VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

अपान मुद्रा

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

 विधि :

                    सुखासन या अन्य किसी आसान में बैठ जाएँ, दोनों हाथ घुटनों पर, हथेलियाँ उपर की तरफ एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रखें |

                    मध्यमा (बीच की अंगुली)एवं अनामिका (RING FINGER) अंगुली के उपरी पोर को अंगूठे के उपरी पोर से स्पर्श कराके हल्का सा दबाएं | तर्जनी अंगुली एवं कनिष्ठा (सबसे छोटी) अंगुली सीधी रहे |

सावधानियाँ :

                    अपान मुद्रा के अभ्यास काल में मूत्र अधिक मात्रा में आता है, क्योंकि इस मुद्रा के प्रभाव से शरीर के अधिकाधिक मात्रा में विष बाहर निकालने के प्रयास स्वरुप मूत्र ज्यादा आता है,इससे घबड़ाए नहीं |

                    अपान मुद्रा को दोनों हाथों से करना अधिक लाभदायक है,अतः यथासंभव इस मुद्रा को दोनों हाथों से करना चाहिए ।

मुद्रा करने का समय व अवधि :

                    अपान मुद्रा को प्रातः,दोपहर,सायं 16-16 मिनट करना सर्वोत्तम है |

चिकित्सकीय लाभ :

                    अपान मुद्रा के नियमित अभ्यास से कब्ज,गैस,गुर्दे तथा आंतों से सम्बंधित समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं |

                    अपान मुद्रा बबासीर रोग के लिए अत्यंत लाभकारी है | इसके प्रयोग से बबासीर समूल नष्ट हो जाती है |

                    यह मुद्रा मधुमेह के लिए लाभकारी है , इसके निरंतर प्रयोग से रक्त में शर्करा का स्तर सन्तुलित होता है |

                    अपान मुद्रा शरीर के मल निष्कासक अंगों त्वचा,गुर्दे एवं आंतों को सक्रिय करती है जिससे शरीर का बहुत सारा विष पसीना,मूत्र व मल के रूप में बाहर निकल जाता है फलस्वरूप शरीर शुद्ध एवं निरोग हो जाता है |

आध्यात्मिक लाभ :

                    अपान मुद्रा से प्राण एवं अपान वायु सन्तुलित होती है | इस मुद्रा में इन दोनों वायु के संयोग के फलस्वरूप साधक का मन एकाग्र होता है एवं वह समाधि को प्राप्त हो जाता है |

                    अपान मुद्रा के अभ्यास से स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधार चक्र जाग्रत होते है |