VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

निम्नलिखित में से किन्ही 4 पर टिप्पणी लिखिए ?


By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'


निम्नलिखित में से किन्ही 4 पर टिप्पणी लिखिए |

1.ऊतकीय मृत्यु, 2. पेप्टिक अल्सर, 3.पीलिया, 4.डूबना, 5.घातक ट्यूमर, 6.आन्तीय स्वस्थ्यवृत्त, 7. रोग विज्ञान, 8.फास्टफूड |

1.ऊतकीय मृत्यु
शरीर के किसी भाग में कोशिकाओं अथवा ऊतकों की मृत्यु होने को परिगलन या नेक्रोसिस (necrosis) कहते हैं।
कारण
नेक्रोसिस या ऊतकीय मृत्यु के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
रक्तप्रवाह का अवरोध :  इससे अंग को भोजन नहीं प्राप्त होता, जिससे ऊतकीय मृत्यु हो जाती है।
कीटाणुविष :  ये विष रक्त द्वारा धमनियों में पहुँच कर अपने कुप्रभाव से क्षति पहुँचाते हैं, जिससे ऊतकीय मृत्यु हो जाती है।
भौतिक या रासायनिक कारण :  भौतिक कारणों में 45 डिग्री सें. से ऊपर का ताप या भीषण शीत, हो सकता है। रासायनिक कारणों में कोशिकाओं या ऊतकों पर तीव्र अम्लों, तीव्र क्षारों, विद्युत्‌ या एक्स किरण की क्रियाएँ हो सकती हैं।
ऊतकीय मृत्यु में कोशिकाओं के केंद्रक या कोशिका द्रव्य में परिवर्तन होते हैं। या तो केंद्रक घुल जाता है, या विभाजित हो जाता है, या उसका संकुचन हो जाता है।
ऊतकीय मृत्यु (नेक्रोसिस) तीन प्रकार की होती है : घनीकरण, द्रवीकरण और कैजियस। घनीकरण में कोशिकाएँ सूख जाती और अपारदर्शक हो जाती हैं। ऐसा वृक्क और प्लीहा में अधिकांशत देखा जाता है। द्रवीकरण नेक्रोसिस में कोशिकाएँ कोमल और दुर्बल हो जाती हैं और कैज़ियस नेक्रोसिस में कोशिकाओं का बृहत्‌ चित्र नष्ट हो जाता है ओर स्थान स्थान पर चिपचिपे एवं रवेदार पदार्थ उत्पन्न हो जाते हैं। क्षय या उपदंश में ऐसा देखा जाता है।

2.पेप्टिक अल्सर
अल्सर पाचन तंत्र के अस्तर पर घावों को कहा जाता है। ये अम्ल (एसिड) की अधिकता के कारण आमाशय या आंत में वाले घाव के कारण होते हैं। अल्सर अधिकतर ड्यूडेनम (आंत का पहला भाग) में होता है। दूसरा सबसे आम भाग पेट है (आमाशय अल्सर)। पैप्टिक अल्सर के कई कारण हो सकते हैं:
 जीवाणु का एक प्रकार हेलिकोबैक्‍टर पाइलोरी कई अल्सरों का कारण है। अम्‍ल तथा पेट द्वारा बनाये गये अन्य रस पाचन पथ के अस्तर को जलाकर अल्सर होने में योगदान कर सकते हैं। यह तब होता है जब शरीर बहुत ज्यादा अम्ल बनाता है या पाचन पथ का अस्तर किसी वज़ह से क्षतिग्रस्त हो जाए व्यक्ति में शारीरिक या भावनात्मक तनाव पहले से ही उपस्थित अल्सर को बढ़ा सकते हैं अल्सर कुछ दवाओं के निरंतर प्रयोग, जैसे दर्द निवारक दवाओं के कारण भी हो सकता है।
3.पीलिया
रक्तरस में पित्तरंजक (Billrubin) नामक एक रंग होता है, जिसके आधिक्य से त्वचा और श्लेष्मिक कला में पीला रंग आ जाता है। इस दशा को कामला या पीलिया (Jaundice) कहते हैं।सामान्यत: रक्तरस में पित्तरंजक का स्तर 1.0 प्रतिशत या इससे कम होता है, किंतु जब इसकी मात्रा 2.5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब कामला के लक्षण प्रकट होते हैं। कामला स्वयं कोई रोगविशेष नहीं है, बल्कि कई रोगों में पाया जानेवाला एक लक्षण है। यह लक्षण नन्हें-नन्हें बच्चों से लेकर 80 साल तक के बूढ़ों में उत्पन्न हो सकता है। यदि पित्तरंजक की विभिन्न उपापचयिक प्रक्रियाओं में से किसी में भी कोई दोष उत्पन्न हो जाता है तो पित्तरंजक की अधिकता हो जाती है, जो कामला के कारण होती है।
4. डूबना
डूबना गलती से या फिर जानबूझ कर (हत्या या आत्महत्या) होने वाली एक आम दुर्घटना है। डूबने से पानी फेफड़ों में भर जाता है। ऐसे में फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं क्योंकि वहॉं हवा नहीं पहुँच पाती। बहुत अधिक मात्रा में पानी व्यक्ति के पेट में भी चला जाता है। पर आंतें इस अधिक पानी को कुछ हद तक सह लेती हैं। लेकिन फेंफडों में पानी का रहना जानलेवा होता है। सांस रुकने के ३ मिनट के अंदर अंदर ही मौत हो जाती है। फेफड़ों में से पानी संचरणतंत्र (खून की नलियॉं) में भी चला जाता है। दिल को भी पानी की अधिकता से निपटना पड़ता है और वो काम करना बंद कर देता है।
प्राथमिक सहायता
डूबते हुए व्यक्ति को बचाते समय पहले अपने आप को सुरक्षित रखे; डूबता व्यक्ती अपने हर और बेबसी में बचाने वाले को भी पानी में खीचकर डुबो देते है| चाहे वो कितने ही अच्छे से क्यो न तैरता हो| संभव हो तो रस्सी या मोटी डँडी या टायर जैसे चीज से व्यक्ति की मदद करे| डूबने वाले में तीन खतरे है|
1.     फेफडे में पानी जाने के कारण सांस न ले पाना और उससे मौत
2.     उल्टी होकर श्वासनली में फसना जिससे भी मौत हो सकती है
3.     शरीर का तापमान कम हो जाना
प्राथमिक उपचार  
इसमें अनेक चरण है|
व्यक्ती को पानी से निकालकर सुरक्षित जगह लाना|
क्या मरीज की सांस चल रही है? मरीज के मुँह और नाक के पास ध्यान से सुने, छाती उपर नीचे चल रही है की नहीं देखे|
अगर सांस नही चल रही है, 10 सेकेण्ड तक नाडी देखे| क्या नाडी चल रही है?
अगर नहीं तो कृतिम सांस और कृतिम ह्रदयक्रिया आरंभ करे|
मरीजको सूखे कपडे और कम्बल में लपेटकर गरम रखे|
मरीज को अस्पताल ले जाएँ|
मरीज के पेट या फेफडे से पानी निकालने की कोशिश में समय व्यर्थ न करे| अगर मरीज उल्टी करता है तो उसे एक ओर पलट कर इस तरह से सुलाए कि उल्टी मुँह से बाहर आए न की गले में अटक जाए|
सांस लेना
अगर आपके पास एक वायुपथ (एयर वे) और मुखौटा है तो मुँह से सांस दिलाने में आसानी होती है। अगर ये उपलब्ध न हों तो सीधा तरीका इस्तेमाल करें। ऐसा करते समय पीडित व्यक्ती की छाती के हिलने पर ध्यान दें। इससे आपको छाती के फूलने का पता चल पाएगा।
कृत्रिम हृदयक्रिया
हृदय के लिये कृत्रिम मसाज
जब तक गर्दन या छाती में धड़कन न महसूस होने लगे दिल की मालिश करते रहें। दिल की मालिश के लिए ठीक जगह ढूंढ लें। दिल छातीमें थोड़ी सी बायीं ओर होता है। बेहतर दबाव के लिए दोनों हाथों का इस्तेमाल करें (हाथ के ऊपर हाथ रखें और दबाएँ)। एक मिनट में कम से कम ४० से ६० बार दिल की मालिश करें। कई बार ज़ोर ज़ोर से दिल की मालिश करने से खासकर बच्चों में एकाध पसली टूट सकती है। परन्तु ज़िदगी बचाने के लिये यह छोटी सी कीमत है। दिल पर हाथ रख कर दिल की धड़कन महसूस करें या गर्दन मे नब्ज-नाडी महसूस करें।
5.घातक ट्यूमर
अनेक संबंधित बीमारियों का संग्रह ही कैंसर के नाम से जाना जाता है। सभी प्रकार के कैंसर में, शरीर की कुछ कोशिकाऐ बिना किसी रोक के विभाजित होती जाती है और आसपास के ऊतकों में फैलती है।
कैंसर मानव शरीर में लगभग कहीं भी शुरू हो सकता है, जो कि खरबों कोशिकाओं से बना है। आम तौर पर, मानव कोशिकाएं बढ़ती जाती हैं और शरीर को नई कोशिकाओं के रूप में बांटते हैं क्योंकि शरीर की उन्हें जरूरत होती है। जब सेल पुराने हो जाते हैं या क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, तो वे मर जाते हैं, और नई कोशिकाएं उनकी जगह लेती हैं।
हालांकि कैंसर में यह व्यवस्थित प्रक्रिया टूट जाती है ,कोशिकाएं जिन्हे ख़त्म हो जाना चाहिए वे असामान्य, पुरानी या क्षतिग्रस्त कोशिकाएं जीवित भी रहती हैं और अनावश्यक कोशिकाएं बनती जाती हैं। इन अतिरिक्त कोशिकाओं को ट्यूमर कहा जाता है।
कई कैंसर ठोस ट्यूमर का निर्माण करते हैं। रक्त कैंसर, जैसे कि ल्यूकेमिया, आम तौर पर ठोस ट्यूमर नहीं बनाते हैं कैंसर ट्यूमर घातक (मेलिगनेन्ट)होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे पास के ऊतकों में फैल सकते है या उनपर आक्रमण कर सकते हैं। इसके अलावा, ये ट्यूमर बढ़ने के साथ-साथ, कुछ कैंसर की कोशिकाओं को रक्त से या लसीका तंत्र के माध्यम से शरीर में दूर के स्थानों की यात्रा कर सकते हैं और मूल ट्यूमर से नए ट्यूमर बना सकते हैं।
घातक (मेलिगनेन्ट) ट्यूमर के विपरीत, सौम्य (बेनाइन) ट्यूमर, आस-पास के ऊतकों में फैल या आक्रमण नहीं करते हैं। सौम्य (बेनाइन) ट्यूमर कभी-कभी काफी बड़ा हो सकता है, हालांकि जब हटाया जाता है, वे आमतौर पर वापस नहीं बढ़ते, जबकि घातक (मेलिगनेन्ट) ट्यूमर शरीर में कहीं बढ़ सकते है और प्राणघातक होते है ।
6. आंतीय स्वस्थवृत्त (COLON HYGIENE)
आंत की संरचना
हमारे शरीर में दो आंत होते हैं। ऐसा भी बोल सकते हैं कि आंत को दो भागों में विभाजित किया जाता है। जो छोटी आंत होती है वह भूरे बैंगनी रंग की होती है और इस आंत का व्यास लगभग 35 मिलीमीटर तक का होता है और इसकी औसत लंबाई 6 से 7 मीटर तक की होती है। बड़ी आंत का रंग लाल होता है और यह छोटी आंत की अपेक्षा मोटी होती है, जिसकी लंबाई लगभग 1.5 मीटर तक होता है। आकार और उम्र के अनुसार मानव में अलग-अलग आकार की आंतें होती है। इस पूरे अंग का लक्ष्य होता है खाने को पचाना जो कि छोटी आंतों से ही शुरू हो जाता है। पाचन का अधिकतर काम छोटी आँतों में ही होता है। इस प्रक्रिया में भोजन में मौजूद पोषक तत्व आँतों की झिल्ली में मौजूद एपिथेलियल सेल्स (epithelial cells) के द्वारा सोख लिए जाते हैं और खून की धारा में बहा दिए जाते हैं जिससे ये शरीर के अन्य भागों तक पहुंच पाएं। यह प्रक्रिया बड़ी आंतों पर जाकर खत्म होती है जो खनिज (minerals) और पानी को सोखने के बाद भोजन के बचे-खुचे बेकार अंश यानी वेस्ट्स को मल (faecal matter) बना देती है। इसे शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।



आंतों की समस्या के लक्षण  :
मीठा खाने की ललक (Sugar cravings)
आँतों में रहने वाले बैक्टीरिया अक्सर असंतुलित हो सकते हैं। इससे ऐसी समस्याएं होती हैं जिनमें मिठाइयाँ या मीठी चीज़ों को खाने की खूब चाहत होती है।
मनोवैज्ञानिक समस्याएं
कई लोग सोचते हैं, आंतें दिमाग से बहुत दूर होती हैं। इनका शायद ही कोई आपसी रिश्ता हो। जबकि इनका रिश्ता कहीं ज़्यादा नज़दीक का है। इसलिए मनोवैज्ञानिक समस्याएं, जैसे कि डिप्रेशन, तनाव, एंग्जायटी भी आँतों से जुड़ी समस्या या उनका लक्षण हो सकती हैं।
हद से ज़्यादा ग्लूकोज़ (Excessive glucose)
आँतों का सबसे ख़ास काम है खाने को पचाना, उन्हें प्रोसेस करना। जाहिर है कि खाने में शुगर मौजूद होता है। अगर इस काम में ज़रा भी गड़बड़ी हो, तो पाचन प्रक्रिया नियंत्रण से बाहर हो सकती है। खून में ज़रूरत से ज़्यादा ग्लूकोज़ एक ऐसी समस्या है जिसे आंतों की समस्या के साथ जोड़कर देखा जाता है; इसे हाई ब्लड शुगर यानी उच्च रक्तशर्करा भी कहाँ जाता है, जो कि डायबिटीज जैसी बीमारी का कारण बनती है।
इसके अलावा, मेटाबोलिक प्रक्रिया में बाधा पड़ सकती है और ऊर्जा परिवर्तन की साइकल नाकाम हो सकती है।
आंतों की समस्या :
त्वचा रोग
ऐसे कई कारण हैं जिनसे आपको त्वचा से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं; यूवी किरणें, केमिकल प्रोडक्ट,गर्मी, ठण्ड, हार्मोनल असन्तुलन और कई अन्य।जब त्वचा पर कील-मुँहासों (acne) या एक्जिमा (eczema) के लक्षण दिखें तो यह आंतों की समस्या का एक लक्षण हो सकता है। एक्ने त्वचा पर रहने वाले बैक्टीरिया में आए बदलाव की वजह से होता है; इसकी वजह से त्वचा पर सूजन आ जाती है और त्वचा लाल हो जाती है।
पाचन में अस्थिरता
पाचन में होने वाली समस्याएं, हो सकता है कि वे पहली लक्षण हों जो बताएं कि आपकी आँतों के साथ कुछ ठीक नहीं है। बहरहाल यह डाइजेस्टिव सिस्टम यानी पाचन प्रणाली के किसी भी हिस्से में आयी समस्या के कारण हो सकता है।


हैलिटोसिस
आँतों में मौजूद बैक्टीरिया में कोई असंतुलन पेट यानी आमाशय के कार्य में बदलाव ला सकता है। यह पाचन से जुड़ी समस्या से जुड़ा होता है, गैस में बढ़ोतरी होने लगती है, जो पेट में जमा होकर गैस्ट्राइटिस और दुर्गन्ध पैदा करती है। इससे मुंह या सांसों में बदबू आने लगती है।
आंत को स्वस्थ रखने के नियम
 1.गतिविधियां
निष्क्रिय जीवन शैली का पाचन तंत्र पर बुरा असर पड़ता है। लेकिन नियमित रूप से योग व एक्‍सरसाइज करने से पाचनतंत्र की समस्या आपसे कोसों दूर रहती है। कुछ समय के लिए शाम और सुबह टहलना बेहद फायदेमंद होता है। आंतों को दुरुस्‍त रखने के लिए कम से कम 20 मिनट हर दिन एक्‍सरसाइज करें।
2. फाइबर
वसायुक्त और संसाधित खाद्य पदार्थो से दूर रहें, ये कब्ज और अन्य पाचन समस्याओं को जन्‍म देती हैं। इसलिए इसे कम और फाइबर युक्त संतुलित खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल करें। सब्जियां, फल, अनाज और नट्स में मौजूद फाइबर आपकी आंतों को ठीक प्रकार से कार्य करने में मदद करता हैं |
3. पानी
अगर फाइबर की अधिक मात्रा में लेते हैं, और इसके साथ पर्याप्‍त पानी नहीं पीते हैं तो आंतों को नुकसान हो सकता है। इसलिए इन स्‍वस्‍थ अनाज और सब्जियों के साथ पानी की उचित मात्रा लेना कभी नहीं भूलना चाहिए।
4. डिटॉक्‍स
डिटॉक्सिफिकेशन शरीर को सेहतमंद और तरोताजा रखने की एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के जरिए शरीर के टॉक्सिंस को बाहर निकाला जाता है, ताकि आपको शरीर के तमाम विकारों से मुक्ति मिल सके। डिटॉक्‍स के लिए कैफीन युक्त ड्रिंक की बजाय बिना छना ताजे फलों का जूस लें। यह न सिर्फ बॉडी में विटामिन की कमी दूर करेगा, बल्कि फाइबर की जरूरत भी पूरी करेगा। इससे पेट साफ रखने में काफी मदद मिलती है।
5. प्रोबायोटिक्स
नवीनतम वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार, आंत्र रोग और अल्सरेटिव कोलाइटिस जैसी बीमारियों को दूर करने में प्रोबायोटिक्स बहुत मददगार होता है। हमारी आंत असंख्य बैक्टेरिया से भरी होती है। इनमें से कुछ हमारे शरीर के लिए रोग का कारण भी हो सकते हैं और जो अच्छे होते हैं, वे भोजन को पचाने का काम करते हैं तथा पाचन तंत्र को संतुलित रखने का काम करते हैं। प्रोबायोटिक भोज्य पदार्थों के सेवन से आंतों की कार्यप्रणाली को सशक्त बनाया जा सकता है, इन्फेक्शन से बचाव किया जा सकता है। प्रोबायोटिक मुख्यत: डेयरी प्रोडक्ट में ही होता है, जैसे दूध व दही।
6. आराम करें
शायद यह सबसे महत्‍वपूर्ण है। आपकी आंत सचमुच एक दूसरा मस्तिष्क होता है शरीर में मौजूद लगभग 95 प्रतिशत सेरोटोनिन आपके आंत्र पथ को अपनी एक अलग मस्तिष्क संबंधी प्रणाली में रखता है। इसलिए आंतों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए मस्तिष्‍क का स्‍वस्‍थ होना जरूरी है। शांत जगह पर सिर्फ 5 मिनट आंखें बंद करके सांस लेने पर आप अपनी आंतों में काफी सुधार कर सकते हैं।
7. नियमित रूप से खायेँ
हर समय खाते रहने की आदत आंतों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्‍छी नहीं होती है। क्‍योंकि आंतों को साफ, बैक्‍टीरिया और अपशिष्ट मुक्त करने के लिए, पाचन को आराम देने की जरूरत होती है। हर दो घंटे के बाद कुछ मिनट के लिए आपकी आंतें, मौजूद चिकनी मसल्‍स पाचन तंत्र के माध्‍यम से बैक्‍टीरिया और अपशिष्‍ट को बाहर निकालती है। लेकिन खाते समय यह प्रक्रिया रूक जाती है। इसलिए आंतों को स्‍वस्‍थ रखने के लिए दो भोजन के बीच थोड़ा सा अंतराल होना जरूरी होता है।

7.रोग विज्ञान (PATHOLOGY)
रोग विज्ञान मुख्य रूप से रोग, कारण, उत्पत्ति और प्रकृति के विषय में चिकित्सा विज्ञान की एक शाखा है। इसमें बीमारियों का अध्ययन और निदान करने के लिए ऊतकों, अंगों, शारीरिक द्रवों और शवों की परीक्षा शामिल है। रोग विज्ञान मुख्य रूप से बीमारी के कारण, उत्पत्ति और प्रकृति से संबंधित चिकित्सा विज्ञान की एक शाखा है। इसमें बीमारी का अध्ययन और निदान करने के लिए ऊतकों, अंगों, शारीरिक तरल पदार्थ और शव परीक्षा शामिल हैं। वर्तमान में, पैथोलॉजी को आठ मुख्य क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है, जो उपयोग किए गए तरीकों के प्रकार या जांच की गई बीमारियों के प्रकार पर निर्भर करता है। यह विभिन्न विषय हैं - सामान्य रोग विज्ञान, एनाटॉमिक पैथोलॉजी, क्लीनिकल पैथोलॉजी, रासायनिक पैथोलॉजी या जैव रसायन, जेनेटिक्स, रुधिर, प्रतिरक्षा विज्ञान (इम्मुनोलोजी), कीटाणु-विज्ञान,
8.फास्टफूड
फास्ट फूड आमतौर पर विश्व भर में चिप्स, कैंडी जैसे अल्पाहार को कहा जाता है। बर्गर, पिज्जा जैसे तले-भुने फास्ट फूड को भी जंक फूड की संज्ञा दी जाती है तो कुछ समुदाय जाइरो, तको, फिश और चिप्स जैसे शास्त्रीय भोजनों को जंक फूड मानते हैं। इस श्रेणी में क्या-क्या आता है, ये कई बार सामाजिक दर्जे पर भी निर्भर करता है। उच्चवर्ग के लिए फास्ट फूड की सूची काफी लंबी होती है तो मध्यम वर्ग कई खाद्य पदार्थो को इससे बाहर रखते हैं। कुछ हद तक यह सही भी है, खासकर शास्त्रीय भोजन के मामले में। फास्ट  फूड आने से पिछले दस सालों में मोटापे से ग्रस्त रोगियों की संख्या काफी बढ़ी है। इनमें केवल बच्चे ही नहीं बल्कि युवा वर्ग भी शामिल है। जंक फूड में अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट, वसा और शर्करा होती है। इसमें अधिकतर तलकर बनाए जाने वाले व्यंजनों में पिज्जा, बर्गर, फ्रैंकी, चिप्स, चॉकलेट, पेटीज मुख्य रुप से शामिल हैं।