मालिश प्राकृतिक चिकित्सा का एक आवश्यक अंग है। आयुर्वेद में मालिश हजारों वर्षों से प्रयोग में लाई जा रही है।
मालिश के लिए रोगी एवं मालिश करने वाले का स्थान सहज होना
चाहिए। मन का सूक्ष्म प्रभाव वातावरण पर अवश्य पड़ता है। रोगी एवं चिकित्सक (मालिश)
की मन की स्थिति कैसी होनी चाहिए,
इसका वर्णन भी इस पाठ दिया गया
आयुर्वेद एवं मालिश
आयुर्वेद शास्त्र में मालिश का बहुत स्थानों पर वर्णन है।
वात व्याधि, स्नायुदौर्बल्य, मांसपेशियों
की कमजोरी पक्षाघात, असामान्य
रक्त प्रवाह, दूषित
रक्त, चोट
के दर्द, सरदर्द, नसों का दर्द
आदि रोगों में विभिन्न तेलों द्वारा मालिश का प्रावधान है। वात नाशक तेलों के
प्रयोगों द्वारा जोड़ों का दर्द,
कमर दर्द, स्नायुवात
दौर्बल्य, पक्षाघात
में तिल एरण्ड, यूकेलिप्टस
के तेलों को आधार बनाकर रोगों के अनुसार जड़ी बूटियों को मिलाकर तेल बनाया जाता है।
पंचकर्म के पूर्व कर्म में भी स्नेहन (तेलों का प्रयोग) का विशेष महत्व है। इस
स्नेहन क्रिया द्वारा विजातीय द्रव्यों को शरीर से बाहर निकाला जाता है। पंच कर्म
में विभिन्न अंगों की संरचना के अनुसार मालिश का विभिन्न उपचारों द्वारा मर्दन का
प्रावधान है। शिरोधार,
शिरोवस्ति, शिरोपिच्चु, कटिवस्ति, ग्रीवा वस्ति, निरूहावस्ति, अनुवास्ता
वस्ति, उलरावस्ति, नस्यातर्पण, कर्णतर्पण, पोटली मसाज आदि
विधियां आयुर्वेदिक पंचकर्म में प्रयोग की जाती है। आयुर्वेद में एक स्थान पर आया कि
विष खाए हुए रोगियों के शरीर से विष निकालने के लिए मालिश अचूक चिकित्सा है।
मालिश का स्थान
पौने तीन फीट ऊँची व 3 फुट
चैड़ी व 7 फुट
लम्बी मेज मालिश के लिए सर्वोत्तम है। इस प्रकार की मेज पर रोगी को लिटाना भी आसान
रहता है व मालिश करने वाले चिकित्सक थेरेपिस्ट के लिए भी आसान होती है। वैसे तो
मसाज की टेबल शुद्ध मोटे कास्ट के तने की कटी हुई होनी चाहिए परन्तु रोगी की
क्षमता के अनुसार मेज गद्देदार भी ली जा सकती है। इस साधन के अभाव में मेज फाईबर
का भी प्रयोग की जा सकती है। सबसे अधिक उत्तम काष्ट की मेज होती है क्योंकि काष्ट
तेल को भी पी लेती है एवं शरीर को भी तेल पिलाने में सहयोगी है। फांसयुक्त काष्ट
का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
मनोस्थिति: मालिश करने व
करवाने वाले की
मालिश करने वाला स्वस्थ, सफूर्त,
उर्जायुक्त, शांत, प्रेम पूर्ण, संतुष्ट एवं
निर्मल होना चाहिए। मालिश करने वाले की शक्ति का संचार चुम्बकीय उर्जा एवं चेतना रोगी
को संप्रेषित होती है। इसलिए मसासर का स्वस्थ होना आवश्यक है। मसाजर भूखे पेट नहीं
होना चाहिए। हल्का नास्ता,
तरल पदार्थ का सेवन करने के पश्चात ही मसाजर को मालिश करनी चाहिए। मसाजर की
सोच पवित्र होनी चाहिए। मालिश करवाने वाले व्यक्ति अथवा रोगी की मनोस्थिति, एवं तैयारी
होनी चाहिए। मालिश के लिए दिनचर्या से निश्चित समय निकालकर निश्चिंतपूर्वक मालिश
करानी चाहिए। मन में व्याकुलता भय एवं चिंता नही होनी चाहिए। समर्पण भाव से लेटना चाहिए
एवं मसाजर के प्रति सकारात्मक सोच होनी चाहिए। यह भाव भी होना चाएि कि मालिश कराने
से मुझे लाभ मिल रहा है। मसाजर को शरीर के भीतरी अंगों की जानकारी भी होनी चाहिए।
अधिक जानकारी की आवश्यकता नहीं है कम से कम इतनी जानकारी तो होनी ही चाहिए कि कौन
सा अंग कमजोर है व कोन सा अंग मजबूत है। किस अंग को कितना दबाया, मरोड़ा अथवा
ऐंठा जा सकता है। साथ में यह ध्यान भी रखना आवश्यक है कि किसी अंग पर पहले से तो
कोई चोट आदि तो नही है। रोगी को भी अपने पूर्व एक्सीडेंट अथवा चोट आदि को मसाजर को
बता देना चाहिए।
मालिश का शरीर के अंगों को लाभ
1.
मालिश का शरीर के अंगों पर परोक्ष व अपरोक्ष रूप से प्रभाव
पड़ता है जिससे शरीर चुस्त फुर्त एवं निरोगी होता है। मालिश का शरीर पर निम्न
प्रभाव पड़ता है।
2.
शरीर चुस्त - फुर्त एवं उर्जावान बनाता है।
3.
शरीर की थकावट दूर होती है।
4.
त्वचा कांतिमय बनती है।
5.
मांसपेशियों को बल मिलता है एवं रक्त संचार सुचारू रूप से
चलने लगता है।
6.
शरीर स्वस्थ एवं मन शांत होता है।
7.
मांस पेशियों,
नस - नाड़ियों को सीधे पोषण मिलता है।
8.
शरीर सुड़ौल एवं गठीला बनता है।
9.
रक्त का संचालन समान रूप से होने लगता है।
10. रक्त
विकार, स्वास, पसीना, मल-मूत्र
क्रिया ठीक प्रकार से कार्य करने लगती है।
11. फेफड़ों, गुर्दे, आंतों, त्वचा व अन्य
ग्रंथियों को शक्ति और मजबूती प्राप्त होती है।
12. त्वचा
के रोम खुलकर साफ हो जाते है।
13. नव
चेतना, स्फुति
एवं बल प्राप्त होता है।
14. व्यायाम
न कर पाने वालों के लिए एवं आलसी लोगों के लिए मालिश सर्वोत्तम है।
15. मालिश
वास्तव में मांस पेशियों की कसरत है।
16. मालिश
सम्पूर्ण शरीर के लिए लाभकारी है।
17. मालिश
से विषाक्त पदार्थ। विजातीय द्रव्य शरीर से बाहर निकालने की तैयारी करते है।
मालिश की विधियाँ
मालिश करना किसी कला से कम नही है। मालिश करने वाले को
नृत्य का अभ्यास करना चाहिए। यह एक प्रकार की हस्त नृत्य कला है। थोड़ी सी संगीत
समझ मालिश में चार चांद लगा देती है। मालिश कला को सीखने के लिए निम्न तकनीकों का
प्रयोग किया जा सकता है।
दीर्घ मर्दन - हाथ को शरीर के अंगों पर लम्बाई
में फेरना दीर्घ मर्दन कहलाता है। पीठ,
हाथ, पैर, उदर आदि पर
तेल लगाकर हाथ को लम्बाई में ऊपर नीचे फेरते हैं।
अल्प मर्दन - हाथ को थोड़ी थोड़ी दूरी पर शरीर
पर चलाया अल्प मर्दन कहलाता है। रीढ़ के मणकों, जोड़ों,
ग्रीवा व नितम्ब पर इस तकनीकी का प्रयोग करते है।
मण्डल मर्दन - गोलाई में मण्डलाकार हाथ को
घुमाना मण्डलमर्दन कहलता है। पेट, कटि, कन्धे, छाती, नितम्ब, स्तन आदि पर
मण्डल मर्दन का प्रयोग करते है।
उपलेप मर्दन - पैंच को कसने की भांति किसी अंग
विशेष कर हाथ को घुमाते हैं। पिण्डलियों,
जंघाओं कटि, एडी
व हथेली पर इस का प्रयोग है।
ताड़न मर्दन - मुक्का, हथेली, कोहनी, अथवा चांअी
द्वारा नितम्ब, पीठ
का ऊपरी भाग, पीठ, छाती पर इस
प्रयोग को किया जाता है।
चालन मर्दन - जोड़ों को मालिश के समय विभिन्न
दिशा में चलाना चालन मर्दन कहलाता है। सामान्य रूव से इसे साधारण भाषा में हाथ
फेरना थपथपाना, मसलना, मरोडना, घर्षण, झकोरना, स्पर्श तथा
तेल लगाना, दलन, निचोड़ना, अंगूठे व
अंगुलियों का दबाव, बेंकना, सहलाना दबाना, गुंथना, बोलना, लुड़काना, कम्पन देना, चुटकी भरना, पेंच मरोड़ना, जोड़ मसलना, सूतना व
पीटना आदि नामों से जाना जाता है।
मालिश करने की सही विधि
अंग संरचना के अनुसार ही मालिश की विभिन्न विधियों को
प्रयोग में लाया जाता है। पीठ,
हाथ, पैर, उदर आदि की
लम्बाई अधिक होने के कारण इन भागों पर दीर्घ मालिश (मर्दन) किया जाता है। सर्वप्रथम मालिश के लिए इन्ही अंगों
से प्रारम्भ करते है।
सामान्यतः मालिश हृदय की दिशा में की जानी चाहिए। परन्तु
उच्च रक्त चाप की स्थिति में मालिश हृदय से विपरीत दिशा में की जानी चाहिए।
पैरों व हाथों की अंगुलियों, टखनों,
कलाई, छोटे
जोड़ों, ग्रीवा
घुटनों की मालिश के लिए अल्प मर्दन की आवश्यकता होती है। इन अंगों पर हाथों की
अंगुलियों द्वारा मधुर मर्दन किया जाता है। इन अंगों में रक्त का प्रवाह थोड़ा थीमा
बहता है व स्नायु का संचार भी बाधित रहता है इसलिए इन अंगों में तेल द्वारा मालिश
से रक्त का संचार सामान्य एवं स्नायु तंत्र को विकसित करने के लिए इन सुक्ष्म
अंगों पर अल्प मर्दन किया जाता है हालांकि अल्प मर्दन में समय अधिक लगता है परन्तु
यह अल्प मर्दन बहुत की लाभकरी मालिश की प्रक्रिया है।
पेट,
कटि, कंधे, छाती, नितम्ब, स्तन आदि की
मांस पेशियां रेखिए होने के बावजूद भी विभिन्न दिशआों में गठित होती है। ऐसे में
मण्डल मर्दन द्वारा गोलाई में अथवा अर्धगोलाकर
चापीय विधि का प्रयोग किया जाता है। वास्तव में मांसपेशियां जिस प्रकार गठित होती
है उसी दिशा में मालिश करना अथवा उसके विपरीत दिशा में मालिश करना उत्तम माना जाता
है। इन अंगों को मांसपेशियों के अनुसार मालिश की जाती है। नितम्ब, जांघा, पीठ की उपरी
भाग, बाजु, शरीर के
मजबूत अंग होते हैं इसलिए इन अंगों पर ताड़न मर्दन किया जाता है मुक्का, मुट्ठी, हथेली, चाप, चांटी, हथेली से
अथवा खड़े होकर इन मांसपेशियों को ठोका,
पीटा, दबाया
व मसला जाता है। पिण्डलियों एडियों,
जंघाओं, घुटने
के पीछे, नितम्ब, हथेली पर
उपलेपन मर्दन किया जाता है। इसमें अंगुली,
हथेली, अंगुली
की हड्डी अथवा कोहनी द्वारा पेच की भांति इन अंगों को घुमाते है।
कमर दर्द में सम्पूर्ण रीढ की गरम तेल से मालिश लाभकारी है।
रीढ़ के मनकों के दोनों और अंगूठों से मालिश की जाती है। इसमें मालिश ऊपर से नीचे
करनी चाहिए। सबसे उपरी प्रथम सरवाईकल कशेरूका से सबसे नीचे की कशेरूका पुच्छन
कशेरूका तक अंगूठों को लाया जाता है। बीच बीच में लम्बर भाग के पास श्रोणी मेखला
पर अंगूठे को लाकर दोनों और फिसला देते है। बीच बीच में हल्की थपथपी एवं मुक्के भी
लगा सकते है।
मालिश द्वारा उपरी मांसपेशियों को रगड़कर गरम भी किया जाता
है।
सियाटिका में मालिश पैर की अंगुलियों एवं टखनो से प्रारम्भ
कर कुल्हे तक की जाती है। बीच मे घुटने के पास हाथ को रोक सकते हैं। घुटने से
कुल्हें तक एवं कुल्हे से कमर तक मालिश की जाती है।
सम्पूर्ण शरीर की मालिश
सम्पूर्ण शरीर मालिश पक्षाघात, जोड़ों का
दर्द, गविया, मांसपेशियों
की पृष्ठता,रक्त
संचालन, रक्त
प्रवाह, स्नायुदौर्बल्य, कब्ज, हृदयरोग आदि
से विशेष रूप से लाभकारी है। सम्पूर्ण शरीर की मालिश का वैसे तो लगभग हर व्यक्ति
को लालच रहता है परन्तु उपरोक्त रोगों में यह मालिश विशेष रूप से लाभकारी है।
सम्पूर्ण शरीर की मालिश करते है तो अधिक लाभकारी है।
सम्पूर्ण शरीर की मसाज के लिए सबसे पहले सम्पूर्ण शरीर पर
तेल लगाकर कुछ समय के लिए छोड़ देते है। इससे तेल त्वचा को अच्छी प्रकार से स्निग्ध
बना देता है। सम्पूर्ण शरीर पर तेल लगाने के पश्चात् हाथों पेरों की दीर्घ मर्दन
तकनीकी द्वारा मालिश करते है। सामान्यतः हाथों पैरों की मालिश नीचे से उपर की और
(हृदय की ओर) की जाती है। परन्तु उच्च रक्त चाप की स्थिति में मालिश विपरीत दिशा
में भी की जाती है। हाथों एवं पैरों को गोलाकार चूड़ीनुमा स्थिति में मरोड़ा जाता
है। थेरेपिस्ट अपने दोनों हाथों को मालिश वाले हाथ अथवा पैर पर चुड़ीनुमा घुमाते
है। जोड़ों को भी चारों और सम्भव दिशा में घुमाया जाता है। कन्धे से कुल्हे, घुटने व
कोहनियों की मालिश अच्छी प्रकार करनी चाहिए। इसके पश्चात छाती व पेट की मालिश की
जाती है। मालिश जिस अंग की करते है तो यह ध्यान भी रखना आवश्यक है कि जहां पर हाथ
चल रहा है उसके नीचे कौन सा शरीर का भीतरी अंग है। इस भाव के साथ मालिश करें कि
शरीर के बाहर व भीतरी अंगों को लाभ मिल रहा है। अच्छे भाव एक विशेष मालिश की
तकनीकी को जन्म देते है।
एक्यूप्रेशर मसाज
शरीर में विभिन्न स्थानो पर कुछ ऐसे महत्वपूर्ण बिन्दु होते
है जिनके दबाने से अन्य सादृश्य अंगों को लाभ मिलता है। सम्पूर्ण शरीर में उर्जा का
प्रवाह 1 4
विभिन्न मेरिडियनों में होता है। इन्हेीं मेरिडियनों में कुछ मुख्य बिन्दु होते
है। ये मसाज के समय इन बिन्दुओं को दबाने से रोगों में लाभ मिलता है। मेरिडियन
मसाज भी की जाती है। मेरिडियन मसाज में उर्जा का प्रवाह बड़ाया अथवा घटाया जाता है।
कुछ विशेष बिन्दुओं को मसाज के समय दबाने से होने वाले लाभों को वर्णन यहां किया
जा रहा है। रीढ़ के दोनों और व रीढ के एक्यूप्रेशर मेरिडियनों के सैकड़ों बिन्दु
होते हैं जिस पर मालिश एवं दबाव देने से बहुत से अंगो को परोक्ष रूप से लाभ मिलता
है। हाथ पर एल
कान अपने आप में सम्पूर्ण सादृश एक्यू बिन्दुओं को धारण
किया गया है। कान की संरचना लगभग उसी प्रकार की होती है जैसे कि गर्भकाल में बालक
गर्भाशय में उल्टा लटका होता है। दोनों कान पर सम्पूर्ण शरीर के एक्यूबिन्दु स्थित
होने के कारण कान की विभिन्न प्रकार से मालिश होती है। कान के इन बिन्दुओं के दबते
व मालिश के कारण शरीर को स्वस्थ रहने में लाभ मिलता है।
योगासन
व्यायाम एवं मालिश
योग एवं व्यायाम में बहुत से व्यासन एवं व्यायाम ऐसे है
जिनसे शरीर का स्वमेव मालिश हो जाती है। इस प्रकार शरीर को स्वस्थ करने के लिए
मालिश का उपयोग योग एवं व्यायाम के माध्यम से भी किया जा सकता है। योगासन अभ्यास
करने से अंगों के भीतरी मालिश होती है। जब किसी भासन की स्थिति में रूका जाता है
तो कुछ अंग दबते है व कुछ अंग फैलते व कुछ अंग स्वभाविक रूप से सिकुड़ते है। जब
इसके विपरित योगासन किया जाता है तो दूसरे अंगों में फैलाव व सुकड़ाव आता है। इस प्रकार
सुकड़ना व फैलना शरीर के अंगों में स्थित विजातीय द्रव्य को बाहर निकालने का दबाव
डालता है व आवश्यक पोषक पदार्थों का संख्य एवं उपाचयन को समान्य करने में लाभकारी
होता है। उदाहरण के लिए आनु शिरासन में पैर फैलाकार बैठते है। बांया पैर सिकोड़कर
दाऐं पैर के जंघामूल में लगाते है तथा दायां पैर सीधा रखते है। सांस को बाहर छोड़ते
हुए आगे की और झूकते हैं। दोनों हाथों से पैर से पैरों की अंगुलियों को स्पर्श करते
हुए माथे को घुटने से लगाते है। यह जानुशिरासन की पूर्व स्थिति है। इस स्थिति में
शरीर के भीतर अंग दांई और यकृत,
दायी वृक्क, दायां
फेफड़ा आंतों की दायां भाग दबता है एवं अग्नाश्य बाया वृक्क, बायां फेफड़ा
एवं आतों का बायी ओर का भाग फैलता है। इस स्थिति में कुछ अंगों में सिकुडन होती है
व कुछ अंगों में फैलाव होने के कारण इन अंगों की उपापचय क्रियाएं सामान्य होती है।
एवं अंगों से विजातीय द्रव्यों का निष्कासन एवं पोषक पदार्थों की संचय होता है ।
जब इसी जानुशिरासन को दायें पैर को फैलाकर एवं बाये पैर को सिकोड़कर करते है तो
इसके विपरीत अंग फैलते व सिकुड़ते है। इसी फैलने व सिकुड़ने के कारण रक्त का प्रवाह
सामान्य होकर शरीर के अंगों की मालिश द्वारा इन अंगों को लाभ प्राप्त होता है।
मालिश के प्रकार
यहां मालिश के प्रकार से तात्पर्य है कि मालिश के द्रव्य
एवं विधियां। मालिश के विभिन्न द्रव्यों से की जाती है। रोग की स्थिति, ऋतु एवं मौसम
की स्थिति के अनुसार विभिन्न द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार मालिश के
भी विभिन्न प्रकार है।
सूखी मालिश - साधारणतः सूखी मालिश दो प्रकार
से की जा सकती है। हाथ,
हथेली द्वारा साधारण घर्षण बिना किसी द्रव्य के किया जाता है। दूसरे प्रकार है
किसी सूखे तौलिये अथवा कपड़े द्वारा भी मालिश की जा सकती है। सूखी मालिश सामान्य
रक्त संचार के लिए होती है। आलस्य,
सुस्ती, निःमन
रक्त चाप, भूख
न लगना, अपच, गैस, शरीर का
दर्द में सूखी मालिश लाभकारी है। तैलीय त्वचा के सूखी मालिश अति लाभकारी है।
जलीय मालिश - जलीय मालिश भी दो प्रकार से की
जाती है। हाथ पर जल लेकर रोगी के शरीर को इसी पानी द्वारा रगड़ा जाता है। जल के
सूखने पर बार बार हाथ को जल में गीला करके मालिश की जाती है। खुश्क त्वचा में जलीय
मालिश की जाती है। जल को शरीर के भाग को आंशिक अथवा गले से नीचे डुबोकर भी अंगों
की मालिश की जाती है। पेडू संस्थान की जलीय मालिश कपड़े के द्वारा रगड़कर की जाती है।
इससे आंते मुलायम होती है। शरीर के पेडू संस्थान के अंग गुदे, आंतों, मुत्राशय, यकृत, तिल्ली, अग्नाश्य को
लाभ मिलता है। पूर्णटब स्नान में शरीर की जलीय मालिश पूरे शरीर की करना लाभकारी
है। आजकल इलैक्ट्रानिक मशीनरी युग में जेट स्नान, जकुजी,
बलपूल स्नान, सर्कलुर
जेट का प्रयोग किया जाता है। रीढ़ की मालिश के लिए स्पाइनल बाथ टब का रूपान्तरित
यंत्र स्पाइलन जेट स्प्रे से रीढ की मालिश अच्छी प्रकार से हो जाती है। टब स्नान
देने से पूर्व भी पेडू के भाग को अच्छी प्रकार से रगड़ा जाता है।
जलीय तेल से मालिश - तेल के अणु
मोटे होने के कारण शरीर के त्वचा रंध्रों में नही पहुंच पाते तेल को नव बल के साथ
मिलाया जाता है तो यह बलीय तेल हो जाता है। हालांकि जल तेल के साथ पूर्णतः नही मिल
सकता परन्तु जल इस जल व तेल के साथ पूर्णतः नही मिल सकता परन्तु जब इस जल व तेल की
मालिश शरीर पर होती है तो ये शरीर के ताप एवं मालिश की रगड़ के कारण तेल के अणुओं
के साथ मिलकर पतला तेल बन जाता है। इसे वैज्ञानिक भाषा में इमलसीफिकेशन कहते है। जलीय तेल द्वारा त्वचा मुलायम बनती है। किसी भी
तेल की जलीय प्रयोग सम्भव है परन्तु वायु नाशक गरम तेल से पहले से ही पतले एवं
आसानी से त्वचा में अवशोषित हो जाते हैं के साथ जल का प्रयोग उत्तम नही है।
घृत मालिश - गाय का शुद्ध देशी घी मालिश के
लिए बहुत उत्तम माना गया है। घी खाने से भी उत्तम घी की मालिश है। सर्दियों में
अथवा खुश्क त्वचा पर भी घी की मालिश का प्रयोग किया जाता है।
ठंडे पानी से मालिश - शरीर को
शक्ति प्रदान करने के लिए,
रक्त संचार एवं विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालने में लाभकारी है। ठंडे जल को
कपड़े से मालिश रक्त में लाल रक्ताणुओं की संख्या भी बढ़ती है जीवनी शक्ति का भी
विकास होता है। गर्मियों में व लू के दिनों में ठंडे कपड़े की मालिश अत्यन्त
लाभकारी है। ज्वर में यह ठंडा वस्त्र स्नान बहुत लाभकारी है।
गरम पानी की मालिश - गरम पानी
में तौलिया भिगोकर शरीर की मालिश की जाती है। इस गरम पानी का कपड़े द्वारा रगड़
स्नान त्वचा के रोमछिद्रों को खोल देता है। शरीर खुलता है। जोड़ों का
दर्द, स्पानल
दर्द, सुस्ती
कमजोरी में गरम जल स्पंज बाथ लाभकारी है।
बर्फ की मालिश - शरीर में
किसी भी स्थान पर सूजन,
दर्द एवं रक्त प्रवाह की स्थिति में बर्फ की मालिश लाभकारी है। सूजन में बर्फ
की मालिश बहुत ही लाभकारी सिद्ध हुई है। आइस पैक भी दिया जा सकता है। बर्फ की
मालिश से शरीर के भीतर के अंगों में संकुचन होने के कारण सूजन कम होती है।
अन्य द्रव्यों का प्रयोग - एलोवीरा की
मालिश भी अंगों को पुष्टि प्रदान करती है। त्वचा के कालेपन एवं मृत कोशों को साफ
करने में नींबू की मालिश लाभकारी है। कच्चे दूध की मालिस त्वचा में गोरापन प्रदान
करती है।
धूप में मालिश - प्रातः काल के समय हल्की 2 0 से 3 5 सेन्टीग्रेड
ताप पर धूप में मालिश करना लाभकारी है। सर्दियों के दिनों में दोपहर के समय में भी
धूप की मालिश की जा सकती है। धूप की मालिश की सबसे बड़ा लाभ यह है कि धूप की किरणों
से त्वचा में विटामिन डी की मात्रा बढ़ती है। यह विटामिन हड्डीयों के लिए अत्यन्त लाभकारी
है। आधुनिक खोजों द्वारा भी यह निष्कर्ष
निकाला जा चुका है सूर्य की धूप शरीर के लिए कितना लाभकरी है हारर्वड
विश्वविद्यालय मे की गयी खोजों के अनुसार जोड़ो के दर्द में सूर्य की धूप अत्यन्त
लाभकारी है। भारतीय ग्रन्थों मे तो
सूर्यकी धूप की महिमा का बहुत ही गुणगान भी इसलिए है कि सूर्य अरोग्य प्रदान करता
है। सूर्य की धूप एवं तेल की मालिश की समन्वय बहुत ही लाभकारी है। धूप में भी शरीर
खुलता है एवं तेल की मालिश से अंग गरम होकर रक्त संचार सामान्य होता है।
चहरे की मालिश - अधिकतर लोग
सुन्दर दिखना चाहते है। देखने व दिखाने में चेहरा सबसे प्रथम आता है। चेहरे
केसौन्दर्य के लिए चेहरे की मालिश की जाती है। त्वचा पर फुन्सियों का होना, एक्ने, खुश्की, कालापन आदि
का कारण चेहरे की त्वचा एवं मांसपेशियों को भीतर से आक्सीजन न मिलना एवं रक्त की
अशुद्धि होती है। रक्त की अशुद्धि एवं आक्सीजन का अभाव रक्त प्रवाह के सामान्य न
होने के कारण एवं पोषक तत्वों का अभाव होता है। कई बार त्वचा तेलीय अथवा अधिक खुश्क
होने के कारणों से भी ऐसा होता है। त्वचा
पर विभिन्न मालिश रोग,
लक्षण एवं आवश्यकता अनुसार की जाती है। उदाहरण के लिए - मलाई, घी, जलीय तेल, नारियल तेल, कच्चा दूध, बेसन व तेल
एलोवीरा, नीबू, संतरे का
छिलका चंदन तेल ------------ की मालिश की जाती है।
मालिश के संबंध में सावधानियां
एक ओर मालिश जहां शरीर के लिए लाभकारी एवं मनभावन होती है
वही दूसरी और बिना ध्यान पूर्वक सोचे समझे कही की भी मालिश करा लेना हानिकारक
सिद्ध हो सकती है। मालिश से किसी प्राकर की कोई हानि न हो इसके लिए बहुत सी
सावधानियां को स्मरण रखना आवश्यक है जो निम्न है -
1.
मालिश अच्छे कुशल प्रशिक्षित मसाजर से ही करानी चाहिए।
2.
कुछ रोग विशेष में मालिश बिल्कुल न करें। ऐपेन्डोसाइटिस, केंसर, फोड़ा, चर्म रोग, तीव्र दर्द, हर्निया, गर्भावस्था व
महावारी के समय मालिश करना वर्जित है। किसी विशेष परिस्थितियों में चिकित्सीय
परामर्श से ही करें। हालांकि गर्भावस्था हार्निया अथवा कुछ रोगों में हाथ पैर की
मालिश की जा सकती है।
3.
शरीर के अंगों की मालिश अंग सरंचना के अनुसार होनी चाहिए।
मांस पेशियों की संरचना,
जिस रेखीय दिश में होती है उसी दिशा में मालिश लाभकारी है। रीढ के स्नायु जिस
रेखीय दिशा में हो उधर मालिश लाभकारी है। इसमें यह भी ध्यान रखना होता है कि रीढ
के मणकों की मालिश गोलाकार दिशा में की जाती है। शरीर में जिस स्थान पर एक से अधिक
अंग होते है उनका ध्यान रखकर भी मालिश की जाती है।
4.
मालिश को गलत ढंग से न करें। बिना सोच समझे गलत ढंग से की
गयी मालिश हानिकारक सिद्ध हो सकती है।
5.
मालिश पसीना पोछकर करनी चाहिए।
6.
तेल अथवा मालिश का द्रव्य सोच समझकर चुनना चाहिए। दर्दों से
स्नायु दौर्वल्या, पक्षाघात, सौन्दर्य की
अवस्थाओं में अलग अलग मालिश के द्रव्य होते है।
7.
मालिश खुले स्थान पर की जानी चाहिए। हल्की धूप हो तो उत्तम
है। पसीने वाली गर्मी में मालिश हवादार स्थान पर करनी चाहिए।
8.
सर्वप्रथम हाथ पैरसे मालिश प्रारम्भ करें। सिर की मालिश
सबसे बाद में करें।
9.
मालिश से पूर्व पेट का साफ होना (कब्ज) आवश्यक है।
10. प्राकृतिक
उपचार - मंथन अन्य शोधन क्रियाओं के पश्चात मालिश का कई गुणा लाभ मिलता है।
11. स्थानीय
मालिश की समय 1 5 से 2 0 मिनट व
सम्पूर्ण शरीर की मालिश का समय 60
मिनट से 9 0
मिनट तक उचित है।
12. मालिश
से पूर्व सर्वप्रथम त्वचा पर तेल लगाकर 1
0 -1 5 मिनट के लिए छोड़ दें। इससे त्वचा व तेल अच्छी प्रकार से
मिल जाते है।
13. ध्यान
रहे मालिश सब कुछ नहीं है। जीवन को सुखी स्वस्थ एवं आनन्दित बनाने के लिए आहार व
विचार शुद्धि में भी होना आवश्यक है। प्राकृतिक चिकित्सा के अन्य साधनों में भी
विश्वास आवश्यक है।