VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

छाती की गीली पट्टी

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'


छाती की गीली पट्टी लगाने के लिये सर्वप्रथम एक मोटा सूती वस्त्र लेना चाहिये जिसकी चैड़ाई छाती की चैड़ाई के बराबर हो तथा लम्बाई इतनी होनी चाहिये कि वह छाती में इर्द-गिर्द लपेटी जा सके। इस पट्टी को ठण्डे जल से भिगोकर तथा फिर निचोड़कर पूरी छाती पर पसलियों को अच्छादित करते हुए थोड़ा नीचे तक उसे 3-4 तह करके लपेटा जाता है। तथा इसके बाद एक ऊनी कपड़ा इसके ऊपर लपेट दिया जाता है। इस पट्टी को इसी अवस्था में 3-4 घण्टे तक रखा जा सकता है।
छाती की गीली पट्टी से लाभ
यह छाती से सम्बन्धित लगभग सभी रोगों में जैसे तेज व पुरानी खांसी, निमोनिया, फेफड़ों का यक्ष्मा आदि में लाभकारी सिद्ध होती है। इस पट्टी को लगाने से छाती में दीर्घकाल से जमा हुआ कफ ढीला होकर उखड़ने लगता है, जिससे यह पुरानी से पुरानी खांसी और दमा के स्थिति में काफी लाभकारी सिद्ध होती है।
इस पट्टी का प्रयोग करते समय रोगी की स्थिति का भी ध्यान रखना चाहिये यदि रोगी सामान्य हो तो इस पट्टी का प्रयोग सीधे किया जा सकता है। परन्तु यदि रोगी अत्यन्त दुर्बल हो तो पट्टी लगाने से पहले उसके हृदय को बचाकर अन्य स्थान पर गर्म जल से हल्की सेंक देनी चाहिये या फिर पट्टी लगाने में ठण्डे जल के बजाये गुनगुने जल का प्रयोग करना चाहिये ऐसा करने से रोगी को ठण्ड लगने का खतरा नहीं रहता है। यह पट्टी अन्य दशाओं जैसे फेफड़ों से रक्त गिरने तथा कैबिटी भरने में भी उपयोगी है। रक्त गिरने की दशा में इस पट्टी का प्रयोग अधिक समय तक नहीं करना चाहिये। परन्तु कैबिटी होने की दशा में इस पट्टी का प्रयोग अधिक समय तक किया जाना चाहिये।