VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

उपवास के शरीर क्रियात्मक प्रभाव

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

उपवास का प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है, और सारे अंग प्रत्यंग व संस्थानों को प्रभावित करता हैं।

पाचन पर प्रभाव:-

भोजन अधिक मात्रा में करना या बिल्कुल ही न करना दोनों ही दशायें आमाशय पर प्रभाव डालती है। उपवास के दूसरे या तीसरे दिन अत्यधिक भूख लगती है जिससे अत्यधिक बेचैनी सी प्रतीत होती है। इस भूख के शांत होने के बाद शरीर से विषों का निकलना प्रारम्भ हो जाता है। यह अवस्था शरीर में उपस्थित विषों की मात्रा के अनुसार उसे चार दिनों तक बनी रहती है। कभी-कभी विष अत्यधिक होने के कारण यह स्थिति 14-15 दिनों तक भी देखी गयी है। विषों के निकलने पर जीभ में मल, श्वास में दुर्गन्ध तथा भूख पूरी तरह से समाप्त हो जाती है। विषों के नष्ट हो जाने के बाद पेट हल्का हो जाता है और वास्तविक भूख की प्रतीती होती है। जीभ का मैल दूर हो जाता है। शरीर में हल्कापन लगने लगता है।

रक्त का प्रभाव:-

·         उपवास के समय रक्त कई परिवर्तन देखे गये हैं।

·         उपवास काल में रक्त अणुओं की संख्या शुरू में घटती है परन्त कुछ समय बाद बढ़ने लगती हैं।

·         इओसिनोफिल्स तथा पोली यूक्लियर की संख्या बढ़ जाती है।

यकृत पर प्रभाव:-

उपवास काल में पित्त बढ़ने से आंतों में स्थित मल पूर्ण रूप से साफ हो जाता है। पित्त अधिक निकलने से ही अजीर्ण कब्ज, दस्त आदि रोगों का उपवास द्वारा दूर किया जा सकता है।

मूत्र संस्थान पर प्रभाव:-आमाशय के उत्पन्न विष रक्त द्वारा शरीर में फैलकर बाद में वृक्कों द्वारा शरीर से बाहर निकलते हैं। इनमें सबसे प्रमुख यूरिया होता हैं यदि यह शरीर से बाहर न निकले तो इसके परिणाम घातक होते है। उपवास काल में मूत्र द्वारा यह यूरिया तेजी से निकलता है। जिससे शरीर में इसकी मात्रा कम होने लगती है जिससे यह पता चलता है कि अब शरीर की शक्ति घटने लगी है। इस विषय में डा. हेग लिखते हैं - शरीर के पाचक रस उस वक्त शारीरिक उतकों को नष्ट करने लगते हैं, और उत्पन्न यूरिया मार्ग द्वारा बाहर होने लगता है।

नाड़ी पर प्रभाव:-

 उपवासकाल में कुछ अवस्थाओं में तो नाड़ी की गति सामान्य बनी रहती है। परन्तु कुछ अवस्थाओं में इसकी गति कम हो जाती है।

त्वचा पर प्रभाव:-

प्रायः अधिक व अनुपयुक्त आहार द्वारा शरीर में त्वचा के नीचे अधिक वसा जमा हो जाती है। जिस कारण त्वचा में स्थित रोम छिद्र लगभग बन्द से हो जाते हैं। तथा पसीना नहीं होने के कारण शरीर में स्थित विष रोम छिद्रों से बाहर नहीं निकल पाते। उपवासकाल में जब शरीर में जमी वसा घटने लगती है तब रोम छिद्र खुलने लगते हैं और अधिक मात्रा में पसीना आने लगता है। जिससे शरीरस्थ विष तेजी से बाहर निकलने लगता हैं। जिससे रोगी के पसीने में अत्यधिक दुर्गन्ध आने लगती हैं। परन्तु विष निकल जाने के बाद यह दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है।

स्नायु संस्थान पर प्रभाव:-

शरीर में स्नायु संस्थान का स्थान सबसे मुख्य है इसमें दोष उत्पन्न होने पर शरीर में कोई ना कोई दोष उत्पन्न हो जाता है। उपवास करने से रक्त शुद्ध होता है। जिससे मस्तिष्क से विषों का प्रभाव समाप्त हो जाता है। जिससे स्नायु सम्बन्धी रोग ठीक हो जाते हैं।

शरीर भार पर प्रभाव:-

शुरू में 1-2 दिन तक कोई अन्तर नहीं आता परन्तु 2-3 दिन बाद लगभग 2 किलो भार कम हो जाता है और इसके बाद 1/2 किलो भार प्रतिदिन के लगभग कम होता रहता है।

श्वास पर प्रभाव:-

प्रथम 2-3 दिनों तक श्वास दुर्गन्धयुक्त होती है फिर 6-7 दिन बाद यह दुर्गन्ध समाप्त हो जाती है क्योंकि शरीर निर्मल हो जाता है।