प्रतिबिम्ब केन्द्र -
एक्युप्रेशर चिकित्सा पद्धति
आधार प्रेशर तथा गहरी मालिश है। एक्युप्रेशर चिकित्सको का मानना है कि दबाव के साथ
मालिश करने से रक्त संचार ठीक हो जाता है। जिस कारण शरीर की शक्ति बड़ जाती है, तथा शरीर मे
स्फूर्ति आती है। शरीर मे रक्त संचार सुचारू रूप से होने से शरीर के विभिन्न अंगो
मे जमा हुये अवाछनीय पदार्थ,
पसीने, मल व
मूत्र के द्वारा शरीर से बाहार निकल जाते है। जिससे शरीर निरोग होता है। यह
एक्युप्रेशर या गहरी मालिश साधारण प्रकार की मालिश नही है। एक्युप्रेशर (गहरी
मालिश) से तात्पर्य पैरो,
हाथों, चेहरे
तथा शरीर के कुछ विशेष केन्द्रो पर दबाव डालना। इन विशेष केन्द्रो को ही रिफ्लेक्स
सैन्टर या रिस्पान्स सैन्टर कहते है।
रिफ्लेक्स सैन्टर या सैन्टर को ही हिन्दी में प्रतिबिम्ब केन्द्र कहा जाता है। रोग
की अवस्था में इन प्रतिबिम्व केन्द्रो पर दबाव देने पर दर्द महसूस होता है। ये
प्रतिबिम्व केन्द्र बहुत ही नाजुक होते
है। प्रत्येक रिस्पान्स केन्द्रो का आकार मटर के दाने के बराबर होता है। यह
रिस्पान्स केन्द्र पैरो,
हाथो, चेहरे
तथा शरीर के खास केन्द्र पर होते है। प्रिय विद्यार्थियो इन प्रतिबिम्ब केन्द्रो
से रोगो का पता कैसे चलता है। यह अध्ययन करना आवश्यक है। अतः इन केन्द्रो से रोग
का पता कैसे चलता है,
आइये अध्ययन करें -
रोग का दर्पण
प्रतिबिम्व -
इन प्रतिबिम्ब केन्द्रो को रोग
का दर्पण कहा जाता है। एक्युप्रेशर द्वारा विभिन्न प्रतिबिम्ब केन्द्रो की जांच करने
से आसानी से पता लग जाता है। कि शरीर के कौन से अंग अपना कार्य सुचारू रूप से नही
कर पा रहे है। या शरीर के किस भाग में कोई रोग है, या रूकावट है।
कई बार आधुनिक विज्ञान के अनुसार
प्रयोगशाला के परीक्षण भी रोग का सही-सही
पता नही लगा पाते है। परन्तु प्रतिबिम्ब केन्द्रो के परीक्षण द्वारा कुछ ही मिनटो
में यह पता लग जाता है कि किस अंग में कोई विकृति है। तथा रोग का असली कारण क्या
है। क्योकि यह प्रतिबिम्ब केन्द्र दबाने पर दर्द करते है। दर्द करने वाले केन्द्रो
से सम्बन्धित अंग ही रोग ग्रस्त होते है।इन प्रतिबिम्ब केन्द्रो को दबाने पर रोग
का पता लग जाता है। इसलिए प्रतिबिम्ब केन्द्रो को रोग का दर्पण कहा जाता है।
प्रतिबिम्व
केन्द्रो की जांच –
एक्युप्रेशर चिकित्सा देने से
पहले प्रतिबिम्ब केन्द्रो की जांच कर लेना आवश्यक है। आइये जाने कि प्रतिबिम्ब
केन्द्रो की जांच कैसे होती हैं -
प्रतिबिम्ब केन्द्रो की जांच करते
समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि जिस प्रकार सभी व्यक्तियो के शरीर रचना, आकार, प्रकार समान
नही होता है। उसी प्रकार प्रतिबिम्ब केन्द्रो का स्थान भी हाथो, पैरो की
आकृति के अनुसार थोड़ा बहुत ऊपर-नीचे दायें-बाएँ हो सकते है। प्रिय विद्यार्थियो प्रत्येक
प्रतिबिम्ब केन्द पर ना तो बहुत अधिक जोर से ही ना ही बहुत धीरे से प्रेशर देकर जांच
करनी चाहिए। यदि किसी केन्द्र पर प्रेशर देने से रोगी असहनीय दर्द अनुभव करता है, तो समझना
चाहिए कि उस प्रतिबिम्ब केन्द्र से सम्बन्धित अंग से कोई विकार है। या यह समझना
चाहिए कि वह अंग अपना कार्य सुचारू रूप से नही कर रहा। जिन केन्द्रे पर प्रेशर
देने से रोगी को दर्द का अनुभव नही हो,
तब यह समझना चाहिये कि वे अंग अपना कार्य ठीक से कार्य कर रहे है। यह
प्रतिबिम्ब केन्द्र पैरो तथा हाथों पर होते हैं पैरो व हाथो के सभी केन्द्रो पर
दबाब देकर जांच करनी चाहिए।
एक्युप्रेशर चिकित्सा देने के
लिए सर्वप्रथम एक एक्युप्रेशर चार्ट लेना चाहिए। अब हाथो व पैरो के केन्द्र जो
प्रेशर देने से दर्द करते है। उन प्रेशर केन्द्रो की सूची बना लेनी चाहिए। तथा
एक्युप्रेशर रोग उपचार चार्ट में जो केन्द्र दर्द करें उन्हे चार्ट में अंकित करें
(निशान लगा लें)। चार्ट में लगाये गये निशानो के आधार पर प्रतिदिन प्रेशर देना
चाहिए। इस प्रकार किसी रोग विशेष को जानने के लिए बार -बार हाथ व पैरो के
प्रतिबिम्ब केन्द्रो की जांच नही करनी पड़ती है। रोगी अपने हाथ तथा पैरो में इन
केन्द्रो की परीक्षा स्वयं भी कर सकता है। किसी अन्य व्यक्तियो से करवा भी सकता
है। इस पद्धति द्वारा रोग के निवारण में कितना समय लगता है, यह व्यक्ति व
रोग पर निर्भर करता है। परन्तु इतना आवश्य है कि इस पद्धति द्वारा पूर्णकालिक आराम
ना मिले तो अंशकालिक आराम अवश्य मिलता है।
दबाव के
प्रकार –
इन प्रतिबिम्ब केन्द्रो पर
प्रेशर कैसे दिया जाये। तथा प्रेशर (दबाव) कितने प्रकार से दिया जाये। एक्युप्रेशर
चिकित्सा में दबाव रोगी की सहन शक्ति व अंग विशेष पर निर्भर करता है। परन्तु
प्रेशर शुरू-शुरू में हल्के-हल्के देना चाहिये तथा बाद में धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
एक्युप्रेशर चिकित्सा में कोमल अंगो पर धीरे से अॅगुलियो, अगूठों से
दबाव देना चाहिए। अॅगूठे,
अॅगुलियो व हथेली द्वारा दबाव देने के
विभिन्न प्रकार निम्न है –
1.
सामान्य दाब - रोगी के शरीर पर अगूठे व अॅगुली
से उतना ही दबाव देना चाहिए जितना रोगी सहन कर सके।
2.
दो अॅगुलियो से दबाव - एक अॅगुली
के ऊपर दूसरी अॅगुली रखकर फिर दोनो अॅगुली सक दबाव देना चाहिए।
3.
हथेली से दबाव - रोग विशेष की स्थिति में हथेली
से दबाव दिया जा सकता है। एक हथेली के ऊपर दूसरी हथेली रख कर दबाव देना चरहिए , तथा पूरे
रूारीर पर दोनो हथेलियो द्वारा दबाव दिया जा सकता है।
4.
रोटेटिंग - अंगूठे या जिम्मी द्वारा किसी
एक दिशा मे घूमाते हुए दबाव देना चाहिए। यह दबाव दो प्रकार से होता है।
घड़ी की दिशा
के अनुसार - किसी भी अंग की ऊर्जा बढ़ाने के लिए घड़ी की सूई की दिशा में
दबाव दिया जाता है।
घड़ी के
विपरीत दिशा में दबाव - किसी भी अंग की बड़ी हुई ऊर्जा घटाने के लिए, उस अंग की
क्रिया को मन्द करने के लिए घड़ी की विपरीत दिशा में दबाव दिया जाता है।
5. पुश एण्ड
पुल - किसी प्रतिबिम्ब केन्द्र पर दबाव देना व छोड़ना तथा इसी
क्रिया को दोहराना पुश एण्ड पुल है।
6. स्टेडी
एण्ड डीप - किसी प्रतिबिम्ब केन्द्र पर लगातार दबाव देना।
7. माउटिंग -
प्रतिबिम्ब केन्द्र पर ऊपर अॅगूठा रख कर दबाव देना।
8. लाइडिंग -
अंगूठे या अॅगूली या जिम्मी द्वारा सरकाते हुए दबाव देना लाइडिंग है।
9. राबिंग -
किसी प्रतिबिम्ब केन्द्र को घिसते हुए दबाव देना।
10. प्लकिंग
- किसी प्रतिबिम्ब केन्द्र पर हल्का पड़ते हुए जैसे फूल चुनते
हैं, इस
तरह दबाव देना प्लकिंग है।