विधि :
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सुखासन या अन्य किसी
ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएँ | दोनों हाथ घुटनों पर रखें, हथेलियाँ उपर की तरफ रहें एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रहे |
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हाथ की तर्जनी (प्रथम)
अंगुली को मोड़कर अंगूठे की जड़ में लगा दें तथा मध्यमा (बीच वाली अंगुली) व अनामिका
(तीसरी अंगुली) अंगुली के प्रथम पोर को अंगूठे के प्रथम पोर से स्पर्श कर हल्का
दबाएँ |
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कनिष्ठिका (सबसे छोटी
अंगुली) अंगुली सीधी रहे ।
सावधानी :
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अपान वायु मुद्रा एक
शक्तिशाली मुद्रा है इसमें एक साथ तीन तत्वों का मिलन अग्नि तत्व से होता है,इसलिए इसे निश्चित समय से अधिक नही करना चाहिए |
मुद्रा करने का समय व अवधि :
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अपान वायु मुद्रा करने का
सर्वोत्तम समय प्रातः,दोपहर एवं सायंकाल है | इस मुद्रा को दिन में कुल 48 मिनट तक कर सकते हैं |
दिन में तीन बार 16-16 मिनट भी कर सकते हैं |
चिकित्सकीय लाभ :
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अपान वायु मुद्रा ह्रदय
रोग के लिए रामवाण है इसी लिए इसे ह्रदय मुद्रा भी कहा जाता है |
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दिल का दौरा पड़ने पर यदि
रोगी यह मुद्रा करने की स्थिति में हो तो तुरंत अपान वायु मुद्रा कर लेनी चाहिए |
इससे तुरंत लाभ होता है एवं हार्ट
अटैक का खतरा टल जाता है |
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इस मुद्रा के नियमित
अभ्यास से रक्तचाप एवं अन्य ह्रदय सम्बन्धी रोग नष्ट हो जाते हैं |
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अपान वायु मुद्रा करने से
आधे सिर का दर्द तत्काल रूप से कम हो जाता है एवं इसके नियमित अभ्यास से यह रोग
समूल नष्ट हो जाता है |
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यह मुद्रा उदर विकार को
समाप्त करती है अपच,गैस,एसिडिटी,कब्ज जैसे रोगों में अत्यंत लाभकारी है |
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अपान वायु मुद्रा करने से
गठिया एवं आर्थराइटिस रोग में लाभ होता है |
आध्यात्मिक लाभ :
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अपान वायु मुद्रा अग्नि,वायु,आकाश एवं पृथ्वी तत्व के मिलन से बनती है | इस मुद्रा के प्रभाव से साधक में सहनशीलता,स्थिरता,व्यापकता और तेज का संचार होता है |