दूसरी क्रिया है वस्ति क्रिया | यह एक यौगिक एनिमा है | गुदा द्वार से जल खींचना, कुछ समय तक उसे अपने शरीर के भीतर, अर्थात बड़ी आंत में रखना, उसके बाद इस जल का निष्कासन कर देना | ठीक वैसे ही जैसे एनिमा क्रिया में होता है | केवल इतना अंतर जरुर है एनिमा में यही क्रिया यंत्र के सहारे होती है एक ट्यूब के माध्यम से परन्तु वस्ति में यह क्रिया स्वाभाविक रूप से होती है | अधिक ठीक तो इसी क्रिया को मानेंगे क्योंकि जब एनिमा करते हैं तब यदि कभी जोर लग गया तो खरोंच आ जाती है अन्दर ही घाव हो जाता है, खून निकलता है | इसीलिए योगी एनिमा की जगह वस्ति की सलाह देते हैं |