By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
भाप स्नान जल चिकित्सा का एक अत्यन्त प्रमुख एवं विशिष्ट अंग है। हिपोक्रेटीज,
जिन्हे प्राकृतिक चिकित्सा का जनक कहा जाता है,
अपने रोगियों को ठीक करने के लिए स्थानीय भाप का प्रयोग अपनी
चिकित्सा में करते थे। इसके साथ साथ प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. लुई कूने द्वारा
भी विभिन्न रोगों के उपचार में भाप स्नान का प्रयोग किया गया। वर्तमान समय में जल चिकित्सा
के अन्तर्गत भाप स्नान सर्वाधिक प्रचलित स्नान है। दूसरे शब्दों में जल चिकित्सा के
प्रचार प्रसार में भाप स्नान ने एक महत्वपूर्ण भूमिका वहन की है। भाप स्नान के लाभों
से प्रभावित होकर जल चिकित्सा से जुडने वाले रोगियों एवं अन्य व्यक्तियों की संख्या
दिन प्रतिदिन बढती जा रही है। भाप स्नान का वर्णन इस प्रकार है
आवश्यक सामग्री
निश्चित तापक्रम का जल, भाप स्नान हेतु तैयार विशेष आकार का चैम्बर, छोटे-बडे रोयेंदार तौलिया, बाल्टी एवं जग आदि।
जल का तापक्रम: 55 डिग्री फे0 से
65 डिग्री फे0 का जल एवं भाप।
समयावधि
5 मिनट से प्रारम्भ करते हुए 20 मिनट तक।
विधि
भाप स्नान के लिये एक विशेष प्रकार का चैम्बर अथवा कैबिन होता है जिसे रोगी के
बैठने से पूर्व अच्छी प्रकार भाप से भर देते हैं। यह भाप चैम्बर से बाहर प्रेशर कूकर
अथाव इलैक्ट्रोनिक केतली में तैयार होने के उपरान्त पाईप के द्वारा स्टीम बाथ चैम्बर
में लाई जाती है। अब रोगी को मौसम के अनुसार ठंडा अ्रथवा गुनगुना जल पिलाकर,
सिर को ठंडे जल में भिगाकर एवं कपड़े उतरावाकर चैम्बर में बैठा
देते हैं। रोगी को चैम्बर में रखे स्टूल पर इस प्रकार बैठाते हैं कि रोगी की गर्दन
चैम्बर से बाहर रहती है एवं अन्य पूरा शरीर चैम्बर के अन्दर बंद हो जाता है। अब चैम्बर
को इस प्रकार बंद करते हैं कि चैम्बर की भाप बाहर नही आ सके तथा रोगी के सिर पर ठंडे
जल से भीगा छोटा तौलिया रख देते हैं। रोगी के इस प्रकार बैठने से चैम्बर में भरी भाप
उसके पूरे शरीर पर पडती है जिससे शरीर में तेजी से पसीना उत्पन्न होता है,
इस अवस्था में रोगी को सम्पूर्ण शरीर पर हल्के हाथों से मर्दन
करने का निर्देश देते हैं। रोगी के सिर पर रखा गीला तौलिया गर्म होने पर पुनः ठंडे
जल में भिगोकर उसके सिर पर रखते हैं। जब रोगी के माथे पर भी हल्की हल्की पसीने की बूँदे
दिखलाई देने लगे तब भाप स्नान को पूर्ण समझ लेना चाहिए अथवा समयावधि पूर्ण होने पर
रोगी को चैम्बर से निकालकर ठंडे जल के शावर (फुव्वारे) में अच्छी प्रकार स्नान कराना
चाहिए। रोगी को ठंडे जल में उस समय तक स्नान करानी चाहिए जब तक कि भाप स्नान का बाह्य
ताप सामान्य स्थिति में नही आ जाए। रोगी के शरीर की सामान्य अवस्था होने पर शरीर को
सूती तौलिये से अच्छी प्रकार पोंछकर आराम करने की सलाह देते हैं।
रोगों में लाभकारी
भाप स्नान शरीर शोधन की अत्यन्त लाभकारी एवं प्रभावशाली क्रिया है। इस स्नान के
प्रभाव से शरीर में स्थित विषाक्त तत्व पसीने के रुप में शरीर से बाहर निकलते हैं।
यह स्नान त्वचा के नीचे स्थित वसा कम करता है जिससे मोटापा रोग दूर होता है एवं त्वचा
के नीचे बनी गाठें बनने की अवस्था में भाप स्नान से शीघ्र लाभ प्राप्त होता है। भाप
स्नान से स्वेद ग्रन्थियों की क्रियाशीलता बढती है एवं विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों
जैसे ल्यूकोर्डमा एवं सोरायसिस आदि में आराम मिलता है। इसके साथ-साथ गठिया,
आर्थाराइटिस, अस्थमा, ब्रोन्काइटिस, टॉन्सिल्स, पीलिया, मधुमेह, अतिअम्लता, बुखार, मलेरिया तथा एलर्जी, आदि रोगों में भाप स्नान लाभकारी है। यह स्नान शरीर की त्वचा
में स्थित तंत्रिकाओं की क्रियाशीलता बढ़ाता है जिससे सुन्नपन एवं शिथिलता रोग में आराम
मिलता है। शरीर का वजन कम करने में भाप स्नान विशेष लाभकारी प्रभाव रखता है।
रोगों में निषेध अथवा
सावधानियां
उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, चक्कर आना, मिर्गी
के दौरों से ग्रस्त रोगी, रक्तहीनता, हृदय
रोगी,
अधिक कमजोर एवं वृद्धावस्था में यह स्नान नही देना चाहिए। मानसिक
तनाव से ग्रस्त रोगी को भी यह स्नान नही देना चाहिए। महिलाओं को मासिक रक्तस्राव की
अवस्था में एवं गर्भावस्था में भाप स्नान नही देना चाहिए।