VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

मिटटी चिकित्सा

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'

हर मनुष्य की प्रवृत्ति स्वस्थ ओर निरोग रहने की होती है। यह प्रवृत्ति मनुष्य में आदिकाल से ही है। प्राचीनकाल में मनुष्य का जीवन उसके स्वास्थ्य और शारीरिक शक्ति पर निर्भर था, जो लोग कमजोर और अस्वस्थ हो जाते थे, उनके जीवन का अंत समझा जाता था, किन्तु मनुष्य का जीवन इतना प्राकृतिक था कि वह रोगों से मुक्त रहता था। स्वच्छ हवा में घूमना, शीतल छाया में विश्राम करना, कंदमूल और फल खाना, मिट्टी से सीधा संबन्ध बनाए रखना उनका जीवन था। फलतः लोग व्याधिमुक्त होते थे। प्राचीन चिकित्सा पद्धति के साथ साथ जैसे जैसे सभ्यता विकसित होती गयी, जनसंख्या बढ़ती गयी, रहने के लिये नगरों व गावों का निर्माण होता गया, वैसे वैसे स्वास्थ्यवर्धक वातावरण दूषित होने लगा। मनुष्य की क्रियाएं भी अस्वस्थकारी होने लगी। उसके जीवन में न तो नैसर्गिक स्वच्छंदता रह गयी और न प्राकृतिक वातावरण रहा, जिसके परिणाम स्वरूप वह रोग की चपेट में धीरे धीरे बढ़ता गया। उक्त दृष्टिकोण से ज्ञात होता है कि वर्तमान में प्रकृति के गुणों को ज्ञात कर लेना आवश्यक प्रतीत होता है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिये किस प्रकार की जीवनशैली अपनानी चाहिये, जिससे जीवन के सभी सुखों का आनन्द लिया जा सके।

    

हमारा शरीर पंचतत्वों से बना है जिसमें पृथ्वी तत्व अत्यन्त महत्वपूर्ण है मनुष्य की उत्पत्ति, उसका पालन पोषण, वृद्धि, विकास तथा विनाश पृथ्वी पर पूर्णतया निर्भर है मानव जीवन इन्हीं पर निर्भर है यही कारण है कि पृथ्वी को माता कहा गया है। मिट्टी से अनाज, अनाज से पौष्टिकता प्राप्त होती है। मिट्टी विषैले तत्व को नष्ट करती है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश इन तत्वों में ज्यादा स्थूल तत्व है। बाइबिल में कहा गया है - ‘‘ईश्वर ने पृथ्वी से धूल उठाकर पुतला बनाया और फिर उसके नथुनों में प्राण फूंके और उसे सजीव प्राणी बना दिया। इसी कारण पृथ्वी को माता और आकाश को पिता कहा गया है। मिट्टी सभी रोगों की रामबाण औषधि है इसमें विषैले तत्व को नष्ट करने की शक्ति होती है मिट्टी का उपयोग केवल रोगों के उपचार हेतु नहीं अपितु शरीर को बलशाली, पुष्ट एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि के लिये भी करते हैं। मिट्टी चिकित्सा अमूल्य पद्धति है जिसका शरीर तथा मन दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। महात्मा गांधी- ‘‘मिट्टी से हमारा शरीर बना है इसी मिट्टी में जन्म हुआ है और एक दिन मर कर भी इसी मिट्टी में मिलकर राख बन जाना है।

 

 

 

 

                मिट्टी के भेद

काली मिट्टी

यह चिकनी होती है बालों को साफ करने के उपयोग में लाई जाती है। इस मिट्टी में सोखने की क्षमता कम होती है इसलिये इसमें बालू मिलाते हैं।

लाल मिट्टी

यह मिट्टी पहाड़ी जगह में पाई जाती है, गेरू भी इसी प्रकार की होती है जो मकान रंगने व पुताई करने में और चिकित्सकीय रूप से पित्ती होने पर प्रयोग करते हैं।

मुल्तानी मिट्टी

त्वचा के रोगों में विशेष लाभकारी होती है, इसे प्रायः उबटन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

 

ईटों के भट्ठे की मिट्टी

इस मिट्टी का प्रयोग घाव पर किया जाता हे इसमें वैक्टीरिया व जीवाणु नहीं होते हैं।

सज्जी मिट्टी

इस मिट्टी का उपयोग कपड़े साफ करने में किया जाता है।

 

पीली मिट्टी

इसमें ठण्ड तथा गरमी को रोकने की क्षमता अधिक होती है, और जल को सोखने वाली होती है, इसे सभी प्रकार के रोगों में इस्तेमाल कर सकते हैं।

 

पिण्डोर (चिकनी मिट्टी)

यह अधिक चिकनी होती है और शरीर की सफाई के लिये विशेषकर बालों की सफाई के लिये बहुत लाभदायक है।

बालू मिट्टी

बालू भी मिट्टी ही है जो मनुष्य शरीर के लिये अत्यधिक लाभदायक है। परन्तु इसके गुण को प्राकृतिक चिकित्सक ही भली भांति जानते हैं। बालू भक्षण हमारे स्वास्थ्य के लिये बहुत हितकारी है। पहाड़ी चष्मों के पानी में बालू के कण विद्यमान होते हैं। जिस कारण वह स्वास्थ्य वर्धक सिद्ध होता है। जिसके कारण वहां रहने वाले लोगो मे कब्ज की समस्या नही पायी जाती क्योकि बालु के कारण पाचन क्रिया सही प्रकार कार्य करती हैऔर आंतों की सफाई सही प्रकार होती है। बालु मिटटी में चिकनी मिटटी को मिला कर चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है। जिससे उसकी कीटाणु नाशक क्षमता बढ़ जाती है।