VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

मिट्टी के सिद्धांत एवं महत्व

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

 

                      

·        मिट्टी जितनी सर्वसुलभ एवं नगण्य समझी जाती है उसकी गुण गरिमा उतनी ही महान है-

·        मिट्टी में सभी रोगों को दूर करने की अद्भुत शक्ति होती है इसमें रासायनिक सम्मिश्रण विद्यमान होता है।

·        मिट्टी में विष को सोखने की अद्भुत शक्ति होती है।

·        सभी प्रकार की दुर्गन्ध मिटाने के लिये लोग अपने घरों में मिट्टी लेपते हैं और दुर्गन्ध की जगह पर मिट्टी का प्रयोग करते हैं।

·        मिट्टी में विलक्षण विद्रावक शक्ति होती है जिससे वह फोड़े को भी पका देती है।

·        मिट्टी में सर्दी गर्मी रोकने की शक्ति होती है तभी योगी लोग अपने शरीर पर मिट्टी लगाये रहते हैं जिससे कड़ी धूप और कड़ाके की सर्दी दानों में उनके नंगे बदन की रक्षा स्वतः ही होती है।

·        पेट, सिर पर मिट्टी बांधने से तेज बुखार घण्टे दो घण्टे में हल्का हो जाता है।

·        शरीर का कोई भी हिस्सा जल जाने पर मिट्टी बांधने से जलन कम हो जाती है सूजन नही होती है।

·        शरीर में कही सूजन हो और वहां खुजली हो रही हो तो वह गुणकारी है।

 

आधुनिक समय में मनुष्य प्रकृति से दूर होता चला जा रहा है, और इसी कारण से प्राकृतिक चिकित्सा के उपायों एवं सिद्धांतों नही समझ पा रहा है। लेकिन यदि भारत का चिकित्सा इतिहास उठाकर देखें तो अधिकांश कालों में मिट्टी तथा जल दो से ही उपचार कार्य होता आया है। आयुर्वेद में मिट्टी की महिमा का वर्णन मिलता है। हमारे ऋषियों, मुनियों ने प्रत्यक्ष उपयोग द्वारा मिट्टी के महत्व को समझा और शरीर तथा मन को स्वस्थ रखने के लिये विभिन्न प्रकार से उपयोग करने की कला विकसित की। यदि हम आश्रम व्यवस्था की ओर दृष्टिपात करें, तो पता चलता है कि पृथ्वी पर सोना, नंगे पैर चलना, रहना, शरीर का मिट्टी से सीधा संपर्क रहना, मिट्टी से ही हाथ पैरों की सफाई, वस्त्रों की सफाई तथा निवास स्थान की सफाई तथा आकस्मिक समय पर गीली मिट्टी का उपयोग पढ़ने एवं समझने को मिलता है। मिट्टी में अनेकानेक भौतिक, रासायनिक तथा चिकित्सकीय विशेषतायें होने के कारण स्वस्थ तथा अस्वस्थ दानों दशाओं में इसका उपयोग होता रहा है। अब आप समझ गये होंगे कि चिकित्सा के रूप में जब इसका उपयोग किया जाता है, तो इसका महत्व अमूल्य औषधि से भी अधिक हो जाता है।

मिट्टी (मृदा) चिकित्सा एक प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है जिसमें विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक रोगों एवं विकिृतियों को दूर करने के लिये तथा शरीर स्वास्थ्य के संवर्धन हेतु मिट्टी का विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है। मिट्टी चिकित्सा एक ऐसी विशिष्ट चिकित्सा पद्धति है, जिसके द्वारा शरीर के विजातीय द्रव्यों एवं मल विकारों को विभिन्न रूपों के द्वारा शरीर से बहिष्कृत किया जाता है। मिट्टी चिकित्सा का उपयोग न केवल रोगों के उपचार हेतु करते हैं अपितु शरीर को बलशाली, पुष्ट एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि के लिये भी करते हैं। मिट्टी चिकित्सा एक ऐसी अमूल्य पद्धति है जिसका शरीर तथा मन दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मिट्टी में सर्दी और गर्मी रोकने की अद्भुत क्षमता होती है। जल चिकित्सा से भी अधिक प्रभावकारी मिट्टी चिकित्सा है क्योंकि एक ही तापक्रम पर शरीर को बिना किसी यांत्रिक सहायता से मिट्टी द्वारा रख जा सकता है। मिट्टी में गर्मी अवशोषित करने की असीम क्षमता होती है। अतः शरीर की आवश्यकता से अधिक गर्मी को अपने में समाहित कर लेती है जिससे शरीर का तापक्रम सामान्य हो जाता है। इसी प्रकार मिट्टी सर्दी को भी अपने अन्दर समाहित कर लेती है। उस अवस्था में गरम मिट्टी की पट्टी का उपयोग किया जाता है। शरीर में चाहे जैसी भी दुर्गन्ध आ रही हो मिट्टी द्वारा उसे जड़ से समाप्त किया जा सकता है। प्रायः यह देखा गया है कि, कुछ लोगों के पसीने में काफी दुर्गन्ध आती है, किन्ही रोगों में शरीर से दुर्गन्ध आने लगती है, ऐसी अवस्था में यदि मिट्टी का उपयोग किया जाता है तो वह अपने विशिष्ट गुणों के कारण दुर्गन्ध को दूर कर देती है, और शरीर निर्मल व स्वच्छ हो जाता है। वातावरण की दुर्गन्ध मिटाने के लिए मिट्टी से बढ़कर और कोई पदार्थ नहीं है। इसी कारण सड़ी चीजों पर मिट्टी डालने से उसकी दुर्गन्ध चली जाती है तथा हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। मृत शरीर का विसर्जन भी मिट्टी में दबाकर करने से शरीर से किसी प्रकार की दुर्गन्ध न तो वातावरण में मिलती है और न ही अधिक आर्थिक व्यय होता है। इसीलिये प्राचीन काल में मृत शरीर को जमीन में गाड़ देते थे। आज भी मृत शरीर को मिट्टी ही कहा जाता है।

अब आप यह समझ गये होंगे कि मिट्टी चिकित्सा का प्रयोग कोई भी व्यक्ति कर सकता है, यदि उसने थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर लिया है। इसके साथ ही साथ हानि होने की कोई संभावना नहीं रहती है। अतः बिना किसी संकोच के इसका उपयोग किया जा सकता है। वर्तमान समय में मानसिक स्वास्थ्य की एक गंभीर समस्या उत्पन्न होती जा रही है। मानसिक चिंता, तनाव के कारण लोग परेशान हो रहे हैं, मिटटी चिकित्सा के उपयोग से मानसिक तनाव को काफी सीमा तक नियंत्रण में लाया जा सकता है। मनुष्य थलचर प्राणी है अर्थात् पृथ्वी पर रहने वाला प्राणी है। अतः वह पृथ्वी से सदैव संपर्क रखने से अन्य थलचरों जैसे- पशु की भांति सदैव स्वस्थ रह सकता है। लेकिन आज कृत्रिमता के कारण मनुष्य मिट्टी से काफी दूर रहता है, जिसका फल यह है कि वह अस्वस्थ और शक्तिहीन होता जा रहा है। प्रकृति के नियमानुसार प्रत्येक जीव की एक जीवन पद्धति निश्चित है, उसी पर चलकर वह स्वस्थ रह सकता है। यह सिद्धांत मनुष्य के विषय में भी लागू होता है।  आयुर्वेद में कहा गया है:

 

कृष्णमृत ज्ञतदाहास्त्र प्रदरष्लेश्म पित्तनुत।।

अर्थात्! काली मिट्टी, घाव, दाह, रक्तविकार, प्रदर, कफ तथा पित्त को मिटाती है।