By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
गीली चादर की लपेट कोई नयी तकनीक या विधि है यह प्राचीन काल
से ही प्रयोग की जाती रही है। क्योंकि पहले प्राकृतिक चिकित्सा का प्रचलन अधिक नहीं
था लोग इसके विषय में अधिक नहीं जानते थे इसलिये यह समय के साथ-साथ धीरे प्रचलन में
आने पर प्रसिद्ध हुए और आज काफी अधिक संख्या में लोग प्राकृतिक चिकित्सालयों में इस
लपेट से लाभ प्राप्त कर रहे हैं। इस लपेट का सर्वप्रथम प्रयोग लूकरन नामक एक डाक्टर
ने अठारहवी शताब्दी के मध्य में किया था। इनके इस प्रयोग के बाद इसके प्रभाव को देखते
हुए डॉ. प्रिस्नेज ने भी इसका प्रयोग करते हुए अनेक रोगियों को रोग मुक्त किया।
इसी कड़ी में गीली चादर की लपेट की उपचारिक प्रमाणिकता को सिद्ध
करने के लिये शुल्लेर नामक एक वैज्ञानिक ने इस गीली चादर की लपेट का प्रयोग चूहों पर
किया और उससे पाया कि ज्यों ही गीली चादर की ठण्डक की प्रतिक्रिया उन चूहों पर प्रारम्भ
हुए उन चूहों के मस्तिष्क के फैली हुई रक्त नालिकाएं धीरे-धीरे सिकुड़ने लगी और कुछ
ही समय में मस्तिष्क में सिकुड़ने पड़ गयी यह स्थिति समान्यतः निन्द्रावस्था में आती
है। अतः उन्होंने पाया कि गीली चादर जी लपेट द्वारा रोगी के मस्तिष्क के ढांचे की खराबी
और उसमें उत्पन्न विकृति को दूर हो सकती है। यदि हम और आधुनिक युग की ओर बढ़े तो इसमें
महात्मा गांधी इस लपेट के बहुत बड़े प्रशंसक माने जाते हैं। उन्होंने एक बार यंग इण्डिया
में लिखा था कि कैसे उन्होंने इस लपेट की सहायता से अपने बड़े पुत्र मणिलाल के कालाजार
नामक जानलेवा रोग को दूर किया था।
पूरे शरीर की लपेट लेने
के लिये एक साफ सुथरी जगह पर बड़ा हवादार कमरा चुनना चाहिये। यहां पर हवादार से तात्पर्य
तेज हवा के बहने से नहीं है बल्कि साधारणतः जो हवा हमारे आसपास मौजूद रहती है उसी के
मंद बहाव से हैं जिसका साधारणतः हमें अनुभव नहीं होता साधारण भाषा में कहें तो कमरा
ऐसा हो जिसमें घुटन का अनुभव न हो | प्रातः खाली पेट या दोपहर के खाने के 2-3 घण्टे बाद यह लपेट ली जा सकती है।
सर्वांग गीली चादर की
लपेट विधि
सर्वप्रथम एक व्यक्ति बराबर 6 फुट लम्बी और 2 फुट चौड़ी टेबल पर एक पतला रुई का तौलिया रखकर उस पर एक
सूती चादर बिछाते है, जिसकी चैड़ाई 3 फुट एवं लम्बाई 6 फुट होगी। इसके बाद 2-3 कम्बलों को चादर के ऊपर रखते हैं | कम्बल की चैड़ाई चादर से
ज्यादा चौड़ी होने के कारण वे 2-2 फुट लटकते रहते है। कम्बल को तकिये की तरफ की चादर के दो
इंच नीचे की तरफ रखकर बिछायेंगे।अब एक 6 फुट लम्बी सूती चादर को ठंडे पानी में भिगोकर और निचोड़कर
उसे कम्बल के ऊपर बिछा देते है। सूती चादर को तकिये की तरफ से कम्बल से एक इंच
नीचे की ओर रखकर बिछाते है।इसके बाद रोगी को बिना कपड़ों के चादर के ऊपर लिटाया
जाता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चादर कन्धे से तीन इंच ऊपर की तरफ हो।
इसके बाद रोगी के दोनों हाथों को बाहर की तरफ रखते हुए चादर को दाहिनी तरफ से
रोगी की छाती, पेट
और पूरे बगल, पैर
में चिपका देते है। फिर इसी प्रकार से बायीं तरफ से भी करते है। पैरों में चादर को
इस प्रकार से रखा जाता है जैसे कि पजामा होता है। साथ ही तलवे को भी चादर से अच्छी
तरह ढक दिया जाता है। गले की ओर चादर को इस प्रकार से सटाया जाता है जैसे बाल
काटते समय नाई गले में कपड़ें को फंसा देता है, इस प्रकार चादर रोगी के शरीर में अच्छी तरह से चिपका दिया
जाता है।
चादर को रोगी के शरीर में अच्छी तरह से लपेटने के बाद सबसे ऊपर वाला कम्बल
रोगी को दायें और बायीं ओर से उसे ओढ़ा देते हे। हाथों को भी उसी के अन्दर रखते हे।
इसी प्रकार सारे कम्बल रोगी पर लपेट देते हैं। फिर आखरी में सूती चादर को भी
कम्बलों के ऊपर रोगी के शरीर में लपेट दिया जाता है। गर्दन वाले भाग में ये ध्यान
देना चाहिए कि सूती चादर इस प्रकार से लिपटी हो कि गर्दन और गाल में कम्बल से रगड़
न लगे और बाहरी हवा का प्रवेश भी रुक जाए।
रोगी के पूरे शरीर में चादर लपेट देने के बाद रोगी के सिर को ठंडे पानी के
भीगे एक तौलिए से ढक देते है। जिसमें बीच-बीच में जब वह थोड़ा गरम सा लगे तो पुनः
ठंडे पानी में भीगोकर उसे ठंडा कर देते है।रोगी से पैरों के नीचे गरम पानी की थैली
या बोतल रख देना भी लाभदायक होता है।
इस प्रकार चादर द्वारा रोगी को अच्छी तरह से लपेट देने के बाद 10 मिनट में ही पसीना आने लग जाता है जिससे रोगी सुख का अनुभव
करता है। ऐसी स्थिति में रोगी को नींद भी आ जाती है। यदि रोगी को 10 मिनट में गर्मी की अनुभूति न हो और वह ठंड का अनुभव करें
तो समझ लेना चाहिए कि चादर शरीर से पूरी तरह नहीं चिपकी है,
जिससे चादर के अन्दर गर्मी से उठने वाली भाप त्वचा में ठंडा
स्पर्श प्रदान करती है। इसी कारण गर्मी के स्थान पर व्यक्ति ठंड का अनुभव करता है।
शरीर में एक स्थान पर अनुभव होने वाली ठंडक पूरे शरीर में ठंडक प्रदान करती हैं ।
रोगी को ठंडक लगने की स्थिति में रोगी के पास गरमपानी की बोतल रखते है तथा 2-3 कम्बल ऊपर से और उढ़ा देते है। 10 मिनट से एक घंटे तक रोगी को सर्वांग गीली चादर की लपेट दे
सकते है। साथ ही इसमें रोगी की सुखानुभूति का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। जब तक
रोगी को सुख का अनुभव हो तभी तक उसे लपेट देते है। जब रोगी कष्ट का अनुभव करें तो
उसे स्थिति में चादर की लपेट हटा देते है।
रोगी के शरीर से चादर हटाने के बाद रोगी के शरीर को एक गीले तौलिये से रगड़ कर
साफ करते है। फिर रोगी को रजाई या कम्बल में लगभग एक घंटे तक रखते हैं ताकि रोगी
का शरीर थोड़ा गरम हो जाए। जो रोगी ज्यादा कमजोर नहीं है वे अपनी हथेली से अपने
पूरे शरीर को रगड़ कर या धूप में थोड़ी दूर टहलकर भी शरीर को सामान्य गर्मी प्रदान
कर सकते है।
सर्वांग गीली चादर की
पट्टी लेने से पूर्व तैयारी
1. रोगी के सिर,चेहरा,गले वाले भाग को पानी से अच्छी तरह धो लेते हैं।
2. साथ ही एक गिलास गरम पानी में 8-10 बूदें नीबू का रस डालकर रोगी को पिलाते है।
3. यदि रोगी के शरीर से अधिक पसीना निकालना हो तो हर 10 मिनट के बाद रोगी को आधा गिलास पानी पिलाते है।
सर्वांग गीली पट्टी
के लाभ
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सर्वांग
गीली चादर पट्टी बहुत ही लाभदायक सिद्ध होती है।
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यह
शरीर से विजातीय पदार्थ को बाहर निकालती है।
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इससे
जीवनी शक्ति बड़ती है।
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ह्रदय
गति रुकने की बीमारी के लाभ मिलता है ।
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जब
किसी रोग के होने की आशंका हो तो उस वक्त एक या दो एनिमा लेकर आंतो को साफ कर दिया
जाए।और इसके साथ सर्वांग गीली चादर की लपेट लेने से रोग के होने की सम्भावना कम हो
जाती है। या फिर रोग होता ही नहीं है।
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तेज
बुखार,
जलन, चर्म रोग, अनिद्रा,
कब्ज, जुकाम, दमा में लाभ होता है।
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इससे
घबराहट ,
मोटापा, चेचक, स्वप्न दोष,स्नायु रोग, पेट सम्बन्ध रोग तथा पुरानी बिमारियों में लाभ मिलता है।
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छोटे
रोगों में एक बार की पट्टी से ही लाभ मिल जाता है। पुराने रोगों में चार बार की
लपेट की आवश्यकता होती है।
पट्टी में ली जाने
वाली सावधानियां
1. सर्वांग गीली चादर की लपेट से पूर्व रोगी के शरीर को गर्म
कर देना चाहिए।
2. बच्चों को बूढों को तथा कमजोर व्यक्तियों के शरीर को गरम
करके(पांच मिनट भाप देकर या गर्म सेंक देकर)तथा सिर में गीला तौलिया रखकर कुछ देर
टहलाकर या फिर सूखी मालिश करके ही गीली चादर की लपेट देनी चाहिए।
3. यदि रोगी को स्थान विशेष में सूजन आ रही हो तो उस स्थान में
सूती गीली चादर की पट्टी लगाने से पूर्व एक और सूती गीला कपड़ा उस स्थान पर रख देना
चाहिए।
4. अस्थमा के रोगी की छाती में गीली पट्टी रखने के बाद एक गरम
ऊनी कपड़ा उसकी छाती के ऊपर रख देना चाहिए।
5. रोगी की जीवनी शक्ति के अनुरुप पट्टी की लपेट देनी चाहिए।
तेज बुखार में ठण्डी पट्टी ज्यादा और गरम पट्टी कम तथा कमजोर रोगी के उपचार में
ऊनी पट्टी ज्यादा और ठण्डी पट्टी कम रखते है।
6. यदि रोगी के शरीर में अधिक फोड़े फुन्सी हो रखे हो तो
सर्वांग गीली पट्टी नहीं लगानी चाहिए।