उपवास का अर्थ है अपने पाचन संस्थान को पूर्ण विश्राम देना और यह विश्राम तभी मिल सकता है। जब हम भोजन का पूर्ण रूप से कुछ समय के लिये त्याग कर दें। तो उपवास को परिभाषित करते हम कह सकते हैं कि ‘‘भोजन का पूर्ण रूप से त्याग करते हुए केवल जल पर रहकर पाचन संस्थान को विश्राम देना उपवास कहलाता है।’’
साधारणतः हम कभी भी अपने पाचन संस्थान को पूर्ण विश्राम
नहीं दे पाते। इसका मुख्य कारण यह हे कि हम हमेशा कुछ न कुछ खाते ही रहते है। बहुत
अधिक न भी हो, तो
भी दो या तीन बार तो भोजन किया ही करते हैं।
जैसा हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में उपवास की परम्परा
अत्यधिक प्राचीन है। हिन्दू धर्म में व्रत करना, इस्लाम में रोजे रखना आदि इसके उदाहरण है। यह परम्परा चाहे
जिस भी रूप में हो प्राचीन काल से अब तक वैसी ही चली आ रही है। यह संभव है कि अधिक
लोग इसके उपचारिक गुणों को न जानते हैं। परन्तु हमारे ऋषि मुनियों ने इसे धर्म और
आस्था से जोड़कर जो कार्य किया है। इसी की वजह से आज की कई लोग इसका अनजाने में ही
सही परन्तु लाभ आवश्यक उठाते हैं।
हम अक्सर देखते हैं कि जानवर जब भी बीमार पड़ते हैं चाहे वो
पालतू हो या जंगली सभी सबसे पहले अपना भोजन त्याग देते हैं। इस दशा में उन्हें
कितना भी अच्छा भोजन दिया जाये वे नहीं खाते संभवतः इसी से हम जान भी पाते हैं कि
वह पशु बीमार हैं।
पशु इस बात से अवगत होते हैं कि बीमारी की अवस्था में भोजन
करना लाभ नहीं बल्कि हानि पहुंचाता है। परन्तु हम मनुष्य बुद्धिजीवी होते हुए भी
इस बात को नहीं समझते और बीमारी की अवस्था में भी कुछ न कुछ खाते ही रहते हैं।
जिससे ठीक होने के बदले और अधिक कष्ट पाते हैं।
कुछ लोग जो उपवास के गुणों से अनभिज्ञ होते हैं वे इसे भूखा
मरना समझते है। जैसा कि हम जानते हैं कि रोग होने का कारण शरीर में स्थित विष है
और उपवास काल में सर्वप्रथम इन्हीं विषों का नाश होता है। तब कहीं जाकर उन संचित
पदार्थो से शरीर अपना काम चलाने लगता है। जो शरीर में विशेष परिस्थितियों का सामना
करने के लिये जमा रहते हैं। जैसे वसा आदि।
विषों के समाप्त होने के बाद भी यदि उपवास जारी रखा जाये तो
शरीर अपने पोषण के लिये उन पदार्थो का उपयोग करने लगेगा जो शरीर के लिये अति
आवश्यक है और यह प्रक्रिया जारी रही तो शरीर धीरे-धीरे दुबला होकर क्षीर्ण होने लगेगा
यहीं से क्षरण प्रारम्भ हो जाता है।
प्राकृतिक चिकित्सक डा. कैरिगटन ने भूखे मरने तथा उपवास के बीच के अन्तर को साधारण व सरल शब्दों
में स्पष्ट किया हैं वे कहते हैं कि उपवास भोजन त्यागने से शुरू होकर वास्तविक भूख
के लगने पर समाप्त हो जाता है। परन्तु भुखमरी वास्तविक भूख के लगने से प्रारम्भ
होकर मृत्यु पर जाकर ही समाप्त होता है।
उपवास से न केवल शरीर बल्कि मन और आत्मा की भी शुद्धि होती
है। क्योंकि उपवास काल में मन स्वतः ही परमात्मा की ओर लगता है मन मे एक अपूर्ण सी
शान्ति का अनुभव होता है। मन के शान्त होने और परमात्मा में लगने से आत्मा का भी
परिष्कार होता है। इसीलिये कहा जाता है कि प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा शरीर मन,
व आत्मा तीनों का उपचार एक साथ होता है। क्योंकि शुद्ध शरीर
में,
शुद्ध मन निवास करता है इसी शुद्ध मन के द्वारा हमारे आत्मा
की शुद्धि हो जाती है।
उपरोक्त सभी बातों से यह स्पष्ट हो जाता है। कि उपवास का
महत्व हमारे जीवन में कितना अधिक है और इसी महत्व को जानकर हमें उसे अपनाना चाहिये
जिससे हम स्वस्थ