अप्राकृतिक आहार,
अनियमित दिनचर्या एवं दूषित चिचारों से जब शरीर में विजातीय
दृव्य (विष) की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाता है तब इस विष को निकालने के लिये हमारे
शरीर के प्रमुख मल निष्कासक अंग (त्वचा, आंत, फेफड़े एवं गुर्दे) भी अक्षम हो जाते हैं। इस स्थिति में उक्त विष शरीर के
अन्दर एकत्र होकर रोग पैदा करता है। प्राकृतिक चिकित्सा में इस विष को मिट्टी,
पानी धूप, हवा और आकाश तत्वों की सहायता से विकसित उपचारों द्वारा
शरीर का शोधन कर रोग मुक्त किया जाता है। मात्र पृथ्वी तत्व के कृछ प्रयोग से भी
शरीर का शोधन कर सकते है।
पृथ्वी में एक चुम्बकीय शक्ति है
जो सम्पर्क में जाने पर मनुष्य को प्राणवान एवं ऊर्जावान बना देती है। जंगल के पशु
मिट्टी के साहचर्य के कारण अनेक रोगों से मुक्त रहते है। स्वच्छ मिट्टी पर या घास पर
नंगे पांव चलने, बैठने
एवं लेटने के अपने लाभ है। मिट्टी में अमृत मिला है।
पंच महाभूत तत्वों में मिट्टी एक
आधरभूत तत्व है। कहा जाता है कि यह शरीर मिटूटी से ही बना है और मिट्टी में मिल जाता
है। सभी जड़-चेतन वस्तुओं को धारण करने से इसे धरती धरित्री,
धरा कहते है। इसके गर्भ में कईं रत्न और खनिज पदार्थ भरे रहने
से इसे रत्नगर्भा, वसुधा, वसुमती, रत्न प्रसविनी कहते है। सभी रस पृथ्वी में मौजूद है। इसके गर्भ से खाघ पदार्थ पोषक
तत्व ग्रहण करते है जिन्हें खाकर हम स्वस्थ बनते है इसलिये इसे रसा भी कहते है। विष
के प्रभाव को नष्ट करने के कारण इसे अमृता भी कहते है।
प्रसिद्ध चिकित्सक एडल्फ जस्ट के
अनुसार मछली जल का जीव है वह जल में रह एवं जी सकती है । पक्षी का निर्दिष्ट स्थान
वायु है,
वह आकाश का पक्षी है लेकिन मनुष्य धरती पर चलता है उन्होंने
पृथ्वी तत्व को धरती माता की संज्ञा दी जिसकी गोद में सिर रखकर मनुष्य अपने अनेक रोग,
शोक एवं कष्ट से मुक्ति पा सकता है।
इससे शरीर की जीवन शक्ति बढ़ती है,
स्नायु मण्डल सबल होता है, नेत्र-ज्योति ठीक रहती है और मस्तिष्क पर गरमी नहीं चढ़ती,
नींद ठीक से आती है।
पाचन तंत्र एवं उत्सर्जन तंत्र संबंधित
रोगों की पृथ्वी चिकित्सा आसानी से की जा सकती है। रोगों के अनुसार मिट्टी चिकित्सा
का प्रयोग लाभकारी होता है। हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जिस अंग का रोग है
उस अंग से जुडे़ हुए सभी स्थान पर मिट्टी चिकित्सा दी जानी चाहिये।
मिट्टी में विष को खींचने को अदभुत
शक्ति है। गीली मिट्टी को शरीर के किसी रोग युक्त अंग पर बाँध दिया जाय और फिर थोड़े
समय बाद उसे खोला जाय तो उस मिट्टी में मनुष्य शरीर का विष बहुत अधिक मात्रा में मिलेगा।
इसके अतिरिक्त पोषक तत्व देने की भी पृथ्वी में आश्चर्य जनक क्षमता है। प्रायः सभी
पदार्थ में से एक प्रकार की गन्ध युक्त वाष्प निकलती रहती है,
फल और पुष्पों की अपनी महक अलग ही होती है,
जीव जन्तुओं के शरीरों से भी गन्ध युक्त वायु निकलती है इसी
प्रकार पृथ्वी में से भी सदैव एक प्रकार की वाष्प निकलती है। यह वाष्प बड़े अद्भुत गुणो
से सम्पन्न होती है। पृथ्वी में बड़े अमूल्य रासायनिक तत्व भी पडे़ है। वनस्पतियां औषधियाँ
तथा अन्य अनेक खाद्य वस्तुऐं पृथ्वी से ही निकलती है पृथ्वी के रासायनिक द्रव्य ही
रूपान्तर करते हुए उपयोगी पेड़ पौधों का रूप धारण करते है। यह महत्वपूर्ण तत्व पृथ्वी
से निकलती रहने वाली वाष्प के
साथ बाहर आते रहते है। पृथ्वी के
समीप शरीर रखने से वह शरीर को प्राप्त होती रहती है जिसका स्वास्थ्य पर बड़ा अच्छा असर
पड़ता है।
इस प्रकार हम मिट्टी चिकित्सा के
मूल सिद्धान्तो तथा विधियों को समझ कर विभिन्न रोगों को बिना कोई नकारात्मक प्रभाव
के आरोग्य लाभ दे सकते है।
मिट्टी की गरम पट्टी
इसके लिये बलुई मिट्टी अच्छी होती
है और नदी के कछार की ताजी गीली मिट्टी बहुत ही अच्छी होती है। शुद्ध सूखी मिट्ठी को
कूट पीसकर कपड़े से छान लेते है। फिर किसी लकड़ी के टुकड़े है चलाते हुये उसे ठंडा पानी
डालकर गीला करते है। गीली मिट्टी में विद्युत चुम्बकीय गुण होता है हाथ लगाने या लोहे
की छड़ डालने पर इसका गुण कम हो जाता है।
गीली मिट्ठी को एक मोटे कपड़े पर आधा
इंच की मोटाई में फैलाये फिर उस मिट्टी को ऊनी कपड़ा रखकर किसी अन्य कपड़े से बाँध देते
है। उसके बाद रोगी को आराम से लिटा देते है। 20-30 मिनट या इससे भी अधिक देर तक यह
यहीं लगायी जा सकती है। समय हो जाने पर पट्टी को हटाकर उस जगह को भीगे कपड़े से पोंछ
देना चाहिये और उस स्थान को 2-3 मिनट तक सूखी मालिश देनी चाहिये ताकि उसमें थोडी गर्माहट
आ जाये। इसी को रोगों में मिट्टी की पट्टी देना कहा जाता है। जो मिट्टी एक बार प्रयोग
में आ चुकी हो उसका दोबारा उपयोग भुल से भी नहीं करना चाहिए। क्योकि उसमें रोग के जहरीले
पदार्थ व्याप्त हो जाते हैं।
लाभ- पुराने कोष्ठबद्धता,
अपच, दस्त तथा पेट के रोगों में और ज्वरादि मे, शरीर की बढ़ी हुई अनावश्यक उष्णता को दूर करने के लिये। यह रोग
को जलन और दर्द दोनों को एक साथ शीेघ्र दूर करती है।
गरम मिट्टी की पट्टी
इसके लिए किसी बर्तन में थोडी मिट्टी
डालकर उसमें उबलता पानी धीरे- धीरे मिलाते है अथवा मिट्टी को धीमी आंच पर धीरे-धीेरे
गर्म करते है फिर इसे रोगी के तकलीफ वाले स्थान पर लगाते है। इसे गरम मिट्टी की पट्टी
कहते है। मिट्ठी की गर्मी रोगी की सहन शक्ति के अनुसार होनी चाहिये,
इसका प्रयोग बेंत जैसी वस्तुओं के घावों तथा मोचादि में,
स्त्रियों मे गर्भाशय सम्बन्धी रोगों मे,
गठिया स्रन्धिवात के रोगियों के लिये,
पेट दर्द, स्थानिक दर्द, महिलाओं के मासिक दर्द, श्वेत प्रदर तथा उदर अंगो की सूजन के लिये परम उपयोगी है। इस
गरम मिट्टी की पट्टी को लगाने के बाद ऊपर से फलालेन या ऊनी कपड़ा बांधना जरूरी है।
मिट्टी की ठंडी पट्टी (पेट की)
जब मिट्टी की पट्टी को रोगाक्रान्त
स्थान पर रखने के बाद उसको गर्म करने हेतु ऊपर फुलालेन या ऊनी कपड़ा नहीं बांधते बल्कि
उसे खुला ही रखते है जिसे मिट्ठी की ठंडी पट्टी दिया जाना कहा जाता है।
इसका सबसे अधिक प्रयोग पेडू की पट्टी
के रूप में होता है। पेट की विभिन्न बीमारियों में यह अत्यन्त लाभदायक है। आयुर्वेद
में कहा क्या है कि-
कर्मों दाहः पिन्तार्ति शोथहनः शीतलः सरः।
अर्थात् पानी से सनी मिट्टी ठंडक
देने वाली एवं पित्त की पीड़ा और सूजन दूर करती है। यह पट्टी शांतिकर प्रभाव डालती है
आंतों की लहरदार गति को बढ़ाती है और जीवाणुओं की वृद्धि को रोकती है।
साधन
एक लकड़ी की ट्रे,
साफ मिट्टी, एक कम्बल का टुकड़ा, आवश्यकतानुसार पानी।
विधि-
सर्वप्रथम किसी भी साफ स्थान से
2-3 फुट गहरी मिट्टी को खोदकर मिट्टी की पट्टी के लिए प्रयोग करते है। मिट्टी को दिन
भर धूप में सुखाया जाता है फिर रात में अच्छी तरह पानी मिलाकर छोड़ देते हैं,
फिर मिट्टी को अच्छी तरह गूंथकर मिट्टी को ट्रे में बिछाकर एक
सा कर देते है। रोगी को पीठ के बल लिटाकर मिट्टी को नाभि प्रदेश से नीचे की ओर तथा
कुछ 2-4 इंच ऊपर की तरफ मिट्टी का प्रयोग करते है।
उसके बाद मिट्टी के ऊपर एक कम्बल
ढ़क देते है। यदि रोगी को ठंड लग रही है तो उसके चारों और कम्बल लपेट देते है। अवधि
लगभग 30-40 मिनट तक होती है। समय पूरा होने पर मिट्टी को उदर क्षेत्र से हटा देते है
।
क्रिया - प्रतिक्रिया
मिट्टी शीतल होती है अतः यह पेट को
ठंडक प्रदान करती है। इससे शरीर की गर्मी शान्त होती है। किसी भी स्थान पर मिट्टी की
पट्टी का प्रयोग करते है तो वहां की पेशियों में संकुचन होता है जिससे ऊपरी त्वचा का
रक्त जो गर्मी उत्पन्न करता है वह अन्दर चला जाता है। इससे रक्त परिसंचरण सीमा और गर्मी
शान्त होती है । यहाँ पर जो विजातीय द्रव्य है उनको मिट्टी अपने अंदर अवशोषित कर लेती
है। शरीर के अंदर रक्त परिसंचरण तेज होता है जिससे आंतरिक अंग-अवयव भी विजातीय द्रव्यों
से मुक्त होते है और दूषित पदार्थ रक्त के साथ मिलकर उत्सर्जन अंगों के माध्यम से बाहर
निकल जाते है।
लाभ
यह पट्टी पुराने जटिल कब्ज की अचूक
चिकित्सा है। यह अजीर्ण, तेज ज्वर, टाइफाइड,
पेचिस अति अम्लता, पेट में अल्सर, महिलाओं के मासिक दोष, श्वेत प्रदर, आँव, अपच,
नाक से खून आना, लिवर में सूजन, शरीर में जलन, जुकाम, त्वचा पर कील, मुँहासे, हैजा, नये एवं पुराने में उपयोगी, मोटापा एवं पेट कम होने के अलावा जीवनी शक्ति और सुंदरता की
वृद्धि तथा रोगों से बचाव तथा पुरानी बीमारियों से मुक्ति मिलती है ।
सावधानियाँ
यदि बुखार में कंपकपी लग रही हो,
अस्थमा के आने की सम्भावना हो,
साइटिका के दर्द में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये। मिट्टी में
काँच या कोई रासायनिक पदार्थ नहीं होनी चाहिये, इसे खाली पेट लेना चाहिये अर्थात भोजन से 1-2 घंटा पहले या
3-4 घंटा बाद में। ठंड में यदि रोगी कमजोर है तो उसके चारों और केबल लपेट देना चाहिये।
पेट के पट्टी के अतिरिक्त आँखों, माथे सिर पर लेप करना चाहिए | जिनको पाइल्स की शिकायत हो एनस
पर मिट्टी की पट्टी लगायी जा सकती है।
रज स्नान
शुद्ध साफ मिट्टी को छानकर अंग-प्रत्यंग
को रगड़ना,
जब सारा बदन मिट्टी से रगड़ जाये तो 10-20 मिनट तक धूप में बैठकर
फिर ठंडे पानी से स्नान करना, यही सूखी मिट्टी का स्नान है इससे त्वचा नरम,
लचीली एवं कोमल और रोम छिद्रों के खुलने से शरीर के विजातीय
द्रव्य पसीने के रूप में बाहर हो जाते है। इससे फोड़े-फुंसियाँ दूर हो जाती है।
अखाड़े की मिट्टी में बार-बार गिर
कर शरीर को मिट्टी से घिसना, व्यायाम द्वारा पसीना निकालना और रोम कूपों को खोलकर मिट्टी
से निकली हुई एक प्रकार की गैस की कूपों द्वारा शरीर के अन्दर खींचकर माँस,
अस्थि तथा त्वचा को सुगठित करना भी रज स्नान है।
पंक स्नान
महीन पिसी हुई और कपड़े से छनी हुई
मिट्टी को जब पानी के साथ घोलकर उसे कीचड़ सदृश बना लेते हैं तब इस प्रकार की गीली मिट्टी
से किया हुआ स्नान गीली मिटूटी का स्नान कहलाता है।
बालों में मलने के लिये एक खास किस्म
की काली मिट्टी काम में लायी जाती है जिससे बाल मुलायम और चमकीले हो जाते है। यह स्नान
बहने वाले फोड़े-फुंसियों वाले शरीर के लिये, त्वचा की गंदगी और सफेदी के लिये लाभप्रद है। जब तक गीली मिट्टी
थोडी सूख न जाये, जल से स्नान नही करना चाहिये।
संपूर्ण शरीर की मिट्टी लेप
सम्पूर्ण शरीर पर मिट्टी लगाने के
पश्चात् सुखी मिट्टी पूरे शरीर को लगातार ठंडा और शीतल बनाती है और त्वचा को संकुचित
करती है। जिससे रक्त में जो विकार उपस्थित होते है वे शरीर के आन्तरिक अंग अवयवों तक
पहुँच जाते है और फिर वह विजातीय द्रव उत्सर्जन अंगों के माध्यम से शरीर से बाहर निकल
जाता है। इसके आंतरिक त्वचा की उपरी सतह पर जो विजातीय द्रव होते हैं उन्हें मिट्टी
अवशोषित कर लेती है ।
चिकित्सा योग्य मिट्टी
की तैयार करने की विधि
·
प्रयोग
में लायी जाने वाली मिट्टी साफ सुथरे स्थान या खेत की दो और जमीन से एक या डेढ़ फिट
नीचे की होनी चाहिये।
·
मिट्टी
को धूप में सुखाना अत्यंत आवश्यक है मिट्टी में सूर्य की किरणें लगने से जो भी
कीड़े,
मकोड़े, जीवाणु होते हैं वे नष्ट हो जाते है।
·
इसके
पश्चात् मिट्टी को छन्ने से छानकर कंकड़ पत्थर निकाल लेना चाहिये।
·
मिट्टी
चिकनी हो तो उसमें बालू मिला लें इससे मिट्टी में चूषण करने की क्षमता बढ़ जाती है।
·
इस
प्रकार तैयार मिट्टी को प्रयोग करने से आठ घण्टे पूर्व एक तसले या किसी भी बर्तन
में भिगो दें जिससे कि मिट्टी मुलायम हो जाये।
·
मिट्टी
को हाथ से नहीं छुयें बल्कि उसे किसी लकड़ी के यंत्र डन्डे आदि से मिलाकर तैयार
किया जा सकता है।
·
मौसम
के अनुसार ग्रीष्मकाल में ठण्डे जल से और शीतकाल में गरम जल से मिट्टी तैयार की जा
सकती है।
·
एक
बार प्रयोग में लायी गई मिट्टी को दोबारा उपयोग में नहीं करनी चाहिये ।
·
मिटटी
की पट्टी अंग पर लगाकर किसी कपड़े से ढक देने से उसे गर्म मिटटी की पट्टी कहते है |
जबकि न ढकने पर ठंडी पट्टी कही जाती है | इनका प्रभाव भी अलग-अलग होता है |
पट्टी तैयार करने के लिए उपकरण- सूती कपड़ा, पानी,
मिट्टी, ऊनी कपड़ा, टब, लकड़ी का फ्रेम।
मिट्टी पट्टियों के प्रकार
मिटटी की पट्टी को विभिन्न अंगों
के अनुसार तैयार किया जाता है प्रमुख रूप से निम्न पट्टियों का उपयोग चिकित्सा में
किया जाता है –
2.
पेड़ू की मिट्टी पट्टी
3.
गले की मिट्टी पट्टी
4.
घुटने की मिट्टी पट्टी
5.
सीने की मिट्टी पट्टी
6.
सिर की मिट्टी पट्टी
7.
आंख की मिट्टी पट्टी
8.
कान की मिट्टी पट्टी
9.
मेरूदण्ड की मिट्टी पट्टी
मिट्टी की पट्टियों के लाभ एवं सावधानियां
पेडू की मिट्टी पट्टी
अर्थवेद संहित अन्य पौराणिक ग्रंथों
में मिट्टी के रोग निवारक गुणों व चिकित्सकीय महत्व का वर्णन मिलता है। पाश्चात्य देशों
ने भी मिट्टी के महत्व को स्विकार किया। आधुनिक या वर्तमान काल में एडोल्फ जस्ट को
मिट्टी के प्रयोग का जन्मदाता माना जाता है।
साधन
साफ मिट्टी,
पानी, टब, एक लकड़ी की ट्रे लगभग एक से सवा इंच लम्बाई, आठ इंच चौड़ी और एक इंच ऊंचाई होनी चाहिए। कम्बल का टूकड़ा लगभग
डेढ़ फीट लम्बा और एक फीट चौड़ा।
विधि
मिट्टी की पट्टी बनाने के लिए किसी
साफ जगह से मिट्टी की दो इंच नीचे से मिट्टी लेते है फिर उसे दिनभर आठ से दस घण्टे
धूप में सुखाया जाता है जिससे वह किटाणु रहित हो जाये। उसके बाद पीस या कूट कर छान
लेते है,
जिससे कंकड़ पत्थर निकल जाये इस मिट्टी को आठ से दस घण्टे या
रात भर के लिए भीगा देते है, अब मिट्टी का पेस्ट बनाकर लकड़ी की ट्रे में पहले सुखी मिट्टी
बिछाकर या कोई सूती कपड़ा बिछाकर तैयार पेस्ट को उस पर फैला देते है,
अंत में गीले हाथ से मिट्टी की सतह को चिकना बना देते है।
रोगी को लेटाकर पेडू पर से कपडे़
हटा देते है। उसके बाद मिट्टी को पेडू पर इस तरह पलटते है कि पट्टी नाभी से दो-तीन
इंच ऊपर तक ढक जाये, इसके ऊपर कम्बल का टुकडा ढक देते है | रोगी को ठंड लगने पर उसे कम्बल ओढ़ाया जाता
है। समय पूरा होने पर पेट से मिट्टी हटाकर पेट को कपड़े से पोछ देते है। मिट्टी की पट्टी
के पश्चात् एनिमा देने पर आंतों में चिपका मल ढिला होकर शौच के साथ बाहर आ जाता है।
अवधि
30 से 40 मिनट।
क्रिया-प्रतिक्रिया
जिस स्थान पर मिट्टी की पट्टी रखी
जाती है वहाँ के मांसपेशियां एवं रक्त नलिकाओं में संकुचन पैदा होने लगता है,
जिससे रक्त का संचार अन्दर के अंगों के तरफ बढ़ जाता है। विजातिय
द्रव्य अपना स्थान छोड़कर वे उत्सर्जी अंगों की ओर चले जाते है एवं शरीर से बाहर निकल
जाते है।
लाभ
1. यह आंतों में चिपके हुए मल को
ढीला करती है।
2. ठंडक शीतलता प्रदान करती है।
3. शोषण की क्षमता मिट्टी शरीर के
विजातीय द्रव्यों को शोषित करती है।
4. मांसपेशीयों को मजबूत करती है।
5. यह लगातार आधे घण्टे तक शरीर को
ठंडक पहुंचाती है।
सावधनियां
1. मिट्टी चिकनी हो,
चुभने वाली न हो।
2. खाली पेट या भोजन के तीन घण्टे
बाद लगाये।
3. रोगी को ठण्ड लगने पर कम्बल ओढ़ा
दें।
4. जले कटे या बहने वाला घाव हो तो
मिट्टी को सूती कपड़े पर रखें।
मेरूदण्ड की मिटटी पट्टी
·
इस पट्टी को तैयार करने लिये रोगी के मेरूदण्ड की
लम्बाई के बराबर मिट्टी की पट्टी तैयार की जाती है।
·
इसमें रोगी को पेट के बल लिटाते हैं और उसके उपरान्त
हल्के हाथ से पीठ पर सूखी मसाज करके इस पट्टी को लगाते हैं।
समय
30-40 मिनट पट्टी रखना आवश्यक है। पूर्व
में बतायी गई विधि के अनुसार पट्टी निकालकर पानी से उस स्थान को साफ करें।
लाभ
रीढ़ की हड्डी संबन्धी बीमारी दूर होती है कमर दर्द, मानसिक बीमारी, तनाव, सिरदर्द, अनिद्रा, आदि रोगों में लाभदायक होती है।
सावधानी
यह पट्टी कफ संबन्धी रोगों में नहीं देना है। इसके अतिरिक्त पूर्व में बताई गई
सावधानियों को ही अपनायें।
गले की मिटटी पट्टी
गले की पट्टी बनाने के लिये रोगी
के गले की चैड़ाई और लम्बाई के अनुरूप मिट्टी की पट्टी तैयार करके गले पर लगायें और
ऊपर से कपड़े से ढक दें।
समय
30-40 मिनट बांधकर रखें। पट्टी का समय पूरा हो जाने पर मिट्टी को हटाकर गीले तौलिये
साफ करें।
लाभ
गले संबन्धी समस्त रोगों में
उपयोगी है जैसे- कफ, टांसिल, जुकाम,
गले की खराश, थायराइड, गले की सूजन, गले में छाले आदि में लाभदायक है।
सावधानियां
·
गले
के ऊपर यदि दाने पड़े हैं और पक गये हों तो उस समय मिट्टी गले में नहीं लगाना
चाहिये। दाने सूख जाने पर इसका उपयोग कर सकते हैं।
·
बीच
बीच में त्वचा गरम हो जाने पर पट्टी बदल सकते हैं।
घुटने की मिट्टी पट्टी
घुटने की पट्टी तैयारी करने के लिये
जिस तरह पेड़ू की पट्टी बनाई जाती है उसी तरह ट्रे में मिट्टी भरकर तैयार कर लेंगे।
लगाने के लिये सीधे पीठ के बल लिटाकर पैर को सीधे रखते हैं और तैयार मिट्टी पट्टी
को घुटने पर लगाकर उसे लपेट देंगे और ऊपर से कपड़ा लपेट देंगे।
समय 30-40 मिनट तक रखें फिर मिट्टी को निकालकर गीले तौलिये से साफ कर लें।
लाभ
गठिया जैसे रोगों के लिये विशेष
लाभकारी है। घुटने के दर्द में तो यह रामबाण सिद्ध होता है।
सावधानियां
·
पट्टी
हटाने के बाद उस स्थान को रगड़ देना चाहिये या कपड़े से उस स्थान को पोंछ दें। और
रोगी को कपड़ें पहना दें।
·
यदि
किसी रोगी के पैरों में घाव हो तो वह इसका प्रयोग न करें।
सीने का मिट्टी पट्टी
सीने या छाती के पट्टी के लिये
पूर्व में बताई गई विधि अनुसार तैयार मिट्टी को लकड़ी की ट्रे में भरकर बराबर कर
लें फिर गले से लेकर वक्ष के पूरे भाग के लिये जहाँ तक अस्थियां होती हैं वहां तक
मिट्टी की पट्टी लगायी जाती है, और चैड़ाई इतनी होनी चाहिये कि पूरा वक्ष ढक जाये।
समय
30-40 मिनट तक ही रखें।
लाभ
सीने में कफ संबन्धी बीमारी,
जलन, अस्थमा, बा्रेंकाईटिस
आदि में विशेष लाभकारी।
सावधानियां
लंबे समय से यदि अस्थमा (दमा) हो
तो किसी प्राकृतिक चिकित्सक के निर्देशन में ही करें।
सिर की मिट्टी पट्टी
इस प्रकार की पट्टी गोल तैयार की
जाती है जिससे सिर को पूरी तरह से ढका जा सके और कानों के ऊपर तक रहे तथा मस्तिष्क
को भी पूरा ढक ले |
समय
15-20 मिनट ही रखें।
लाभ
इसके उपयोग से सिरदर्द,
सिर की गर्मी, माईग्रेन आदि रोगों में लाभकारी है।
सावधानी
जुकाम,
जब अधिक हो तो उस समय मिट्टी की पट्टी का उपयोग न करें।
आँखों की मिट्टी पट्टी
इस पट्टी को बनाने के लिये तैयार
मिट्टी को लेकर एक साफ कपड़ा बिछाते हैं फिर उसमें बीच में मिट्टी के दो छोट छोटे
गोले बनाकर रखते हैं और दोनों तरफ से मिट्टी को कपड़े से ढक देते है। इस पट्टी की
चैड़ाई मस्तिष्क से लेकर आँख तक होती है। लंबाई दोनो कानों को छूती रहती है। आँख की
पट्टी की मोटाई आधा इंच तक होती है।
इस प्रकार तैयार पट्टी को लगाने
के लिये रोगी को सीधे लिटा देते हैं और आँख बंद करा दें एवं तैयार पट्टी को कपड़े
सहित आँखों पर लगा दें।
समय
15-20 मिनट तक रखें।
पट्टी को जब निकालें उस समय
आँखें बंद रखें क्योंकि मिट्टी सूखती है तो एकदम धूल कहीं अन्दर न चली जाये इसलिये
आँखें बंद किये पट्टी हटायें फिर आँखों को कपड़े से साफ करें बाद में गीले कपड़े से
साफ कर लें और धीरे धीरे आँखें खोलें।
लाभ
आँखों की समस्त बीमारियों के
लिये जैसे- आँखों में जलन, आँखों में पानी आना, आँखों के नीचे काले धब्बे, आँखों की रोशनी का कमजोर होना,
अनिंद्रा आदि रोगों में लाभदायक है।
सावधानियां
आँख बंद करके ही इस मिट्टी पट्टी
को लगायें। कपड़े सहित तैयार मिट्टी पट्टी को आँखों पर लगायें।
कान की मिट्टी पट्टी
कान की पट्टी बनाने के लिये जिस
प्रकार पूर्व में बताई गई विधि अनुसार तैयार मिट्टी को लेकर एक कपड़ा बिछाकर उस पर
मिट्टी बीच में थोड़ी सी रखें।
पट्टी को रोगी के कान के लंबाई अनुसार
रखें। इस पट्टी की चैड़ाई आधा इंच की होती है।
पट्टी को लगाने से पूर्व कान में
रूई में लगा लें जिससे कि मिट्टी कान के छिद्रों में न जाये उसके बाद इस पट्टी को
कपड़े सहित लगा दें और रोगी को करवट लिटा दें।
लाभ
कान का दर्द,
बहरापन व कान संबन्धी अन्य बीमारी में लाभकारी।
सावधानियां
·
कान
यदि बह रहा हो तो इस पट्टी को न लगायें।
·
इस
पट्टी को लगाने से पूर्व कान में रूई लगा दें।