VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए 1. अणु, 2. अम्ल, 3. आवर्त सारणी, 4. समस्थानिक, 5. उत्प्रेरक, 6. गुप्त ऊष्मा, 7. वर्णांधता, 8. औषधि प्रतिरोध, 9. विषाणु, 10. न्यूरान, 11. माइट्रोकांड्रिया, 12. गुणसूत्र, 13. हीमोग्लोबिन, 14. अन्धबिन्दु 15.रसाकर्षण (परासरण), 16. संयोजकता, 17. उत्प्लावन बल, 18. चयापचय, 19. स्पेक्ट्रम, 20. ब्लैक होल, 21. ओज़ोन पर्त, 22. पेप्टाइड बंध, 23. समभारिक, 24. समन्यूट्रॉनिक, 25. कोशिकीय श्वसन, 26. रासायनिक आबंध

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'



1 अणु
अणु द्रव्य के उस सूक्ष्मतम कण को, जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है और जिसमें द्रव्य के सब गुण विद्यमान रहते हैं, अणु (मौलिक्यूल) कहते हैं। अणु में साधारणत दो या अधिक परमाणु (ऐटम) रहते हैं। अणु की परिकल्पना के पूर्व परमाणु को ही तत्वों तथा यौगिकों दोनों का सूक्ष्मतम कण माना जाता था। डाल्टन और बर्जीलियस ने तब यह कल्पना की थी कि समान ताप तथा दाब पर सब गैसों के एक निश्चित आयतन में उपस्थित परमाणुओं की संख्या समान होही है। इस कल्पना से जब गे-लूसाक के गैस आयतन संबंधी नियम को समझाने का प्रयत्न किया गया तब कठिनाई उपस्थित हुई। इसी कठिनाई को हल करने के लिए इटली के वैज्ञानिक अमीडिओ आवोग्राडो (1776-1856) ने अणुओं की कल्पना की।
प्रत्येक पदार्थ छोटे-छोटे अणुओं से मिलकर बना है। इन अणुओं के बीच खाली स्थान रहता है जिसमें अणु तीव्र गति से भ्रमण करते रहते हैं। अणुओं के बीच की खाली स्थान वाली यह दूरी भिन्न पदार्थों में भिन्न होती है। एक ही पदार्थ की तीन अवस्थाओं में अंतर इस बीच की दूरी के कारण ही पाया जाता है। अर्थात्‌ ठोस अवस्था में अणु पास-पास रहते हैं। द्रवों में अणुओं के बीच की दूरी ठोस की अपेक्षा अधिक होती है। दूरी बढ़ने से अणुओं के पारस्परिक आकर्षण में कमी आ जाती है और अणुओं को गतिशील होने की अधिक स्वतंत्रता मिल जाती है। गैस हो जाने पर अणुओं के बीच की दूरी बहुत अधिक हो जाती है और उनके बीच आकर्षण बल नहीं के बराबर रह जाता है। इससे वे लगभग पूर्णत स्वतंत्र होकर प्रत्येक दिशा में निरंतर स्वच्छंद गति की स्थिति में आ जाते हैं।

2. अम्ल
अम्ल एक रासायनिक यौगिक है जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन(H+) देता है. इसका pH मान 7.0 से कम होता है. जोहान्स निकोलस ब्रोंसटेड और मार्टिन लॉरी द्वारा दी गई आधुनिक परिभाषा के अनुसार, अम्ल वह रासायनिक यौगिक है जो प्रतिकारक यौगिक(क्षार) को हाइड्रोजन आयन(H+) प्रदान करता है. जैसे- एसीटिक अम्ल(सिरका में) और सल्फ्यूरिक अम्ल(बैटरी में). अम्ल, ठोस, द्रव या गैस, किसी भी भौतिक अवस्था में पाए जा सकते हैं. वे शुद्ध रुप में या घोल के रूप में रह सकते हैं. जिस पदार्थ या यौगिक में अम्ल के गुण पाए जाते हैं वे (अम्लीय) कहलाते हैं। मानव आंत्र में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की अधिकता से होने वाली बीमारी को अम्लता या एसीडिटी कहते हैं।

3. आवर्त सारणी
आवर्त सारणी ऐसी सारणी हे जिसमें तत्वों का क्रमबद्ध समूहों में वर्गीकरण रहता है तथा समान गुणवाले तत्व क्षैतिज अथवा उर्ध्वाधर अनुक्रम से संबंधित स्थानाें पर पाए जाते हैं। इस सारणी से ज्ञात तत्वों के अज्ञात गुणों के अतिरिक्त अज्ञात तत्वों के गुण भी, सारणी में उनकी स्थिति देखकर बताए जा सकते हैं।
भारत, अरब और युनान के समान पुराने देशों में चार या पांच तत्व माने जाते थे--छिति-जल-पावक-गगन-समीरा (तुलसी), अर्थात्‌ पृथिवी, जल, तेज, वायु, और आकाश। पर बॉयल (1627-91) ने तत्त्वों की एक नई परिभाषा दी, जिससे रसायनज्ञों को रासायनिक परिवर्तनों और प्रतिक्रियाओं के समझने में बड़ी सहायता मिली। साथ ही साथ बॉयल ने यह भी बताया कि तत्वों की संख्या सीमित नहीं मानी जा सकती। इसका फल यह हुआ कि शीघ्र ही नए नए तत्वों की खोज होने लगी और 18वीं सदी के अंत तक तत्वों की संख्या 60 से अधिक पहुँच गई। इसमें से अधिकांश तत्व ठोस थे; ब्रोमीन और पारद से समान कुछ तत्व साधारण ताप पर द्रव भी पाए गए और हाइड्रोजन, आक्सिजन आदि तत्व गैस अवस्था में थे। ये सभी तत्व धातु और अधातु दो वर्गो में भी बांटे जा सकते थे, पर कुछ तत्वों, जैसे बिसमथ और ऐंटीमनी, के लिए यह कहना कठिन था कि ये धातु हैं या अधातु।

मेंडलीफ की आवर्त सारणी :
मेंडलीफ की आवर्त सारणी में नौ समूह हैं जिन्हें क्रमश:शून्य, प्रथम, द्वितीय...अष्टम समूह कहते हैं। ये समूह उन तत्वों की संयोजकताओं के भी द्योतक हैं। प्रत्येक समूह में दो उपसमूह हैं-क और ख। बाईं ओर से दाईं ओर की जानेवाली दस पंक्तियां हैं, जिन्हें काल कहते हैं। वस्तुत: काल सात हैं, पर चौथे, पांचवे और छठे कालों में से प्रत्येक में दो दो श्रेणियां हैं। इस प्रकार कुल पंक्तियां दस हुई। लोथरमायर के वक्र में भी ये सातों काल स्पष्ट हैं।
4. समस्थानिक :
किसी एक ही तत्व के वे परमाणु जिनका परमाणु क्रमांक तो समान होता है लेकिन उनका द्रव्यमान भार अलग अलग होते है ऐसे परमाणुओं को समस्थानिक कहते है। चूँकि इनके परमाणु क्रमांक समान होते है अत: स्पष्ट है कि समस्थानिक तत्वों में प्रोटॉन की संख्या तो समान होती है लेकिन न्यूट्रॉन की संख्या अलग अलग होती है। एक ही पदार्थ के सभी समस्थानिकों के रासायनिक गुण समान होते है और चूँकि इनमें प्रोटॉन की संख्या समान होती है अर्थात परमाणु  क्रमांक समान होता है इसलिए आवर्त सारणी में इनकी स्थिति भी समान होती है।
जैसा कि नाम से स्पष्ट है समस्थानिकअर्थात समान स्थान
चूँकि किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटोन की संख्या को परमाणु क्रमांक कहते है , और चूँकि समस्थानिकों का परमाणु क्रमांक समान होता है अत: स्पष्ट है कि समस्थानिक में प्रोटॉन की संख्या समान होती है और चूँकि सामान्य अवस्था किसी परमाणु में जितने प्रोटोन होते है उतने ही इलेक्ट्रॉन होते है इसलिए समस्थानिक के लिए यह माना जाता है इनमें न्यूट्रॉन की संख्या अलग अलग होती है इसलिए ये समस्थानिक होते है और न्यूट्रॉन की संख्या अलग अलग होने के कारण समस्थानिक का परमाणु भार भिन्न होता है।
उदाहरण : कार्बन के तीन समस्थानिक होते है जिन्हें कार्बन-12 , कार्बन-13 और कार्बन-14 द्वारा लिखा जाता है , इन समस्थानिको का परमाणु द्रव्यमान (भार) क्रमशः 12 , 13 और 14 होता है।
कार्बन का परमाणु क्रमांक 6 होता है इसका मतलब यह है कि कार्बन में 6 प्रोटोन होते है तथा इसके समस्थानिको में न्यूट्रॉन की संख्या क्रमशः 6 , 7 और 8 होती है।



5.उत्प्रेरक
जिस पदार्थ की उपस्थिति से अभिक्रिया की गति बढ जाती है उसे उत्प्रेरक (catalyst) कहते हैं। उत्प्रेरक अभिक्रिया में भाग नहीं लेता, केवल क्रिया की गति को प्रभावित करता है।
औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण रसायनों के निर्माण में उत्प्रेरकों की बहुत बड़ी भूमिका है क्योंकि इनके प्रयोग से अभिक्रिया की गति बढ जाती है जिससे अनेक प्रकार से आर्थिक लाभ होता है और उत्पादन तेज होता है।
6.गुप्त ऊष्मा
जैसे जल को भाप में बदलने के लिए जो ऊष्मा आवश्यक होती है उसे भाप की गुप्त ऊष्मा (Latent heat) कहते हैं। संख्यात्मक रूप से, ऊष्मा का वह मान जो एक ग्राम जल के ताप को 1 सें. बढ़ाने के लिए आवश्यक होता है, जल की गुप्त उष्मा कहलाता है। एक ग्राम जल को, जिसका ताप 100 सें. है, पूर्णतया वाष्पित करने में 536 कैलोरी उष्मा की आवश्यकता होती है।

7. वर्णांधता (Colourblindness)
आँखों का एक रोग है जिसमें रोगी को किसी एक या एक से अधिक रंगों का बोध नहीं हो पाता है; जिससे उसकी रंगबोध की शक्ति साधारण व्यक्तियों के रंगबोध की शक्ति से कम होती है। यह रोग जन्म से हो सकता है, अथवा कतिपय रोगों के बाद उत्पन्न हो सकता है।
मनुष्य में समान रूप से रंग का बोध त्रिवर्णता (Trichromatism) के सिद्धांत से होता है। इस सिद्धांत के अनुसार रंग का बोध तीन रंगों के विविध मिश्रण से होता हैं। ये तीनों शुद्ध और मुख्य (primary) रंग हैं : लाल, हरा तथा नीला; जिनकी पृथक मात्रा के मिश्रण से सब प्रकार के रंग बन जाते हैं तथा इन पृथक रंगों का विशेष बोध दृष्टि द्वारा होता है। यह त्रिवर्णता पुरुषों में प्राय: 92 प्रतिशत तथा स्त्रियों में 99.5 प्रतिशत सामान्य होती है। शेष पुरुषों तथा स्त्रियों में यह बोधशक्ति मानक से इस अर्थ में भिन्न होती है कि उन्हें पूरे स्पेक्ट्रम के बोध के लिए तीनों शुद्ध रंगों से कम रंगों या अधिक रंगों की आवश्यकता होती है। ऐसे व्यक्तियों की विकृत त्रिवर्णक (Anomalous Trichromats) कहते हैं जिनको सामान्य व्यक्तियों की तुलना में रंगबोध के लिए तीनों शुद्ध रंगों की विभिन्न अनुपात में आवश्यकता पड़ती है। जिन व्यक्तियों में तीन के स्थान पर दो या एक ही रंग द्वारा रंगबोध होता है, वे क्रमश: द्विवर्णक (Dichromates) तथा एकवर्णक (Monochromates) कहलाते हैं। वर्णांधता का विकार सबसे अधिक एकवर्णिक (monochromatic) व्यक्तियों में, इनसे कम द्विवर्णिक (dichromatic) व्यक्तियों में तथा अंत में सबसे कम त्रिवर्णिक (trichormatic) व्यक्तियों में पाया जाता है। जिन व्यक्तियों को लाल तथा हरे रंगों का बोध नहीं होता, उन्हें लाल एवं हरा वर्णांध तथा पीले एवं नीले रंगों का बोध न होने पर पीला एवं नीला वर्णांध आदि कहते हैं।
जन्म के वर्णांध को हरे रंग की मात्रा की सबसे अधिक आवश्यकता पड़ती है तथा ऐसे व्यक्ति को हल्के हरे और पीले रंग के अलग-अलग बोध में कठिनाई पड़ती है। कुछ व्यक्तियों को लाल रंग का बोध नहीं होता है, अत: ऐसे व्यक्तियों को इस वर्णांधता के कारण सामान्य जीवन में बड़ी कठिनाई उठानी पड़ती है। यह सच है कि ऐसा वर्णांध व्यक्ति रंग की विविध गहराई, चमक, तथा आकार से ही वस्तुओं को पहचान लेने की शक्ति उत्पन्न कर लेता है, लेकिन ऐसा व्यक्ति ठीक ठीक रंग पहचानने के ज्ञान पर निर्भर विषयों पर निश्चय लेने में गलती करता है, जिसका भीषण परिणाम हो सकता है, उदाहरणार्थ ट्रैफिक सिगनल पहचानने की गलती आदि।

कभी कभी नेत्ररोग, जैसे दृष्टितंत्रिका (optic nerve) विकार या मस्तिष्क विकार, के कारण वर्णांधता उत्पन्न हो जाती है, जो उचित उपचार द्वारा दूर की जा सकती है, पर जन्म की वर्णांधता का कोई उपचार नहीं है।
8. औषधि प्रतिरोध
प्रतिरोधक क्षमता कैसे विकसित होती है यह काफी दिलचस्प है। एंटीबायोटिक मेडिसिन बैक्टीरिया के भीतर सक्रिय ऑक्सीजन प्रजातियां विमुक्त करना प्रारंभ करती हैं जिन्हें फ्री रेडिकल्स कहते हैं। ये बैक्टीरिया के डीएनए में उत्परिवर्तन अथवा म्यूटेशन करने लगते हैं जिनमें से कुछ ऐसे होते हैं जो प्रतिरोधक क्षमता का कारण बन जाते हैं।
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि घटित होने वाला उत्परिवर्तन बैक्टीरिया में इस तरह की प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर दे कि वे एंटीबायोटिक मेडिसिन को पूरी तरह से प्रभावहीन कर दे। यहां तक कि एंटीबायोटिक पूरी तरह से कोशिका से बाहर निकल जाती है।
हाल के दिनों में किए गये अध्ययनों में एक बात खोजी गई है कि बैक्टीरिया में उत्परिवर्तन की दर कभी-कभी प्रतिबल के प्रत्युत्तर में बढ़ जाती है जिससे प्रतिरोधक क्षमता और भी मजबूत हो जाती है। अध्ययनों से यह बात खुल कर सामने आर्ई है कि एंटीबायोटिक खुद इस घटना का कारण बन सकते हैं। इस घटना को अतिउत्परिवर्तन कहते हैं।
प्रतिरोधक क्षमता पर प्रयोग करने के लिए वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया एशारिकिआ कोली का नोरफ्लोक्सासिन, एम्पीसिलिन व कानामाइसिन एंटीबायोटिकों की अल्प मात्राओं से इलाज किया। इन मेडिसिन की वजह से फ्री रेडिकल्स का स्तर बढ़ गया। वैज्ञानिकों ने यह पाया कि फ्री रेडिकल्स का स्तर अधिक होने से बैक्टीरिया के जीनोमों में उत्परिवर्तन दर भी काफी ज्यादा हो गई। इस अध्ययन में यह भी मालूम हुआ कि निम्नस्तरीय इलाज से अनेक मामलों में प्रतिरोध शुरू होता है और यह प्रतिरोध केवल एक मेडिसिन विशेष के लिए न होकर उस पूरी श्रृंखला के लिए होता है।


9. विषाणु
 विषाणु अकोशिकीय अतिसूक्ष्म जीव हैं जो केवल जीवित कोशिका में ही वंश वृद्धि कर सकते हैं।[1] ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं, शरीर के बाहर तो ये मृत-समान होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप मे इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना किसी सजीव माध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है। यह सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल आरएनए एवं डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है।
  
 10. न्यूरॉन
न्यूरॉन एक वैद्युत कोशिका होती है जो विद्युतचुंबकीय प्रक्रिया से संदेश प्रवाहित करते हैं। न्यूरॉन नर्वस सिस्टम के प्रमुख भाग होते हैं जिसमें दिमाग, स्पाइनल कॉर्ड और पेरीफेरल गैंगिला होते हैं। कई तरह के स्पेशलाइज्ड न्यूरॉन होते हैं जिसमें सेंसरी न्यूरॉन, इंटरन्यूरॉन और मोटर न्यूरॉन होते हैं।
किसी चीज को छूने, साउंड या प्रकाश के दौरान ये न्यूरॉन ही प्रतिक्रिया करते हैं और यह अपने सिग्नल स्पाइनल कार्ड और दिमाग को भेजते हैं। मोटर न्यूरॉन दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड से सिग्नल ग्रहण करते हैं। मांसपेशियों की सिकुड़न और ग्रंथियां इससे प्रभावित होती है। परंपरागत न्यूरॉन में सोमा, डेंड्राइट और एक्सन होता है।
न्यूरॉन का मुख्य हिस्सा सोमा होता है। न्यूरॉन को उसकी संरचना के आधार पर भी विभाजित किया जाता है। यह यूनीपोलर, बाईपोलर और मल्टीपोलर होते हैं। न्यूरॉन में कोशिकीय विभाजन नहीं होतौ जिससे इसके नष्ट होने पर दुबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। ज्यादातर मामलों में इसे स्टेम सेल के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा देखा गया है कि एस्ट्रोसाइट को न्यूरॉन में बदला जा सकता है।
न्यूरॉन शब्द का पहली बार प्रयोग जर्मन एनाटॉमिस्ट हेनरिक विलहेल्म वॉल्डेयर ने किया था। 20वीं शताब्दी में पहली बार न्यूरॉन प्रकाश में आई जब सेंटिगयो रेमन केजल ने कहा कि यह तंत्रिका तंत्र की प्राथमिक फंक्शनल यूनिट होती है। केजल ने प्रस्ताव दिया था कि न्यूरॉन अलग कोशिकाएं होती हैं जो कि स्पेशलाइज्ड जंक्शन के द्वारा एक दूसरे से कम्युनिकेशन करती है।
न्यूरॉन की संरचना का अध्ययन करने के लिए केजल ने कैमिलो गोल्गी द्वारा बनाए गए सिल्वर स्टेनिंग मैथड का प्रयोग किया। दिमाग में न्यूरॉन की संख्या प्रजातियों के आधार पर अलग होती है। एक आकलन के मुताबिक मानव दिमाग में 100 बिलियन न्यूरॉन होते हैं।   
11. माइटोकांड्रिया :
जीवाणु एवं नील हरित शैवाल को छोड़कर शेष सभी सजीव पादप एवं जंतु कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनियमित रूप से बिखरे हुए द्वीप-एकक पर्दायुक्त कोशिकांगों (organelle) को माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) कहते हैं। कोशिका के अंदर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया सभी प्राणियों में और उनकी हर प्रकार की कोशिकाओं में पाई जाती हैं।
माइटोकाण्ड्रिआन कोशिका के कोशिकाद्रव्य में उपस्थित दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है। माइटोकाण्ड्रिया के भीतर आनुवांशिक पदार्थ के रूप में डीएनए होता है जो वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य एवं खोज़ का विषय हैं। माइटोकाण्ड्रिया में उपस्थित डीएनए की रचना एवं आकार जीवाणुओं के डीएनए के समान है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि लाखों वर्ष पहले शायद कोई जीवाणु मानव की किसी कोशिका में प्रवेश कर गया होगा एवं कालांतर में उसने कोशिका को ही स्थायी निवास बना लिया।

12. गुण सूत्र
गुणसूत्र या क्रोमोज़ोम (Chromosome) सभी वनस्पतियों व प्राणियों की कोशिकाओं में पाये जाने वाले तंतु रूपी पिंड होते हैं, जो कि सभी आनुवांशिक गुणों को निर्धारित व संचारित करते हैं। प्रत्येक प्रजाति में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित रहती हैं। मानव कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या ४६ होती है जो २३ के जोड़े में होते है। इनमे से २२ गुणसूत्र नर और मादा मे समान और अपने-अपने जोड़े के समजात होते है। इन्हें सम्मिलित रूप से समजात गुणसूत्र (Autosomes) कहते है। २३वें जोड़े के गुणसूत्र स्त्री और पुरूष में समान नही होते जिन्हे विषमजात गुणसूत्र (heterosomes) कहते है।

13. हीमोग्लोबिन
हीमोग्लोबिन की लाल रक्त कोशिकाओं और कुछ अपृष्ठवंशियों के ऊतकों में पाया जाने वाला लौह-युक्त आक्सीजन का परिवहन करने वाला धातुप्रोटीन है. रक्त में मौजूद हीमोग्लोबिन फेफड़ों या गिलों से शरीर के शेष भाग(अर्थात् ऊतक) को आक्सीजन का परिवहन करता है,जहां वह कोशिकाओं के प्रयोग के लिये आक्सीजन को मुक्त कर देता है |
स्तनपायियों में लाल रक्त कोशिकाओं के शुष्क भाग का करीब 97% और कुल भाग (पानी सहित) का लगभग 35% प्रोटीन से बना होता है |
हीमोग्लोबिन की आक्सीजन को बांधने की क्षमता हीमोग्लोबिन के प्रति ग्राम के लिये 1.36 और 1.37 मिली O2 के बीच होती है, जो कुल रक्त आक्सीजन क्षमता को सत्तर गुना बढ़ा देती है |
हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं और उनको उत्पन्न करने वाली प्रोजेनिटर रेखाओं के बाहर भी पाई जाती है |  हीमोग्लोबिन युक्त अन्य कोशिकाओं में सबस्टैंशिया नाइग्रा के ए9 डोपमिनर्जिक न्यूरान, मैक्रोफैज, अल्वियोलार कोशिकाएं, और गुर्दों की मेसैंजियल कोशिकाएं शामिल हैं |  इन ऊतकों में हीमोग्लोबिन की भूमिका आक्सीजन के परिवहन की जगह एंटीआक्सीडैंट और लौह चयापचय के नियंत्रक के रूप में होती है |

14. अन्ध बिन्दु
आँख के भीतरी परदे का वह बिन्दु जहाँ किसी आंतरिक कारण से प्रकाश या बाहरी वस्तु का प्रतिबिंब न पहुँचता हो।रेटिना के जिस स्थान को छेद कर दृष्टि तंत्रिकाएँ मष्तिष्क को जाती है| वहाँ पर प्रकाश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है| इस स्थान पर प्रकाश- सुग्रहिता शून्य होती है, इसे अंध बिंदु कहते हैं|

15.रसाकर्षण (परासरण)
संगणक के द्वारा परासरण क्रिया का प्रदर्शन कम सांद्रण वाले घोल से अधिक सान्द्रण वाले घोल की तरफ विलायक के अणुओं की गति के कारण बाद में विलयन का स्तर अलग-अलग हो जाता है। परासरण (Osmosis) दो भिन्न सान्द्रता वाले घोलों के बीच होनेवाली एक विशेष प्रकार की विसरण क्रिया है जो एक अर्धपारगम्य झिल्ली के द्वारा होती है। इसमें विलायक (घोलक) के अणु कम सान्द्रता वाले घोल से अधिक सान्द्रता वाले घोल का ओर गति करते हैं। यह एक भौतिक क्रिया है जिसमें घोलक के अणु बिना किसी बाह्य उर्जा के प्रयोग के अर्धपारगम्य झिल्ली से होकर गति करते हैं। विलेय (घुल्य) के अणु गति नहीं करते हैं क्योंकि वे दोनों घोलों के अलग करने वाली अर्धपारगम्य झिल्ली को पार नहीं कर पाते हैं। परासरण में उर्जा मुक्त होती है जिसके प्रयोग से पेड़-पौधों के बढते जड़ चट्टानों को भी तोड़ देती हैं। परासरण- वह क्रिया जिसके फलस्वरूप अर्धपरागम्य झिल्ली से होकर विलायक के अणु कम सांद्रता वाले घोल से अधिक सांद्रता की और जाते है परासरण क्रिया कहलाती है। .

16.संयोजकता
तत्वों की संयोजन शक्ति (combining power) को संयोजकता (Valency) का नाम दिया गया है। संयोजकता का यथार्थ ज्ञान ही समस्त रसायन शास्त्र की नींव है। पिछले वर्षो में द्रव्यों के स्वभाव तथा गुणों का अधिक ज्ञान होने के साथ साथ संयोजकता के ज्ञान में भी वृद्धि हुई है। दूसरे शब्दों में, संयोजकता एक संख्या है जो यह प्रदर्शित करती है कि जब कोई परमाणु कितने इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है, या खोता है या साझा करता है जब वह अपने ही तत्व के परमाणु से या किसी अन्य तत्व के परमाणु से बन्धन बनाता है।

17. उत्प्लावन बल
किसी तरल (द्रव या गैस) में आंशिक या पूर्ण रूप से डूबी किसी वस्तु पर उपर की ओर लगने वाला बल उत्प्लावन बल कहलाता है।
उत्प्लावन बल नावों, जलयानों, गुब्बारों आदि के कार्य के लिये जिम्मेदार है।
आर्कीमिडीज का सिद्धान्त
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन सबसे पहले आर्कीमिडीज ने किया जो इटली के सिरैकस का निवासी था। यह सिद्धान्त इस प्रकार है:
यदि कोई वस्तु किसी तरल में आंशिक या पूर्ण रूप से डूबी है तो उसके भार में कमी होती है। भार में यह कमी, उस वस्तु द्वारा हटाये गये तरल के भार के बराबर होती है।

18. चयापचय
चयापचय (metabolism) जीवों में जीवनयापन के लिये होने वाली रसायनिक प्रतिक्रियाओं को कहते हैं | ये प्रक्रियाएं जीवों को बढ़ने और प्रजनन करने, अपनी रचना को बनाए रखने और उनके पर्यावरण के प्रति सजग रहने में मदद करती हैं. साधारणतः चयापचय को दो प्रकारों में बांटा गया है | अपचय कार्बनिक पदार्थों का विघटन करता है, उदाहरण -  कोशिकीय श्वसन से ऊर्जा का उत्पादन | उपचय ऊर्जा का प्रयोग करके प्रोटीनों और नाभिकीय अम्लों जैसे कोशिकाओं के अंशों का निर्माण करता है |


19. स्पेक्ट्रम
वर्णक्रम या स्पॅकट्रम (spectrum) किसी चीज़ की एक ऐसी व्यवस्था होती है जिसमें उस चीज़ की विविधताएँ किसी गिनती की श्रेणियों में सीमित न हों बल्कि किसी संतात्यक (कन्टिन्यम) में अनगिनत तरह से विविध हो सके। "स्पॅकट्रम" शब्द का इस्तेमाल सब से पहले दृग्विद्या (ऑप्टिक्स) में किया गया था जहाँ इन्द्रधनुष के रंगों में अनगिनत विविधताएँ देखी गयीं।

भौतिकी में प्रयोग
भौतिकी में किसी वस्तु से उभरने वाले प्रकाश का वर्णक्रम उस प्रकाश में शामिल सारे रंगों का फैलाव होता है। यह देखा गया है के किसी भी तत्व को यदि गरम किया जाए तो वह अनूठे वर्णक्रम से प्रकाश छोड़ता है। इस वर्णक्रम की जांच से पहचाना जा सकता है के या कौन से तत्व से आ रहा है और वह तत्व किस तापमान पर है। इस चीज़ का प्रयोग पृथ्वी से करोड़ों-अरबों प्रकाश-वर्ष तक की दूरी पर स्थित खगोलीय वस्तुओं की बनावट और तापमानों का अनुमान करने के लिए किया जाता है।


20. ब्लैक होल
ब्लैक होल ऐसी खगोलीय वस्तु होती है जिसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश सहित कुछ भी इसके खिंचाव से बच नहीं सकता है. ब्लैक होल में एक-तरफी सतह होती है जिसे घटना क्षितिज कहा जाता है, जिसमें वस्तुएं गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर कुछ भी नहीं आ सकता. इसे "ब्लैक(काला)" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश को अवशोषित कर लेता है और कुछ भी रिफ्लेक्ट (प्रतिबिंबित) नहीं करता, थर्मोडाइनामिक्स (ऊष्मप्रवैगिकी) में ठीक एक आदर्श ब्लैक-बॉडी की तरह. ब्लैक होल का क्वांटम विश्लेषण यह दर्शाता है कि उनमें तापमान और हॉकिंग विकिरण होता है.

21. ओजोन परत
ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जिसमे ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है। इसे O3 के संकेत से प्रदर्शित करते हैं। यह परत सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 93-99 % मात्रा अवशोषित कर लेती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक है। पृथ्वी के वायुमंडल का 91 % से अधिक ओजोन यहां मौजूद है।
यह मुख्यतः स्ट्रैटोस्फियर के निचले भाग में पृथ्वी की सतह के उपर लगभग 10 किमी से 50 किमी की दूरी तक स्थित है, यद्यपि इसकी मोटाई मौसम और भौगोलिक दृष्टि से बदलती रहती है।


22. पेप्टाइड बंध
पेप्टाइड बंध एक क्षीण स्वभाव का रासायनिक बंध होता है।जो कि प्रायः एमिनो एसिड के बीच बनता है। इसमें एक एमिनो एसिड के (-COOH) समूह दूसरे एमिनो एसिड के (-NH2) समूह के साथ बंध बनाता है जिसमें एक (-H20) निकल जाता है और एक. -CO-NH बंध बन जाता है।

23 समभारिक (isobars)
अलग अलग पदार्थों या तत्वों के वे परमाणु जिनके परमाणु द्रव्यमान तो समान होते है लेकिन उनके परमाणु क्रमांक अलग अलग होते है ऐसे परमाणुओं को समभारिक कहते है।
चूँकि किसी परमाणु में उपस्थित प्रोटोन की संख्या को ही उसका परमाणु क्रमांक कहते है इसलिए हम कह सकते है कि समभारिक परमाणुओं में प्रोटोन की संख्या अलग अलग होती है लेकिन चूँकि समभारिकों में परमाणु भार समान होता है अत: इनमें प्रोटोन तथा न्यूट्रॉन का योग समान होता है। क्यूंकि सम भारिक परमाणु में द्रव्यमान भार या द्रव्यमान समान होते है।
सम भारिक के परमाणु क्रमांक अलग अलग होते है अत: आवर्त सारणी में समभारिकों का स्थान अलग अलग होता है। तथा समभारिक के रासायनिक गुण भी अलग अलग होते है।
उदाहरण : कार्बन तथा नाइट्रोजन , दोनों का परमाणु भार 40 होता है लेकिन दोनों के परमाणु क्रमांक अलग अलग होते है अत: कार्बन तथा नाइट्रोजन समभारिक है।

24 समन्यूट्रॉनिक (isotones)
अलग अलग पदार्थों के वे परमाणु जिनके नाभिक में न्यूट्रॉन की संख्या तो समान होती है लेकिन प्रोटोन की संख्या अलग अलग होती है ऐसे तत्वों के परमाणुओं को समन्यूट्रॉनिक कहते है।
याद रखे ऐसे समन्यूट्रॉनिक परमाणुओं के परमाणु क्रमांक तथा परमाणु द्रव्यमान (भार) अलग अलग होते है इन समन्यूट्रॉनिक परमाणुओं में केवल न्यूट्रॉन की संख्या समान होती है।

25. कोशिकीय श्वसन
सजीव कोशिकाओं में भोजन के आक्सीकरण के फलस्वरूप ऊर्जा उत्पन्न होने की क्रिया को कोशिकीय श्वसन कहते हैं। यह एक केटाबोलिक क्रिया है जो आक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति दोनों ही अवस्थाओं में सम्पन्न हो सकती है। इस क्रिया के दौरान मुक्त होने वाली ऊर्जा को एटीपी नामक जैव अणु में संग्रहित करके रख लिया जाता है जिसका उपयोग सजीव अपनी विभिन्न जैविक क्रियाओं में करते हैं। यह जैव-रासायनिक क्रिया पौधों एवं जन्तुओं दोनों की ही कोशिकाओं में दिन-रात हर समय होती रहती है। कोशिकाएँ भोज्य पदार्थ के रूप में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल तथा वसीय अम्ल का प्रयोग करती हैं जिनको आक्सीकृत करने के लिए आक्सीजन का परमाणु इलेक्ट्रान ग्रहण करने का कार्य करता है। कोशिकीय श्वसन एवं श्वास क्रिया में अभिन्न सम्बंध है एवं ये दोनों क्रियाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं। श्वांस क्रिया सजीव के श्वसन अंगों एवं उनके वातावरण के बीच होती है। इसके दौरान सजीव एवं उनके वातावरण के बीच आक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड गैस का आदान-प्रदान होता है तथा इस क्रिया द्वारा आक्सीजन गैस वातावरण से सजीवों के श्वसन अंगों में पहुँचती है। आक्सीजन गैस श्वसन अंगों से विसरण द्वारा रक्त में प्रवेश कर जाती है। रक्त परिवहन का माध्यम है जो इस आक्सीजन को शरीर के विभिन्न भागों की कोशिकाओं में पहुँचा देता है। वहाँ इसका उपयोग कोशिकाएँ अपने कोशिकीय श्वसन में करती हैं। श्वसन की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या शक्ति-गृह (पावर हाउस) कहा जाता है।

26 रासायनिक आबंध
किसी अणु में दो या दो से अधिक परमाणु जिस बल के द्वारा एक दूसरे से बंधे होते हैं उसे रासायनिक आबन्ध (केमिकल बॉण्ड) कहते हैं। ये आबन्ध रासायनिक संयोग के बाद बनते हैं तथा परमाणु अपने से सबसे पास वाली निष्क्रिय गैस का इलेक्ट्रान विन्यास प्राप्त कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, रासायनिक आबन्ध वह परिघटना है जिसमें दो या दो से अधिक अणु या परमाणु एक दूसरे से आकर्षित होकर और जुड़कर एक नया अणु या आयन बनाते हैं (एक विशेष प्रकार के बन्धन 'धात्विक बन्धन' में यह प्रक्रिया भिन्न होती है)। यह प्रक्रिया सूक्ष्म स्तर पर होती है, लेकिन इसके परिणाम का स्थूल रूप में अवलोकन किया जा सकता है, क्योंकि यही प्रक्रिया अनेकानेक अणुओं और परमाणुओं के साथ होती है। गैस में ये नये अणु स्वतन्त्र रूप से मौजू़द रहते हैं, द्रव में अणु या आयन ढीले तौर पर जुडे रहते हैं और ठोस में ये एक आवर्ती (दुहराव वाले) ढाँचे में एक दूसरे से स्थिरता से जुड़े रहते हैं।