By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
वर्गीकरण :
जीव जन्तुओं एवं पेड़ पौधों को उनकी समानता व असमानता के आधार
पर विभिन्न समुदायों एवं वर्गों में रखने की विधि को वर्गीकरण कहते है ,
तथा विज्ञान की वह शाखा जिसमे सजीवों का वर्गीकरण किया जाता
है वर्गिकी (Taxonomy) कहते है।
वर्गीकरण विज्ञान शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम केरोलस लिनियस ने
अपनी पुस्तक systema naturae में किया था। इसलिए कैरोलस लिनियस को वर्गिकी का जनक (father
of taxonomy) कहते है।
जैव वर्गीकरण का उद्देश्य ज्ञात जीवों को ऐसे वर्गों में व्यवस्थित
करना है जिनमे उनका नामकरण पहचान एवं अध्ययन आसानी से किया जा सके। परिणाम स्वरूप उस वर्ग के एक जीव का अध्ययन कर उस
वर्ग के शेष जीवों के लक्षणों के बारे में अनुमान लगाया जा सके।
वर्गक (Taxon) :
जीवों के वर्गीकरण में प्रयुक्त विभिन्न समूहों को वर्गक कहते
है . कुत्ता , बिल्ली
,
शैवाल , स्तनधारी , चावल , गेहूँ , पौधे , जन्तु आदि सुविधाजनक वर्गक है ,
जिनका उपयोग वर्गीकरण में किया जाता है . कई छोटे छोटे वर्गक
मिलकर बड़े वर्गक तथा बड़े वर्गक मिलकर ओर बड़े वर्गक का निर्माण करते है और अंततः जगत
का निर्माण करते है।
वर्गिकी संवर्ग (category) :
वर्गीकरण में प्रयुक्त विभिन्न स्तरों को संवर्ग या वर्गीकरण
की इकाई कहते है। ये संवर्ग क्रमशः श्रृंखला
में स्थित होते है। वर्गीकरण का सबसे छोटा
संवर्ग जाति होता है इससे बड़े क्रम वंश , कूलगण , वर्ग , संघ तथा जगत होते है।
वर्गको में परिवर्तन :
नये जीव जातियों की खोज तथा नये लक्षणों का समावेश करने के लिए
जीव धारियों को भी उनके उचित स्थान पर रखना पड़ता है इसलिए वर्गीकरण को बार बार बदलना
पड़ता है।
वर्गीकरण के पदानुक्रमी स्तर :
सारे संवर्ग मिलकर वर्गिकी पदानुक्रमी स्तर बनाते है। वर्गीकरण की मूल इकाई जाति व सर्वोच्च इकाई जगत
है। सभी इकाइयों को आरोही क्रम या पदानुक्रम
में व्यवस्थित किया जाता है।
वर्गीकरण के पद
1.जाति (species) :
जाति वर्गीकरण की मूल इकाई है। जीवों का वर्ग जिसमे मौलिक समानता पायी जाती है
उसे जाति कहते है। मायर के अनुसार जाति जन्तुओं का ऐसा समूह है जिनमें परस्पर प्रजनन
हो सकता है। हम किसी भी एक जाति को दूसरी जाति
से आकारकीय विभिन्नता के आधार पर अलग कर सकते है।
जैसे :
मैजेफेरा इण्डिका – आम
सोलेनम ट्यूबरोसम – आलू
पेथरा लिओ – शेर
इनमे इंडिका , ट्यूबरोसम , लिओ जाति के संकेत है।
एक जाति के सभी स्वस्थ प्राकृतिक रूप से समान होते है।
2.वंश (genus) :
समान लक्षणों वाली जातियां वंश में रखी जाती है। एक वंश की जातियाँ दूसरे वंश की जातियों से भिन्न
होती है।
जैसे सोलेनम वंश में आलू , बैंगन , टमाटर की जातियाँ रखी गई है , इसी प्रकार पेंथर में शेर व चीता जातियाँ रखी गई है।
3. कुल (family) :
इस पद में समान गुणों वाले वंशो को रखा जाता है। कुल के वर्गीकरण का आधार पौधे की कायिक व जनन गुण
होते है। जैसे : पौधों के तीन विभिन्न वंश
सोलेनम ,
पिटुनिया व धतूरा को सोलेनेसी कूल में रखा गया है। इसी प्रकार जन्तुओं के वंश पेंथरा (शेर ,
बाघ , चीता ) तथा फेलिस (बिल्ली) को फेनेडी कूल में रखा गया है।
4. गण (order) :
कई मिलते जुलते गुणों वाले कूलों को एक गण में रखा जाता है जैसे
पादपों के कूल कोनवोलेवयुलेसी , सोलेनेसी को एक गुण में में पॉलीसोनीएलस में रखा गया है ,
इस प्रकार जन्तुओ की फेलेडी व कैबेडी गुणों को कारनीवोरा गण
में रखा गया है।
5. वर्ग (class) :
कूल समान गुणों वाले गणों को एक वर्ग में रखा जाता है जैसे
: प्राइमेट गण (बंदर, गोरिला , चिपेन्जी
मानव ) ओर कारनीवोर गण (शेर , बाघ , चीता , बिल्ली , कुत्ता ) को वर्ग मैमेलिया में रखा गया है।
6. संघ (phylum) :
कुछ विशिष्ट गुणों वाले वर्गों को एक संघ में रखा जाता है जैसे
नोटोकोर्ड , तंत्रिका
रज्जू व क्लोम दरारे उपस्थित हो तो कई वर्गों को संघ कोड्रेटा में रखा गया है।
7. जगत (kingdom) :
यह वर्गीकरण का उच्चतम संवर्ग है ,
आधुनिक वर्गीकरण के अनुसार सभी जीवों को पाँच जगतो में रखा गया
है।
मानव :
जगत – एनिमीलिया (जन्तु जगत )
संघ – कोडेटा लृष्टवंशी कशेस्की
वर्ग – मैमेलिया (स्तनधारी)
गण –
(प्राइमेट)
कूल –
होमोनीडी
वंश – होमो
जाति – सेपियंश