VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

अम्लता (एसिडिटी) पर टिप्पणी लिखिए

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'


कारण
आधुनिक विज्ञान के अनुसार आमाशय में पाचन क्रिया के लिए हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा पेप्सिन का स्रवण होता है। सामान्य तौर पर यह अम्ल तथा पेप्सिन आमाशय में ही रहता है तथा भोजन नली के सम्पर्क में नहीं आता है। आमाशय तथा भोजन नली के जोड पर विशेष प्रकार की मांसपेशियां होती है जो अपनी संकुचनशीलता से आमाशय एवं आहार नली का रास्ता बंद रखती है तथा कुछ खाते-पीते ही खुलती है। जब इनमें कोई विकृति आ जाती है तो कई बार अपने आप खुल जाती है और एसिड तथा पेप्सिन भोजन नली में आ जाता है। जब ऐसा बार-बार होता है तो आहार नली में सूजन तथा घाव हो जाते हैं।
लक्षण
एसिडिटी का प्रमुख लक्षण है रोगी के सीने या छाती में जलन। अनेक बार एसिडिटी की वजह से सीने में दर्द भी रहता है, मुंह में खट्टा पानी आता है। जब यह तकलीफ बार-बार होती है तो गंभीर समस्या का रूप धारण कर लेती है। एसिडिटी के कारण कई बार रोगी ऐसा महसूस करता है जैसे भोजन उसके गले में आ रहा है या कई बार डकार के साथ खाना मुँह में आ जाता है। रात्रि में सोते समय इस तरह की शिकायत ज्यादा होती है। कई बार एसिड भोजन नली से सांस की नली में भी पहुंच जाता है, जिससे मरीज को दमा या खांसी की तकलीफ भी हो सकती है। कभी-कभी मुंह में खट्टे पानी के साथ खून भी आ सकता है।
जटिलताएं


दोनों प्रकार के अल्सर की तीव्रता बढने पर रोगी को खून की उल्टियां हो सकती है। लम्बे समय तक अल्सर रहने से आमाशय में जाने वाला रास्ता सिकुड जाता है जिससे रोगी को तीव्र वमन होते है। कभी अल्सर फूट भी सकता है जिससे पूरे पेट में संक्रमण हो जाता है तथा पेट में तेज दर्द रहता है। लम्बे समय तक अल्सर रहने से केंसर होने का खतरा हो सकता है। इसके साथ ही आयुर्वेदिक नुस्खे से भी एसिडिटी का इलाज किया जा सकता हैं।