By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
पाचन (Digestion in hindi) : पाचन वह क्रिया है जिसमें भोजन के बड़े एवं जटिल अणुओं को सरल
व घुलनशील अणुओं में तोड़ा जाता है जो आंत्र उपकला द्वारा आसानी से अवशोषित हो सके |
पाचन मुख्यतः दो प्रकार का होता है –
· बाह्य कोशिकीय पाचन
· अन्त: कोशिकीय पाचन
बाह्य कोशिकीय पाचन :
जब भोजन का पाचन कोशिका के बाहर आहारनाल में होता है तो इसे
बाह्यकोशिकीय पाचन कहते है | इसमें आहारनाल पूर्ण या अपूर्ण हो सकती है |
उदाहरण – मनुष्य , मछली , मेंढक आदि |
अन्त: कोशिकीय पाचन :
जब भोजन का पाचन कोशिका के अन्दर होता है तो इसे अन्त: कोशिकीय
पाचन कहते है |
उदाहरण – अमीबा , पैरामिशियम आदि |
मनुष्य का पाचन तंत्र
मनुष्य का पाचन तंत्र दो प्रमुख घटकों से बना होता है –
1. आहारनाल
2. पाचक ग्रंथियाँ
आहारनाल : यह
मुख से गुदा तक फैली लम्बी एवं कुंडलित लगभग 4.5m की होती है |
मुख (mouth) :
उपरी व नीचले होंठो से घिरा अर्द्धचन्द्राकार छिद्र मुख कहलाता
है |
मुख आगे की ओर मुख गुहिका में खुलता है |
मुखगुहिका का ऊपरी भाग तालु कहलाता है ,
तालु के अधर तल पर एक पेशीय जिह्वा (पेशीय जीभ) पायी जाती है
|
जिस पर स्वाद कलिकाएँ होती है ,
स्वाद कलिकाओं द्वारा भोजन के स्वाद का ज्ञान होता है |
मुख द्वार पर दो जबड़े होते है ,
ऊपरी जबड़ा अचल व निचला जबड़ा चल होता है |
दोनों जबड़ो में दांत पाए जाते है ,
मनुष्य में दांत गर्तदन्ती , विषमदन्ती व द्विबार दन्ती होते है |
व्यस्क मनुष्य में 32 दांत होते है , दांत चार प्रकार के होते है
1. कृन्तक (I) = (इनसाइजक)
2. रदनक (C) – canine = (क्रनाइन)
3. अग्र चवर्णक (Pm) = (प्री मोलर)
4. चवर्णक (m) = (मोलर)
प्रत्येक दांत के तीन भाग होते है –
· अस्थि के गर्त में – मूल
· मसूड़ों से घिरा मध्य भाग – ग्रीवा
· ऊपरी भाग – शिखर
मूल गर्त में सीमेंट द्वारा स्थिर रहता है ,
शिखर इनेमल द्वारा ढका रहता है जो शरीर का सबसे कठोर भाग होता
है |
दन्त कोशिकाएँ डेंटिन का स्राव करती है |
ग्रसनी (oesphogas) :
मुखगुहा के आगे का भाग ग्रसनी कहलाता है ,
यह मुख व ग्रसिका के मध्य स्थित होती है |
इसके पश्च भाग में दो छिद्र घाटी द्वार व निगल द्वार होते है
|
ग्रसिका (phyrinx) :
यह लगभग 25cm लम्बी होती है , इसकी भित्ति में निम्न स्तर पाए जाते है –
· बाह्य पेशीय स्तर
· श्लेष्मा स्तर
· अद्धश्लेष्मा स्तर
· सिरोसा
ग्रसिका भोजन को क्रमाकुंचन गति द्वारा ग्रसनी से आमाशय में
पहुँचती है , श्वासनली
में भोजन के प्रवेश को छांटी द्वार पर ढक्कन लगाकर रोका जाता है |
आमाशय (stomach) :
ग्रसिका के आगे पेशीय थैले के समान संरचना आमाशय कहलाता है |
आमाशय के तीन भाग होते है –
· उपरी भाग – फर्डीयक
· निचला भाग – पाइलोरिक
आमाशय में दो जठर ग्रंथियां पायी जाती है |
जठर ग्रन्थि : यह जठर रस का स्राव करती है
जठर निर्गम : यह श्लेष्मा का स्राव करती है | आमाशय की भित्ति श्लेष्मा उपकला की बनी होती है |
जो स्वपाचन से बचाती है , आमाशय के सिरों पर स्थित अवरोधनियां भोजन निकास का नियंत्रण
करती है |
जठर ग्रंथियों में दो प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती है |
1. जाइनोजन कोशिकाएँ : ये पेप्सिनोजन का स्त्राव करती है |
2. अम्लजन कोशिकाएँ : ये HCl (हाइड्रो क्लोरिक अम्ल) का स्त्राव करती है |
HCl भोजन के साथ प्रवेश करने वाले जीवाणुओं
व अन्य रोगाणुओं को नष्ट करता है तथा भोजन को अम्लीय माध्यम प्रदान करता है |
छोटी आंत्र (small intestine) : आमाशय के एक पाइलोरिक भाग से जुडी नलिका छोटी आंत्र कहलाती है
|
इसके तीन भाग होते है –
1. प्रथम खण्ड U आकार का होता है , इसकी लम्बाई लगभग 25cm होती है , इस भाग को ग्रहणी कहते है |
2. द्वितीय खण्ड लगभग 1m लम्बा तथा कुंडलित होता है जिसे सेजुनम कहते है |
3. अन्तिम खण्ड 1.7m लम्बा कुंडलित भाग होता है इसे इलियम कहते है |
छोटी आंत्र की भित्ति में चार उत्तकीय स्तर होते है जिसमे अँगुली
के समान रसांकुर पाये जाते है , रसाकुरो से पाचन एवं अवशोषण कारी सतह बढ़ जाती है |
ग्रहणी की अधर श्लेष्मिका में कुंडलित ग्रंथियाँ पायी जाती है
,
जिन्हें ब्रुनर ग्रंथियाँ कहते है |
रसांकुरो में कलश कोशिकाएँ व पैनेट कोशिकाएँ पायी जाती है |
बड़ी आंत्र (large intestine) :
आहारनाल का अन्तिम भाग बड़ी आंत्र कहलाता है |
छोटी आंत्र व बड़ी आंत्र के संधि स्थल पर एक छोटा बंध कोश होता
है जिसे कोलन कहते है | मनुष्य में यह अवशेषी अंग होता है | कोलन के सिरे पर अंगुली के समान प्रवर्ध पाया जाता है जिसे क्रामिरुपी
परिशेषिका कहते है | बड़ी आंत्र का अन्तिम भाग मलाशय कहलाता है |
गुदा (anus) :
मलाशय गुदा में खुलता है , गुदा के चारो ओर दो प्रकार की अवरोधनियाँ पायी जाती है |
बाह्य अवरोधनियाँ चिकनी पेशी से निर्मित होती है जबकि आन्तरिक
अवरोधनियाँ रेखित पेशी से निर्मित होती है | आहारनाल की दिवार में ग्रसिका से मलाशय तक चार स्तर होते है
–
1. सिरोसा
2. मस्कुलेरिस
3. सबम्यूकोशा
4. म्युकोशा
पाचक ग्रंथियाँ (digestive
glands)
लार ग्रंथियाँ (salivary glands) :
मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रंथियां पायी जाती है –
1. पेरोटीड
2. सबमैक्सीलरी
3. सबलिग्बल
इन लार ग्रंथियों के द्वारा स्त्रवित लार क्षारीय प्रकृति की
होती है ,
लार में जल (H2O) , श्लेष्मा , सोडियम , क्लोरिन , फास्फेट , टायलीन , CO32- , लाइसोजाइम आदि पाये जाते है |
लार भोजन को लसलसा बनाने में सहायक है ,
लार में उपस्थित लाइसोजाइम भोजन में पाये जाने वाले जीवाणुओं
को नष्ट करता है , टायलीन कार्बोहाइड्रेट के पाचन में सहायक है |
अग्नाशय (pancreas) : यह आमाशय के समीप पत्ती के समान आकृति की ग्रन्थि है |
यह अनेक पिण्डको द्वारा निर्मित होती है ,
यह एंजाइम युक्त अग्नाशयी रस स्त्रवित करती है |
अग्नाशयी रस में एन्जाइम , जल , व बाइकार्बोनेट पाया जाता है | जो कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन के पाचन में सहायक अग्नाशय का अन्त: स्त्रावी भाग लैंगर
हैन्स के द्वीप कहलाते है जिनमे एल्फा , बीटा , गामा कोशिकाएँ होती है जो हार्मोन स्त्रावित करती है |
यकृत (liver) :
यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि होती है ,
जिसका भार 1.2-1.5 Kg होता है | यकृत दाई व बायीं दो पालियों के रूप में होता है |
दाई पाली बड़ी व बायीं पाली छोटी होती है |
दायीं पाली के नीचे पित्ताशय स्थित होता है ,
इसमें पित्त का संचय होता है |
पित्तवाहिनी पित्त को ग्रहणी में ले जाती है ,
यकृत पालियो का निर्माण यकृत कोशिकाओं द्वारा होता है जो पित्त
रस स्त्रावित करती है |
यकृत के कार्य
पित्त का निर्माण : यकृत पित्त का निर्माण करता है जो हल्का क्षारीय तरल होता है
,
पित्त में जल , पित्त लवण , पित्त वर्णक , वसीय अम्ल , सोडियम , फास्फोरस , क्लोरिन आदि होते है | इसमें कोई एंजाइम नहीं होता है ,
यह वसा के पायसीकरण एवम अवशोषण में सहायक है |
उपापचय में महत्व : कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन व वसा के उपापचय में सहायक है |
यकृत ग्लाइकोजन का संग्रह करता है |
यकृत में ग्लूकोजेनसिस एवं ग्लुकोनियोजिनेसिस की क्रिया होती
है |
यकृत में प्रोटीन व यूरिया का संश्लेषण भी होता है |
संचय का कार्य : विटामिन , कॉपर
,
जिंक , कोबाल्ट , लोहा , फास्फेट आदि का संचय यकृत में होता है |
अन्य कार्य : यकृत की कोशिकाओं द्वारा भ्रूणीय अवस्था में RBC का निर्माण करती है तथा हीमोग्लोबिन का निर्माण भी किया जाता
है |