VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

रंग के प्रकार- प्राथमिक एवं द्वितीयक

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

 

 

रंग का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। हम अपने चारों तरफ अनेक प्रकार के रंगों से प्रभावित होते हैं।

उत्पत्ति

रंग, मानवी आँखों के वर्णक्रम से मिलने पर छाया सम्बंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं। मूल रूप से इंद्रधनुष के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी हैं।

मुख्य स्रोत    

रंगों की उत्पत्ति का सबसे प्राकृतिक स्रोत सूर्य का प्रकाश है। सूर्य के प्रकाश से विभिन्न प्रकार के रंगों की उत्पत्ति होती है। प्रिज़्म की सहायता से देखने पर पता चलता है कि सूर्य सात रंग ग्रहण करता है जिसे सूक्ष्म रूप या अंग्रेज़ी भाषा में VIBGYOR और हिन्दी में "बैं जा नी ह पी ना ला" कहा जाता है।

VIBGYOR    

Violet (बैंगनी), Indigo (जामुनी), Blue (नीला), Green (हरा), Yellow (पीला), Orange (नारंगी), Red (लाल)

 

काँच की एक प्रिज़्म  से गुजरने पर श्वेत प्रकाश के अपवर्तित होकर जब श्वेत पर्दे पर गिरता है तो पर्दे पर श्वेत प्रकाश के स्थान पर इंद्रधनुष के समान सात रंगों की पट्टी दिखाई देती हैं। इस पट्टी को श्वेत प्रकाश का वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) कहते हैं। प्राप्त होने वाले ये 7 रंग क्रम से लाल, नारंगी, पीला, हरा, आसमानी, नीला तथा बैंगनी हैं।

 

 

न्यूटन का प्रयोग

पहले यह माना जाता था कि प्रिज्म एक ऐसा उपकरण है जो श्वेत प्रकाश को 7 रंग के प्रकाश में बदल देता है। वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन ने इस तथ्य पर वैज्ञानिक प्रयोग किए तथा बताया कि श्वेत प्रकाश में सात रंग पहले से ही मौजूद होते है। प्रिज्म से गुजरने पर अपवर्तन के कारण यह 7 रंगों में विभक्त हो जाता है।

 

उन्होंने एक छोटे से छेद गुजर कर आने वाली श्वेत प्रकाश की किरण को एक प्रिज्म काँच द्वारा अपवर्तित होकर पर्दे पर गिराया तथा पर्दे पर श्वेत प्रकाश के स्थान पर सात रंगों की पट्टी प्राप्त की। जब न्यूटन ने प्रिज्म से गुजर कर आने वाले प्रकाश के मार्ग में एक और प्रिज्म प्रथम  प्रिज्म से उल्टा रखा, तो इन सातों रंगों का प्रकाश मिलकर पुन: श्वेत प्रकाश बन गया। इससे सिद्ध हुआ कि श्वेत प्रकाश में 7 रंग पहले से ही मौजूद होते हैं तथा प्रिज्म उसे 7 रंगों में विभक्त भी करता है तथा उन्हें पुनः मिला कर श्वेत प्रकाश में बदल भी देता है।

वर्णक्रम  (Spectrum)



·         जब सूर्य का प्रकाश प्रिज़्म से होकर गुजरता है, तो वह अपवर्तन के पश्चात् प्रिज़्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगोंके प्रकाश में बँट जाता है। इस प्रकार से प्राप्त रंगों के समूह को वर्णक्रम कहते हैं।

·         अंग्रेज़ी भाषा में इसे स्पैक्ट्रम (Spectrum) कहा जाता है।

·         इसे नापने में मेगाहर्ट्ज का प्रयोग किया जाता है।

·         वर्णक्रम की आवृत्तियों की दूरी एक मानक द्वारा तय की जाती है।

रंगों के प्रकार

1.     प्राथमिक रंग (मूल रंग)

2.     द्वितीयक रंग

3.     पूरक रंग

4.      विरोधी रंग

 

1.प्राथमिक रंग या मूल रंग

वे रंग जो किन्ही अन्य रंगों के मिश्रण के द्वारा प्राप्त नहीं किये जा सकते हैं तथा जो  अपने आप में स्वतंत्र होते हैं।  उन्हें प्राथमिक रंग या मूल रंग कहते है।

3 प्राथमिक रंग होते हैं-

1. लाल (RED)                          2. हरा (GREEN)               3. नीला (BLUE)

इन्हें ''RGB'' से व्यक्त करते हैं। इन तीन रंगों के प्रकाश से मिलकर ही अन्य रंग बनते हैं।

2.द्वितीयक रंग

वे रंग जो अपने आप में स्वतंत्र नहीं होते हैं और जो दो प्राथमिक रंगों के मिश्रण के द्वारा प्राप्त किये जाते हैं,  उन्हें द्वितीयक रंग कहते है।

तीन द्वितीयक रंग होते हैं-

1. पीला (YELLOW)                 2. रानी या मेजेंटा (Magenta)        3. (CYAN) सियान

इन्हें ''CMY'' कहते हैं ।

आईये देखें, किन दो प्राथमिक रंगों के मिलने से कौनसा 'द्वितीयक रंग' बनता है-

1. लाल + नीला = रानी या मेजेंटा

2. हरा + लाल = पीला

3. हरा + नीला = सियान

द्वितीयक रंग के प्रकार

इन्हें दो भागो में विभाजित किया जा सकता है-

  • गर्म रंग
  • ठंडे रंग

जिन रंगो में लाल रंग का प्रभाव माना जाता है उन्हें गर्म रंग कहा जाता है। गर्म रंग निम्न है-

जिन रंगो में नीले रंग का प्रभाव माना जाता है उन्हें ठंड़े रंग कहा जाता है। ठंड़े रंग निम्न है-

क्या होता है जब तीनों प्राथमिक रंगों को मिलाया जाता है -

लाल + नीला + हरा =   श्वेत  प्रकाश

 तीनों प्राथमिक रंगों के प्रकाश को मिलाने पर श्वेत प्रकाश बनता है।

3.पूरक रंग

यदि दो रंगों (एक प्राथमिक एवं एक द्वितीयक रंग) को मिलाने पर यदि श्वेत रंग प्राप्त होता है तो उन दोनों रंगों को एक दूसरे का पूरक रंग कहा जाता है।

1.  हरा  + मेजेंटा   =  हरा + लाल + नीला =   श्वेत                         (चूँकि लाल + नीला = रानी या मेजेंटा )

अतः हरा एवं मजेंटा एक दूसरे के पूरक रंग है।

2.  नीला एवं  पीला    एक दूसरे के पूरक है क्योंकि इन दोनों को मिलाने से श्वेत प्रकाश प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में पीला रंग शेष दो प्राथमिक रंग लाल और हरे रंग के प्रकाश को मिलाने से बनता है, अतः  पीले रंग में शेष रहे तीसरे प्राथमिक रंग 'नीले रंग' को मिलाने पर श्वेत प्रकाश बनेगा।  इसलिए नीले एवं  पीले   को एक  दूसरे का  'पूरक रंग' कहा जाता है।

3. इसी प्रकार लाल एवं सियान  रंग एक दूसरे के पूरक रंग  है।

अन्य शब्दों में तीन प्राथमिक रंगों लाल, हरा और नीला में से किन्हीं दो रंगों को मिलाने से एक द्वितीयक  रंग बनता है, तब शेष बचा तीसरा प्राथमिक रंग एवं बना हुआ द्वितीयक रंग परस्पर पूरक रंग होंगे।

1.   पीला     =   हरा + लाल        =   - नीला

2.  सियान   =   नीला + हरा       =   - लाल

3.   मेंजेंटा   =   नीला + लाल     =   - हरा

 

"किसी प्राथमिक रंग में उसका पूरक रंग मिला देने से तीनों रंग सम्मिलित हो जाने के कारण सफ़ेद रंग बन जाता है। इसलिए इसे पूरक रंग कहा जाता है। "अर्थात जिस रंग को सफ़ेद बनाने में जिस रंग की कमी होती है उसे पूरक रंग पूरा करता है।

4. विरोधी रंग  

प्राथमिक व द्वितीयक रंगों के मिश्रण से जो रंग बनते है उन्हें विरोधी रंग कहा जाता है।

·         आस्टवाल्ड वर्ण चक्र में प्रदर्शित किये गये आमने सामने के रंग विरोधी रंग कहलाते हैं। जैसे- नीले का विरोधी रंग पीलानारंगी का आसमानी  बैंगनी का विरोधी रंग धानी है।