VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

20. पीठ या रीढ का स्नान, 21.पूर्ण डूब का ठण्डा स्नान

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'




20. पीठ या रीढ का स्नान
रीढ स्नान स्नायुओं को मजबूत बनाता है। निम्न रक्तचाप, अनिद्रा जैसे रोगों में यह लाभदायक होता है।
इसके लिए एक विशेष प्रकार का टब प्रयोग में लाया जाता है। इसमें दो से तीन इंच पानी भरकर पीठ के बल इसमें लेट जाते है। दोनों पैर बाहर चौकी के ऊपर रखते है। टब में केवल पीठ ही पानी में डूबी रहती है। पांच मिनट से बारह मिनट तक ये स्नान देने के बाद सूखे तौलिये से शरीर को रगडकर साफ करके कपड़े पहनते है।
गरम पानी से भी यह स्नान दिया जाता है इसमें पानी का तापमान शरीर के तापमान से थोडा ज्यादा होता है। लगभग 100 डिग्री फारेनहाइट एक गिलास ठण्डा पानी पीकर, सिर में भीगा तौलिया रखकर ये स्नान लिया जाता है। इसमें पैर सूखे रहने चाहिये। स्नान लेते समय पानी का तापमान एक जैसा बनाये रखने के लिये बीच-बीच में उसमें गरम पानी मिलाया जा सकता है।
उपरोक्त विधि के अतिरिक्त गीले तौलिये से मेरुदण्ड को रगडकर तथा एक इंच मोटी और एक फुट चैडी गद्दी बनाकर उसे ठण्डे पानी से भिगाकर समतल फर्श पर या लकडी के तख्ते पर बिछाकर उस पर पीठ के बल लेटने के बाद ऊपर से कम्बल ओढ़कर भी यह स्नान किया जा सकता है। इसके साथ ही उकडू होकर बैठने के बाद रीढ में दूसरे व्यक्ति द्वारा बिना रुके लगातार पानी डालते रहने से भी यह स्नान होता है।मेरुदण्ड, पीठ और कमर दर्द में यह स्नान लाभ पंहुचाता है। जुकाम, खांसी और अस्थमा भी इससे ठीक होते है ।

21.पूर्ण डूब का ठण्डा स्नान
इस स्नान में शरीर की लम्बाई के बराबर एक टब में पूरा सादा ठण्डा पानी भरकर रोगी के सिर को भिगाकर उसमें लेटा दिया जाता है। रोगी का केवल सिर बाहर रहता है। पानी के भीतर रोगी अपने अंगो को मल-मल के साफ करता है। 5 से 10 मिनट तक पर्याप्त होता है। इसके बाद टब से बाहर आने पर रोगी के शरीर को रगड़कर साफ करते है। और हल्का व्यायाम द्वारा रोगी के शरीर को गरम किया जाता है। प्रातः काल का समय इसके लिए उपयुक्त रहता है। यह स्नान जीवनी शक्ति को बढ़ाता है।