VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

अन्य विभिन्न प्रकार के स्नान

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'




4.वर्षा के जल से स्नान
वर्षा के जल से स्नान एक लाभकारी स्नान होता है वर्षा के जल में वातावरण से आक्सीजन, नाइट्रोजन,कार्बनडाइआक्साइड, अमोनिया आदि बहुत सी गैस के सूक्ष्म कण मिल जाते है। जिससे लाभ मिलता है। वर्षा का जल बहता होने के कारण शुद्ध होता है। इसे नहाने के साथ-साथ पीने और अन्य कार्यो में भी प्रयोग किया जाता है। वर्षा के जल में स्नान करने से वे सभी लाभ मिलते है जो झरने के जल में स्नान करने से एक व्यक्ति को प्राप्त होते है। वर्षा के जल में स्नान करने से पहले व्यक्ति के अपने शरीर में शुष्क घर्षण करना होता है और स्नान करने के बाद भी शरीर को घर्षण करते है। घर्षण करने से शरीर गर्म होता है इससे स्वास्थ्य में अच्छा प्रभाव पडता है।
5.समुद्र स्नान
समुद्र का जल खारा होता है, नदी में स्नान करने की तरह ही समुद्र में स्नान किया जाता है। परन्तु समुद्र में स्नान करने के लिए जाने से पहले दोनो कानों के छिद्रों में रुई लगाकर बन्द कर देते है।
(2) समुद्र में स्नान करने के बाद सादे पानी से स्नान करना चाहिए, चूँकि समुद्र का पानी खारा होता है इसलिए शरीर से खारेपन को साफ करने के लिए नमक रहित सादे पानी से नहाना आवश्यक होता है।
समुद्र का जल अपने में अनेक तत्वों को लिए रहता है इसमें नमक, मैग्नीशियम क्लोराइड , पोटेशियम क्लोराइड , कैल्शियम तथा मैग्नीशियम सल्फेट्स मुख्य तत्व है। ऐसे जल में स्नान करने से व्यक्ति को लाभ पंहुचता है।
6.लम्बा स्नान
इसमें रोगों को पानी से भरे टब में बिना कपड़ों के लेटा दिया जाता है। पानी में रोगी का पूरा शरीर डूबा हुआ होना चाहिए। पानी में लेटे रहने की समयावधि रोग के अनुसार दो घंटे से लेकर दस घंटे तक की होती है। मस्तिष्क के रोग, अनिद्रा, पागलपन आदि में रोगो में यह स्नान लाभदायक सिद्ध होता है। पेशाब रुक जाने पर इस स्नान से वह अवरोध समाप्त हो जाता है।
7.झरना स्नान (फुहारा)
घर में फुहारे के नीचे रोगी को बैठाकर पहले उसके सिर पर पानी डालना चाहिए तत्पश्चात् सम्पूर्ण शरीर पर। स्नान से पूर्व और बाद में शुष्क घर्षण उत्तम रहता है। रोगी को पांच से सात मिनट तक यह स्नान दिया जाता है। शरीर में विशेष रोग होने पर शरीर के अंग विशेष में भी फुहारे से स्नान दिया जाता है। जैसे सूजन, अकड़न आदि। स्नान के बाद शुष्क घर्षण से शरीर में गर्मी आती है । रक्त संचार उत्तम रहता है। त्वचा में चमक आती है। इस स्नान के लिए प्रयोग होने वाला पानी सामान्य होना चाहिए।
8.गीली चादर से स्नान
दुर्बल रोगियों के लिए गीली चादर से स्नान उत्तम रहता है। गीली चादर से स्नान के लिए सर्वप्रथम शुष्क घर्षण या व्यायाम करते हैं। जिससे शरीर गर्म हो जाए और पसीना आ जाए। इसके बाद खादी या सूती बड़ी चादर को सहन करने योग्य तेज ठण्डे पानी में भिगाकर, निचोड़ देते है। और फिर किसी बर्तन में तीन से चार इंच तक ठण्डा पानी भरकर उस पर खडे हो जाते है। इसके बाद गीली चादर को पूरे शरीर पर चिपकाकर लपेट देते है। फिर से शरीर को दूसरे व्यक्ति द्वारा रगड़ा जाता है। जिससे गर्मी हो फिर और ठण्डा पानी डालकर गीला किया जाता है और फिर रगड़ते है। इस प्रकार से दस मिनट बाद गीली चादर को शरीर से हटाकर सूती सूखी चादर शरीर में लपेट देते है। और फिर से शुष्क घर्षण करते है। पानी सूख जाने के बाद कपड़े पहने जाते है। गीली चादर से स्नान स्टूल में बैठाकर भी दिया जाता सकता है। यह स्नान जीवनीशक्ति को बढाने में लाभदायक होता है।
9.सम्पूर्ण स्नान
छाती एवं पीठ पर इस स्नान का सीधा प्रभाव पड़ता है। इससे ह्रदय फेफड़ों की शक्ति बढती है, स्नायु मजबूत होते है। सम्पूर्ण स्नान में सर्वप्रथम रोगी को सिर, चेहरा, पेडू और शरीर के समस्त जोडों को ठण्डे पानी में साफ करकर सिर में गीला तौलिया रखा जाता है। इसके बाद बिना कपड़ों के एक कमरे में बैठाकर रोगी के छाती और पीठ में बारी-बारी से ठण्डा पानी डाला जाता है। यह क्रिया पांच मिनट से लेकर 10 मिनट तक की जाती है। स्नान के पश्चात् तौलिये से पौछकर हथेली द्वारा शुष्क घर्षण रोगी के पूरे शरीर में किया जाता है। शरीर गर्म होने के बाद कपड़े पहनाये जाते है।
यदि रोगी को ठण्डे पानी से स्नान की आदत नहीं हो तो ऐसी स्थिति में रोगी के ऊपर पहले अनुकूल गरम पानी डालते है फिर धीरे-धीरे पानी को कम गरम करते हुए ठण्डे पानी पर आते है। इससे रोगी को धीरे-धीरे ठण्डे पानी में भी अनुकूल लगने लगता है।
10.नेत्र स्नान
यह स्नान नेत्र की शक्ति बढाने, मस्तिष्क और आँखों की गर्मी को शान्त करने के लिए लाभदायक होता है। नेत्र स्नान के लिए दोनों आँखों को एक एक करके कांच या प्लास्टिक के कटोरे में ताजा सामान्य पानी डालकर उसमें झपकाते है। इससे आँखों की गन्दगी साफ होती है। इसके लिए गुलाब जल का भी प्रयोग किया जा सकता है। पांच से दस मिनट तक इस प्रकार करने के बाद आँखों को आराम देते है। धूप और धूल से आँखों का बचाते है।
11.बै्रंड स्नान
इस स्नान से नाड़ियों को शक्ति मिलती है। और गुर्दे, लीवर पर अच्छा प्रभाव पड़ता है वह अपना कार्य सुचारु रुप से करते हैं। बै्रड स्नान की खोज बैंड नामक एक व्यक्ति ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस स्नान का नाम पड़ा है। इस स्नान में रोगी के सिर और चेहरे को ठण्डे पानी से धोकर सिर में ठण्डे पानी से भीगा तौलिया रखा जाता है। इसके बाद बिना कपड़ों के रोगी को एक बड़े टब में लेटा दिया जाता है, जिसमें उसका पूरा शरीर ठण्डे पानी में डूबा रहता है। इसमें रोगी का सिर बाहर ही रहता है। फिर पानी के अन्दर ही रोगी के शरीर को दूसरे व्यक्ति की मदद से रगडते हैं यह क्रिया दो से तीन मिनट तक होती है फिर टब में ही रोगी को बैठाकर उसके ऊपर सिर से एक बाल्टी ठण्डा पानी डालते है। इसके बाद रोगी को पुनः लेटा देते है। रगड़ने की क्रिया दोहराकर फिर से रोगी को बैठाकर उसके सिर में एक बाल्टी ठण्डा पानी डालते है। इस प्रकार बार-बार इस प्रक्रिया को दोहराया जाता है। दस से बीस मिनट तक इस क्रिया को करते है। इसमें यदि रोगी को ठण्ड की अनुभूति हो या कंपकपी हो तो रोगी को पानी से निकालकर तौलिये से शरीर को पौछकर कपड़े पहनाने चाहिए और रोगी को कम्बल उढ़ा देना चाहिए।
12.ठण्डा तौलिया स्नान

ठण्डा तौलिये द्वारा किया गया यह स्नान शक्तिदायक होता है। रक्त की अल्पता, शरीर में ऐंठन, ज्वर आदि में इससे लाभ मिलता है। इस स्नान में एक तौलिये को ठण्डे पानी में भिगोकर निचोड़कर एक-एक करके सारे अंगों में रगड़ - रगड़ कर सफाई की जाती है। चेहरे से प्रारम्भ करते हए अन्त में पैरों को रगड़कर साफ करते हैं। इस प्रक्रिया में यदि तौलिया सूखने लगे तो उसे फिर से ठण्डे पानी में डूबोकर निचोड़कर प्रयोग करते हैं। इसके बाद पूरे शरीर में शुष्क घर्षण करते हैं। या फिर हल्का व्यायाम करके शरीर को गरम करते हैं।



13.कृतिम शीत घर्षण स्नान
इस स्नान में ठण्डा और गरम दोनों प्रभाव साथ-साथ होते है। इसमें रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है। सारी नाडियों, ह्रदय पर इसका लाभकारी प्रभाव पडता है। ह्रदयरोग, बुखार, मलेरिया आदि में इस स्नान का लाभदायक प्रभाव पडता है। इस स्नान के लिए पहले दोनों हथेलियों को पानी में भिगाकर रगड़ा जाता है जिससे उनमें जमा मैल निकल जाये फिर हाथों को धोकर सूखे तौलिये से पोछ लेते हैं। इसके बाद हथेलियों को भिगाकर चेहरे, छाती, हाथ पीठ, पेट, पैर में इसी विधि को दोहराते हुए रगड़कर साफ करते है। जननेन्द्रियों को भी साफ करना आवश्यक होता है। इस प्रकार एक-एक करके शरीर के सभी अंगों की मैल रगड़कर साफ कर ली जाती है। इसके पश्चात़ कपड़े पहनकर शरीर को हल्के व्यायाम द्वारा गरम कर लिया जाता है। अस्थमा एवं ह्रदय रोगियों में यह स्नान सावधानी के साथ दिया जाता है।


14.सिर स्नान
सिर स्नान बालों की बीमारी को दूर करने के लिए उत्तम स्नान होता है। बालों का समय से पहले सफेद होना, नेत्रों का कमजोर होना, पागलपन, सिर दर्द, बाल झड़ने जैसे रोगों में सिर स्नान लाभदायक होता है। सप्ताह में एक बार सिर स्नान जरुर करना चाहिये। बालों को ठण्डे सामान्य पानी से धोना चाहिये। गरम पानी लाभ के स्थान हानि पंहुचाता है।
बालों को साबुन के स्थान पर आंवला, रीठा, दही से धोने में लाभ मिलता है। सिर में रुखेपन को दूर करने के लिये शुद्ध सरसों के तेल का प्रयोग करना लाभदायक रहता है। बाजार में बिकने वाले घटिया तेल, साबून एवं शैम्पू का प्रयोग बालों में नहीं करना चाहिए इससे उन्हें हानि पंहुचती है।

15.तलवा स्नान
आँखों की रोशनी बढ़ाने और पैरों की जलन को दूर करने के लिए तलवा स्नान बहुत ही लाभदायक होता है। इसमें नंगे पैर सुबह-सुबह हरी घास पर चलना चाहिए जो कि ओस की बूदों से भीगी हो, या फिर गीले फर्श या गीले पत्थरों पर पांच मिनट से बीस मिनट तक चलते है। इसके बाद तलवों पर शुष्क घर्षण करते है। हथेली से थपथपाते है। इस तरह तलवे का स्नान होता है।
16.पैर स्नान
इस स्नान में पैर में रक्त प्रवाह तेजी से होता है। जिनके पैर ठण्डे रहते है। उनके लिये यह स्नान लाभदायक होता है। पैरों की ठण्डक दूर होकर इससे उनमें ताकत और गर्मी आती है।
इसके लिये दोनों पैरों को टखने तक किसी चौड़े मुंह वाले बर्तन में ठण्डे पानी में डालकर रखते हैं। एक से दो मिनट तक रखने के बाद पैरों को खुरदुरी तौलिया से रगड़ - रगड़ कर साफ करने के बाद पांच से सात मिनट तक तेजी से टहलते हैं। इस प्रकार रोज दिन में दो से तीन बार तक पैर स्नान किया जा सकता है।
17.टांग स्नान
पैर स्नान की तरह ही टांग स्नान की प्रक्रिया होती है लेकिन अन्तर केवल इतना है कि इसमें पैरो को घुटने तक पानी डूबाकर रखते है। टांग स्नान के सारे प्रभाव भी पूर्ववत् ही है।