By- Dr. Kailash Dwivedi 'Naturopath'
प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी / naturopathy)
एक चिकित्सा-दर्शन है। इसके अन्तर्गत रोगों का उपचार व स्वास्थ्य-लाभ
का आधार है - 'रोगाणुओं
से लड़ने की शरीर की स्वाभाविक शक्ति'। प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत अनेक पद्धतियां हैं जैसे
- जल चिकित्सा, सूर्य
चिकित्सा,
मृदा चिकित्सा आदि। प्राकृतिक चिकित्सा के प्रचलन में विश्व
की कई चिकित्सा पद्धतियों का योगदान है; जैसे भारत का आयुर्वेद तथा यूरोप का 'नेचर क्योर'।
प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली चिकित्सा की एक रचनात्मक विधि है,
जिसका लक्ष्य प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्वों के
उचित इस्तेमाल द्वारा रोग का मूल कारण समाप्त करना है। यह न केवल एक चिकित्सा पद्धति
है बल्कि मानव शरीर में उपस्थित आंतरिक महत्त्वपूर्ण शक्तियों या प्राकृतिक तत्वों
के अनुरूप एक जीवन-शैली है। यह जीवन कला तथा विज्ञान में एक संपूर्ण क्रांति है। प्राकृतिक
चिकित्सा पद्धति में प्राकृतिक भोजन, विशेषकर ताजे फल तथा कच्ची व हल्की पकी सब्जियाँ विभिन्न बीमारियों
के इलाज में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। प्राकृतिक चिकित्सा निर्धन व्यक्तियों एवं
गरीब देशों के लिये विशेष रूप से वरदान है।
प्राकृतिक चिकित्सा के मूलभूत सिद्धान्त
· कोई हानि नहीं करना
· रोग के कारण का इलाज करना (न कि लक्षण का)
· स्वस्थ जीवन जीने तथा रोग से बचने की शिक्षा देना (रोगी-शिक्षा
का महत्व)
· व्यक्तिगत इलाज के द्वारा सम्पूर्ण शरीर को रोगमुक्त करना (हर
व्यक्ति अलग है)
· चिकित्सा के बजाय रोग की रोकथाम करने पर विशेष बल देना
· शरीर की जीवनी शक्ति (रोगों से लड़ने की क्षमता) को मजबूत बनाना
(शरीर ही रोगों को दूर करता है, दवा नहीं)
व्यवहार में प्राकृतिक चिकित्सा :
प्राकृतिक चिकित्सा न केवल उपचार की पद्धति है,
अपितु यह एक जीवन पद्धति है। इसे बहुधा 'औषधिविहीन उपचार पद्धति' कहा जाता है। यह मुख्य रूप से प्रकृति के सामान्य नियमों के
पालन पर आधारित है। जहाँ तक मौलिक सिद्धांतो का प्रश्न है,
इस पद्धति का आयुर्वेद से निकटतम सम्बन्ध है।
प्राकृतिक चिकित्सा के समर्थक खान-पान एवं रहन-सहन की आदतों,
शुद्धि कर्म, जल चिकित्सा, ठण्डी पट्टी, मिटटी की पट्टी, विविध प्रकार के स्नान, मालिश तथा अनेक नई प्रकार की चिकित्सा विधाओं पर विशेष बल देते
है। प्राकृतिक चिकित्सक पोषण चिकित्सा, भौतिक चिकित्सा, वानस्पतिक चिकित्सा, आयुर्वेद आदि पौर्वात्य चिकित्सा,
होमियोपैथी, छोटी-मोटी शल्यक्रिया, मनोचिकित्सा आदि को प्राथमिकता देते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा के व्यवहार में आने वाले कुछ कर्म नीचे वर्णित
हैं-
मिट्टी चिकित्सा
मिट्टी जिसमें पृथ्वी तत्व की प्रधानता है जो कि शरीर के विकारों
विजातीय पदार्थो को निकाल बाहर करती है। यह कीटाणु नाशक है जिसे हम एक महानतम औषधि
कह सकते है।
मिट्टी की पट्टी का प्रयोग
उदर विकार, विबंध, मधुमेह, सिर दर्द, उच्च रक्त चाप ज्वर, चर्मविकार आदि रोगों में किया जाता है। पीड़ित अंगों के अनुसार
अलग अलग मिट्टी की पट्टी बनायी जाती है।
वस्ति (एनिमा)
उपचार के पूर्व इसका प्रयोग किया जाता जिससे कोष्ठ शुद्धि हो।
रोगानुसार शुद्ध जल नीबू जल, तक्त, निम्ब क्वाथ का प्रयोग किया जाता है। वस्ति (enima)
वह क्रिया है, जिसमें गुदामार्ग, मूत्रमार्ग, अपत्यमार्ग, व्रण मुख आदि से औषधि युक्त विभिन्न द्रव पदार्थों को शरीर में
प्रवेश कराया जाता है।
जल चिकित्सा
इसके अन्तर्गत उष्ण टावल से स्वेदन,
कटि स्नान, टब स्नान, फुट बाथ, परिषेक, वाष्प स्नान, कुन्जल, नेति आदि का प्रयोग वात जन्य रोग पक्षाद्घात राधृसी,
शोध, उदर रोग, प्रतिश्याय,
अम्लपित आदि रोगो में किया जाता है।
सूर्य रश्मि चिकित्सा
सूर्य के प्रकाश के सात रंगो के द्वारा चिकित्सा की जाती है।
यह चिकित्सा शरीर मे उष्णता बढ़ाता है। स्नायुओं को उत्तेजित करना वात रोग,
कफ, ज्वर, श्वास,
कास, आमवात पक्षाघात, ह्रदयरोग, उदरमूल,
वात जन्यरोग, शोध चर्मविकार, पित्तजन्य रोगों में प्रभावी हैं।
उपवास
सभी पेट के रोग, श्वास, आमवात, सन्धिवात, त्वक विकार, मेदो वृद्धि आदि में विशेष उपयोग होता है।