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पट्टियों के प्रकारों की व्याख्या करते हुये उनकी उपयोगिता बताइये

By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'


पट्टी बांधना
चोट, मोच, हड्डी टूट जाना आदि की स्थिति तथा किसी भी तरह के घाव का उपचार करने में शरीर के क्षतिग्रस्त भागों पर पट्टी बांधने की जरूरत पड़ती है। पट्टियों के मुख्य दो भेद हैं-
1.     मरहम पट्टी।
2.     सामान्य पट्टी।
मरहम पट्टी- किसी चोट ग्रस्त अंग को ढकने के लिए जिन साधनों का उपयोग किया जाता है, उन्हें मरहम पट्टी या ड्रेसिंग कहा जाता है। प्राथमिक उपचार करने के दौरान दो प्रकार की ड्रेसिग प्रयोग में लाई जाती है-
·       सूखी मरहम पट्टी।
·       गीली मरहम पट्टी।
सूखी मरहम पट्टी- इसका उपयोग घाव की सुरक्षा, घाव को भरने में सहायता पहुंचाने तथा घाव पर इच्छित-दबाव डालने के लिए किया जाता है। इस प्रकार के घावों के लिए सबसे अधिक भरोसेमंद मरहम-पट्टी कीटाणु-रहित फलालेन का वह टुकड़ा होता है, जो सामान्य पट्टी के साथ सिला रहता है। इस प्रकार की मरहम-पट्टी मोमी कागज में बन्द करके लिफाफे में रखी जाती है।         
गीली मरहम पट्टी- यह पट्टी भी दो प्रकार की होती है।
·       ठंडे सेंक वाली।
·       गर्म सेंक वाली।
1- ठंडे सेंक वाली मरहम पट्टी- इस प्रकार की पट्टी को दर्द के समय आराम पहुंचाने, सूजन को कम करने या आन्तरिक रक्तस्राव को रोकने के लिए लिए प्रयोग में लाया जाता है।
साफ रूमाल या फलालेन के टुकड़े की चार परत बनाकर ठंडे पानी में भिगोकर चोट-ग्रस्त अंग पर रखना ही इसकी विधि है। पट्टी को गीला तथा ठंडा बनाये रखने के लिए उसे समय-समय पर बदलते रहना भी जरूरी है।
2- गर्म सेंक वाली मरहम पट्टी- इस प्रकार की पट्टी का प्रयोग घाव के कारण होने वाले दर्द को कम करने के लिए किया जाता है। साफ रूमाल या फलालेन के टुकड़ों की चार परत बना कर, उसे गर्म पानी में भिगोने के बाद निचोड़ लें। इसके बाद उसे प्रभावित अंग पर रख दें। यह मरहम-पट्टी जितने ज्यादा समय तक गर्म रखी जा सके, उतने समय तक रखनी चाहिए।
सामान्य पट्टियां
सामान्य पट्टियां कई प्रकार की होती है जैसे-
·       तिकोनी पट्टियां।
·       बहुपुच्छी पट्टियां।
·       चिपकने वाली पट्टियां
·       लम्बी पट्टियां।        
 लटकाने वाली तिकोनी पट्टी- बांह में चोट आ जाने पर उन्हें लटकाने के लिए इन पट्टियों का उपयोग किया जाता है। बांह की हड्डी के टूट जाने पर हाथ को पेट के या छाती के सहारे मुड़ा रखने की जरूरत होने पर या बांह, हथेली, अंगुली, अंगूठा आदि में कोई ऐसा जख्म हो जाने पर जिससे कि उसके नीचे लटकने पर खून अधिक निकलने की सम्भावना हो, तब उसे ऊंची रखने के लिए भी इस पट्टी का प्रयोग किया जाता है। अंग्रेजी में इस प्रकार की पट्टिय़ों को स्लिंग (Sling) कहा जाता है।


ऐसी पट्टियों को तैयार करने के लिए मजबूत कपड़े का होना जरूरी है, ताकि वह बांह के वजन को अच्छी तरह सहन कर सके। इसलिए इस कार्य के लिए लट्ठा या किसी ऐसे ही दूसरे मजबूत कपड़े को उपयोग में लेना चाहिए। 38 इंच वाले कपड़े के चौकोर टुकड़ों को दोनों भागों में बांटकर कर्णवत् (Diognal) काटने से दो तिकोनी पट्टियां तैयार हो जाती हैं। जरूरत अनुसार पट्टी को जितनी लटकाना हो, उसी के अनुसार छोटी-बड़ी पट्टी तैयार की जा सकती हैं।
तिकोनी पट्टी को निम्नलिखित तीन अंगों में बांटा जा सकता है-
·       आधार (Base) या सबसे लम्बा किनारा।
·       (साइड्स) (Sides) या दोनों किनारों के छोर।
इसके तीनों कोनों में से ऊपर वाले सिरों को नोंक (Point) और बाकी कोनों को अन्तिम कोना (Ends)  कहा जाता है।
तिकोनी पट्टी का प्रयोग निम्नलिखित रूपों में किया जाता है-
·       खुली पट्टी के रूप में- इसे छाती या चौड़े भाग पर एक ही पट्टी के रूप में लगा दिया जाता है।
·       चौड़ी पट्टी के रूप में- इस तरीके में पट्टी के सिरे के नीचे बेस के बीच में लाकर, उसी दिशा में तह लगाकर बांध देते हैं।
·       संकरी पट्टी के रूप में- इस तरीके में पूर्वोक्त चौडी़ पट्टी की एक तह दुबारा उसी दिशा में लगा दी जाती है।
जरूरत अनुसार चौड़ी या संकरी पट्टी बनाने के लिए तिकोनी पट्टी के दोनों सिरों को मिलाकर आधा कर लिया जाता है।
बहुपुच्छी पट्टियां
इन पट्टियों को फलालेन या साफ कपड़ों द्वारा जरूरत अनुसार तैयार कर लिया जाता है। लेकिन कपड़ा चाहे जैसा भी हो, वह इतना लम्बा जरूर होना चाहिए कि जिस अंग पर पट्टी लगानी हो, उसके चारों ओर उसे डेढ़ बार लपेटा जा सके तथा चौड़ा इतना हो कि घाव वाले स्थान की पूरी हड्डियों को ढक लें।
कपड़े के दोनों सिरों को इस प्रकार से काटना चाहिए कि सभी पट्टियां चौड़ाई के बराबर तथा एक दूसरे के प्रति समानान्तर रेखा में कपड़े के बीचों-बीच से निकल जायें और वे सब चौड़ाई के बराबर की हों, लेकिन कपडों का मध्य भाग मुड़ा हुआ रहना चाहिए। बांधे जाने वाले अंग के आधार पर इसकी चौड़ाई 2 से 4 इंच तक रखी जा सकती है।
बहुपुच्छी पट्टी तैयार करने की दूसरी विधि में कपड़े की पट्टियों को समानान्तर रेखा में इस प्रकार रख दिया जाता है कि हर पट्टी, दूसरी पिछली पास वाली पट्टी के एक तिहाई भाग को अपने नीचे दबाये रहे। इस तरह रखने के बाद पट्टियों को उनके केन्द्र के दोनों ओर कुछ दूर तक सिल दिया जाता है या पट्टियों को केन्द्र के आर-पार वैसे ही कपड़े को रखकर सिल देते हैं।   
इस पट्टी को करने का मुख्य लाभ यह है कि घाव की जांच तथा मरहम-पट्टी बदलने की क्रिया रोगी को बिना किसी तरह का कष्ट पहुंचाए ही पूरी की जा सकती है।
चिपकाने वाली पट्टियां
 इन पट्टियों को  सामान्य फोड़े, फुन्सी आदि पर इन्हें वैसे ही चिपका दिया जाता है। अगर किसी अंग के घाव आदि पर रूई या गॉज आदि को सही स्थान पर बनाए रखना हो और वहां सामान्य पट्टी न बांधी जा सके तो इनका उपयोग अच्छा रहता है।
लम्बी पट्टी
लम्बी पट्टी बांधने के प्रकार
·       सामान्य घुमाव की पट्टी (Simple Spiral)
·       उल्टे घुमाव की पट्टी (Reversed Spiral)
·       अंग्रेजी के अंक 8 जैसी पट्टी (Figure-of 8 type Spiral)
·       अंक 8 की सुधरित रीति वाली स्पाइका पट्टी (Spaica Spiral)
सामान्य घुमाने की पट्टी- यह पट्टी शरीर के उस भाग पर बांधी जाती है, जिसकी मोटाई एक समान हो जैसे- अंगुली, कलाई, भुजा का अगला हिस्सा या टांग का निचला भाग।
इस किस्म की पट्टी जिस स्थान पर भी बांधनी हो, पहले उसे सीधा कर लेना चाहिए। इसके बाद पट्टी बांधने की शुरूआत करनी चाहिए। फिर इस लपेट को आगे बढ़ाते जाना चाहिए, ताकि चोट-ग्रस्त भाग ढकता हुआ चला जाए।  
उल्टे घुमाव की पट्टी- इस प्रकार की पट्टी में कई घुमाव (पेच) देने की जरूरत पड़ती है। इन घुमावों में लम्बी पट्टी जब अंग के चारों ओर घूम जाती है, तब वह अपने ऊपर से मुड़ जाती है।
इस प्रकार की पट्टी उन अंगों पर बांधी जाती है, जिनकी मोटाई एक जैसी नहीं होती या फिर कहीं कम और कहीं ज्यादा होती है। ऐसे अंगों पर सामान्य-घुमाव की पट्टी नहीं बांधी जा सकती और यदि बांध भी दी जाती है तो ठहर नही पाती है। इसलिए इन पर उल्टे घुमाव की पट्टी ही बांधनी चाहिए।
अंग्रेजी के अंक आठ 8 जैसी पट्टी- इस विधि में पट्टी को रोग-ग्रस्त अंग के चारों ओर एक बार नीचे और फिर ऊपर ले जाते हुए तिरछा बांधा जाता है। इस प्रकार की पट्टी बाँधने से जो फंदे बनते हैं वे अंग्रेजी के अंक 8 जैसे आकार के होते हैं।
इस प्रकार की पट्टी किसी अंग के जोड़ अथवा जोड़ के समीप वाले स्थान पर बांधी जाती है- जैसे कोहनी तथा घुटने।
इस विधि में जोड़ के ऊपर तथा निचले भाग तक पट्टी का कपड़ा आ जाना चाहिए। इस प्रकार बांधने से पट्टी के खिसकने की सम्भावना कम रहती है। पट्टी को नीचे से ऊपर ले जाते समय कपड़े की दूरी जहां तक हो सके, अधिक रहनी चाहिए।


स्पाइका पट्टी- यह पट्टी भी अंग्रेजी के अंक आठ जैसी ही होती है, लेकिन इसे ज्यादा सुधरे रूप में अर्थात गेंहू की बाल जैसी रचना में बांधा जाता है।
          कंधे, जांघ, हाथ के अंगूठे तथा पांव के अंगूठे पर दबाव डालने के लिए इस प्रकार की पट्टी बांधी जाती है।