VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

साधारण दैनिक स्नान

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'



सामान्यतः अपने दैनिक जीवन में हम अपनी व्यस्त दिनचर्या में स्नान को भी अन्य कार्यो की तरह बहुत जल्दबाजी में करते है। जो कि सही नहीं है। जिस प्रकार भोजन और व्यायाम हमारे दैनिक जीवन में आवश्यक एवं महत्वपूर्ण होते है। ठीक उतना ही महत्व स्नान का भी होता है। यह पुराने समय से चली आ रही दैनिक दिनचर्या है। स्नान का जल दो प्रकार का होता है
1 - मृदु जल
2 - कठोर जल
1.    मृदु जल –
इसमें साबुन घोलने पर झाग तुरन्त आता है।
2.    कठोर जल-
इसमें अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ घुले रहतें हैं जिससे इसमें साबुन घोलने पर झाग नहीं उठता।
स्नान के लिए मृदु जल उत्तम रहता है।
जल का तापमान
स्नान के लिए कुंए के जल को उत्तम माना जाता है क्योंकि इसमें पानी तापमान के अनुसार स्वतः ही बदलता है और स्नान के लिए उत्तम रहता है। सामान्यतः स्नान का जल ठण्डा और ताजा होना चाहिए जल का तापमान लगभग 65 डिग्री तक होना चाहिए।
स्नान हेतु साधन
सामान्यतः स्नान के लिए साबुन का प्रयोग किया जाता है परन्तु यह उचित नहीं रहता है क्योंकि बालों के लिए भी केमिकल युक्त पदार्थों का प्रयोग हानिकारक होता है। बालों में आंवला, रीठा, दही, नींबू द्वारा साफ करने से बाल स्वस्थ्य रहते है। और बालों का रोग भी नहीं होता है। त्वचा के लिए चिकनी मिट्टी,बेसन, जौ का आटा , नींबू का रस, प्रयोग किए जाने से त्वचा की गन्दगी साफ होती है और त्वचा स्वस्थ्य भी रहती है।

स्नान विधि
स्नान से पूर्व शरीर को रगड़ कर गर्म कर लेना चाहिए। इससे रक्त संचार तीव्र हो जाता है। रक्त ज्यादा से ज्यादा त्वचा की ओर पंहुचता है और रक्त शिराएँ फैलती है फलतः शरीर के रोमकूप खुल जाते है, जिनसे भीतर के विजातीय पदार्थ पसीने के साथ बाहर आ जाते है। इससे त्वचा में चमक आती है। स्नान से पूर्व किया जाने वाला घषर्ण यदि धूप में किया जाए तो अधिक लाभ पंहुचता है।स्नान से पूर्व यदि शुष्क घर्षण के बाद ठण्डे पानी में हथेली भीगाकर पूरे शरीर में मालिश की जाए तो इसे शीत घर्षण कहते है। स्नान से पूर्व इन दोनों क्रियाओं से स्नान का लाभ और अधिक बढ जाता है।
पहले शुष्क घर्षण फिर शीत घर्षण फिर इसके बाद तुरन्त बाद ठण्डे जल से स्नान करते है। स्नान करते समय पहले सिर को धोना उत्तम रहता है फिर शरीर का स्नान करते है। सिर को पहले इसलिए धोते है ताकि इससे सिर की गर्मी पैरों की तरफ होती हुई बाहर निकल जाती है।पैर पहले धोने से हानि होने की सम्भावना ज्यादा रहती है इसमें गर्मी सिर में चढ जाने का खतरा रहता है जिससे रोग उत्पन्न होने की सम्भावनाएँ बढ जाती है। सिर धोने के बाद चेहरा छाती, पेट और फिर पैर धोना चाहिए यह स्नान का सही तरीका होता है। पसीना आने वाली जगह पर रगड़ कर साफ करना चाहिए।
स्नान के बाद शरीर को सामान्यतः सूखे तौलिए से सुखा लेते हैं परन्तु अधिक लाभ के लिए शरीर को शुष्क घर्षण द्वारा सुखाना उत्तम रहता है। इससे शरीर में पर्याप्त गर्मी आ जाती है, यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है | स्नान के उपरान्त यदि शरीर को सुखाया न जाए तो शरीर में खुजली , दाद और नेत्र रोग जैसी समस्याए होने की सम्भावना रहती है स्नान के एक घण्टे बाद ही भोजन करना चाहिए अन्यथा पाचन तंत्र पर बुरा प्रभाव पडता है पाचन कमजोर पड़ जाता है।


स्नान का समय
भोजन के तुरन्त बाद और तुरन्त पहले स्नान नहीं करना चाहिए इससे पाचन क्रिया पर बुरा प्रभाव पडता है। साथ ही खाने के तीन घंटे बाद और नास्ते के 1 घंटे बाद स्नान करना उचित रहता है।बीस मिनट से अधिक देर तक स्नान नहीं करना चाहिए। सर्दियों में तीन से पांच मिनट का स्नान व गर्मी में 7 से 10 मिनट तक का उत्तम रहता है। दैनिक स्नान स्वास्थ्य और सौन्दर्य दोनों दृष्टि से अत्यावश्यक क्रिया है। इसके अभाव में व्यक्ति दुर्गन्धयुक्त हो जाएगा। स्नान के अभाव में रोमछिद्र बन्द रहेंगे जिससे विजातीय पदार्थ बाहर नहीं आ पाने के कारण त्वचा और शरीर में अशुद्धियाँ एकत्रित हो जाएँगी फलतः व्यक्ति रोगग्रस्त हो जाएगा।इसलिए उचित विधि से किया गया स्नान व्यक्ति के सौन्दर्य और स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभदायक सिद्व होता है।