VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

मालिश की विधियां

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

साधारण रुप से सभी लोग जिन विधियों का प्रयोग करते है उनमे से तेल मालिश ही सबसे अधिक प्रयुक्त होती है जिसकी कई विधियाँ हैं -

1.     गति मालिश

2.     थपकी

3.     मसलना

4.     गूंथना

5.     घर्षण

6.     मरोड़ना

7.     रोलिंग

8.     खड़ी थपकी

9.     अंगुलियो से ठोकना

10.  कटोरी थपकी

 

स्व अभ्यंग (मालिश)क्रियाएँ -

जब व्यक्ति को स्वयं ही अपनी मालिश करनी हो तो पहले अपने पैरो मे तेल लगा ले, फिर स्वयं थपकी, रोलिंग, मरोड़ आदि विधियाँ अपनाकर मालिश करे। फिर हाथो में तेल लगाये और सभी विधियो को करे। हाथो के बाद पेट व छाती की मालिश करे। नाभि के चारो ओर अंगुलियां रखकर उसे दांये से बांये चक्कर मे घुमाएं पीठ पर स्वयं की सुविधा अनुसार जितना हो सके, उसी प्रकार करे। तत्प्रश्चात गर्दन व चेहरे की मालिश करे। तथा अन्त में सिर की मालिश करें। हाथो को कंघी की तरह बनाकर बालो की जड़ो मे मालिश करें।

अभ्यंग (मालिश)के प्रकार-

मालिश के निम्नलिखित प्रकार है-

1.     तेल मालिश

2.     सूखी मालिश

3.     पांव की मालिश

4.     ठंडी मालिश

5.     गर्म-ठंडी मालिश

6.     पाउडर की मालिश

 

मुख्यतः जो ज्यादा प्रयोग मे लायी जाती है वह दो प्रकार की मालिश है- एक सूखी मालिश। दूसरी चिकनाई युक्त अर्थात् तेल मालिश।

सूखी मालिश-

बिना तेल लगाये जब हाथों से सूखा घर्षण किया जाता है तो वह सूखी मालिश कहलाता है। इसे हल्के दर्द या आलस्य की स्थिति में किया जाता है। आलस्य दूर करने के लिए हाथ, पैर, माथे, सिर पर हथेलियों से घर्षण करना सूखी मालिश के अन्तर्गत ही आता है। इस प्रकार की सूखी घर्षण युक्त मालिश से रक्त संचार मे तीवता आती है। फलस्वरुप पीड़ा दूर हो जाती है।

इस सूखी मालिश को स्नान के पूर्व या बाद मे, घूमने या व्यायाम के पहले या बाद मे, पूरे शरीर में तेज-तेज घषर्ण करने से रक्त संचार तेल हो जाता है। इससे वायुविकार अर्थात् समस्त वातरोग शान्त हो जाते है। पहले सूखी घर्षण युक्त मालिश करे, तत्पश्चात स्नान करंे, फिर पूरे शरीर को गीले तौलिये से रगड़ने पर विशेष लाभ मिलता है ज्वर की स्थिति में हाथ पैर के तलवे, माथे आदि पर गीले कपड़े की पट्टी निचोड़कर रगड़ने से रोगी की आराम मिलता है। इससे शरीर की अतिरिक्त गर्मी दूर हो जाती है।

तेल मालिश-

पूरे शरीर मे तेल मालिश उसे कहते है जब पूरे शरीर में तेल या अन्य लाभदायक चिकने पदार्थ मलकर घर्षण क्रिया की जाती है। व्यायाम से पूर्व शरीर में तेल लगाकर मालिश करने से शारीरिक अंगो से सूखापन समाप्त हो जाता है। चिकिनाई बनी रहती है जिससे शरीर मे लचीलापन बना रहता है।

इस प्रकार के लचीले शरीर से व्यायाम करने में सरलता होती है, कहने का तात्पर्य है कि व्यक्ति फुर्तीला हो जाता है। हर कार्य को कर सकता है उसे पीठ दर्द, कमर दर्द की शिकायत नही होती इस प्रकार से जब वह कार्य करता है तब त्वचा में प्रतिपल संकुचन और आकुचंन होता है। यह क्रिया शरीर के रोमकूपों को खोलती है इससे न केवल बाहर बल्कि भीतर के अंगो की खुश्की भी दूर हो जाती है। फल स्वरुप अंग-प्रत्यंग में स्निग्धता और कांति बनी रहती है।

जब तेल मालिश को सूर्य के प्रकाश मे किया जाता है तब सूर्य के प्रकाश में शरीर की कोशिकएं इस चिकनाई से विटामिन डी बनती है जिससे अस्थियों में कैल्शियम और फास्फोरस अधिक होने मे सहायता मिलती है। ये तत्व शरीर की अस्थियों को मजबूती देते है। इस प्रकार ये हड्डियों को मजबूत बनाते है यह विटामिन डी सूर्य के किरणों की उपस्थिति मे ही बनता है इसलिए तेल लगाकर धूप मे बैठना लाभकारी होता है। जब किसी बच्चे को सूखारोग या हड्डी की कमजोरी होती है। तब उस बच्चे को ऐसी स्थिति में तेल लगाकर धूप स्नान कराना बहुत लाभदायी होता है।

तेल मालिश करने से शरीर में संकुचन होता है, जिससे कोशिकाएं मजबूत होती है। उनमें शक्ति आ जाती है कोशिकाओं के शक्तिशाली होने से शरीर की झुर्रियां दूर हो जाती है। अंगो मे एक चमक पैदा होती है। मांसपेशियो की शिथिलता दूर होती है इसका अत्यन्त लाभकारी कार्य यह है, कि यह कोशिकाओं के अंदर लाभकारी तत्वों का निर्माण करता है। तथा आन्तरिक जमे हुए मल को रोमकूपो से बाहर निकाल देता है।

वर्तमान समय में भी पूर्व कि भातिं ही सभी चिकित्सक, वैद्य आदि पूर्ण स्वस्थ रहने के लिए मालिश करने कि सलाह देते हैं, यह रोग को दूर भगाता है। शरीर के लिए अत्यन्त लाभकारी उपयोग है, इसलिए नित्य कर्म मे इसे भी सामिल करके हमें अपने स्वास्थ्य की रक्षा करनी चाहिए।