VRINDAVAN INSTITUTE OF NATUROPATHY AND YOGIC SCIENCES is an authorized Work Integrated Vocational Education Center (WIVE) of Asian International University in India.

कृत्रिम श्वास बिधियों का वर्णन करें

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'


किसी भी व्यक्ति को कृत्रिम सांस देने की जरूरत तब पड़ती है जब वह किसी भयंकर दुर्घटना में ग्रस्त हो है जैसे- पानी में डूबना, दम घुटना, फांसी लगना या बिजली का झटका लगना आदि। इन कारणों से सांस की नली में रुकावट आने के कारण जब पीड़ित व्यक्ति की सांस बंद हो जाती है तो कृत्रिम सांस देकर उसकी रुकी हुई सांस को दुबारा लाया जाता है।
कृत्रिम सांस देने की क्रिया- अगर किसी दुर्घटना के कारण पीड़ित व्यक्ति को कृत्रिम सांस देनी हो तो सबसे पहले उसके शरीर के सारे कपड़े ढीले कर दें। अगर उसके मुंह में कोई पदार्थ हो तो उसे निकाल दें। अगर पीड़ित को ठंड लग रही हो तो उसके शरीर को कम्बल से ढक दें और उसके पास गर्म पानी की बोतलें रख दें।
कृत्रिम सांस देने की क्रिया तब तक करनी चाहिए जब तक पीड़ित व्यक्ति की सांस लेने और सांस छोड़ने का क्रम स्वाभाविक रूप से न लौट आए। कभी-कभी यह क्रिया 8 घंटे तक भी करनी पड़ सकती है। स्वाभाविक-सांस क्रिया चालू हो जाने के कुछ समय बाद तक भी पीड़ित को देखते रहना चाहिए क्योंकि कभी-कभी उसकी सांस दुबारा बंद होती हुई देखी जाती है और उस स्थिति में फिर कृत्रिम सांस क्रिया शुरु करने की जरूरत पड़ सकती है।
कृत्रिम सांस देने की विधियां
1.    शेफर की विधि (Shaffer’s Method)
2.    सिल्वेस्टर की विधि (Silvestre’s Method)
3.    लाबोर्ड की विधि (lab rod’s Method)


4.    राकिंग या ईव्स की विधि (Raking or Eve’s Method) 
शेफर विधि- अगर किसी पीड़ित व्यक्ति को शेफर विधि द्वारा कृत्रिम सांस देनी हो तो सबसे पहले उसके सारे कपड़े ढीले कर देने चाहिए ताकि उसके पूरे शरीर पर खुली हवा लग सके। कपड़े ढीले करने के बाद पीड़ित को पेट के बल लिटा दें तथा उसके सिर को घुमाकर एक ओर कर दें। उसके हाथों को सिर की ओर सीधा फैला दें। अगर जमीन समतल न हो तो पीड़ित के सिर के नीचे कोई कपड़ा आदि रख दें। फिर उसके मुंह की जांच करके देखें, अगर उसमें कोई ऐसी चीजें हो जिससे उसे सांस लेने में रुकावट आ सकती हो तो उसे निकालकर नाक तथा मुंह की सफाई कर दें।  
इसके बाद पीड़ित की कमर के पास बगल में घुटनों के बल बैठकर या पीड़ित की दोनों जांघों को अपने घुटनों के पास लाकर अपने दोनों हाथों को उसकी पीठ पर निचली पसलियों के पास इस प्रकार रखें कि आपके दोनों अंगूठे पीड़ित की पीठ के बीच वाले भाग में रीढ़ के ऊपर रहें तथा अंगुलियां कुछ-कुछ फैली हुई तथा कुछ-कुछ कंधों की ओर झुकी रहे। ध्यान रहें हथेलियां न तो बहुत ज्यादा बाहर की ओर रहे और न ही ज्यादा अंदर की ओर। जहां तक हो सके उन्हे रीढ़ की हड्डी से 2-3 इंच दूरी पर ही रखना चाहिए। पीठ पर दबाव डालते समय उपचारकर्ता की बाहें बिल्कुल सीधा होना चाहिए। उसे कंधों से लकर हथेली तक पूरी बांह को एक सीध में रखना चाहिए।
अब अपने दोनों हाथों को मजबूत रखते हुए थोड़ा आगे की ओर झुकें ताकि पीड़ित की पीठ पर दबाव पड़ सके। परंतु इस स्थिति में अपने शरीर की पेशियों का जोर न लगाकर अपने शरीर के भार से ही पीड़ित की पीठ पर दबाव डालें।  
इस तरह पीठ पर दबाव देने से पीड़ित के फेफड़ों पर भी दबाव पड़ता है जिसके फलस्वरुप फेफड़ों में भरी हुई वायु बाहर निकल जाती है। इस तरह की दुर्घटना अगर पानी में डूबने के कारण हुई होगी तो इस तरह की प्राथमिक चिकित्सा करने से फेफड़ों में भरा हुआ पानी भी निकल जाता है। 
इसके बाद उपचारकर्ता को आराम-आराम से ऊपर को उठना चाहिए ताकि पीड़ित व्यक्ति के ऊपर से उसके हाथों का दबाव हट जाए लेकिन उपचारकर्त्ता को अपने हाथ न हटाकर उसी स्थान पर रखने  चाहिए। ऐसा करने से पीड़ित व्यक्ति के फेफड़ों में वायु आ जाएगी। इस प्रकार दबाव डालने की क्रिया को समान गति से 1 मिनट में 14-15 बार करें।
दबाव हटाने की स्थिति में 2-3 सेकेंड तक रहें और इसके बाद दुबारा दबाव डालें। इस क्रिया को तब तक चालू रखें जब तक कि पीड़ित की सांस लेने की क्रिया स्वाभाविक रूप से शुरु न हो जाए। सांस चलने के बाद भी यह क्रिया तब तक चालू रखें जब तक कि पीड़ित अच्छी तरह से सांस न लेने लगे।
स्वाभाविक सांस चालू हो जाने पर पीड़ित को गर्म दूध, चाय या कॉफी पिलाएं। कम्बल और रजाई से पीड़ित का पूरा शरीर ढक दें। पीड़ित के हाथ-पैर तथा शरीर को धीरे-धीरे मलें और सहलाएं। इस विधि से खून के संचालन की क्रिया में उत्तेजना आती है।
वयस्क लोगों में कृत्रिम सांस के लिए शेफर विधि सबसे अच्छी मानी जाती है। इसका प्रयोग केवल एक ही व्यक्ति कर सकता है। इस विधि द्वारा कृत्रिम सांस देने में उपचारकर्त्ता जल्दी थक जाता है इसलिए उपचारकर्ता को चाहिए कि वह अपने दूसरे साथियों को भी अपने पास बैठा लें जिन्हें इस विधि का पता हो ताकि जब एक उपचारकर्त्ता थके तो दूसरा इस क्रिया तो जारी रखें। किसी भी कारण से सांस बंद होने पर शेफर विधि द्वारा पीड़ित व्यक्ति को कृत्रिम सांस दी जा सकती है।
सीने पर चोट लगने या क्लारोफॉर्म सुंघाने से बेहोशी आ गई हो या दूसरे कारणों से सांस बंद हो गई हो और पीड़ित को पेट के बल लिटाना उचित न हो तो शेफर विधि द्वारा उसे कृत्रिम सांस दी जा सकती है।
सिल्वेस्टर विधि- सिल्वेस्टर विधि द्वारा पीड़ित व्यक्ति को कृत्रिम सांस देने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ता है। इसलिए इस विधि द्वारा कृत्रिम सांस देने के लिए दो व्यक्तियों की जरूरत पड़ती है। जब कोई व्यक्ति पानी में डूबता है तब उसकी जीभ अंदर चली जाती है और कोई स्राव बाहर नहीं निकल पाता है। जिसके कारण उसकी सांस बंद हो जाती है।
सिल्वेस्टर विधि द्वारा कृत्रिम सांस देने के लिए सबसे पहले पीड़ित की छाती से सारे कपड़े हटा दें ताकि उसकी गर्दन और छाती पर हवा लग सके। फिर उसे सीधा चित्त लिटाकर उसके कंधों के नीचे एक तकिया या कोई कपड़ा रख दें।
इसके बाद पीड़ित के सिर के पीछे, उसकी ओर मुंह करके घुटनों के बल बैठ जाए तथा अपने साथी को उसकी कमर के पास एक ओर बैठा दें। इसके बाद सहायक को कहें कि वह किसी साफ रूमाल या कपड़े की सहायता से पीड़ित की जीभ को मुंह से बाहर निकालकर उसके मुंह को साफ करें। फिर पीड़ित के हाथों को कोहनियों से कुछ नीचे कलाई की ओर से पकड़कर अपनी ओर इस प्रकार खींचे कि पीड़ित की कोहनियां उसके सिर के पीछे फर्श का स्पर्श कर सकें। ऐसा करने से फेफड़े फैलते हैं तथा उनमें वायु का प्रवेश होता है।


पीड़ित को इस अवस्था में 2 सेकेण्ड तक रखने के बाद उसके हाथों को कोहनी से मोड़कर सामने की ओर छाती पर लाकर दबाएं। इससे फेफड़ों पर दबाव पड़ने के कारण फेफड़ों से वायु बाहर निकल जाती है।
इस क्रिया को एक मिनट में लगभग 14-15 बार करना चाहिए (हाथ को रोगी के सिर के पास लाकर फिर उसे छाती के ऊपर रखकर दबाव देना एक बार कहलाता है।) यह विधि पानी में डूबने के कारण सांस बंद होने पर उपयोगी रहती है। 
3. लाबोर्ड विधि- लाबोर्ड विधि द्वारा कृत्रिम सांस देने के लिए सबसे पहले पीड़ित व्यक्ति के सारे कपड़ों को ढीला करके उसे चित्त या एक करवट लिटा दें। फिर पीड़ित के पास एक तरफ घुटनों के बल बैठ जाएं। इसके बाद पीड़ित की जीभ को किसी साफ रुमाल या कपड़े से पकड़कर बाहर खींचे और लगभग दो मिनट तक ऐसे ही रखने के बाद छोड़ दें। इस तरह इस क्रिया को हर दो सैकेंड बाद दोहराएं। इस क्रिया को एक मिनट में 15 बार दोहराएं। इससे फ्रेनिक नर्ब को उत्तेजना मिलती है जिसके कारण डायाफ्राम का संकोचन होने से स्वाभाविक सांस प्रक्रिया के लौट आने की संभावना रहती है।
 इस विधि द्वारा पीड़ित को कृत्रिम सांस देने की क्रिया तभी करनी चाहिए जब ऊपर बताई गई दोनों विधियों से सांस देने पर भी पीड़ित की सांस न चलती हो। पसलियों तथा छाती की हड्डी टूट जाने पर इस विधि से ही कृत्रिम सांस दी जा सकती है।
4. रॉकिंग या ईव्स विधि- रॉकिंग या ईव्स विधि द्वारा कृत्रिम सांस देने के लिए सबसे पहले पीड़ित व्यक्ति को लम्बे-चौड़े तख्त पर पीठ के बल लिटा देना चाहिए। फिर उस तख्त के नीचे ठीक बीचों-बीच एक गोलाकार लकड़ी या स्टैण्ड रख दें जिस पर तख्ते को झुलाया जा सके।
इसके बाद पीड़ित को तख्ते पर लेटाकर उसके दोनों हाथों तथा दोनों पैरों को पट्टी से बांध दें। फिर तख्ते को एकबार सिर की ओर से तथा दूसरी बार पांव की ओर से उठाकर तराजू के पलड़े की तरह ऊंचा-नीचा कर दें। तख्ते को ऊंचा-नीचा 40 डिग्री के कोण तक करें तथा इसकी गति एक मिनट में 12 से 15 बार होनी चाहिए।
इस विधि में जब सिर नीचे की ओर जाता है तो रोगी के पेट की  आंतें ऊपर की ओर खिसककर डायाफ्राम पर दबाव डालती हैं तथा सिर ऊंचा करने से आंतें नीचे की ओर खिसक जाती है जिससे डायाफ्राम का दबाव हट जाता है और वह फैल जाता है।