By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
कटि स्नान को अनेक नाम से जाना जाता है इसे घर्षण स्नान, पेडू स्नान, उदर स्नान,
हिप बाथ भी कहते है। डा0 लूई कूने ने इस स्नान का आविष्कार किया था।
इस स्नान में पेडू पर घर्षण किया जाता है। इसलिए इसे घर्षण स्नान कहते है। कटि स्नान
के लिए प्रयोग किया जाने वाला टब विशेष प्रकार का तकियादार बना हुआ होता है।
प्रयोग होने वाले पानी का तापमान 55 डिग्री से लेकर 84 डिग्री
फारेनहाइट तक होता है। इस स्नान के लिये मृदु जल प्रयोग में लाया जाता है। ठण्डा पानी
मटके का प्रयोग करना उचित रहता है। बर्फ का पानी कदापि प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।
स्नान के लिए प्रयोग होने वाले जल का तापमान शरीर की गर्मी से थोडा कम होना चाहिए।
कटि स्नान में ठण्डे जल का प्रयोग बुखार में करना उचित रहता है।
स्नान के लिए टब में इतना पानी रखते है कि पेडू तक का भाग पानी
में डूब जाये। इसके बाद टब में बिना कपडों के लेट जाते है। सिर को पीछे तकिये में टिका
लेते है और दोनों पैरों को बाहर निकालकर एक चौकी पर रख देते है। कमजोर रोगी को ऊपर
से कम्बल उढ़ा देते है ताकि रोगी को ठण्ड न लगे। और पैरों में मोजे भी पहना देते है।
आवश्यकतानुसार दोनों पैरों को गरम पानी में डालकर भी रखा जा सकता है लेकिन ध्यान रखना
चाहिये कि पानी का तापमान प्रारम्भ से अन्त तक एक सा ही होना चाहिए। इसी के साथ रोगी
को एक गिलास ठण्डा पानी पिलाते है। सिर में रखा तौलिया यदि सूख जाये तो उसे पुनः गीला
कर देते है। टब में बैठने से पहले पेडू को शुष्क घर्षण कर दिया जाता है। इसके बाद टब
में बैठकर उसमें भी लगातार दायें से बायें एक सूती कपडे की सहायता से पेडू का घर्षण
करते है। जिस प्रकार हमारी आंत की क्रिया होती है उसी दिशा में घर्षण किया जाता है।
नीचे से लेकर नाभि के ऊपर से होते हुए इस क्रिया को किया जाता है। इससे आंतों में जमा
हुए मल का निष्कासन आसानी से हो पाता है।
सामान्यतः पांच मिनट से लेकर दस मिनट तक कटिस्नान किया जाता
है। पर इसका समय धीरे-धीरे बढाकर बीस मिनट तक किया जा सकता है। दस दिन के नियमित अभ्यास
के बाद ही स्नान की समय सीमा बढ़ाई जाती है। एकदम से नहीं । सर्दी में यह स्नान पांच
से दस मिनट तक का पर्याप्त रहता है। टब से बाहर आने पर शरीर को सूखे तौलिये से पोछकर
साफ करते है। इसके बाद हल्का व्यायाम या शुष्क घर्षण द्वारा शरीर को गर्म किया जाता
है। कमजोर रोगियों को कम्बल या रजाई उढ़ाकर भी उनके शरीर को गर्म किया जाता है। इस बात
का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि स्नान के पूर्व तीन घंटा और स्नान के बाद एक घंटे तक
कुछ खाना नहीं चाहिए। पेडू पर मिट्टी पट्टी लेने के बाद कटि स्नान करना अधिक लाभदायक
रहता है। कटि स्नान लेने के साथ-साथ आहार नियन्त्रण एवं ब्रह्रमचर्य का पालन आवश्यक
होता है। उपवास के साथ कटि स्नान लेने से लाभ मिलता है।
कटि स्नान सभी रोगों में लाभ पंहुचाता है। पेडू की गर्मी को
समाप्त कर रक्त संचार की क्रिया को सुचारु रुप से व्यवस्थित करता है। मल निष्कासन में
यह स्नान विशेष प्रभावशाली होता है।
पाचन सम्बन्धी रोगों के निवारण में इस स्नान से लाभ मिलता है।
कटि स्नान के प्रकार
उपरोक्त वर्णन ठण्डे कटि स्नान का इसी के साथ गरम कटि स्नान
और गर्म-ठण्डा कटि स्नान भी होता है। ठण्डे कटि स्नान में सामान्य ठण्डा पानी प्रयोग
किया जाता है। गरम कटि स्नान में 100 से 104 डिग्री फारेनहाइट अर्थात शरीर के तापमान
से कुछ अधिक सहन करने योग्य पानी प्रयोग में लाया जाता है। इसकी समयावधि पांच मिनट
से लेकर दस मिनट तक की होती है। इसमें एक गिलास ठण्डा पानी पी कर सिर में ठण्डे पानी
में भीगा तौलिया रखना आवश्यक होता है।
इसी के साथ ठण्डे-गरम कटि
स्नान में पहले 104 डिग्री फारेनहाइट गरम पानी में रोगी को उपरोक्त विधि से ही बैठाया
जाता है। साथ ही पेडू पर घर्षण भी करते रहते है। फिर 3 मिनट बाद ठण्डे पानी के टब में
1 मिनट के लिए बैठाया जाता है। इस प्रकार से 18 मिनट तक एक के बाद एक टब में रोगी को
बैठाते है।गरम पानी के टब से स्नान प्रारम्भ करके ठण्डे पानी के टब पर स्नान समाप्त
करते है।गर्म कटि स्नान से पेडू के समस्त अवयव गर्म होकर फैलते व मुलायम हो जाते है।
परन्तु ठण्डे पानी में बैठने से रोम छिद्र तथा रक्त नालिकायें संकुचित हो जाती है और
ऊपर आया हुआ रक्त शरीर के अन्दरुनी भाग की ओर चला जाता है। पेशाब की रुकावट, गर्भाशय सम्बन्धी
रोगों में, आँतों, मूत्राशय, लीवर आदि की सूजन, दर्द व निष्क्रियता में यह स्नान अति
लाभदायक होता है। कटि स्नान के लाभों का वर्णन करते हुए डा0 लूई कूने कहते है कि कोई
भी रोग नहीं है जिस में कटि स्नान लाभ नहीं पंहुचाता।