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रूमेटिक ज्वर, कुटिल शिरायें, श्वासनली विस्फार, वातस्फीति, को परिभाषित कीजिए ?


By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'


रूमेटिक ज्वर, कुटिल शिरायें, श्वासनली विस्फार, वातस्फीति, को परिभाषित कीजिए |
रूमेटिक ज्वर
सूजन सहित शरीर के जोडों मे दर्द ,भुख कम लगना, आलस्य, शरीर मे भारीपन,मंद ज्वर,कटि शूल, और भोजन का पूरी तरह से परिपाक न होना, मुख के स्वाद का बदल जाना,दिन मे नींद आना और रात मे नींद का न आना, अधिक पुराना होने पर शरीर के जोडो मे विकृति आकर अंग मुड जाते है।
आहार - विहार व्यवस्था- जल्दी पचने वाला, लघु, उष्ण, और कम मात्रा मे आहार ग्रहण करे, लस्सी, चावल, ठन्डा पानी, कोल्ड ड्रिन्क्स, भारी खाना, तला हुआ भोजन, आदि से परहेज रखें। परवल और करेले या अन्य कटु साग सब्जियों का प्रयोग ज्यादा करें , हमेशा उष्ण जल का प्रयोग करें।
अपथ्य- वेगावरोध,चिन्ता करना, शोक करना, दूध गुड, दुध मांस, दुध मछली, का सेवन, रात मे जागना, भारी खाना, अत्यधिक चिकने पदार्थों का सेवन।

कुटिल शिराएँ :
गर्भावस्था के दौरान या मोटापे की वजह से लोगों, विशेषकर महिलाओं के पैरों की रक्त धमनियां मोटी-मोटी हो जाती हैं और उनमें सूजन भी आ जाती है। इस समस्या को वेरीकोज वेन या कुटिल शिराएँ के नाम से जाना जाता है। इसी कारण पीड़ितों का चलना-फिरना और खड़ा होना दूभर हो जाता है। जिससे उनके नियमित कार्य दुष्प्रभावित होने लगते हैं।यह इसलिए होता है क्यों कि हमारी रक्त धमनियों में वाल्व मौजूद होते हैं जो कि रक्त को विपरीत दिशा में प्रवाहित होने से रोकते हैं। पैरों की मांस-पेशियां गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को कम करने के लिए धमनियों को पंप करते हैं ताकि पैरों से रक्त ह्रदय तक पहुंचता रहे और विपरीत दिशा में न प्रवाहित हो। लेकिन, जब ये धमनियां वेरीकोज हो जाती हैं तो वाल्व सही ढ़ंग से कार्य नहीं कर पाते और रक्त का प्रवाह विपरीत दिशा में अधिक होने लगता है। परिणामस्वरूप ये धमनियां फैलने लगती हैं और देखने में पैरों की धमनियां अजीब सी सूजी और फूली हुई प्रतीत होती हैं।
लक्षण :
पैरों का भारी होना, खुजली, एड़ी में सूजन, प्रभावित रक्तवाहिनियों का रंग बदलना। वे नीले रंग में दिखने लगती हैं। पैरों का लाल होना, रूखापन आदि, कभी-कभी उस भाग से रक्तस्राव होना। पैरों में अजीब से निशान पड़ जाना। यह पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक पाया जाता है और इसके कई कारण हैं जैसे:-मोटापा, मेनोपौज, आनुवांशिक, बढ़ती उम्र, गर्भावस्था आदि।

श्वासनली विस्फार :
श्वासनलिका का विस्फार एक रोग की अवस्था है जिसे ब्रोन्कियल पेड़ के एक भाग के स्थानीयकृत, अपरिवर्तनीय फैलाव के रूप में परिभाषित किया गया है | यह वातस्फीति, ब्रोंकाइटिस और सिस्टिक फाइब्रोसिस सहित रोग प्रतिरोधी फेफड़े के रूप में वर्गीकृत किया जाता है | वायुप्रवाह रूकावट और क्षीण स्राव निकासी के परिणामस्वरूप शामिल ब्रांकाई फैला, सूजा हुआ और आसानी से सिमटने वाला हो जाता है | ब्रोन्किइक्टेसिस कई प्रकार के विकारों के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन यह आमतौर पर स्टैफीलोकोकस या क्लेबसिएला जीवाणु अथवा बोर्डेटेला काली खांसी जैसे नेक्रोटाइज़िंग जीवाणु संक्रमण की वजह से होता है |


वातस्फीति :
वातस्फीति (एम्फाइज़िमा) एक दीर्घकालिक उत्तरोत्तर बढ़ने वाली फेफड़े की बीमारी है, जिसके कारण प्रारंभ में सांस लेने में तकलीफ होती है | वातस्फीति से ग्रस्त लोगों में शरीर को सहारा देने वाले ऊतक और फेफड़े के कार्य करने की क्षमता नष्ट हो जाती है | इसे रोगों को एक ऐसे समूह में शामिल किया गया है जिसे बहुत दिनों तक रहने वाली प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग या COPD कहते हैं (फुफ्फुसीय फेफड़ों से संबंधित है) | वातस्फीति फेफड़ों की एक प्रतिरोधी बीमारी को कहा जाता है क्योंकि कृपिका नामक छोटे वायुमार्गों के आसपास के फेफड़े के ऊतक का विनाश इन वायु मार्गों को सांस छोड़ते समय अपने कार्यात्मक आकार को बनाए रखने में अक्षम बना देता है |