VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

समाधि

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

समाधि के स्वरूप के बारे में बताते हुए पतंजलि कहते हैं कि वह ध्यान ही केवल ध्येय के स्वरूप को प्रकाशित करने वाला, अपने ध्यानात्मक स्वरूप से शून्य बना जैसा अर्थात् ज्ञानस्वरूप में गौण हुआ समाधिकहलाता है।

तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः।। योगसूत्र - 3/3

अभिप्राय यह है कि ध्यान में ध्याता, ध्यान तथा ध्येय तीनों की प्रतीति होती है जबकि समाधि में केवल ध्येय मात्र की। योगतत्त्वोपनिषद् में समाधि को जीवात्मा तथा परमात्मा की साम्यावस्था कहा गया है। शण्डिल्योपनिषद् में कहा गया है कि यह त्रिपुटिरहित अवस्था ही समाधि है, जिसमें जीवात्मा एवं परमात्मा शुद्ध स्वरूप में रहते हैं।

योगदर्शन में समाधि के दो भेद बताए गये हैं- सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात समाधि। सम्प्रज्ञात समाधि के चार भेद हैं- (1) वितर्कानुगत, (2) विचारानुगत, (3) आनन्दानुगत एवं (4) अस्मितानुगत। इनमें से वितर्कानुगत एवं विचारानुगत के दो-दो भेद बताए गये हैं- सवितर्क व निर्वितर्क तथा सविचार व निर्विचार।

अध्यात्मोपनिषद् में कहा गया है कि ध्याता तथा ध्यान को छोड़कर जब चित्त वायु रहित स्थान में रखे हुए दीपक की भांति ध्येय मात्रपरायण हो, तब यह समाधि की स्थिति होती है। समाधि प्राप्त हो जाने पर पूर्व संचित कर्म वासनायें नष्ट हो जाती है तब शुद्ध धर्म की वृद्धि होती है। यह समाधि हजारों अमृत वर्षा की भाँति धर्म का वर्षण करती है। पैंगलोपनिषद् में भी इसी प्रकार कहा गया है कि धर्म मेघ समाधि के द्वारा वासनाजाल तथा कर्म संचय नष्ट हो जाने पर जीवनमुक्ति प्राप्त होती है।