VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

जल की मुख्य पट्टियां

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'


जिस प्रकार विभिन्न प्रकार के स्नान हमारे शरीर से मलों को दूर करने व शरीर में उत्पन्न होने वाले अनेक रोगों के उपचार में सहायक होते हैं। ठीक उसी प्रकार शरीर के विभिन्न भागों में गीली पट्टियों के प्रयोग से उस स्थान विशेष या फिर पूरे शरीर में स्थित रोगों को दूर किया जा सकता है। ये गीली पट्टियां दिखने में जितनी अधिक साधारण प्रतीत होती है उतनी ही शक्तिशाली व कारगर सिद्ध होती है। जिस प्रकार अनेक स्नानों - साधारण दैनिक स्नान, रीढ़ स्नान, कटिस्नान, मेहन स्नान, पैर स्नान, सिर स्नान, नेत्र स्नान आदि का प्रयोग हम रोगों की चिकित्सा हेतु प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत करते है। ठीक उसी प्रकार पट्टियों को गीला करके उनका प्रयोग भी अनेक रोगों के उपचार के लिये किया जाता है।
जल की मुख्य पट्टियां
जल पट्टियां मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है
1. जल की ठण्डी पट्टी
2. जल की गर्म पट्टी।
1. जल की ठण्डी पट्टी

ठण्डी जल पट्टी के लिये देने के लिये सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि पटटी कैसी होनी चाहिये अर्थात उसके लिये किस प्रकार के कपड़े का उपयोग करना चाहिये ? उसकी चैड़ाई कितनी रखनी चाहिये ? मोटाई कितनी रखनी चाहिये ? तथा कितने समय तक रखनी चाहिये ?
जल पट्टी के लिये किस कपड़े का उपयोग किया जाये ? इसके उत्तर में हम कह सकते हैं कि पट्टी सदैव ही खादी के कपड़े की प्रयोग की जाये इसका कारण यह है कि खादी में जल को सोखने व उसे अधिक देर तक रोके रखने की क्षमता होती है। अन्य कपड़ों में यह गुण अपेक्षाकृत कम होता है। जिससे बार-बार पट्टी बदलना या गीला करना पड़ता है। पट्टी बनाने के लिये घरेलु उपयोग की वस्तुओं जैसे खादी की धोती, पलंग की चादर आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
पट्टी की चैड़ाई इतनी होनी चाहिये कि वह रोगी अंग के अलावा भी काफी स्थान घेर सके। जैसे यदि कोहनी पर पट्टी लगानी है तो कुछ हिस्सा कोहनी से नीचे व कुछ हिस्सा कोहनी से ऊपर ही रहना चाहिये। अंग विशेष के आधार पर चैड़ाई होनी चाहिये। पट्टी की मोटाई के लिये कोई कड़ा नियम या माप नहीं है परन्तु सुविधा और उसके उचित प्रभाव के लिये पट्टी कम से कम आधा से पौन इंच तक मोटा रखना चाहिये। इसका सीधा सा लाभ यह है कि पट्टी मोटी होने के कारण जल्दी से सूखती नही हैं और लगभग आधा घण्टा तक चल जाती है। उसके बाद ही पट्टी बदली या फिर उसी को फिर से गीला किया जाता है।
पट्टी के उपयोग करने का कोई समय भी निश्चित नहीं किया जा सकता, इसका प्रयोग तब तक किया जा सकता है, जब तक कि रोग दूर न हो जाये। हालांकि यह अत्यधिक लाभकारी है। परन्तु इसका प्रयोग लगातार बहुत अधिक समय तक नहीं करना चाहिये। ऐसा करने से उस स्थान में रक्त का प्रवाह कम हो सकता है। या फिर रूक भी सकता है इससे बचने के लिये बीच-2 में 5-10 मिनट के लिये पट्टी को खोलकर उस स्थान को सुखाकर और रगड़कर गर्म कर लेना चाहिये, यदि रगड़ना संभव न हो जैसा कि चोट लगने पर या हड्डी टूटने पर अधिक दर्द होने की स्थिति में होता है तो उस स्थान पर गर्म सेंक देकर गर्म करना चाहिये। तत्पश्चात पट्टी का प्रयोग दोबारा करना चाहिये।
ठण्डी पट्टी का प्रयोग
इस पट्टी का प्रयोग प्रत्येक दर्द, जलन, टपकन, शोथ, चोट, ज्वर जहरीले जानवरों के काटने, मधुमक्खी या ततैया के डंक मारने, हड्डी टूटने, मोच आने तथा फोड़े आदि पर इसका प्रयोग लाभ के साथ किया जा सकता है। दर्द जितना ही अधिक हो पट्टी की मोटाई भी उतनी ही अधिक होनी चाहिये। जैसे हड्डी के टूटने पर जो पीड़ा होती है। वह असहाय होती है। इस अवस्था में इस पट्टी का उपयोग करके पहले पीड़ा को दूर करना चाहिये तदोपरान्त टूटी हड्डी को ठीक से बैठाकर उस पर लकड़ी की खपच्ची बांधकर फिर से इस ठण्डी जल पट्टी को बांध देना चाहिये। यदि दर्द अत्यधिक हो तो पट्टी लगे स्थान को जल से भरे एक बर्तन में डुबो देना चाहिये साथ ही बीच-बीच में हाथ से दबा-दबा कर उसे निचोड़ते भी रहना चाहिये। ताकि पट्टी में निरन्तर ठण्डे जल का प्रवाह बना रहे और त्वचा के सम्पर्क में आकर गर्म हुए जल को त्वचा से दूर किया जा सके। जिससे दर्द को जल्दी दूर करने में सहायता मिल सके। जब दर्द बहुत अधिक हो तो अधिक ठण्डा जल प्रयोग में लाना चाहिये। परन्तु कभी-कभी ठण्डे से ठण्डा जल प्रयोग करने पर भी दर्द में कमी नहीं आती तो ऐसी स्थिति में पट्टी को निकालकर पुनः पूरे अंग पर लगाना चाहिये। कभी-2 पट्टी के अधिक कसते रहने से भी पीड़ा होती है अतः ऐसी स्थिति में पट्टी को ढीला कर लेना चाहिये अन्यथा पीड़ा बढ़ती जायेगी। इस प्रकार पट्टी बांधकर हर आधे घण्टे में उसे तर करते रहना चाहिये यदि तब भी दर्द कम न होने पाये तो पट्टी लगे समूचे अंग में पानी की धार लगातार डालनी चाहिये और यह प्रक्रिया तब तक दोहरानी चाहिये जब तक कि दर्द कम न हो जाये। ऐसे करने से निश्चय ही दर्द ठीक हो जाता है बस इस बात का ध्यान रहे कि जल की धार केवल दर्द वाले स्थान पर ही न पड़कर पूरे अंग पर पड़े। यदि तब भी किसी कारणवश दर्द कम न हो तो गर्म तथा ठण्डा जल बारी-बारी से प्रयोग करने पर दर्द अवश्य चला जायेगा। यद्यपि ठण्डी जल पट्टी अत्यधिक लाभकारी है परन्तु जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि इसका प्रयोग लम्बे समय तक लगातार नहीं करना चाहिये क्योंकि इससे रक्त प्रवाह के रूकने से अंग सुन्न पड़ सकता है।
ठण्डी जल पट्टी का प्रयोग खुले जख्म पर भी किया जा सकता है। किन्तु इसमें थोड़ी सावधानी अपेक्षित है इसके लिये पहले जख्म पर नारियल या अन्य मीठे तेल से भीगा साफ सूती वस्त्र का टुकड़ा रख देना चाहिये। चोट लगने की अवस्था में यदि रक्त बहना बन्द न हो रहा हो तो भी इसका प्रयोग लाभ के साथ किया जा सकता है। इससे रक्त का टपकना शीघ्र ही बन्द हो जाता है। इन सभी के अतिरिक्त ठण्डी जल पट्टी का प्रयोग वृहद रूप से किया जा सकता है और स्वास्थ्य लाभ लिया जा सकता है।
2.जल की गर्म पट्टी
जल की ठण्डी पट्टी लगाने के बाद उसके ऊपर कोई गर्म कपड़े की पट्टी को लपेट देने से वह जल की गर्म पट्टी कहलाती है। यदि हम यह समझें कि ऊपर गर्म कपड़ा लपेटने से ही अन्दर की ठण्डी जलपट्टी गर्म होती है तो यह धारणा मिथ्या है। वास्तव में अन्दर की ठण्डी जल पट्टी के गर्म होने का कारण शरीर का ताप है इसी के कारण यह गर्म होती है और सूखती है।
इस पट्टी में एक अन्तर यह भी है कि इसे ठण्डी जल पट्टी जितना नहीं भिगोया जाता कि इससे जल टपकता रहे। बल्कि इसे भिगोकर फिर निचोड़कर प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार निचोड़कर लगाई हुए ठण्डी जल पट्टी के उपर फलालैन या किसी ऊनी कपड़े की पट्टी को 2 या 3 तह करके इस प्रकार लगाया जाता है कि यह सूखी गर्म पट्टी ठण्डी जल पट्टी से 2-1-1 इंच चारों तरफ बढ़ी रहे। इस प्रकार लगी अन्दर की ठण्डी पट्टी जब गर्म हो जाती है और उसका जल सूख जाता है। तब ऊपरी सूखी पट्टी को हटाकर अन्दर की पट्टी को फिर से भिगो दिया जाता है और पुनः ऊपर से गर्म पट्टी लगा दी जाती है। यह पट्टी लगभग 45 मिनट से डेढ़ घण्टे तक रखी जाती है तत्पष्चात इसे हटाकर बदल दिया जाता है।
रोगी की दशा को देखते हुए और देश काल का ध्यान रखते हुए पट्टी मोटी या पतली लगाई जाती है यदि रोगी सबल हो तथा ज्वर अधिक हो तो गीली पट्टी की आवश्यकता उतनी ही अधिक होती है। इसके ऊपर सूखी पट्टी की मोटाई कम होनी चाहिये। यदि किसी ऐसे रोगी का उपचार करना जो निर्बल हो या रोगी को नींद लाना हो या दबे रोगों को उभारना हो तो केवल एक तह की ठण्डी जल पट्टी के ऊपर दो तीन तह गर्म सूखी पट्टी की लगाने से भी काम चल जाता है क्योंकि यह शारीरिक प्रतिक्रिया के लिये काफी होती है।
इसके अलावा चेचक तथा तेज ज्वर आदि अधिक ताप वाले रोगों में पट्टी को जल्दी बदलने की आवश्यकता होती है क्योंकि शारीरिक ताप अधिक होने के कारण पट्टी पर उपस्थित जल तेजी से वाष्पित हो जाता है। इस अवस्था में पट्टी को जल्दी तो बदलना पड़ता ही है साथ ही एक बार प्रयोग की जा चुकी पट्टी को साफ करके धूप में सूखाने के बाद ही प्रयोग करना चाहिये इसके लिये एक ही नहीं बल्कि काफी ठण्डी जल पट्टीयों की व्यवस्था पहले से ही कर लेनी चाहिये।
जब भी पट्टी बदली जाये तो पट्टी वाले स्थान को गीले निचोड़े हुए तौलिये से रगड़-रगड़ कर साफ करना चाहिये। ऐसा करने से त्वचा से सतह पर आये हुए विजातीय द्रव्य या मल आदि अच्छी तरह से साफ हो जाते हैं। शरीर की जीवनी शक्ति व चुम्बकीय शक्ति बढ़ जाती है। जिससे शरीर की स्वाभाविक क्रिया सुचारू रूप से चलने लगती है।
इस पट्टी का प्रयोग विशेष रूप से बिना दर्द की अवस्था में तथा पुराने रोगों में लाभ करता है।
ठण्डी जल की पट्टी हो या गर्म जल की पट्टी दोनों में ही शारीरिक गर्मी को शान्त करने की अत्यधिक क्षमता होती है बढ़ी हुई शारीरिक गर्मी के साथ ही यह जकड़न के स्थानों की रूकावटों को भी दूर करती है दर्द व ज्वर को कम करके रोगी की घबराहट को दूर करने के लिये ये पट्टियाँ अद्वितीय है।

गीली पट्टियों का प्रयोग
इन दो प्रमुख प्रकार की पट्टीयों के विषय के जानने के बाद अब हम विभिन्न प्रकार की गीली पट्टीयों के विषय में जानेगें। इन पट्टीयों के प्रमुख प्रकार नीचे दिये जा रहे हैं।
1.     पेडू की गीली पट्टी
2.     कमर की गीली पट्टी
3.     धड़ की गीली पट्टी
4.     छाती की गीली पट्टी
5.     सिर की गीली पट्टी
6.     गले की गीली पट्टी
7.     जोड़ों की गीली पट्टी
8.     पूरे शरीर की गीली चादर की लपेट
9.     टी - पैक