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किसी भी ध्यानात्मक या विश्राम की मुद्रा में बैठ जाएँ
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मेरुदण्ड तथा गर्दन को जमीन से उर्ध्वाधर एवं बिलकुल सीधा
रखें |
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आँखों को बंद कर कंधों को ढीला छोड़ दें |
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पूरे शरीर को विश्राम दें |
अभ्यास :
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श्वसन क्रिया को तीव्र करने का अभ्यास करें | इसमें श्वास
लेने की क्रिया धीमी हो पर श्वास छोड़ने की क्रिया तीव्र एवं बलपूर्वक होनी चाहिए |
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हर बार श्वास छोड़ते समय उदर में बलपूर्वक फड़फड़ाने जैसी गति
पैदा करें | यह किया लगातार अर्थात प्रति मिनट 60 बार होनी चाहिए |
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प्रत्येक बार श्वास छोड़कर उदर की मांसपेशियों को विश्राम
देकर धीमी गति से श्वास लें |
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अब स्वचालित रूप से श्वास रुकने की स्थिति का अनुसरण करें |
इसके साथ ही आपको गहरी निःशब्दता की अवस्था महसूस हो सकती है | इस गहन विश्राम तथा
नवीनता का आनंद लें |
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तब तक प्रतीक्षा करें जब तक कि श्वसन क्रिया अपनी सहज
स्थिति में न आ जाए |
लाभ :
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लगातार अभ्यास करने से चेहरे की चमक बढती है एवं मस्तिष्क
की कोशिकाओं की क्रियाशीलता बढती है|
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कपालभाति के अभ्यास से तंत्रिका तन्त्र को बल मिलता है |
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पेट के अंगों की मालिश हो जाने से पाचन सम्बन्धी विकार दूर
हो जाते हैं |
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दमा एवं श्वास सम्बन्धी विकारों में लाभ मिलता है |
सावधानियां :
रक्तचाप, ह्रदय रोग, वर्टिगो, मिर्गी, हर्निया, पेप्टिक
अल्सर, स्लिप डिस्क, सरवाईकल दर्द, मासिक धर्म के एवं गर्भावस्था के दौरान यह
क्रिया वर्जित है |