VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

कमर की गीली पट्टी

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'


कमर की गीली पट्टी के लिये सर्वप्रथम आवश्यकतानुसार 8 से 10 इंच (शरीर की लम्बाई के हिसाब से घटाया बढ़ाया जा सकता है) चौड़े और आवश्यकता अनुसार लम्बे एक सूती कपड़े की पट्टी को ठण्डे पानी में भिगो कर और फिर निचोड़कर नाभी से पांच अंगुल ऊपर से लेकर सारे पेडू प्रदेश व कमर पर लपेट देना चाहिये। रोगी के शरीर का ताप मान जितना अधिक हो पट्टी की मोटाई भी उतनी अधिक रखनी चाहिये। यह एक नियम है परन्तु साधारण अवस्था में पट्टी को 3-4 बार घुमाकर बांधना काफी होता है। इसके बाद इसके ऊपर ऊनी कपड़ा लपेट देना चाहिये। जिससे बाहर की वायु अन्दर पट्टी में प्रवेश न कर पाये। इस ऊनी पट्टी को इस प्रकार लगायें कि यह अन्दर की पट्टी को पूरी तरह ढककर रखे तथा सरकने न पाये इसे सरकने से रोकने के लिये सेफ्टी पिन या फिर किसी अन्य डोरी आदि से बांधा जा सकता है।
कमर की गीली पट्टी से लाभ
यह पट्टी विशेष रूप से पुरानी कब्ज, दस्त आदि पेट से सम्बन्धित बीमारियों में प्रयुक्त होती है। इस पट्टी को खाली पेट या खाने के 2-3 घण्टे बाद लगाया जा सकता है। यदि आवृत्ति की बात करें तो दिन में दो बार सुबह और शाम को इसका प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा रात को सोते समय भी इसका प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है। इसे रात भर लगे रहने देना चाहिये तथा सुबह ही हटाना चाहिये, तथा उस स्थान को रगड़कर गर्म अवश्य कर लेना चाहिये। पेडू से ऊपर से नीचे के अवयवों के रोगों में इसे आवश्यकतानुसार ऊपर या नीचे बांधना चाहिये यदि रोग पाकस्थली तथा लीवर में है तो पट्टी से इन दोनों स्थानों को ढककर कुछ और ऊपर देना चाहिये, स्त्रियों में होने वाले जरायु आदि रोगों में नाभी से नीचे पूरे पेडू प्रदेश में यह पट्टी बांधनी चाहिये। कभी-कभी कुछ रोगी कटि स्नान लेने में समर्थ नहीं होते तो ऐसे रोगियों के लिये कटि स्नान के स्थान पर यह पट्टी दी जा सकती है। यह भी कटि स्नान के ही समान लाभ पहुंचाती है।

यदि पाकस्थली बढ़ गयी हो या झूलने लगी हो, अजीर्ण हो आंत में घाव हो, या सूजन हो, तथा मेरूदण्ड में दर्द हो तो इस पट्टी का प्रयोग लाभ के साथ किया जा सकता है। ज्वर की स्थिति में इस पट्टी का प्रयोग नहीं किया जाता उसमें पेडू की पट्टी ही उत्तम रहती है। इसका एक विशेष लाभ यह भी है कि इसमें पट्टी लगाकर ऊपर से कपड़े पहनकर अपने दैनिक कार्यो को किया जा सकता है। जिससे इसमें लगने वाले समय की भी बचत हो जाती है।