By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
नाभिकीय संलयन
जब दो हल्के नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी तत्व के नाभिक
की रचना करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। नाभिकीय संलयन के फलस्वरूप
जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों
के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो
जाती है। जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन के समीकरण E = mc2 से ज्ञात करते हैं। तारों के अन्दर यह क्रिया निरन्तर जारी
है। सबसे सरल संयोजन की प्रक्रिया है चार हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोजन द्वारा एक हिलियम
परमाणु का निर्माण।
41H1
→
2He4 + 2 पोजिट्रान + ऊर्जा[2]
1H2
+ 1H2 →
2He4 + 23.6 MeV
1H3
+ 1H2 →
2He4 + 0n1 + 17.6 MeV[3]
1H1
+1H1 +1H1 +1H1 = 2He4 + 21β0 + 2V + 26.7 MeV[4]
इसी नाभिकीय संलयन के सिद्धान्त पर हाइड्रोजन बम का निर्माण
किया जाता है। नाभिकीय संलयन उच्च ताप (१०७ से १०८० सेंटीग्रेड) एवं उच्च दाब पर सम्पन्न
होता है जिसकी प्राप्ति केवल नाभिकीय विखण्डन से ही संभव है।
नाभिकीय विखण्डन :
यह वह प्रक्रिया जिसमे एक भारी नाभिक
दो लगभग बराबर नाभिकों में टूट जाता हैं विखण्डन (fission) कहलाती हैं । इसी अभिक्रिया के आधार पर बहुत से परमाणु रिएक्टर
या परमाणु भट्ठियाँ बनायी गयीं हैं जो विद्युत उर्जा का उत्पादन करतीं हैं।