VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

योग चिकित्सान्तर्गत सूर्य नमस्कार

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

योग की परिसीमाओं में सूर्य नमस्कार को किसी एक देश से बांधा नही जा सकता है। सूर्य नमस्कार बारह आसनों का पुंञ्ज है। जिसमें शरीर के सभी प्रकार के मूमेन्ट (गतियाँ) समाहित होते है। पूरक रेचक के साथ इन आसनों को करने से प्राणायाम का भी इसमें समावेश हो जाता है। मंत्रों के साथ करने से सकारात्मक भाव पैदा होता है। एवं मन एकाग्र होता है।

इस इकाई में इस विषय को इसलिये भी समाहित किया जा रहा है कि वास्तव में सूर्यनमस्कार वह प्रक्रिया नहंी कि जिसमें सूर्य की आराधना-उपासना पूजा आदि की जाती है। यह तो शारीरिक सौष्ठव एवं मानसिक शांति प्राप्त करने के लिये सम्पूर्ण शरीर की व्यायाम पद्वति है।आज के भागमभाग के समय में समयाभाव के कारण यदि सूर्यनमस्कार पद्वति को भी अपनाया जाये तो इसमें आयु, प्रज्ञा, बल एवं वीर्य ओजगुण की प्राप्ति होगी। केाई व्यक्ति किसी भी देश का व्यक्ति क्यों न हो वह सूर्य की ताकत शक्ति को पहचाने बिना नही रह सकता । सूर्य किसी भी धर्म- जाति-मजहब विशेष का नहीं है। हम सूर्यनमस्कार कि पद्वति के द्वारा जिसकी की पूजा अर्चना पद्धति को मानते हो उसका ध्यान करते है। उसका स्मरण, उनके आप्त वाक्य दोहराकर बारह आसन कर सकते है। इन बारह आसनों का स्थितयों का इस इकाई में वर्णन नहीं कर केवल सूर्यनमस्कार के 12 आसनों का वैज्ञानिक चिकित्सकों कि दृष्टि से विभिन्न संस्थानों पर होने वाले प्रभाव- लाभों का संक्षेप में वर्णन निम्नानुसार किया जा रहा है।

श्वसन संस्थान- पूरक रेचक करने से फुफ्फुसों में ताजी स्वच्छ आक्सीजन प्राप्त होती है। हस्तउतानासन में ऐसा ही होता है।

रक्त परिसंचरण संस्थान- सूर्य नमस्कार को पद्धति से रक्त प्रवाह बढता है। रक्त के माध्यम से प्राणवायु कोशिकाओं तक सुचारू पहुँचने से हृदय सहित सभी अंग अवयव स्वस्थ रहते है।

पाचन संस्थान- खिंचाव , तनाव, एवं शरीर को ढीला छोड़ने से पाचन शक्ति मजबूत होती है। हस्तपदासन में उदर के अवयवों जैसे कि यकृत , वृक्क, पित्ताशय, गर्भाशय, सभी की मालिश जैसी क्रिया होती है। जिससे कि पाचन तंत्र सही रहता है।

अश्वसंचालन की स्थिति में खिचावं होने से जननांग अर्थात् पुरूष तथा महिलाओं के स्वस्थ होते है।

अर्द्ध पर्वतासन- इस स्थिति में भुजायें, पैर की स्नायुएवं पेशियाँ मजबूत होती है। मेरूदण्ड मजबूत होता है। वेरीकोज वेन (शिराशोथ) दूर होने में सहायक है।

साष्टांग नमस्कारासन- इससे वक्ष का विकास, सीना चैडा होता है, कंधे एवं भुजायें मजबूत होती है। मणिपुर चक्र में उद्दीपन होता है। जिससे वक्ष स्थल एवं उदर प्रदेश स्वस्थ रहता है।

भुजगांसन- वक्ष एवं उदर पर गतिशील प्रभाव होने से श्वास, दमा, गुर्दे, की बीमारी यकृत की अनेक बीमारियाँ दूर होती है। यकृत(लीवर) में पोषक, तत्त्वों की रासायनिक प्रक्रिया सम्यक् होती है।

पुनः अश्वसंचालनआसन, पश्चिमोतानासन, (पादहस्तासन) ताडासन, नमस्कारासन, आदि पूर्ववृत क्रियाओं के पूर्ववत लाभ प्राप्त होते है।

सूर्य नमस्कार द्वारा शरीर एवं मन में लचीलापन का विकास होता है। मानसिक संतुलन प्राप्त होता है। नकारात्मक भाव समाप्त हो जाते है। आत्म हत्या करना तो दूर इसका विचार भी मन में नहीं आता है।नकारात्मक भाव समाप्त हो जाते है।

उत्सर्जन संस्थान-भुजगांसन, अश्वसंचालासन, से उत्सर्जन संस्थान स्वस्थ होते है।

स्नायुमण्डल मेरूदण्ड सीधा होकर उसमें लचीलापन आने के कारण से मस्तिष्क की नाडियाँ कियाशील होकर पाडी जन्य रोगों को दूर करने में सहायक होती है।

अन्तः स्त्रावी ग्रथियों पर (पीयूषिका ग्रथिं) अधिवृक्क ग्रथिं, अग्नाशय जननांग ग्रथि पर सभी प्रकार की सकारात्मक प्रभाव पडता है।

शरीर सुसंगठित एवं मजबूत होता है। मोटापे का विनाश हो जाता है। अतः सूर्यनमस्कार एक येाग की वैज्ञानिक चिकित्सा है पद्वति है जो कि ये पद्वति सम्पूर्ण विश्व में जहां भी व्यक्ति इसका अभ्यास करें वह इससे शारीरिक, मानसिक, बौद्विक, आत्मिक, एवं आध्यात्मिक, उन्नति प्राप्त कर स्वास्थ्य का संरक्षण तथा व्याधियों का विनाश करते हुए लाभ प्राप्त कर सकता है। इससे शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता तथा शांति आनन्द प्राप्त होता है।