मनुष्य के जन्म लेते ही उसके लिए मालिश की उपयोगिता अनुभव होने लगती है। हर प्राणी जाने-अनजाने में इसे अपनाता है। इसका उपयोग करता है मनुष्य ही नही, बल्कि पशु-पक्षी भी इसका उपयोग करते है।
शारीरिक मांसपेशियांे को सुगठित
करने वाली, शारीरिक
थाकरन को मिटाने वाली सप्त धातुओं को पुष्ट करने वाली, सुुखपूर्वक
निंदा को देने वाली, श्वसन
क्रिया को नियमित करने वाली रक्त का शुद्धीकरण करने वाली, वात, कफ नाशक या
मालिश क्रिया अति उपयोगी है।
सम्पूर्ण शरीर मे तेल मालिश करके
स्वच्छ जल मे स्नान करने से बल मे वृद्धि होती है। वर्तमान की भागदौड़ भरी जिन्दगी
में मनुष्य ने सारी सुविघाॅए जुटा ली है लेकिन शारीर का ध्यान रचाने के लिए समय
नही है आज स्वास्थ्य की दृष्टि से मानव शरीर दुर्बल हो रहा है। रोज नये-नये रोग बढ़
रहे है। अस्पतालों की भी खूब भरमार है लकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से कोई विशेष
साकारात्मक बदलाव नजर नही आता,
तब ऐसे मे उपयोगी हो जाता है कि प्राकृतिक जीवन पद्धति को पुनः अपनाना
चाहियें।
जैसे कि प्रातः काल उठना, व्यायाम करना, खुली हवा मे
घूमना, प्रातः
कालीन धूप को सेकना पूरे शारीर मे तेल की मालिश करना तब साफ स्वच्छ जल से स्नान
करते थे इससे पूरा शरीर स्वस्थ्य रहता है। इन्दियों को भी बल मिलता है ऐसे मे
प्रातः काल की जब सारी क्रियाएं कर ली जाती है तब पेट सम्बन्धी मुख्यतः कब्ज की
कोई परेशानी कभी नही होती।
आज प्रातः कालीन की इन क्रियाओं
का लोप हो गया है देर से उठना,
बिस्तर मे ही चाय पीना,
ये सभी अप्राकृतिक क्रियाएं है प्रातः कालीन धूप सेकना खुली हवा मे टहलना
इत्यादि क्रियाओं के लिए जो किसी पे समय ही नही है इसलिए दिनभर की भागदौड़ के बाद
जो शरीर व मन की स्थिति हो जाती है उसके लिए जो सर्वोत्म उपयोगी चिकित्सा है वह है
अभ्यंग चिकित्सा। इससे न अधिक समय लगता है न ही अधिक खर्चा, इन सब बातो
में विचार करे तो मालिश की उपयोगिता स्वयं स्पष्ट हो जाती है।
मानव व शरीर का अधिकांस भाग
मांसपेशियों से ढका हुआ है। इसलिए इन मांसपेशियों का स्वस्थ्य रहना बहुत आवश्यक है
अभ्यंग करने से मांसपेशियां फूलती है उनमे गति का संचार होता है उनकी कार्य क्षमता
बढ़ने से मांसपेशियों में रक्त संचार सुचारु रूप से होता है। अभ्यंग से मांसपेशियों
मे दो प्रमुख कार्य होते है। पहला तो यह है कि अभ्यंग से मांसपेशियों की गतिशीलता
बढ़ती है जिससे शक्तिशाली हो जाता है। इनके शरीर का सारा कार्य स्वभाविक रूप् से
ठीक-ठीक होने लगता है,
तथा पाचन क्रिया को सहायता मिलती है।
मालिश के समय जो गर्मी पैदा होती
है तीव्रता होती है, वह
तीव्रता रोग निवृति में सहायक होती है इससे रक्त मे मिले विषाक्त द्रव्य छॅटकर अलग
हो जाते है। तथा पसीने व यूरिन (मूत्र) के द्वारा बाहर निकल जाते है। स्वास्थ्य
विशेषज्ञ मानते है थकान को दूर करने के लिए अभ्यंग चिकित्सा सबसे उत्तम है।
आयुर्वेद में कहा गया हे कि तेल
सर्वप्रथम पैर के तलवों पर फिर सिर में इसके बाद ही अन्य अंग-प्रत्यंगों पर मलना
चाहियें। नाभि, हाथ-पैर
के नाखून, दोनों
कान, नासाछिद्र
व आंखों के पपोटो पर भी,
तेल लगाना आवश्यक है। ऐसा करने से आयु की वृद्धि होती है। अनिद्रा रोग दूर
होते है बुढ़ापा देर से आता है स्वास्थ्य उत्तम रहता है सौंदर्य में वृद्धि होती है
तेल मालिश के बाद स्नान तो करना ही चाहिय,
अन्यता तौलियो को गीला करके शरीर को खूब रगड़ना चाहिये, अन्यथ शरीर
के रोम कूपों में तेल मिश्रित मल भर जाता है जिसमे उन रोम कूपों से मल निष्कासन का
कार्य बाधित हो जाता है यदि ऐसा होता है तो स्वास्थ्य लाभ के स्थान पर हानि ही
अधिक होगी।
इसलिए उत्तम स्वास्थ्य व आयु
वृद्धि के लिए तेल मालिश के बाद स्नान की अनिवार्यता को वाग्भट्ट ने भी स्वीकार
किया है। वाग्भट्ट जी ने कहा है कि तेल मालिश के बाद स्नान करने से बुढ़ापे के
लक्षण जल्दी प्रकट नही होते। थकान दूर होती है वायुदोष दूर होते है आंखो की ज्योति
बढ़ती है शरीर में बल आता है नींद अच्छी आती है त्वचा की कांति बढ़ती है शारिरिक अंग
पुष्ट होते है इसलिए सिर,
कान तथा पैरों मे तेल का प्रयोग विशेष रूप से करना चाहियें।
ऋषि चरक ने भी इस तेल अभ्यंग के
बारे मे कहा है कि जैसे पेड़ की जड़ में जल सिचंन करने से उसमें अंकुर निकलते है।
उसी प्रकार तेल की मालिश से शरीर की धातुएं वृद्धि करती है।
इन्होंने एक बात और बताई है कि
जीर्ण कोष्ठ बढ़ता (पुराना कब्ज) से परेशान लोगों केा तेल मालिश वर्जित है।
शास्त्रों में तो यह भी लिखा है कि रविवार,
पूर्णिमा व अमावस्या को तेल मालिश नही करनी चाहियें।
अतयन्त स्वास्थ्यवर्धक तथा रोगो
का नाश करने हेतु दानो ही दृष्टियों से मालिश अत्यन्त उपयोगी है। वात रोग से
सम्बन्धित जितने भी विकार है,
उन्हें दूर करने के लिए मालिश सर्वश्रेष्ठ उपचार है। आयुर्वेद ग्रथों में
मालिश की उपयोगिता को सिद्ध किया है-
वमनं कफनाशाय वातनाशाय मर्दनम्।
शयन फ्तिनाशाय, त्वरनाशाय
लड्ड.नम्।।
अर्थात् वमन करने से कफ का नाश
होता है। मालिश करने से वात सम्बन्धी रोगो का नाश होता है। विश्राम (शयन) करने से पित्त
सम्बन्धी रोगो का नाश होता है। तथा उपवास अर्थात् लंघन करने से ज्वर दोष (बुखार)
का नाश होता है।
जब वातविकार सम्बन्धी कोई रोग का
लक्षण उभरता है तो शरीर के किसी अंग-विशेष में दर्द होता है। इस स्थिति में अभ्यंग
अर्थात् मालिश के द्वारा उस पीड़ा का निवारण करके विशेष लाभ लिया जा सकता है।
प्रायः हम देखते है कि जब सिर में दर्द होता है तो पिण्डलियों, भुजाओं, हाथों, पैरो का
गर्दन (मालिश) करते है। यदि किसी अनुभवी व्यक्ति के सधे हुए हाथों से यह मालिश
उपचार क्रिया हो तो लाभ अति उत्तम होता है। तथा सभी प्रकार के रोगो का शमन होता
है।