विधि :
- किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएँ |
- दोनों हाथों की अँगुलियों को परस्पर एक-दूसरे में
फसायें (ग्रिप बनायें) |
- किसी भी एक अंगूठे को सीधा रखें तथा दूसरे अंगूठे से
सीधे अंगूठे के पीछे से लाकर घेरा बना दें |
सावधानियाँ :
- लिंग मुद्रा से शरीर मे गर्मी उत्पन्न होती है,इसलिए
इस मुद्रा को करने के पश्चात् यदि गर्मी महसूस हो तो तुरंत पानी पी लेना
चाहिए |
- लिंग मुद्रा को नियत समय से अधिक नही करना चाहिए
अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि संभव है |
- गर्मी के मौसम में इस मुद्रा को अधिक समय तक नहीं करना
चाहिए |
- पित्त प्रकृति वाले व्यक्तियों को लिंग मुद्रा नही
करनी चाहिए |
मुद्रा करने का समय व अवधि :
·
लिंग मुद्रा को
प्रातः-सायं 16-16 मिनट तक करना चाहिए |
चिकित्सकीय लाभ :
- सर्दी से ठिठुरता व्यक्ति यदि कुछ समय तक लिंग मुद्रा
कर ले तो आश्चर्यजनक रूप से उसकी ठिठुरन दूर हो जाती है |
- लिंग मुद्रा के अभ्यास से जीर्ण नजला,जुकाम,
साइनुसाइटिस,अस्थमा व निमन् रक्तचाप का रोग नष्ट हो
जाता है | इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से कफयुक्त खांसी एवं छाती की जलन नष्ट
हो जाती है |
- यदि सर्दी लगकर बुखार आ रहा हो तो लिंग मुद्रा तुरंत
असरकारक सिद्ध होती है |
- लिंग मुद्रा के नियमित अभ्यास से अतिरिक्त कैलोरी बर्न
होती हैं परिणाम स्वरुप मोटापा रोग समाप्त हो जाता है |
- लिंग मुद्रा पुरूषों के समस्त यौन रोगों में अचूक है ।
इस मुद्रा के प्रयोग से स्त्रियों के मासिक स्त्राव सम्बंधित अनियमितता ठीक
होती हैं |
- लिंग मुद्रा के अभ्यास से टली हुई नाभि पुनः अपने
स्थान पर आ जाती हैं |
आध्यात्मिक लाभ :
- यह मुद्रा पुरुषत्व का प्रतीक है इसीलिए इसे लिंग
मुद्रा कहा जाता है। लिंग मुद्रा के अभ्यास से साधक में स्फूर्ति एवं उत्साह
का संचार होता है | यह मुद्रा ब्रह्मचर्य की रक्षा करती है , व्यक्तित्व को शांत व आकर्षक बनाती है जिससे व्यक्ति आन्तरिक स्तर पर प्रसन्न
रहता है ।