आसन
शरीर की विशेष अवस्था को संस्कृत में
"आसन" नाम दिया गया है। सामान्य भाषा में कहा जाए तो "आसन"
तनाव-रहित और अधिक समय तक सुविधा की विशेष शारीरिक अवस्था का द्योतक है। ईसा से
दूसरी शताब्दी पूर्व पातंजलि ने योगसूत्र ग्रंथ में योगाभ्यास के सिद्धान्त
निर्धारित किए थे। उन्होंने ध्यानावस्था को ही 'आसन' कहा था और शारीरिक स्थितियों को
"योग व्यायाम" की संज्ञा दी थी। तथापि सामान्य तौर पर सक्रिय
योगाभ्यासों को भी "आसन" ही कहा जाने लगा।
अनेक आसनों के नाम पशुओं की सहज गतिविधि
और स्थितियों से व्युत्पन्न हैं और उन्हीं के नाम पर रखे गए हैं जैसे मार्जारी, मृग, सिंह, खरगोश, आदि। ये सभी आसन प्रकृति रूप से ही लाभ-प्रद
अवस्थाओं को प्राप्त करने में उनकी सहायता करते हैं। आसनों का शरीर और मन पर
दूरगामी प्रभाव होता है। उदाहरण के लिये, 'मार्जारी' आसन से शरीर को फैलाना और रीढ़ को लचीला रखना, 'भुजंगासन'
से आक्रामक वृत्ति और भावुकता को दूर करना और शशांकासन (खरगोश) की
अवस्था से विश्राम प्राप्त हो जाता है। सिर के बल किया जाने वाला 'शीर्षासन' और 'पद्मासन'
(कमल-आसन) सर्वोत्तम आसन माने जाते हैं।
आसन मांसपेशियों, जोड़ों, हृदय-तंत्र
प्रणाली, नाडिय़ों और लसिका-संबंधी प्रणाली के साथ-साथ मन,
मस्तिष्क और चक्रों (ऊर्जा-केन्द्रों) के लिए भी लाभदायक हैं। ये
मन: कार्मिक व्यायाम हैं जो सम्पूर्ण नाड़ी-प्रणाली को सशक्त करने और संतुलित करने
के साथ-साथ आसन-कर्ताओं के मन-मस्तिष्क को भी शांत और स्थिर रखते हैं। इन योगासनों
का प्रभाव संतोषी-वृत्ति, मन की सुस्पष्टता, तनावमुक्ति और आन्तरिक स्वतंत्रता और शांति में परिलक्षित होता है।
"दैनिक जीवन में योग" प्रणाली इस
प्रकार से निर्धारित की गई है जिसमें साधारण प्रारंभिक अभ्यासों से अधिक विशिष्ट
और कठिन आसनों तक पहुँचा जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप शरीर को क्रमिक और
चरण-बद्ध रूप से तैयार कर अंत में विश्राम अवधि भी शामिल की जाती है तथा यही क्रम
हर आसन-अभ्यास के मध्य भी रहता है। विश्राम की योग्यता का विकास करने से प्रत्येक
व्यक्ति में अपने शरीर के प्रति अनुभूति गहरी होती जाती है जो सभी योगाभ्यासों के
सही संपादन के पूर्व की आवश्यकताएं हैं। केवल इसी प्रकार, आसनों
के प्रभावों को पूर्ण रूप में देखा जा सकता है।
श्वास की आसनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका
है। श्वासोच्छवास और गति में समन्वय के साथ, योगाभ्यास सुव्यवस्थित हो जाता है, श्वास स्वयं ही
गहन हो जाती है, और शरीर का परिसंचालन व चयापचयन संवर्धित हो
जाता है। श्वास के प्रयोग से तथा शरीर के तनाव पूर्ण भागों पर अधिक ध्यान देने से
मांसपेशियों में स्वस्थता प्रदान होती है, साथ ही प्रत्येक
नि:श्वास उन भागों को तनाव-मुक्त करता है।
चूँकि अधिकांश लोग स्वभाववश ऊपर-ऊपर से, उथला श्वास ही लेते हैं, "दैनिक जीवन में योग" में "पूर्ण योग श्वास" का अभ्यास किया
जाता है। सही श्वास लेना शरीर की सर्वाधिक चयापचयन प्रणाली के लिये मूल बात है।
नियमित अभ्यास से, "पूर्ण योग श्वास" श्वास का
स्वाभाविक और प्राकृतिक प्रकार बन जाता है। धीमी गति और गहनतर श्वास रक्त
परिसंचालन, नाड़ी कार्य-प्रणाली और व्यक्ति की पूर्ण कायिक
अवस्थाओं को सुधार देते हैं और यह श्वास अभ्यास शांत और स्पष्ट मनबुद्धि को भी
विकसित कर देता है।
आसनों और व्यायाम (कसरत) में अन्तर
·
योग शारीरिक, मानसिक, और भावनात्क
गतिविधि होता है जबकि व्यायाम केवल शारीरिक गतिविधियों द्वारा शरीर को स्वस्थ
बनाने के लिए होता है ।
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व्यायाम से
सांसों पर नियंत्रण नहीं होता है अर्थात ये तेज या मंद हो जाती हैं जबकि योग में
सांसों को नियंत्रित करना सर्वप्रथम सिखाया जाता है ।
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योग में आसान के
अनुसार सांसे तेज और मंद की जाती हैं जबकि व्यायाम के दौरान लोगों का साँस पर ध्यान
नहीं जाता और साँस तेज हो जाती हैं ।
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योग आंतरिक रूप
से शरीर को प्रभावित करता है जबकि व्यायाम बहरी रूप से शरीर को प्रभावित करता है ।
·
योग से शरीर
लचीला बनता है जबकि व्यायाम से शरीर मांसपेशियों में कड़ापन आता है ।
·
योग आराम से की
जाने वाली प्रक्रिया है इसलिए ये कभी शरीर पर गलत प्रभाव नहीं डालता जबकि व्यायाम
में कभी कभी शरीर को नुकसान भी पहुंच जाता है, तीव्रता और प्रबलता के कारण।
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व्यायाम से अधिक
भूख लगती है जबकि योग से भूख कम हो जाती है ।
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व्यायाम में
ऊर्जा का अधिक खर्च होती है इसलिए हम जल्दी खुद को थका महसूस करने लगते हैं जबकि
योग में ऊर्जा धीरे धीरे खर्च होती है जिससे हम खुद को ताज़ा महसूस करते हैं ।
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व्यायाम के लिए
आपको काफी जगह की आवश्यकता होती है जबकि योग में आपको एक मैट भर की जगह की जरूरत
होती है ।
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व्यायाम में
आपको अपना ध्यान केंद्रित नहीं करना होता है जबकि योग में आपको अपना ध्यान अपने
आसान और अपनी सांसों पर केंद्रित करना होता है ।
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व्यायाम में
किसी प्रकार का कोई सिद्धांत नहीं होता जबकि योग में 5 सिद्धांत होते हैं जैसे कि:
सही भोजन, सही सोच, सही सांसें, नियमित व्यायाम और आराम ।
·
व्यायाम को करने
के लिए एक उचित आयु और स्वस्थ शरीर का होना आवश्यक है जबकि योग कोई भी व्यक्ति कर
सकता है ।
आसनों के नियमित अभ्यास से स्वास्थ्य-लाभ
·
रीढ़ में लोच
बढ़ जाती है।
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जोड़ गतिशील हो
जाते हैं।
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मांसपेशियाँ
तनाव-रहित, ठीक हो जाती हैं और
उनमें रक्त का प्रवाह उपयुक्त मात्रा में होने लगता है।
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अंग और ग्रंथि
की सक्रियता बढ़ जाती और नियमित हो जाती है।
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लसिका-संबंधी
प्रणाली और चयापचयन-तंत्र उत्तेजित हो जाते हैं।
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प्रतिरोधक, असंक्राम्य प्रणाली सशक्त होती है।
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परिसंचालन और
रक्तचाप सामान्य और स्थिर हो जाता है।
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नाड़ी-तंत्र
शांत और सशक्त हो जाता है।
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चमड़ी साफ, स्वस्थ और तरोताजा हो जाती है।