकों का अध्ययन करना
आदि। इन सब बातों के साथ-साथ रोगी को चाहिये कि वह भोजन के प्रति सतर्क रहें, वह कुशल
चिकित्सक के निर्देशन में उपवास भी कर सकता है। सकारात्मक सोच रखते हुए व
धीरे-धीरे वह पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राम्त कर सकता है।
बच्चो का
पोलियो-
बच्चों को पोलियों देने का जो
मुख्य कारण है। वह है,
टायफाइड बुखार का बिगड़ जाना,
लेकिन वास्तविकता यह नही है। वास्तविक कारण है कि, जब टाइफाइड
का बुखार होता है तब अधिक दवाईयों का प्रयोग किया जाता है, जिसके परिणाम
स्वरुप रोग तो दब जाता है लेकिन उसका प्रभाव नस-नाड़ियो पड़े बिना नही रहता है। उसी
का प्रभाव बच्चे के हाथ व पैरों पर पड़ता है यह प्रभाव कभी-कभी बच्चों को अपंग कर
देता है यदि अंगो पर इसका प्रभाव ना पडे़ तो आखों पर पड़ता है। आंखे कमजोर हो जाती
है यदि ठीक समय पर समय पर उपचार न किया जाए तो बच्चे के पूरे जीवन पर इसका प्रभाव
पड़ता है यदि बिना प्रतिप्रभाव के इसकी कोई सफल चिकित्सा है तो वह है प्राकृतिक
चिकित्सा फिजियोथैरेपी।
इसके साथ यदि नियमित विधि पूर्वक
किसी मालिश विशेषज्ञ से मालिश उपचार किया जाए तो लाभ मिलता है। ऐसी स्थिति में
मालिश धूप में ही करें। रोगग्रस्त अंग के साथ-साथ पीठ की मालिश अवश्य की जाएं, पीठ के निचले
भाग की मालिश गर्म-ठंडी की जाये,
इसके लिए दो मिनट गर्म सेंक देने कि बाद ठंडे तैलिये से घर्षण करें, ऐसी क्रिया
रोगग्रस्त अंग पर भी कर सकते है।
इस प्रकार से स्नान कराने के बाद
तेल से धूप मे अच्छी प्रकार से मालिश करे,
इससे बहुत लाभ होता है। इसमे रोगग्रस्त अंग की मालिश मांशपेशियों को मसलकर, झकझोर कर, मरोड़कर, ठोंककर, थपथपाकर, खड़ी थपकी, कटोरी थपक, कंपन आदि
क्रियाओं द्वारा कि जाती है। इसमें मालिश करने वाले को तथा कराने वाले को जल्दी
उकताना नही चाहियें, क्योंकि
इसमें परिणाम धीरे-धीरे आते है साथ ही यह भी पूर्ण सत्य है कि इस स्थिति में मालिश
और प्राकृतिक चिकित्सा ही कारगर उपचार है।
दैनिक कार्यो के माध्यम से भी हम
मालिश को समझ सकते है। जब किसी चमकाना होता है, आकर्षक बनाना होता है तो हम उसे रगड़ते है, या फिर पालिश
करते है ऐसे ही शरीर को आकर्षक,
सुडौल, स्वस्थ्य, ह्रष्ट-पुष्ट, आदि बनाने कि
लिए शरीर को रगड़ना या पालिश करना आवश्यक है,और
यही मालिश क्रिया है,
तो वह वैज्ञानिक मालिश बन जाती है।
हम सभी को अपने आस-पास इस तरह के
क्रिया कलाप देखने को मिल जाते है,
जैसे- परिवार में,
या कहीं आस पड़ोस में जब नवजात शिशु पैदा होता है तब खान पान के साथ-साथ जिसका
अधिक ध्यान दिया जाता है वह क्रिया मालिश क्रिया ही होती है। नवजात शिशु के पैदा
होने के बाद माँ का शरीर भी कमजोर हो जाता है और कुछ ढीला हो जाता है उस स्थिति
में माँ को भी मालिश कि आवश्यकता पड़ती है। यह काम दाई माँ, या घर की ही
किसी महिला द्वारा किया जाता है,
ऐसा कम से कम एक या दो माह तक तो किया ही जाना चाहियें। इससे माँ के शरीर को
शक्ति मिलती है, शारीरिक
सुडौलता पुनः आ जाती है,
इसी के साथ-साथ हम सभी देखते है कि,
नवजात शिशु कम से कम छः माह तक आटे कि लेई द्वारा, उसे तेल मे
डूबा कर, मालिश
कि जाती है।
मालिश चिकित्सा करते समय सावधानियाँ -
अभ्यंग चिकित्सा क्या है इसे कब
कनते है क्यों करते है व कैसे करते है इन सब बातो की जानकारी के साथ-साथ यह भी
आवश्यक है कि अभ्यंग चिकित्सा के समय किस प्रकार की सावधानी रखनी चाहिये। जो
अनिवार्य है क्योंकि इसे हम चिकित्सा के रुप मे देख रहे है। यह निम्न प्रकार है-
·
मालिश हेतु स्थान ऊॅचा होना चाहिये।
·
मेज,
कुशन, कर
बल आदि साफ-स्वच्छ होने चाहिये।
·
मालिशकर्ता को मालिश के विभिन्न प्रकार ज्ञात होने चाहिये।
·
कक्ष मौसम के अनुसार,
अर्थात् वातानुकूलित होना चाहिये।
·
मालिश लेने वाले को मालिश के समय गहरा श्वसन करना चाहिये।
·
मालिश कर्ता के हाथ साफ होने चाहिये।
·
मालिशकर्ता के नाखुन कटे हुए होने चाहिये।
·
मालिश के समय रोगी से या अन्य बाहरी व्यक्तियो से बातचीत न
करें।
·
एक व्यक्ति के मालिश मे प्रयोग किया गया चादर, दूसरे
व्यक्ति के मालिश मे प्रयोग न करें।