VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

वसा के प्रकारों की उनके गुणों सहित व्याख्या करें

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'



वसा के प्रकार (Types Of Fats)
वसीय अमलो (Fatty Acids)को निम्न दो वर्गो में विभाजित किया गया है :
1. संतृप्त वसीय अम्ल (Saturated Fatty Acids)
2. असंतृप्त वसीय अम्ल (Unsaturated Fatty Acids)
1. संतृप्त वसीय अम्ल (Saturated Fatty Acids)
जब वनस्पति तेलों को अनुकुलम तापमान एव दाब में किसी उत्प्रेरक की विद्यमानता में हाइड्रोजन से संयोजित किया जाता है अर्थात उन्हें हाइड्रोजन से संतृप्त  किया जाता है तो द्रव तेल आद्रठोस या ठोस वसा में परिवर्तित ओ जाते है जिन्हे वनस्पति घी या वेजिटेबल घी भी कहा जाता है। वनस्पति तेलों में हाइड्रोजन मिलाने की इस क्रिया को उर्दजनीकरण कहा जाता है। उदर्जनीकरण के दौरान असंतृप्त वसीय अम्ल संतृप्त वसीय अमलो में परिवर्तित हो जाते है जिनमे और अधिक हाइड्रोजन को अवशोषित करने की क्षमता नही होती। संतृप्त वसीय अम्लों के उदहारण लैरिक, पल्मिटिक तथा स्टीयरिक एसिड है जो अधिकतर जंतु वसाओं में पाए जाते है परन्तु ये वनस्पति तेलों में भी जैसे मूँगफली के तेल तथा नारियल के तेल में भी पाए जाते है। संतृप्त वसाओं जैसे घी और मक्खन आदि से रक्त में कोलेस्ट्रोल बढ़ जाता है।
2. असंतृप्त वसीय अम्ल (Unsaturated Fatty Acids)
ये वसीय अम्ल हाइड्रोजन  संतृप्त नही होते अतः इनमे अतिरिक़्त हाइड्रोजन को अवशोषित करने की क्षमता होती है। ओलिक एसिड, लाइनोलिक एसिड तथा लाइनोलेनिक एसिड आदि असंतृप्त वसीय अम्ल होते है।


वसाओं की दैनिक आवश्यकता (Daily Requirements of Fats)
इण्डियन कौंसिल ऑफ मेसिकल रिसर्च ने सन 1989 में वसाओं के द्वारा कुल ऊर्जा अंतर्गहन के प्रतिदिन 20% से अधिक अन्तर्गहन न करने की संस्तुसति की है। वसा अन्तग्रहण का कम से कम 50% आवश्यक वसीय अम्लो से भरपूर वनस्पति तेलों का होना चाहए। भोजन में 15 ग्राम वनस्पति तेल होना चाहिए।
वसाओं के कार्य (Functions of Fats)
1. वसाओं का मुख्य कार्य शक्ति प्रदान करना है। वसाए उच्च शक्ति वाले खाध पदार्थ होते है। वसा के प्रत्येक ग्राम से 9 कैलोरिया ऊर्जा अपलब्ध होती है जो कर्बोहाइडेट और प्रोटीन द्वारा प्रदत शक्ति से दुगनी होती है।
2. वसाओं से भोजन स्वादिष्ट होता है।
3. वसाए शरीर में आंतरिक अंगो जैसे ह्रदय, वृक्कों तथा आँतो आदि को सहारा देती है।
4. वसाए वसा में धुलनशील विटामिन A,D,E तथा K की वाहक होती है और उनके अवशोषण के लिए आवश्यक है।
5. वसाओं से शक्ति उपलब्ध होने के कारण प्रोटीनों से शक्ति उपलब्ध होने की आवश्यकता नही होती।
6. प्रचुर मात्रा में आवशयक वसीय आम्लो से युक्त्त भोजन को ग्रहण करने से सीरम कोलेस्ट्रॉल एव लो-डेन्सिटी लाइपोप्रोटीन कम हो जाती है।
7. त्वचा के निचे स्थित वसा की परत ऊष्मा-रोधी होती है जिससे यह जारी के मौसम में शरीर की सतह से ऊष्मा की हानि को कम करके शरीर का तापमान सामान्य बनाये रखती है।

8. वसाए, विशेष रूप से वनस्पति वसाए आवश्यक वसीय अम्लों की बढ़िया स्त्रोत है जिनकी वृद्धि, कोशिका कला की रचनात्मक अखण्डता तथा बिम्बाणुओ या प्लेटलेटो की चिपचिपाहट में कमी लेन के लिए शरीर की आवश्यकता पूरी करती है।
9. कोलेस्ट्रोल जो एक प्रकार की वसा होती है, स्टेरॉयड होर्मोनो का एक पूर्वगामी है, तंत्रिका-उतका का एक अवयव है तथा पित का एक सामान्य घाटक है। कोलेस्ट्रॉल चयापचय में महत्वपूर्ण है।