By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
जीवन की विभिन्न अवस्थाओं की अवधि में में आहार का महत्व
बुढ़ापा में- शारीरिक रूप से सक्रिय तथा स्वस्थ बने रहने के लिए - पोषक तत्वों से भरपूर,
कम चिकनाई युक्त भोजन।
गर्भावस्था में- स्वास्थ्य, उत्पादकता
बनाये रखने तथा आहार संबंधी रोगों की रोकथाम करने तथा गर्भवती महिलाओं को बल प्रदान
करने के लिये शिशु का जनन/पालन करने के लिए अतिरिक्त आहार के साथ-साथ पोषण की दृष्टि
से पर्याप्त मात्रा में आहार।
किशोरावस्था में - तीव्रगति से शारीरिक विकास करने,
परिपक्व होने तथा अस्थिकों का विकास करने के लिये - शरीर का
सुगठन तथा संरक्षण करने वाले आहार।
बाल्यकाल में - शारीरिक वृद्धि, विकास तथा संक्रमण का मुकाबला करने के लिये - शक्ति,
शारीरिक गठन तथा संरक्षण प्रदान करने वाले आहार।
शिशु अवस्था में- शारीरिक विकास करने तथा निरंतर प्रगति करने के लिये - माँ का
दूध,
शक्ति से भरपूर आहार।
आहार संबंधी निर्देश
· पोषण की दृष्टि से विभिन्नप्रकार के खाद्य-पदार्थों में से बुद्धिमता
पूर्ण चयन करके पर्याप्त आहार खाना चाहिए।
· गर्भवती तथा पयस्विनी माताओं को अतिरिक्त भोजन तथा विशेष देखभाल
करने की आवश्यकता होती है।
· शिशु को प्रथम 4-6 महीनों में केवल स्तन्य आहार ही करवाना चाहिये। बच्चे को दो
वर्ष की आयु तक स्तन्य आहार जारी रखा जा सकता है।
· 4-6 माह की आयु होते-होते शिशुओं को संपूरक खाद्य पदार्थ खिलाना
प्रारंभ करना चाहिये।
· स्वस्थ और अस्वस्थ, दोनों ही स्थितियों में बालकों और किशोरों को पर्याप्त मात्रा
में समुचित भोजन करना चाहिये।
· हरी, पत्तीदार शाक-सब्जियों तथा अन्य फल और तरकारियों को भरपूर मात्रा में उपयोग करना
चाहिये।
· पाक-तैलों तथा सामिष खाद्य पदार्थों को नियंत्रित (और संयमित)
मात्रा में तथा वनस्पति / घी / मक्खन को केवल अल्प मात्रा मे उपयोग करना चाहिये।
· शारीरिक अति-भार तथा मोटापे को रोकने के लिये अतिभोजन करने से
बचना चाहिये। वाँछनीय शारीरिक भार बनाये रखने के लिये शरीर को सही ढ़ंग से सक्रिय रखना
अनिवार्य है।
· नमक का उपयोग संयम के साथ करना चाहिये।
· खाये गये सभी खाद्य पदार्थ पूर्णतः स्वच्छ तथा निरापद होने चाहिये।
· स्वास्थ्यकर तथा सुस्पष्ट आहारी संकल्पनाएँ तथा पाक-क्रियाएँ
अपनायी जानी चाहिये।
· पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिये तथा मादक पेय केवल संयमित
मात्रा में ही सेवन करें।
· संसाधित तथा बने-बनाये खाद्य पदार्थ विवेक-सम्मत ढ़ंग से उपयोग
किये जाने चाहिये। शक्कर का उपयोग केवल अल्प मात्रा में ही किया जाना चाहिये।
· सदैव चुस्त-दुरुस्त तथा सक्रिय बने रहने के लिये वयोवृद्धजन
को प्रचुर पोषक तत्वों वाला आहार करना चाहिये।