उपवास | भुखमरी |
कुछ या सभी भोजन,
पेय या दोनो के लिये बिना कुछ अवधि तक रहना उपवास (Fasting)
कहलाता है। उपवास पूर्ण या आंशिक हो सकता है। यह बहुत छोटी अवधि
से लेकर महीनो तक का हो सकता है। उपवास के अनेक रूप हैं। धार्मिक एवं आध्यात्मिक
साधना के रूप में प्रागैतिहासिक काल से ही उपवास का प्रचलन है। | विटामिन, पोषक तत्वों और ऊर्जा
अंतर्ग्रहण की गंभीर कमी को भुखमरी कहते हैं। यह कुपोषण का सबसे चरम रूप है। अधिक समय तक भुखमरी के कारण
शरीर के कुछ अंग स्थायी रूप से नष्ट हो सकते हैं और अंततः
मृत्यु भी हो सकती है। अपक्षय शब्द भुखमरी के लक्षणों और प्रभाव की ओर संकेत करता है। |
उपवास काल में जब केवल जल
ग्रहण किया जाता है, तब उत्सर्जन प्रक्रिया द्वारा शरीर की गन्दगी
पानी के साथ मिलकर शरीर से बाहर आ जाती है। यह गन्दगी श्लेष्मा या फिर पहले से
ली जा रही दवाएं होती है, जो कि विजातीय पदार्थ के रूप में
जानी जाती है। इस विजातीय पदार्थ को शरीर अपने रक्त में मिलाकर इस हद तक घुलाता
है कि वे गुर्दे - रूपी छलनी से छन कर आसानी से बाहर निकल जाते है। जनसाधारण में यह धारणा भी
देखी जाती है कि खाने के बीच में भंग करना भले ही वह अल्पकालीन क्यों न हो,
व्यक्ति की जीवनी शक्ति को कमजोर करता है। यह इस कारण से भी है कि
लोग मानते है कि शक्ति का स्रोत मात्र खाद्य और पेय पदार्थ ही है। प्राण शक्ति
जो कि हमारी जीवनी शक्ति या ओजस्विता का मूल स्रोत है इसका हमारे शारीरिक और
आध्यात्मिक शरीर से तथा हमारे भोजन, पेय, टॉनिक एवं उत्तेजक पदार्थों से कोई सम्बंध नहीं है। यह जीवनी शक्ति उस
ब्रहमाण्डीय तथा सृष्टि की सृजन शक्ति और बुद्धि का आदि स्रोत है। इस शक्ति को
हम ईश्वर के नाम से जानते है। मनुष्य में उर्जा शक्ति
का मुख्य स्रोत केवल भोजन नहीं है अपितु इससे भी अति प्रभावशाली एवं सूक्ष्म
स्रोत प्राण शक्ति है। जिसे हम ब्रहमाण्डीय उर्जा के रूप में जानते है। जिसकी
प्राप्ति का एकमात्र साधन ईश्वर है। स्पष्ट है कि उपवास द्वारा मनुष्य की
शारीरिक क्षमता में किसी प्रकार की कमी नहीं आती बल्कि उपवास द्वारा वह उत्तम
स्वास्थ्य को प्राप्त करने में सक्षम रहता है। मानव शरीर में उपवास एक
प्रभावशाली उपचार साधन के रूप में कार्य करता है। रोग रक्तप और लसिका के
असामान्य संगठन तथा शरीर में विजातीय पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में
सहायता पहुँचाता है। उपवास में भोजन खाने की
आदत को तोडना सबसे कठिन स्थिति है । इसलिए उपवास के प्रथम तीन या चार दिन सदैव
कठिनतम होते है, जिनमें व्यक्ति को कुछ शारीरिक उपद्रव अनुभव
होते है जैसे- सिरदर्द, नींद आना, चक्कर
आना, वमन आदि। ऐसा इसलिए होता है क्यों कि खाने की आदत
व्यक्ति की सबसे पुरानी आदत होती है। और इसे तोड़ना उसके लिए सहज नहीं होता।
उपवास प्रारम्भिक दिनों में व्यक्ति इस जटिलता का अनुभव करता है। परन्तु।
धीरे-धीरे प्रक्रिया उसके लिए आसान हो जाती है। उपवास तथा अन्य उपचारों में रोग
निवारण हेतु ये आवश्यरक है कि रोगी की मनोवृत्ति सकारात्मक हो,
यदि व्यक्ति उपवास कमजोर होने की मनोवृत्ति के साथ प्रारम्भ करता
है तो इससे उसमें मानसिक और स्नायुविक अवसाद उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती
है, जिससे व्यक्ति के शरीर पर घातक प्रभाव पड़ता है। इसके
विपरीत यदि पूर्ण विश्वास एवं सावधानियों के साथ उपवास किया जाए तो शरीर पर
लाभकारी प्रभाव पड़ता है। शरीर में जीवनी शक्ति बढ़ती है तथा विजातीय पदार्थ दूर
होते है। | भुखमरी से ग्रसित व्यक्ति में चर्बी (वसा)
की मात्रा और मांसपेशियों का भार काफी घट जाता है क्यूंकि शरीर ऊर्जा प्राप्त
करने के लिए इन ऊतकों का विघटन करने लगता है। जब शरीर अपने अत्यावश्यक अंगों
जैसे तंत्रिका तंत्र और ह्रदय की मांसपेशियों (मायोकार्डियम) की क्रियाशीलता को
बनाये रखने के लिए अपनी ही मांसपेशियों और अन्य ऊतकों का विघटन करने लगता है तो
इसे केटाबौलिसिस कहते हैं। विटामिन की कमी भुखमरी का सामान्य परिणाम है, जो प्रायः खून की कमी, बेरीबेरी, पेलेग्रा और स्कर्वी का रूप ले लेता है। संयुक्त रूप से यह बीमारियां
डायरिया, त्वचा पर होने वाली अन्धौरी, शोफ़ और ह्रदय गति रुकने का कारण भी हो सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप
इससे ग्रस्त व्यक्ति प्रायः चिड़चिड़ा और आलसी रहता है। पेट की क्षीणता भूख के अनुभव को कम कर देती
है, क्यूंकि
अनुभव पेट के उस हिस्से द्वारा नियंत्रित होता है जो कि खाली हो। भुखमरी के
शिकार व्यक्ति इतने कमज़ोर हो जाते हैं कि उन्हें प्यास का अनुभव नहीं हो पाता
और इसलिए निर्जलीकरण से ग्रस्त हो जाते हैं। मांसपेशियों के अपक्षय और शुष्क व फटी
त्वचा, जो कि
गंभीर निर्जलीकरण के कारण होती है, के परिणामस्वरूप सभी
क्रियाएं पीड़ादायक हो जाती हैं। कमज़ोर शरीर के कारण बीमारियां होना साधारण है।
उदाहरण के लिए, फंगस प्रायः भोजन नली के अन्दर विकसित होने
लगता है, जिससे कि कुछ भी निगलना बहुत ही कष्टदायक हो जाता
है। भुखमरी से होने वाली ऊर्जा की स्वाभाविक
कमी के कारण थकावट होती है और ऊर्जा की यह कमी लम्बे समय तक रहने पर पीड़ित
व्यक्ति को उदासीन बना देती है। क्यूंकि भुखमरी से पीड़ित व्यक्ति इतना कमज़ोर
हो जाता है कि वह खाने और हिलने में भी असमर्थ हो जाता है और फिर अपने चारों और
के वातावरण से उसका पारस्परिक सम्बन्ध भी कम होने लगता है। वह व्यक्ति रोगों से लड़ने में भी असमर्थ
हो जाता है और महिलाओं में मासिकधर्म भी अनियमित हो जाता है। |
VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.
उपवास एवं भुखमरी मे अंतर
By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'