By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
प्राथमिक सहायता
किसी रोग के होने या चोट लगने पर किसी अप्रशिक्षित व्यक्ति
द्वारा जो सीमित उपचार किया जाता है उसे प्राथमिक चिकित्सा या सहायता (First
Aid) कहते हैं। इसका उद्देश्य कम से
कम साधनों में इतनी व्यवस्था करना होता है कि चोटग्रस्त व्यक्ति को सम्यक इलाज
कराने की स्थिति में लाने में लगने वाले समय में कम से कम नुकसान हो।
आकस्मिक स्थिति में प्राथमिक सहायक की भूमिका
1. रोगी में श्वास, नाड़ी इत्यादि जीवनचिन्ह न मिलने पर उसे तब तक मृत न समझें जब तक डाक्टर आकर
न कह दे।
2. रोगी को तत्काल चोट के कारण से दूर करना चाहिए।
3. जिस स्थान से अत्यधिक रक्तस्त्राव होता हो उसका पहले उपचार करें।
4. श्वासमार्ग की सभी बाधाएँ दूर करके शुद्ध वायुसंचार की व्यवस्था करें।
5. हर घटना के बाद रोगी का स्तब्धता दूर करने के लिए उसको गर्मी पहुँचाएँ। इसके
लिए कंबल,
कोट, तथा गरम पानी की बोतल का प्रयोग
करें।
6. घायल को जिस स्थिति में आराम मिले उसी में रखें।
7. यदि हड्डी टूटी हो तो उस स्थान को अधिक न हिलाएँ तथा उसी तरह उसे ठीक करने की
कोशिश करें।
8. यदि किसी ने विष खाया हो तो उसके प्रतिविष द्वारा विष का नाश करने की व्यवस्था
करें।
9. जहाँ तक हो सके, घायल के शरीर पर कसे कपड़े केवल ढीले कर दें, उतारने की कोशिश न करें।
10. जब रोगी कुछ खाने योग्य हो तब उसे चाय, काफी, दूध इत्यादि उत्तेजक पदार्थ पिलाएँ। होश में लाने के लिए स्मेलिंग साल्ट (smelling
salt) सुघाएँ।
11. प्राथमिक उपचारक को डाक्टर के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए,
बल्कि उसके सहायक के रूप
में कार्य करना चाहिए।