By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का सम्बन्ध
योग व प्राकृतिक चिकित्सा दोनो ही हमारी शरीर की मानसिक व
शारीरिक स्थिति के साथ-साथ सामाजिक व आध्यात्मिक रूप से सुदृढ़ बनाती है। दोनो
पद्धति ही औषधि विज्ञान से जुड़ी नहीं है। ये मनुष्य कृत भी नहीं है। प्राकृतिक
चिकित्सा में विजातीय द्रव्य जो गलत खान-पान तथा जीवन शैली के विभिन्न पहलुओं से
तथा पेट की जठराग्नि के दोष एवं विकारों से शरीर में रोग उत्पन्न होते है। रोगो के
आने में नींद, कार्यशैली,
स्वभाव तथा प्रवृत्ति के साथ-साथ वातावरण का प्रभाव योग व
प्राकृतिक चिकित्सा दोनो में ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। इन दोनो के
उपचारात्मक चिकित्सा के आवश्यक तत्वों में धूप, वायु, जल, उपवास तथा धरती माता के सम्पर्क से लाभदायक परिणाम प्राप्त होते है। दोनो ही
पद्धतियों में बिना रोग की अवस्था अथवा स्थिति में भी दैनिक जीवन में निरन्तर
प्रयोग कर सकते है। ये दोनो पद्धतियां ही दैनिक जीवन में अपनाएं जाने से रोग आने
की सम्भावना को कम किया जा सकता है तथा इनको सभी अवस्थाओं में किया जा सकता है।
प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग व्यक्ति के उपचार की पवित्र
पद्धति है। इसका उद्देश्य प्राकृतिक विधियों के द्वारा मनुष्य को शारीरिक,
बौद्धिक, मानसिक, भावात्मक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास करना है। यहां योगा व प्राकृतिक
चिकित्सा में कुछ समानताओं व असमानताओं का विवरण दिया गया है:-
योग
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प्राकृतिक
चिकित्सा
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1
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योग का मुख्य
उद्देश्य अध्यात्मिक उन्नति है। रोगोपचार इसके बाद आता है।
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प्राकृतिक
चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक विधियों द्वारा जीवन परिवर्तन व रोगों का
उपचार करना है।
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2
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दवारहित
पद्धति है।
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दवारहित
पद्धति है।
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3
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योग मुख्यतः
दिमाग से सम्बन्धित नियंत्रण है इसके बाद में शारीरिक नियंत्रण
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यह पहले शरीर
तथा बाद में दीमाग को नियंत्रित करती है।
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4
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पवित्र
पद्धति है।
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पवित्र
पद्धति है।
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5
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योग की कुछ
तकनीकें शुद्धिकरण का उद्देश्य रखती है जैसे षट्कर्म
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यह शरीर से
विषाक्त पदार्थो के निष्कासन को प्राथमिकता देती है।
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6
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रोगनिवारक, प्रोत्साहक, स्वास्थ्य
लाभ की प्रकृति
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रोग
प्रतिकारक शक्ति को विकसित करने की प्राथमिकता
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7
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प्राण शक्ति
या जीवनी शक्ति को विकसित करना प्राथमिकता
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सिर्फ
दीर्घकालीन रोगो का समाधान तीक्षण व
दीर्घकालिक सभी प्रकार के रोगो में लाभप्रद
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8
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रोगी को
शिक्षित करना
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रोगी को
शिक्षित करना
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9
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आपातकालीन
स्थिति में लाभप्रद नहीं
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कुछ
आपातकालीन स्थितियों में भी लाभप्रद
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10
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कुछ क्रियाओं
को छोड़कर बाहरी तत्वों की चिकित्सा के लिए आवश्यकता न होना
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कुछ उपकरण
तथा पदार्थो का प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है जैसे जल, तेल, मिट्टी आदि ।
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11
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भोजन की
मुख्य भूमिका है।
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भोजन एक
महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
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प्राकृतिक चिकित्सा एवम् योग की बात जब भी की जाती है तभी
कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु सामने आते है। जैसे दोनो ही पद्धतियां स्वीकार करती है कि
रोग का मुख्य कारण प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करना है। दोनो ही पद्धतियां
स्वीकार करती है कि रोगों के उपचार में शरीर का शोधन ही एक मात्र उपचार है। दोनो
प्रणालियां कीटाणु को रोग के कारण नहीं मानती क्योकि शरीर में लाखों बैक्टीरिया
विद्यमान रहने पर भी यदि शरीर में विजातीय द्रव्य नहीं है। तो रोग उत्पन्न नहीं
होते है। दोनो ही पद्धतियों में शरीर को ही चिकित्सक के रूप में माना जाता है।
अर्थात् शरीर में ही रोग मुक्त होने की शक्ति विद्यमान है। दोनो ही पद्धतियों में
सकारात्मकता और नकारात्मकता को स्वास्थ एवम् रोग से जोड़ा है। योग के यम-नियम की
आवश्यकता और प्राकृतिक चिकित्सा की प्रसिद्ध प्राकृतिक जीवन शैली दोनो का एक ही
धेय है। दोनो ही पद्धतियां ऐसी है जिनको अपनाने से रोगो के पैदा करने में मुख्य
भूमिका निभाने वाले विजातीय द्रव्य एकत्र होने से बचाती है। और इसी कारण शरीर को
स्वस्थ रखने में तथा इनको दैनिक जीवन में उसका हिस्सा बनाकर अपनाये जाने से रोग
आने की सम्भावनाऐं कम हो जाती है। इन पद्धतियों में उपवास को शरीर की विभिन्न
कोशिकाओं के उत्पन्न होने के लिए तैयार करती है। दोनो ही पद्धतियां रात में जागने
और विलासिता पूर्ण जीवन चर्या को हमेशा अस्वस्थता के लिए जिम्मेदार मानती है। दोनो
ही पद्धतियों के उपचार में एक विशेष बात यह है कि इन पद्धतियों के उपचार के
उपरान्त शरीर पर उपचार का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है।