वमन धौति (कुंजल क्रिया) :
यह क्रिया उन लोगों के लिए है जो वस्त्र धौति क्रिया नहीं कर
सकते हैं। इस क्रिया में हल्के गर्म पानी को पीकर उस पानी को अन्दर से बाहर निकाला
जाता है। जिससे पेट व आहार नली साफ होती है।
विधि :
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लगभग डेढ़ लीटर खारे (नमकीन) जल को यथासंभव तीव्रता से तब तक
पियें जब तक कि उल्टी जैसी प्रवृत्ति न महसूस होने लगे | जल की लवणता/ खारापन लगभग
1 % होना चाहिए |
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दोनों पैरों को एक-दूसरे से अलग रखकर खड़े हो जाएँ तथा धड़ को
आगे की तरफ झुकाएं |
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अब दायें हाथ की मध्य की तीन अँगुलियों की सहायता से गले के
पिछले हिस्से को गुदगुदाएँ ताकि उल्टी (वमन) हो और सारा जल बाहर आ जाये |
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इस क्रिया को तब तक दोहराएँ जब तक कि सारा पानी उल्टी के
द्वारा बाहर न आ जाये |
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गहन विश्राम विधि से लगभग 15-20 मिनट तक पूर्ण विश्राम करें
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आधे घंटे के पश्चात् हल्का नाश्ता लें |
लाभ :
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वमन धौति अथवा कुंजल क्रिया अति अम्लता को दूर करती है |
अपच तथा पेट फूलने की स्थिति में लाभकारी है तथा उदर का शुद्धीकरण करता है |
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कुंजल से कपोल दोष, मुंहासे, दांतों के रोग,
जीभ के रोग, रक्तविकार, छाती
के रोग, कब्ज, वात, पित्त व कफ से होने वाले रोग दूर होते हैं।
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यह रतोंधी, खांसी, दमा, मुंह का सूखना, कण्ठमाला आदि को खत्म करती है।
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यह पेट को साफ करती है, पाचन शक्ति को बढ़ाती
है, बदहजमी व गैस विकार आदि रोगों को दूर करती है।
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जिगर को शक्तिशाली बनाती है जिससे जिगर से संबन्धित रोग नहीं
होते।
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यह सर्दी, जुकाम, नजला, खांसी, दमा, कफ आदि रोगों में भी
लाभकारी है।
सावधानियां :
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इस क्रिया को शौच के बाद और सूर्योदय से पहले करना चाहिए।
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कुंजल क्रिया के लिए पानी में नमक या सौंफ आदि कुछ भी न मिलाएं।
कुंजल क्रिया हमेशा शौच के बाद करें अन्यथा कब्ज होने की संभावना रहती है। इस क्रिया
का अभ्यास हृदय एवं उच्च रक्तचाप के रोगी को नहीं करना चाहिए।
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कुन्जल करने के 2 घंटे बाद स्नान करें या कुंजल करने से पहले स्नान करें।
दंड
धौति
विधि :
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खारा गुनगुना पानी पियें जैसा कि वमन धौति में पीते हैं |
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1 मीटर लम्बी तथा लगभग 1 से.मी. व्यास वाली रबड़ की एक नलिका
लें |
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इस नलिका के एक सिरे को धीरे-धीरे मुख में डालकर निगलें
ताकि यह ग्रास नली से होते हुए आमाशय तक पंहुच जाये | जब यह आमाशय में पंहुच जाये
तो धीरे-धीरे आगे की ओर झुकें | अन्दर का सारा जल साइफन क्रिया द्वारा बाहर आ
जायेगा | उदर को आवश्यकतानुसार अन्दर की ओर ले जाएँ और फुलाएं | अब रबड़ की नलिका
को धीरे से निकाल लें |
लाभ :
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दंड धौति अथवा कुंजल क्रिया अति अम्लता को दूर करती है |
अपच तथा पेट फूलने की स्थिति में लाभकारी है | आमाशय से अपवर्ज्य पदार्थों को
निकालकर आमाशय की क्रिया को बेहतर बनाती है | धौति क्रिया गैस सम्बन्धी विकार,
आमाशय में अति अम्लता तथा दमा रोगों में अत्यंत लाभकारी है |
सावधानियां :
उदर पीड़ा, आमाशयी शल्य चिकित्सा,
अति उच्चरक्तचाप तथा ह्रदय सम्बन्धी रोगों में इसका प्रयोग वर्जित है |
वस्त्र
धौति
धौति का अर्थ होता है-धोना, यह क्रिया हठयोग का एक अंग है। इस क्रिया में पेट को
के द्वारा धोया जाता है। इसलिए इसे धौति क्रिया कहते हैं। यह हठयोग के 6 कर्मों में
से सबसे अधिक महत्वपूर्ण कर्म है। धौति क्रिया कई प्रकार से की जाती है- वस्त्र धौति,
दंत धौति, अग्निसार या वाहनीसर धौति, मूल धौति और जिव्हा शोधन धौति। वस्त्र धौति क्रिया के लिए एक मुलायम कपड़े की
आवश्यकता पड़ती है, जिसकी लम्बाई 5 से 6 मीटर हो और चौड़ाई 2 से
3 इंच हो।
वस्त्र धौति क्रिया
की विधि-
इस क्रिया
के लिए 5 से 6 मीटर लम्बा और 2 से 3 इंच चौड़ा साफ व स्वच्छ कपड़ा लें। इस कपड़े को अच्छी
तरह से धोकर 5 मिनट तक पानी में डालकर उबालें और फिर सुखा लें। सूखने के बाद उस कपड़े
की चार तह करके गोल लपेट लें। अब एक साफ बर्तन में उबले हुए नमक मिले पानी को डालें।
फिर कागासन की स्थिति में बैठ जाएं और कपड़े को उस पानी में भिगो लें। अब कपड़े के ऊपरी
सिरे को मध्यमा व अनामिका अंगुली के बीच में दबाकर मुंह के अन्दर डालकर धीरे-धीरे कपड़े
को निगलें और साथ ही गर्म पानी का घूंट पीते रहें। इससे कपड़े को निगलने में आसानी होती
है। शुरू-शुरू कपड़े को निगलना कठिन होता है, परन्तु प्रतिदिन अभ्यास से यह आसानी से होने
लगता है। पहले दिन में 1 फुट कपड़ा निगलें और फिर धीरे-धीरे इसे बाहर निकाल लें। इस
तरह से इस क्रिया में कपड़े को निगलने की लम्बाई बढ़ाते हुए 4 फुट तक कपड़े को निगल लें।
सावधानियां :
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इस क्रिया का अभ्यास बहुत कठिन है। इसलिए इसका अभ्यास किसी योग
शिक्षक की देख-रेख में ही करें।
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इस क्रिया में कपड़े को निगलना कठिन होता है। इसलिए इस क्रिया
को धीरे-धीरे करें।
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कपड़ा निगलते समय सावधानी रखें, क्योंकि निकालते समय कभी-कभी कपड़ा अटक जाता है, परन्तु
घबराएं नहीं कपड़े को पुन: अन्दर निगलें और फिर बाहर निकालें।
रोगों में लाभ :
1.
इसके अभ्यास से शरीर से सभी रोग नष्ट हो जाते हैं तथा शरीर में
असीम बल की वृद्धि होती है।
2.
इस क्रिया के द्वारा शरीर से पित्त व कफ दोनों बाहर निकल जाते
हैं।
3.
इससे कंठमाला, मंदाग्नि थायराईड, मलेरिया,
ज्वर आदि रोग ठीक होते हैं।
4.
यह तोतलापन को दूर कर आवाज को साफ करता है।
5.
दमे के रोग में भी लाभकारी है। इसके अभ्यास से खांसी, सांस संबन्धी रोग, जुकाम, मुंह
के छाले तथा पित्त से उत्पन्न होने वाले सभी रोग ठीक होते हैं।
6.
इसके अभ्यास से पेट साफ होता है, जिससे कब्ज, बदहजमी, गैस आदि विकार
नष्ट होते हैं।
7.
यह पाचनशक्ति को शक्तिशाली बनाता है। इससे श्वासनली, नाक, कान, आंख, पेट व आंतों की अच्छी सफाई हो जाती है।
8.
यह मानसिक बीमारियों को खत्म करता है।
9.
बवासीर, भगंदर आदि रोगों को ठीक करने में भी यह क्रिया लाभकारी
है। हठयोग के अनुसार इस क्रिया को करने से कास, श्वास,
प्लीहा, कुष्ठ तथा 20 प्रकार के कफ से उत्पन्न
होने वाले रोग ठीक हो जाते हैं।